महीना भर होने को आया है जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने यह ऐलान किया कि मुंबई के आरे मिल्क कॉलोनी की 600 एकड़ जमीन को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया जाएगा. बीते 2 सितंबर को किये उनके ऐलान से ऐसा लगा कि कई बरसों से चली आ रही कहानी में एक दूसरा और दिलचस्प मोड़ आ गया है.
आपको याद होगा कि आरे के जंगलों पर आरा चलने को लेकर मुंबईकरों और पर्यावरणविदों ने अपनी नाखुशी जाहिर की थी.
असल में, गोरेगांव में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के पास आरे मिल्क कॉलोनी को 1949 में बसाया गया था. आरे की सरहद में 27 आदिवासी पुरवे हैं और इसकी आबादी तकरीबन 10,000 है.
इस जंगल में जीवों और वनस्पतियों की करीब 290 प्रजातियां पायी जाती हैं और यह मीठी और ओशिवारा दो नदियों का जलागम क्षेत्र भी है.
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असल में जिस वनक्षेत्र को लेकर विवाद है वह 3,166 एकड़ की हरित पट्टी है, लेकिन एक के बाद एक राज्य सरकारों ने विभिन्न परियोजनाओं के लिए इसकी जमीनें हड़पनी (पढ़ें, अधिग्रहित) शुरू कर दीं. इन परियोजनाओं में से महत्वपूर्ण थी दादा साहेब फाल्के फिल्म सिटी.
नतीजतन, यह हरा-भरा क्षेत्र घटता गया और सिकुड़कर महज 1,800 एकड़ का रह गया है.
इस साल जून में, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के एक आदेश को बरकरार रखा जिसमें आरे कॉलोनी को एसजीएनपी के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र से बाहर रखा गया था. इसके साथ ही इसके दायरे में आने वाली करीब और 400 एकड़ जमीन पर चल रही इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को जारी रखा जा सकता था.
इन परियोजनाओं में एमएमआरसी (मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन) कार शेड और एक मेट्रो भवन के साथ झुग्गियों में रहने वालों के पुनर्वास के लिए बनाये जाने वाले मकान और एक जूलॉजिकल पार्क शामिल हैं.
आपको याद होगा कि पिछले साल अक्टूबर में आरे पर्यावरणवादियों के प्रतिरोध की मिसाल बन गया था और सोशल मीडिया पर इसकी गूंज सुनायी दी थी. तब बॉम्बे हाइकोर्ट की मंजूरी के बाद, एमएमआरसी ने कॉलोनी में कार शेड बनाने के वास्ते करीबन 2,100 पेड़ काट दिये थे.
वैसे, पिछली भाजपा सरकार यह मानती ही नहीं थी कि यहां, आरे में कोई वनक्षेत्र मौजूद भी है. सचाई यह है कि यहां करीब दस लाख पेड़ हैं. अब जब उद्धव ठाकरे ने यहां वनक्षेत्र को संरक्षित बनाने की घोषणा की है, तो इसे देर आयद दुरुस्त आयद निर्णय कहा जा सकता है.
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