अभिषेक श्रीवास्तव
कोई चार दिन हुए होंगे जब मेरे पास मथुरा से एक फोन आया। नंबर अनजान था। उधर से आवाज़ आई, ”साहेब, आपक नंबर हमै वकील साहब दिये रहिन… हम जगदीश बोल रहे हैं।” बातचीत के बीच-बीच में उसकी आवाज़ कमज़ोर पड़ रही थी तो कभी अचानक तेज़ हो जा रही थी। आज उसकी एक तस्वीर मुझे मिली, तो इसका राज़ समझ में आया। जगदीश के दोनों हाथ पुलिस ने तोड़ दिए हैं। वह अपने हाथ से पानी भी नहीं पी सकता। ज़ाहिर है, उस दिन वह फोन पर बात कर रहा था तो मोबाइल किसी और ने पकड़ रखा था, जिसके रह-रह कर हिलने से आवाज़ खराब हो जा रही थी।
जगदीश, पुत्र परागलाल, नि. कैसरगंज, बहराइच |
बहराइच का रहने वाला जगदीश 2 जून को जवाहरबाग में ही था। करीब साल भर से वह अपनी पत्नी मीरा, बेटी शालू और बेटे महेंद्र के साथ वहां डेरा डाले हुए था। ऑपरेशन के बाद पुलिस उसके समेत कुल 147 लोगों के साथ पकड़ कर फरह में एक स्कूल परिसर में ले गई और रात भर वहां लाठियों से इन लोगों की पिटाई होती रही। इस पिटाई के चलते दो रिश्तेदार परिवारों के दोनों मुखिया चल बसे। रामेश्वर चौहान के पिता झिंकू चौहान और उनके ससुर फौजदार चौहान उसी रात पिटाई से मर गए। रामेश्वर चौहान फिलहाल जिला कारागार मथुरा में बंद हैं। पुरुषों के अलावा काफी संख्या में औरतें और लड़कियां भी वहां ले जायी गई थीं। पुलिस ने उन्हें भी पीटा और रात भर अश्लील हरकतें करते रहे। मारपीट से स्कूल के कमरे का फर्श खून से लाल हो चुका था, जिसे गिरु्तार सत्याग्रहियों से पानी डलवाकर साफ़ करवाया गया।
जगदीश की पत्नी और बच्चे भी पकड़ कर उनके साथ स्कूल ले जाए गए थे। बाद में उनकी पत्नी को एटा और बच्चों को फि़रोज़ाबाद भेज दिया गया। पकड़े जाने के वक्त जगदीश के पास कुल तीन हज़ार रुपये थे जिसे पुलिस ने छीन लिया। उनका और उनके बेटे का मोबाइल भी पुलिस ने छीन लिया। जगदीश जेल से 24 जून को रिहा हुए तो अपनी पत्नी और बच्चों का पता लगाने की मुहिम शुरू की। ण्टा और फि़रोज़ाबाद में उन्हें सूचना दी गई कि उनके परिजनों को छोड़ दिया गया है और वे गांव जा चुके हैं। आज सुबह यानी रिहाई के कुल दस दिन बाद थक-हार कर जगदीश बहराइच में अपने गांव में पड़े हुए थे और किसी दुकान पर मोबाइल चार्ज करवा रहे थे, जब मैंने उनहें फोन किया। अब तक बच्चों और पत्नी का कोई सुराग नहीं मिला है।
जगदीश अपने गांव कडसर भिठोरा लौटने से पहले 30 जून को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नाम अपने वकील की मार्फत एक आवेदन भेज चुके हैं जिसमें समूचे घटनाक्रम का ब्योरा दर्ज है। उसकी एक प्रति मथुरा के एसएसपी को भी भेजी गई है। अब तक उन्हें न तो मथुरा से और न ही दिल्ली से कोई जवाब मिला है।
जगदीश की कहानी में आप किरदारों के नाम बदल दें तो ऐसी सैकड़ों कहानियां मथुरा से लेकर आगरा और एटा से लेकर फिरोज़ाबाद व लखनऊ के बीच बिखरी पड़ी हैं। पूरा एक महीना हो गया लेकिन लोग अपने परिजनों से नहीं मिल पाए हैं। उन्हें यह तक नहीं पता है कि उनके परिजन घायल हैं या मर गए। अगर कोई एक शख्स इन लोगों को मिलाने में जी-जान से जुटा है, तो वे हैं रामवृक्ष यादव के वकील तरणी कुमार गौतम, जो विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा निशुल्क कानूनी परामर्श देने के लिए मान्यता प्राप्त अधिवक्ता हैं। दिलचस्प यह है कि गौतम द्वारा किए गए किसी भी आवेदन पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है और एक तरीके से उनके खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ दिया गया है।
मसलन, रामवृक्ष यादव व अन्य बनाम सुबोध व अन्य के मुकदमे में पिछली तारीख पर अदालत ने आरोपियों की ओर से शपथ पत्र दाखिल करने का आदेश दिया था। रामवृक्ष यादव का तो 2 जून से ही कोई सुराग नहीं है। उनके सहयोगी और मुकदमे में सह-आरोपी चंदन बोस और राकेश बाबू गुप्ता मथुरा जिला कारागार में बंद हैं। तरणी कुमार गौतम मुकदमे के सिलसिले में इनसे मिलने 21 जून को मथुरा कारागार गए थे जहां कारागार अधीक्षक ने उन्हें मुलाकात करने से रोक दिया। दिक्कत यह है कि वकील गौतम को अदालत के आदेश का पालन करते हुए इनका शपथ पत्र दाखिल करना है। इस सिलसिले में 23 जून को प्रार्थना पत्र संख्या 84/2016 के माध्यम से मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन किया गया कि वकील को अदालती आदेश के अनुपालन के लिए आरोपियों से मिलने की इजाज़त दी जाए। इस आवेदन को भी दस दिन गुज़र चुके हैं लेकिन अब तक गौतम को कोई जवाब नहीं मिला है।
गौतम कहते हैं, ”क्या बताएं, यहां तो घायलों और मृतकों की आधिकारिक सूची तक मुझे उपलब्ध नहीं करायी जा रही है। इस संबंध में मैंने 13 जून को मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भेजा था जिसकी प्रति जिलाधिकारी मथुरा और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को भी दी थी। मैंने उसमें अनुरोध किया था कि मासूमों को उनके परिजनों तक पहुंचाने के लिए ज़रूरी है कि जवाहरबाग गोलीकांड में गिरफ्तार, मृत, घायल और बरामद बच्चों व व्यक्तियों की सूची मुझे प्रदान की जाए। अब तक इस पर कोई ऐक्शन नहीं हुआ।”
ऐक्शन के नाम पर राज्य सरकार ने एक न्यायिक आयोग का गठन किया है जिसने अब तक कथित तौर पर 43 लोगों के बयानों का हलफनामा ले लिया है। ये सारे लोग जवाहरबाग कालोनी के निवासी हैं। विडंबना है कि इनमें से कोई भी पीडि़त नहीं है। गौतम चार-पांच दिन पहले जगदीश को साथ लेकर उसका बयान दर्ज करवाने न्यायिक आयोग के सचिव के पास गए थे। जगदीश का बयान दर्ज करने से वहां इनकार कर दिया गया।
जवाहरबाग कांड में स्थानीय अखबारों की सक्रियता के बावजूद ये तमाम खबरें नदारद हैं क्योंकि घटना के दिन से ही यह धारणा निर्मित कर दी गई थी कि बाग पर कब्ज़ा था और पुलिस ने बड़े साहस के साथ उसे छुड़ाने का काम किया है। इसमें एसपी और एसओ की मौत होने के कारण आहत भावना वाला एंगल भी जुड़ गया जिससे पीडि़तों के लिए रही-सही सहानुभूति भी जाती रही। आज महीने भर बाद दुष्प्रचार का आलम यह है कि अखबारों ने किसी और लड़की को पहले रामवृक्ष की बेटी बनाकर ख़बर चलाई और अब वे लिख रहे हैं कि वह उसकी बेटी नहीं, मुंहबोली बेटी थी।
जवाहरबाग कांड के बाद सैकड़ों लोगों के परिजन गायब हैं, यह एक दीगर बात है। किसी के खून के रिश्ते के साथ ही मज़ाक कर दिया जाए, ऐसा इस देश में पहली बार हो रहा है।
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