गाहे-बगाहे: या इलाही ये मुहल्ला क्या है!


हमने अभी जिस मुहल्ले में शिफ्ट किया है वह पत्रकारों का मुहल्ला है और पहली बार पता चल रहा है कि पत्रकार किस तरह के सांस्कृतिक पर्यावरण में रहते हैं। यह मुहल्ला, जिसे पत्रकारपुरम कहा जाता है, दो हिस्सों में बंटा है। एक में तकरीबन चालीस घर होंगे जिसमें कुछ अभी बन रहे हैं और कुछ बनकर रहने वालों का इंतज़ार कर रहे हैं। कुछ पत्रकारों ने भाव बढ़ने से अपने प्लॉट बेच दिये और दूसरी जगह चले गए। कुछ पत्रकारों ने मीडिया रिसर्च आदि उपक्रम शुरू किए और छोटे-मोटे अखबार शुरू कर दिये। कई के असली धंधे दूसरे हैं लेकिन चेहरे पत्रकार के हैं। संभव है दूसरे भाग में जहां तकरीबन ढाई सौ घर बताए जाते हैं, वहां भी ऐसा ही कुछ हो लेकिन मेरा संकेत चालीस घरों वाले मुहल्ले में एक स्वनामधन्य पत्रकार के नाम पर बने पार्क में स्थित मंदिर की ओर है।

मंदिर में सुबह शाम तीन-तीन घंटे यानि कुल मिलाकर छह घंटे नियमित रूप से  रिकार्डेड भजन बजाए जाते हैं। अधिक गुंजाइश यह है कि भजन बजाने की अवधि एक-दो घंटे अधिक हो। रोज के चौबीस घंटे में आठ या छह घंटे भजन सुनते हुए दिन बिताना वाकई हिन्दुत्व का नया फार्मूला है। भजन भी कैसे? वैष्णो और संतोषी देवी से लेकर हनुमान, शिव और राम, साईं बाबा तक अनेक देवता और भगवान हैं। सबसे अधिक भजन हनुमान को लेकर है। हनुमान चालीसा, हनुमान बाहुक, हनुमान आरती, हनुमानाष्टक सहित अनेक प्रकार की विरुदावलियां जिनसे पता लगता है कि हनुमान जी बहुत वीर थे। दूसरा नंबर मैया का है– ‘जय जय संतोषी माता जय-जय मां’ से होते हुए मां का दिल और माता ने बुलाया है आदि कम से कम आठ भजन। फिर आते हैं दशरथ तनय कौशिला नन्दन। इनके पांच भजन हैं। शिव के नाम पर तांडव स्रोत ही है। साईं के नाम पर भी एक भजन है। इन भजनों के अलावा कीर्तन है जिसे माइक का स्वर ऊंचा करके घंटे डेढ़ घंटे करना बहुत मामूली बात है। भजन सबके कानों में जाय इसलिए हर खंभे पर स्पीकर लगाया गया है। कुल मिलाकर एकदम हिन्दुत्व-प्रखर वातावरण रहता है जिसमें आधा समय फटे बाँस जैसी बेसुरी आवाजों के हवाले होता है।

कई बार मैं सोचता हूं कि इस मुहल्ले की वास्तविक पहचान क्या है। पत्रकार कालोनी या संकट मोचन मंदिर? पिछले दिनों 17 सितंबर की पूर्व दोपहरी में जब रामचरित मानस का पाठ शुरू हुआ तो मैं डर गया कि कहीं नवरात्र तो नहीं आ गया। ज़ोर-शोर से पाठ होने लगा। घर में रहना मुश्किल हो गया। पूरी रात नींद आती रही जाती रही। अगले दिन ग्यारह के करीब सब थमा तो लोग हॅप्पी बर्थडे गाने लगे। पता चला प्रधानमंत्री का जन्मदिन है। किसी पत्रकार बाशिंदे ने अपने बल पर आयोजन किया था। फोटो सेशन के बाद पूर्णाहुति हुई। एक पत्रकार की स्मृति में बना यह पार्क, पार्क न रहकर मंदिर हो गया और मुझे लगता है कुछ दिनों में लोग यहां उसी तरह आएंगे जैसे हफ्ते में एक दिन बड़ा गणेश तो एक दिन छोटा गणेश, एक दिन संकट मोचन तो एक दिन मनोकामनापूर्ण हनुमान मंदिर, एक दिन चिंतापुरनी महारानी जाना धार्मिकों की दिनचर्या है। कहा जाता है कि जब यह पार्क बना तो वरिष्ठ पत्रकार सियाराम यादव ने उसमें अपनी गाय बांधना शुरू किया जिसको भगाने के लिए मंदिर की तामीर हुई और यह सब शुरू हुआ।

उत्तर भारत का यह खास धार्मिक परिदृश्य है और हजारों की संख्या में ऐसे ही मंदिरों से ऐसे ही भजन प्रतिदिन छह-आठ घंटे बजाये जाते हैं। जबरन। और कोई भी ऐतराज करे तो दंगा करने के लिए तैयार बैठे धर्मप्राण। बनारस में एक मुस्लिम मित्र ने हिन्दू मुहल्ले में घर बनवाया जिसके बीस मीटर दूर छोटा सा मंदिर है। एक दिन मैं उनके घर गया। शाम चार बजे से ही भजन के नाम पर भोजपुरी के अश्लीलतम गानों का ऐसा शोर कि मत पूछिए। मित्र ने बताया कि यह सिलसिला चार बजे भोर से शुरू होता है और सुबह दस बजे तक चलता है। फिर चार बजे शाम से अनवरत। वे परेशान थे। बच्चों की पढ़ाई का तो कोई मसला ही नहीं है। मकान बेचकर दूसरी जगह जाना भी मुश्किल है क्योंकि यह मकान तो सस्ते में ही निकल जाएगा, लेकिन दूसरे मकान के आगे महंगाई मुंह बाए खड़ी मिलेगी। मुंबई-दिल्ली की सभी अच्छी और साफ-सुथरी कालोनियां अपर कास्ट हिन्दू की हैं। हर कालोनी में एक मंदिर अनिवार्य है। हिन्दुत्व ने पिछले दशकों में इन सबको अनिवार्य कर दिया है। पूरी तरह इस मानसिकता का कब्जा है। पहले की सहज धार्मिकता की जगह एक उग्र धार्मिकता ने ले ली है। इस उग्र धार्मिकता का सामाजिक चरित्र क्या है, इसका अध्ययन बहुत जरूरी है लेकिन इसका दर्शन क्या है इस पर महान बहुजन विचारकों ने जो सवाल उठाए उनका जवाब हिन्दुत्व के किसी पुरोधा के पास नहीं है।

असली बात तो यह है कि हिन्दुत्व का सारा कारोबार जाति-व्यवस्था और ब्राह्मणवाद के अस्तित्व को बचाए रखने का एकमात्र कारोबार है। हिन्दुत्व का कोई नेता नहीं है। न ही उसका कोई विचार या सैद्धांतिकी है। यहां जो बहुदेववादी विशेषता दिखाई पड़ती है वह दरअसल उसकी बिखरी हुई वह प्रणाली है जो कभी जनविश्वासों की अभिव्यक्ति का माध्यम रही है। उसे ही हिन्दुत्ववादी कारोबारियों ने एक जगह इकट्ठा कर दिया और उनकी दुकान धक्काड़े से चलने लगी। मैं अपने बचपन से देखता रहा हूं कि किसी-किसी गांव में ही मंदिर होता था। खास तौर से वहां जहां कोई सम्पन्न व्यक्ति होता था। उस मंदिर में भी सबके घुसने की मनाही थी। आमतौर पर किसान स्त्री-पुरुष नहाने के बाद लोटे या अंजुरी से सूरज की ओर मुंह करके पानी गिराया करते थे। बस। इतने से उनकी भक्ति हो गई। नदियों में मिलने वाले पत्थरों को पिंडी बनाकर भी कुछ भक्त अपनी पूजा सम्पन्न करते थे। बनारस में पंचकोशी यात्रा मार्ग बनाया गया था। ज़्यादातर मंदिर उसी के किनारे होते थे। तरह-तरह के देवी-देवता। गांव में बीमारियां फैलने और मौतों से डरकर लोग मनौतियां मानते थे और साल में एकाध नहान, दो-चार साल में पंचकोशी यात्रा या किसी दूर-दराज की ‘जागता’ देवी की यात्रा आदि कर लेते थे। इन सबका प्रचार इसलिए सुनियोजित किया जाता था क्योंकि मंदिरों और पुजारियों की अर्थव्यवस्था मजबूत रहे और ब्राह्मण परजीवी ज़िंदा रह सकें। वे जनता को धर्म के नाम पर लूटते थे। उनकी इस धार्मिकता का कोई सैद्धान्तिक आधार नहीं था। अगर शिक्षा पर कुछ ही लोगों का अधिकार न होता और भारत में उच्चस्तरीय चेतना वाले लोगों का शासन होता तो विज्ञान ने इन चीजों को अपदस्थ कर दिया होता। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ।

हुआ यह कि हनुमान अलग-अलग आकार के बनते गए। शनिचर महाराज प्रकट हुए और हर शनिवार को तेल पीने लगे। उनके रंग को लेकर एक हॉरर पैदा कर दिया। देह का ही काला नहीं है। मन का भी काला है। कुदृष्टि डाल देगा इसलिए तेल पिलाओ। संतोषी माई, वैष्णो माई ने जगह बना ली। साई बाबा ने घेरा डाल दिया। हजारों करोड़ का कारोबार फैल गया। फिल्मों और अखबारों ने इन सबके पक्ष में मोर्चा खोला और हिन्दुत्व की पूंछ लंबी होती गई। संघ ने जब राममंदिर को अपनी सत्ता का केंद्रीय एजेंडा बनाया तो इन सब चीजों ने उसे अपरिमित ताकत दी। आज संघ के पास समाज को फिर से पीछे धकेलने की ताकत ही इसलिए मिल गई है क्योंकि संघियों ने एक सिद्धान्त, दर्शन और नेताविहीन धर्म के बिखरे तत्वों को जोड़कर अपना सिपाही बना लिया है। अगर हिन्दू धर्म के तहत आने वाले बाकी समाजों का अधःपतन नहीं हुआ होता तो शायद संघ के मंसूबे इतनी आसानी से न पूरे होते।

हिन्दुत्व का दर्शन विभाजन का दर्शन है और यह अपने ही समाज के बहुसंख्यक और श्रमशील हिस्से को अपने मुट्ठी भर लोगों के लिए अपना उपनिवेश बना लेता है। अपने प्रसिद्ध लेख ‘हिन्दुत्व का दर्शन’ में डॉ. अंबेडकर ने ऐसे कई बिंदुओं पर विचार किया है जो वास्तव में हिन्दुत्व के खोखलेपन पर अनेक स्तरों से प्रहार करता है। बाबा साहब हिन्दुत्व की पृष्ठभूमि में मनुस्मृति के नियमों को रेखांकित करते हैं जो वस्तुतः जाति-व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था और उसमें सुप्रीम ब्राह्मणवाद की सुरक्षा के कानून हैं। वे कहते हैं कि सामाजिक अधिकारों से संबन्धित मनु के विधि नियमों से अधिक कुख्यात अन्य दूसरी विधि नियमावली नहीं है। किसी स्थान का कोई भी सामाजिक अन्याय का उदाहरण उसके सामने फीका पड़ जाएगा। जिन सामाजिक बुराइयों  के तहत उन पर अत्याचार किए गए, उन्हें अनगिनत लोगों ने क्यों सहन किया?

वे लिखते हैं:

ऐसे दर्शन या तत्वज्ञान को, जो समाज को अलग-अलग टुकड़ों में बांटता हो, जो कार्य को रुचि से अलग करता हो, जो मनुष्य के वास्तविक हितों के अधिकार को नष्ट करता हो और जो संकट के समय समाज को सुरक्षित करने के लिए अपने साधनों को गतिशील बनाने के मार्ग में रुकावटें पैदा करता हो, ऐसा दर्शन सामाजिक उपयोगिता की कसौटी पर सफल है, ऐसा कैसे कहा जा सकता है? इसलिए हिन्दू धर्म का दर्शन न तो सामाजिक उपयोगिता की कसौटी पर और न ही न्याय की कसौटी पर और न ही व्यक्तिगत न्याय की कसौटी पर खरा उतरता है।

(अंबेडकर संचयन , सं रामजी यादव , 2012 , पृष्ठ 269 , भारतीय पुस्तक परिषद , नई दिल्ली )

सान 1927 में गांधी और पेरियार ई वी रामसामी नायकर के बीच एक बातचीत इस संदर्भ में बहुत दिलचस्प है। पेरियार ने हिन्दुत्व को पूरी तरह खारिज किया है। ‘मैं हिन्दुत्व विरोधी क्यों हू से यह बातचीत यहां दी जा रही है:

पेरियार – हिन्दुत्व को बिलकुल ही समाप्त कर देना चाहिए।

गांधी – आप ऐसा क्यों सोचते हैं ?

पेरियार – ऐसा कोई धर्म नहीं , जिसे ‘हिन्दुत्व’ कहा जाय।

गांधी – लेकिन यह तो है।

पेरियार – यह ब्राह्मणों का षड्यंत्र है। उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिला दिया है कि हिन्दुत्व भी एक धर्म है।

गांधी – क्या हम यह नहीं कह सकते कि सारे धर्म ही विश्वास और कल्पना पर आधारित हैं ?

पेरियार – नहीं, हम ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि अन्य सभी धर्मों के ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध हैं। उन सभी धर्मों में ऐसे सर्वस्वीकृत सिद्धान्त हैं जिनको उनके सभी अनुयायी समान रूप से स्वीकार करते हैं।

गांधी – क्या हिन्दू धर्म में ऐसे सिद्धान्त नहीं हैं?

पेरियार – कहाँ हैं? इसने पूरे समाज को ब्राह्मण, शूद्र और वैश्य जैसी अलग-अलग इकाइयों में विभक्त कर दिया है। यह घोषणा करता है कि ब्राह्मण सर्वोच्च हैं एवं अन्य नीच। यह विभेद ही इस तथाकथित धर्म की एकमात्र उपलब्धि है। इस धर्म के वकीलों द्वारा किसी भी घोषित दावे की सच्चाई के लिए कोई पुख्ता सबूत उपलब्ध नहीं है।

गांधी – ठीक है! हिन्दू धर्म में कम से कम सिद्धान्त तो हैं!

पेरियार – हमारे लिए यह कितना उपयोगी है? इस सिद्धान्त के अनुसार सिर्फ ब्राह्मण ही उच्च जाति के हैं। आप, मैं और बाकी सभी निम्न जाति के लोग हैं।

गांधी – आपकी बात सही नहीं है। वर्णाश्रम धर्म में ऊंची-नीची किसी भी जाति का कोई उल्लेख नहीं है।

पेरियार – आप इससे संतुष्ट तो हो सकते हैं, किन्तु व्यावहारिकता इसके बिलकुल उलट है।

गांधी – इसे व्यवहार में लाया जा सकता है।

पेरियार – जब तक हिन्दुत्व का अस्तित्व है, तब तक यह असंभव है।

गांधी  – हिन्दू धर्म की मदद से यह संभव है।

पेरियार – इस सूरत में धर्म द्वारा समर्थित ब्राह्मण और शूद्र के जाति-विभाजन का क्या होगा?

गांधी –  अभी आपने कहा कहा कि हिन्दू धर्म में जाति-विभाजन सहित किसी भी सिद्धान्त के समर्थन के लिए कोई प्रमाण नहीं है।

पेरियार – मैं कहता हूं कि हिन्दुत्व कोई धर्म ही नहीं है। इसीलिए इस धर्म के नाम पर समाज को ऊंच-नीच जातियों में विभक्त करने वाले दावे एवं सिद्धान्त भी मान्य नहीं हैं। लेकिन यदि हम हिन्दुत्व को एक धर्म के रूप में स्वीकार कर लेते हैं तो फिर धर्म के नाम पर किए जाने वाले दावों पर भी विचार करना पड़ सकता है।

गांधी – हम लोग धर्म को स्वीकार कर सकते हैं और इसकी बुनियादी नीतियों के समर्थन में कुछ सिद्धान्त बना सकते हैं।

पेरियार – यह असंभव है। यदि हम किसी धर्म को स्वीकार कर लेते हैं तो उससे सम्बद्ध किसी भी चीज को बादल नहीं सकते।

गांधी – आपका यह कथन बाकी सभी धर्मों पर लागू होता है, किन्तु हिन्दू धर्म पर नहीं। इसे स्वीकार करने के बाद आप उसके नाम पर कुछ भी कर सकते हैं, आपको कोई रोकेगा नहीं।

पेरियार – आप यह कैसे कह सकते हैं? मुझे धर्म के नाम पर ‘कुछ भी’ करने की अनुमति कौन देगा? क्या मैं यह जान सकता हूं कि इस धर्म का कौन सा सिद्धान्त मुझे यह करने की अनुमति देगा?

गांधी – आप ठीक कहते हैं, हिन्दुत्व कोई धर्म नहीं है। मैं यह मानता हूं मैं आपके इस कथन से भी सहमत हूं कि हिन्दू धर्म में स्थिर सिद्धान्त नहीं हैं। इसी कारण मैं कहता हूं कि सबसे पहले हम यह मान लें कि हम हिन्दू हैं। फिर हम हिन्दू धर्म के लिए सिद्धांतों का निर्माण कर सकते हैं। यदि हम चाहते हैं कि इस देश में ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया में लोग अनुशासित और सम्मानित जीवन जीएं तो यह हिन्दुत्व की सहायता से ही संभव है। अन्य धर्म इसमें हमारी कोई सहायता नहीं कर सकते क्योंकि वे ऐतिहासिक दृष्टि से प्रामाणिक और विश्वसनीय हैं। उनके सिद्धांतों के लिए तर्क और सटीक प्रमाण भी उपलब्ध हैं। यदि हम वहां कोई चालाकी करते हैं तो फिर धर्म के अनुयायी हमें दंडित भी कर सकते हैं। ईसा मसीह के शब्दों या फिर बाइबिल में उनके विचार के रूप में जो भी संकलित है , उसे मानने के लिए ईसाई बाध्य हैं। मुसलमानों को भी कुरान में विद्यमान मुहम्मद नबी के विचारों को मानना अनिवार्य है। यदि उसमें परिवर्तन के लिए कोई सुझाव रखा जाता है तो वह अधार्मिक कर्म माना जाएगा। यदि कोई ऐसा विचार रखता है तो सबसे पहले उसे उस धर्म से बाहर आना पड़ेगा। उसके बाद ही अपने विचारों को अभिव्यक्त कर पाने के लिए वह स्वतंत्र होगा, अन्यथा उसे भयंकर दंड मिलेगा। सभी प्रामाणिक धर्मों की यही प्रकृति है। किन्तु चूंकि हिन्दुत्व कोई वैसा धर्म नहीं है, इसीलिए इस धर्म के नाम पर कोई भी व्यक्ति महान के रूप में स्वीकृति पा सकता है। वह अपने विचारों को धार्मिक सिद्धान्त के रूप में व्यक्त कर सकता है। इस तरीके से कई महान व्यक्ति धर्म के नाम पर अपने बहुत से विचार व्यक्त कर चुके हैं। इसलिए हम भी इस धर्म में कुछ ऐसे सुधार ला सकते हैं, जो आज के समाज और समय के अनुसार जरूरी हो।

पेरियार – क्षमा कीजिए! यह असंभव है।

गांधी – क्यों?

पेरियार – हिन्दुत्व के स्वार्थी गिरोह हमें इसकी अनुमति कभी नहीं देंगे।

गांधी – यह आप कैसे कह सकते हैं? क्या इस धर्म के सभी लोगों ने यह स्वीकार नहीं कर लिया है कि हिन्दुत्व में छूआछूत नाम की कोई चीज नहीं है।

पेरियार – सैद्धान्तिक रूप से किसी भी विचार की स्वीकृति एक चीज है और उसे व्यवहार में लाना दूसरी चीज। इसलिए कोई सुधार हिन्दू धर्म में लागू करना बिलकुल असंभव है।

गांधी – मैं इसे संभव बना रहा हूं। क्या आपने अनुभव नहीं किया कि विगत चार-पांच वर्षों में समाज में कितना परिवर्तन आ गया है।

पेरियार – समाज में होने वाले इन परिवर्तनों का मुझे ज्ञान है, किन्तु ये वास्तविक परिवर्तन नहीं हैं। लोग आपके द्वारा सुझाए गए सुधारों को मानने का ढोंग कर रहे हैं क्योंकि आप प्रभावशाली हैं और आपकी ख्याति की उन्हें सख्त जरूरत है और आपने उनकी बातों पर विश्वास कर लिया।

गांधी – (मुस्कराते हुए) आप किनकी बात कर रहे हैं?

पेरियार – ब्राह्मणों की।

गांधी – आपका मतलब है सभी ब्राह्मण?

पेरियार – हां , बिलकुल। सभी ब्राह्मण, वे भी जो आपके साथ हैं।

गांधी – इस स्थिति में, क्या आप किसी भी ब्राह्मण पर विश्वास नहीं करते?

पेरियार – किसी पर भी विश्वास करना मेरे लिए संभव नहीं है।

गांधी – क्या आप श्री राजगोपालाचारी पर भी विश्वास नहीं करते?

पेरियार – वे एक अच्छे और विश्वसनीय इंसान हैं। वे निःस्वार्थ और आत्मसमर्पित व्यक्ति हैं। ये सारे गुण उनके अपने समुदाय के कल्याण के लिए ही हैं। किन्तु मैं अपने लोगों, अब्राह्मणों के हितों को उनके सुपुर्द नहीं कर सकता।

गांधी – यह मेरे लिए विस्मय की बात है। क्या एक भी ईमानदार ब्राह्मण इस दुनिया में नहीं है?

पेरियार – कुछ हो सकते हैं। किन्तु मुझे अभी तक ऐसा कोई ब्राह्मण नहीं मिला।

गांधी – ऐसा मत कहिए। मैं एक ऐसे ब्राह्मण को जनता हूं। मैं उसे सम्पूर्ण ब्राह्मण मानता हूं। वह हैं गोपाल कृष्ण गोखले।

पेरियार – चलिए संतोष हुआ। यदि आप जैसे महात्मा इतनी कोशिश करके सिर्फ एक ब्राह्मण तलाश कर सकते हैं, तो हमारे जैसा ‘पापी’ भला कोई सम्पूर्ण ब्राह्मण कैसे पा सकता है?

गांधी – (हँसते हुए) संसार हमेशा ज्ञानियों के अधीन रहेगा। ब्राह्मण शिक्षित हैं और वे हमेशा ही प्रभावी रहेंगे। इसके लिए उन्हें दोष देने से कोई लाभ नहीं है। दूसरों को भी ज्ञान और बौद्धिकता के उसी स्तर पर आना होगा।

पेरियार – हिन्दुत्व एक मायने में अन्य सभी धर्मों से भिन्न है। इस धर्म में सभी ब्राह्मण शिक्षित हैं और सिर्फ वे ही ज्ञान और बौद्धिकता की बागडोर संभाले हुए हैं। दूसरे लोगों में 90 प्रतिशत से भी अधिक अशिक्षित और मूर्ख हैं। एक ही धर्म को मानने वाले समाज में यदि सिर्फ एक समुदाय शिक्षित और प्रभावी बन सकने का अधिकार रखता है तो क्या हमें यह नहीं समझना चाहिए कि यह धर्म अन्य समुदायों के लिए अनिष्टकर है? इसीलिए मैं कहता हूं कि हिन्दुत्व एक घटिया धर्म है। इसका नाश हो जाना चाहिए।

गांधी – आखिरकार आपके विचार क्या हैं? क्या हम यह मान लें कि आप हिन्दुत्व का नाश इसलिए चाहते हैं कि ब्राह्मणों से छुटकारा मिल जाये।

पेरियार – यदि हिन्दुत्व, जो हिन्दू धर्म का एक गलत रूप है, का नाश हो जाता है तो कोई ब्राह्मण नहीं होंगे। हमारे हिन्दू धर्म मानने के कारण ही ब्राह्मणों का अस्तित्व है और वे शक्तिसंपन्न हैं तथा हम और आप शूद्र कहे जाते हैं।

गांधी – ऐसा नहीं है। क्या ब्राह्मण मेरी बात नहीं सुनते? क्या इस वक्त हम सब एक साथ मिलकर हिन्दू धर्म में पायी जाने वाली बुराइयों को जड़ से खत्म नहीं कर सकते?

पेरियार – मेरा यह विनम्र विचार है कि आप ऐसा नहीं कर सकते। यदि आप ऐसा कर पाने में सफल हो भी जाते हैं तो आपके बाद किसी ऐसे ‘महात्मा’ का प्रादुर्भाव होगा जो आपके परिवर्तन को पूर्णतः बदल देगा और इस धर्म को पुनः उसी रूप में ला देगा, जिस रूप में आज हम इसे पाते हैं।

गांधी – वह ऐसा कैसे कर सकता है?

पेरियार – अभी आपने कहा कि लोगों को धर्म के नाम पर हम अपने विचार स्वीकार करा सकते हैं। क्या भविष्य में उत्पन्न होने वाला महात्मा धर्म के नाम पर ‘कुछ भी’ नहीं कर सकेगा?

गांधी – भविष्य में कोई भी व्यक्ति आसानी से धार्मिक रिवाजों को बदल नहीं सकता, जैसा हम आज तक अनुभव कर रहे हैं।

पेरियार – क्षमा कीजिए। हिन्दुत्व को प्रचलन में रखकर आप कोई भी स्थायी परिवर्तन नहीं ला सकते। ब्राह्मण किसी को भी वहां तक जाने नहीं देंगे। उन्हें ज्यों ही यह लगेगा कि आपके विचार उनके हित के विरुद्ध हो रहे हैं, त्यों ही वे आपका विरोध आरंभ कर देंगे। अब किसी भी महात्मा ने कोई परिवर्तन नहीं किया। यदि कोई व्यक्ति करने की कोशिश करता है तो ब्राह्मण इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।

गांधी – ब्राह्मणों के संबंध में आपने गलत धारणा बना रखी है, जो आपके विचार पर हावी है। इतनी चर्चा करने के बाद मुझे नहीं लगता कि हम लोग किसी सहमति पर पहुंच पाये हैं। अभी भी हमें दो-तीन बैठकें करनी होंगी और तब फैसला करेंगे कि हम क्या कर सकते हैं। (यह कहते हुए वे बिस्तर पर पूरी तरह लेट जाते हैं और अपना हाथ सिर पर रखकर धीरे-धीरे सहलाने लगते हैं!)

(सामाजिक क्रांति के दस्तावेज़, भाग दो, संपादक शम्भूनाथ, अनुवाद नागेंद्र सिंह, 2004)

इस बात को इतिहास ने साबित किया कि दोनों महापुरुषों की सोच कितनी वस्तुनिष्ठ थी। ब्राह्मणों ने दोनों के साथ क्या किया? लेकिन इतना तय है कि हिन्दुत्व का कोई दर्शन होता तो पत्रकार के नाम पर बने पार्क में मंदिर बनाकर इतना अश्लील शोर-शराबा नहीं किया जाता। परिदृश्य कुछ और होता।



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