हमें माफ कर दो बच्चों
हमें माफ कर दो
हम तुम्हारा ख्याल वैसा नहीं रख पाए
जैसा हमें रखना था
जैसा हम रख सकते थे।
तुम में नहीं था सामर्थ्य
लेकिन हम तो तैयार कर सकते थे
प्रेम और जिम्मेदारी के रेशों से एक कोकून
ताकि तुम तैयार हो सको
एक ऊँची उड़ान के लिए
और दुनिया देखती रह जाए
पंख तुम्हारे
पर हम नहीं कर पाए
जैसा हमें करना था
जैसा हम कर सकते थे
हमें माफ कर दो बच्चों
हमें माफ कर दो।
तुम्हें निकलना पड़ा कड़ी धूप में
करना पड़ा मीलों का सफर
कभी पैदल, कभी गोद में लटके
कभी अधटंगे साइकिल में
कभी ठुँसे हुए चौपाहियों में, भूखे पेट
यह सफ़र बनाया जा सकता था बेहतर
पर हम नहीं बना पाए
जैसा हमें बनाना था
जैसा हम बना सकते थे
हमें माफ कर दो बच्चों
हमें माफ कर दो।
तुम्हें सुननी पड़ी
गाड़ियों के टकराने की खौफ़नाक आवाज
देखना पड़ा सड़कों, पटरियों पर अपनों का खून
मां की लाश पर बैठ कर रोना तुम्हारे हिस्से आया
चिल्लाते या एकदम ख़ामोश
सदा-सदा के लिए मूंदनी पड़ी तुम्हें आंखें
लेना पड़ा जन्म किसी सड़क पर
यह सब रोका जा सकता है
पर हम नहीं रोक पाए
जिस तरह हमें रोकना था
जैसे हम रोक सकते थे
हमें माफ कर दो बच्चों
हमें माफ कर दो।
लेखिका शेफाली शर्मा मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में रहती हैं