महात्मा गांधी के नाम एक विद्यार्थी का पत्र


सादगी थी चेहरे पर उनके, ना कोई अभिमान था
सबके दिल में बसते वो, गांधी जिनका नाम था

प्रिय बापू

आज आप हमारे साथ तो नहीं हैं किंतु आपके विचार आज भी संपूर्ण तरीके से हमारे साथ हैं, यह कहना शायद आज के परिवेश में पूर्ण रूप से उचित नहीं होगा किंतु फिर भी हम आपके विचारों पर चलने का धीरे-धीरे प्रयास कर रहे हैं। प्रिय बापू, आपकी जन्म तारीख को अब हम गांधी जयंती के रूप में मनाते हैं; उस दिन विद्यालयों में बड़े-बड़े समारोह आयोजित किए जाते हैं ,आपके विचारों एवं आदर्शों को एक बार पुनः स्मरण किया जाता है, आपके सिद्धांतों के बारे में नेताओं द्वारा नए-नए निष्कर्षों के साथ फिर से बड़ी-बड़ी बातें कही जाती हैं। हर साल  2 अक्टूबर के दिन  बच्चा-बच्चा आपके नाम को याद करता है।

बापू, आपके समय में अंग्रेजों का खतरा था जो बाहर से आए थे और हमारे भारत पर राज करना चाहते थे किंतु आपने अपने सत्य, अहिंसा एवं एकता के सिद्धांत के बल पर अंग्रेजों को विवश कर दिया कि वे भारत पर राज करने का विचार त्याग दें और भारत छोड़ कर चले जाएं। बापू आपके मार्ग में कई रुकावटें आईं एवं आपको बहुत यातनाएं भी सहन करनी पड़ीं जिससे शायद हम परिचित भी न हों किंतु आप अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। लोगों ने भी जलियांवाला बाग हत्याकांड(1919) जैसी कई निर्मम घटनाओं को अनुभव किया। शायद आपके स्वतंत्रता के इसी अडिग विश्वास पर लोगों को भी विश्वास था जिन्होंने आपके साथ मिलकर हमें यह स्वतंत्र एवं लोकतांत्रिक गणराज्य दिया जिसके लिए हम देशवासी आपके एवं उन महान व्यक्तियों के आभारी रहेंगे।

बापू! आज की दुनिया बहुत बदल चुकी है। यह वर्ष 2023 चल रहा है। लोगों में ही नहीं अपितु वातावरण में भी काफी परिवर्तन आ चुका है; हवाएं तो वही हैं किंतु उनकी शुद्धता उतनी नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी। आज लोगों के पास बहुत कुछ होते हुए भी सुकून के समय की कमी हो गई है। जिंदगी भागते जा रही है और हम जिंदगी के साथ; ऐसा लग रहा है कि एक तरफ दुनिया का विकास हो रहा है और दूसरी तरफ नई समस्याओं का सृजन। बापू,  दुनिया के बढ़ते हुए विकासने जिंदगी के कुछ हसीन पल चुरा लिए हैं। अब दुनिया में पहले से ज्यादा विकास है किंतु खुशी और पर्यावरण की शुद्धता में बहुत कमी आ गई है।

बापू! आपकेसत्य के सिद्धांत की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की बात करें तो बड़े-बड़े नेता भी सत्य बोलने की शपथ लेते हैं किंतु वे झूठ एवं भ्रष्टाचार में लीन हो जाते हैं। किसी को अधिक पैसे कमाने का लालच है तो कोई किसी के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए असत्य का सहारा लेता है। लोग एक क्षण का समय भी नहीं लेते हैं अपने शब्दों पर विचार के लिए। हमारे असत्य बोलने से किसी के जीवन में क्या दुखद परिवर्तन आ रहा है या किसी को क्या सहन करना पड़ रहा है; इससे असत्य बोलने वाले व्यक्ति को कोई फर्क नहीं पड़ता। इस वक्त हर दिशा में  बस जीतने-हारने की होड़ लगी हुई है। सत्य की राह पर चलते चलते अपना जीवन त्याग देने की शक्ति इस दुनिया में कुछ क्षण भर लोगों के पास ही शायद बची है। बापू, शायद लोग जिंदगी के सबसे बड़े सत्य से अनभिज्ञ हो चुके हैं कि मानवता ही सत्य है और जीवन की प्रसन्नता है। अन्य सब नश्वर है, चाहे वह किसी के पैसे हों या शरीर।

बापू! आपने हमेशा अहिंसा के मार्ग पर चलने को कहा था  किंतु वर्तमान समय में इस पथ पर चलना थोड़ा मुश्किल हो गया है। लोगों को अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लेना पड़ता है लेकिन कभी लोग सरकार के विरुद्ध हिंसक हो जाते हैं तो कभी सरकार, लोगों के विरुद्ध हिंसक। बापू, फिर भी हम आपके अहिंसा के मार्ग पर चलने का प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में रूस एवं यूक्रेन के बीच युद्ध की स्थिति आ गई थी किंतु हमारे देश ने उन्हें हिंसा को त्याग कर आपस में बात करके इस स्थिति को संभालने का सुझाव दिया था। बापू, दुनिया कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्र इकट्ठा करने में व्यस्त है ताकि जब सामने वाला कोई हम पर हमला करे तो हम उसकी जवाबदेही के लिए तैयार रहें। बापू! आपने कहा था कि जब हमें कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो हमें दूसरा गाल सामने कर देना चाहिए; तो मुझे अभी तक समझ नहीं आया कि क्या हम पर कोई दुश्मन देश हमला करें तो हमें सिर्फ समझाने का प्रयास करना चाहिए, और अगर वह न समझ पाए तो क्या हमें उसका मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए जैसा कि एक राजा का कर्तव्य होता है अपनी प्रजा की रक्षा करना;  वैसे ही सरकार को अस्त्र-शस्त्र की सहायता से हमारी रक्षा करनी चाहिए या इंतजार करना चाहिए कि कब सामने वाला हमारी बात समझे और अपने हिंसात्मक विचार बदले।

बापू! आज के समय की बात यह है कि कोई पीछे हटना ही नहीं चाहता, लोग पीछे हटना एक प्रकार से स्वयं के लिए अपमान समझते हैं; कहीं न तो कहीं दूसरों के सुख-दु:ख की उपेक्षा करते हुए हार-जीत सर्वोपरि बनते जा रही है।

बापू! आपने जो ट्रस्टीशिप का सिद्धांत दिया था ताकि अमीर लोग गरीबों की मदद करें, उसकी एक अच्छी झलक हमें 2020-22 में आई कोरोना महामारी के समय देखने को मिली। जब सब कुछ थम चुका था, लोगों ने आगे बढ़कर एक दूसरे का साथ दिया; आसपास के गरीबों को भोजन दिया। कई महान व्यक्तित्व हमारे सामने आए हैं जिन्होंने आगे बढ़कर लोगों की मदद की।

गांधीजी, आपने व्यवसायिक शिक्षा का विचार दिया था ताकि लोग जीवन में ऐसी शिक्षा प्राप्त करें जिससे आगे वह अपना भविष्य बना सके। आज लोगों के पास शिक्षा तो बहुत है। किसी ने बड़े-बड़े विश्वविद्यालय से कई डिग्रियां प्राप्त की हैं किंतु अभी भी बेरोजगार है। सभी सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं किंतु कुछ लोग सरकारी नौकरी पाने के फासले से ऊपर उठकर स्वरोजगार की तरफ अपना कदम बढ़ाए हैं; जैसे पटना की प्रियंका गुप्ता जो एक स्नातक हैं जिन्होंने सड़क पर अपनी चाय की दुकान खोली है। इनसे प्रेरणा लेकर बहुत से लोगों ने स्वरोजगार की तरफ अपना कदम बढ़ाया है।

प्रिय बापू! शायद बहुत से लोग अभी है जो सरकारी नौकरी से ज्यादा खुद को आत्मनिर्भर बनाना जरूरी समझते हैं, जो बड़े-छोटे काम का अंतर किए बिना स्वयं को आत्मनिर्भर बनाकर, प्रसन्न होकर जीवन व्यतीत करने की तरफ अग्रसर हैं।

बापू! अगर मैं आपके लघु एवं कुटीर उद्योग के विचार की बात करूं तो कोरोना महामारी से पहले शायद इस पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता था, सरकार सिर्फ बड़े उद्योग की तरफ अपना पूरा ध्यान लगाए हुए थी किंतु कोरोना वायरस के आने के बाद लोगों को इसका महत्व समझ आने लगा। जब महामारी के दौरान सारे उद्योग बंद हो गए थे एवं जिंदगी ठहर चुकी थी; लघु एवं कुटीर उद्योग ने ही भारत की सुस्त अर्थव्यवस्था में जान डालने का काम किया, ‌सरकार अब इसे बढ़ाने एवं सुचारू रूप से व्यवस्थित करने के लिए अग्रसर है।

बापू! इतना विकास होने के उपरांत भी हम इस महामारी को रोक नहीं सके,  कुछ वर्षों के लिए सब कुछ थम चुका था। इस समय ने हमें यह समझाया कि दौड़ती हुई दुनिया में हम जिंदगी जीना भूल चुके हैं, हम अपनों को समय देना भूल चुके हैं, हम मानवता भूल चुके हैं, हम प्रकृति के बीच जीना भूल चुके हैं।

बापू! हम यह नहीं कह सकते कि आपके बताए हुए मार्ग पर हम संपूर्ण एवं सही तरीके से चल रहे हैं किंतु इस महामारी के दौरान हमने यह अनुभव किया कि जीवन का महत्व क्या होता है, हमने लघु एवं कुटीर उद्योग के महत्व को समझा, हमने परिवार के महत्व को समझा, कठिन समय में एक दूसरे का साथ देने के उपरांत खुशी के अनुभव को समझा, समय के महत्व को समझा, हमने मानवता के अर्थ को समझा।


ज्ञानिता सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में एमए प्रथम सिमेस्टर की छात्रा हैं


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