रामवृक्ष यादव के वकील तरणी कुमार गौतम |
अगर कोई एक शख्स 2 जून की घटना के बाद साहस और सरोकार के साथ धारा के खिलाफ तैर रहा है तो वह है रामवृक्ष का वकील तरणी कुमार गौतम, जिसे यह भी पता नहीं है कि उसका क्लाइंट जिंदा है या मर गया। 11 जून की सुबह मुलाकात करने का वादा कर के गौतम बाद में तीन बार फोन नहीं उठाते और आधा घंटा अपने चैंबर नंबर 21 में इंतज़ार करवाने के बाद अचानक पसीना पोंछते हुए प्रकट होते हैं। दो और व्यक्ति जो काफी देर से उनका इंतज़ार कर रहे थे, उन्हें देखते ही खड़े हो जाते हैं। पहला व्यक्ति कुछ शिकायती लहजे में मुंह बनाता है तो वे जवाब देते हें, ”तुम्हारी ही तारीख लेने गया था.. कोर्ट से आ रहा हूं। सारा काम निपटा दिया।” वे उसे एक काग़ज़ पकड़ाते हैं और बदले में वह व्यक्ति उन्हें 100 रुपये का नोट थमाता है। उसके चले जाने के बाद वे हमारी ओर मुड़ते हैं।
यह बड़े जिज्ञासा की बात है कि जिसका मुवक्किल अब नहीं रहा, वह किस आधार पर केस करने जा रहा है। उसे केस के पैसे कौन देगा? वे मुस्कराते हुए कहते हैं, ”मुझसे ज्यादा इस पार्क को और इसमें रहने वालों को कोई नहीं जानता। मेरा तकरीबन रोज़ का आना-जाना था। मैं सबको पहचानता था। एक लड़के को टाइपिंग करते हुए गोली मारी गई है। प्रशासन ने रामवृक्ष की गलत लाश दिखाई है। सब दबा दिया जाएगा। किसी को तो करना ही होगा।” लेकिन इस केस के पैसे आपको कौन देगा अब? वे मुस्कराते हुए ऊपर हाथ उठाते हैं, ”पता नहीं।”
गौतम पहले से ही रामवृक्ष यादव के दो मुकदमे लड़ रहे हैं। प्रशासन ने रामवृक्ष को मृत घोषित कर दिया है, लेकिन गौतम का मानना है कि किसी और की लाश दिखाकर उसे रामवृक्ष बता दिया गया। उनके पास इसका साक्ष्य भी है। वे बताते हैं कि यहां की जेल में हरनाथ सिंह नाम का एक सत्याग्रही बंद है। वह पट्टी पवोरा, थाना तिरवा, कन्नौज का रहने वाला है। पुलिस ने उससे रामवृक्ष यादव की लाश की शिनाख्त करवायी है। गौतम ने 8 जून को हरनाथ समेत तीन कैदियों से मुलाकात के लिए जेल अधीक्षक को लिखित अर्जी दी थी जिसे ठुकरा दिया गया। इसके बाद वे जिलाधिकारी के पास से आदेश ले आए, तब उन्हें मिलने दिया गया। उसमें भी एक कैदी नहीं आया, जो दूसरा कैदी आया वह उनके बताए शख्स का हमनाम निकला और तीसरा हरनाथ ही था। हरनाथ के पैर टूटे हुए थे। उसने गौतम को बताया कि उसे मार-पीट कर दबाव में लाश की शिनाख्त करवाई गई और उसे रामवृक्ष का कहलवाया गया। गौतम को यह तो नहीं पता कि रामवृक्ष जिंदा है या मर गया, लेकिन वे पूरे विश्वास से कहते हैं कि जो लाश दिखाई गई है, वह रामवृक्ष की नहीं है।
हमसे बातचीत के बीच गौतम के फोन पर दिल्ली के टाइम्स ऑफ इंडिया से किसी महिला पत्रकार का फोन आता है। वे उसे भी यही बात बताते हैं कि जिस लाश को रामवृक्ष का बताया गया है, वह उसकी नहीं है। अगले दिन टाइम्स ऑफ इंडिया से यह ख़बर नदारद होती है। यह बात 11 जून की है जब गौतम अपने संपर्क में आए हर पत्रकार को लाश झूठी होने वाली बात बता चुके थे, लेकिन इसकी ख़बर मीडिया में 17 जून को अदालत के माध्यम से आती है जब एडीजे 9 विवेकानंद सरन त्रिपाठी ने रामवृक्ष के एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि जब तक पुलिस द्वारा उसकी मौत का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं दिया जाता, तब तक अदालत नहीं मान सकती कि रामवृक्ष मर गया है। इसके जवाब में एसएसपी मथुरा बबलू कुमार का कहना था कि उनके पास डीएनए सैंपल मौजूद हैं और वे इसकी जांच करवा लेंगे। विडंबना यह है कि जून के अंत में जब रामवृक्ष की बेटी और पत्नी ने अपने डीएन के नमूने देने कीी पेशकश की, तो अचानक अखबारों में यह खबर छाप दी गई कि जिसे उसकी बेटी बताया जा रहा है, वह उसकी मुंहबोली बेटी है। अदालती आदेश के बावजूद अब तक डीएनए सैंपल की जांच नहीं हुई है जबकि पुलिस को कम से कम 14 मुकदमों में अदालत को रामवृक्ष से संबंधित रिपोर्ट जमा करनी है।
इससे पहले गौतम ने जब 2 जून की घटना के संबंध में एफआइआर दायर करने की तहरीर एसएसपी को दी थी, तो उसे एसएसपी ने स्वीकार नहीं किया था। इसके बाद 8 जून को उन्होंने तहरीर की प्रति स्पीड पोस्ट से एसएसपी को भिजवायी जिसमें पहली बार 500-600 लोगों के मारे जाने की बात सामने आई। इस ख़बर को एक वेबसाइट के अलावा राष्ट्रीय मीडिया में किसी ने नहीं उठाया। वकील के हवाले से भी बात नहीं कही। किसी ने यह दिखाना ज़रूरी नहीं समझा कि एफआइआर तो दूर, उत्तर प्रदेश में उसे दर्ज कराने की शिकायत तक को एक वकील के मुंह पर पलट कर फेंक दिया जाता है।
गौतम को इस बात का अंदेशा था। वे डरे तो नहीं हैं, लेकिन सतर्क ज़रूर हैं। किसी मुकदमे के संबंध में उनके जूनियर को दो बार धमकी आ चुकी है। वे उसे समझा रहे हैं कि अनजान फोन नंबर की कॉल को न उठाए और चुपचाप अपना काम करे। इसी बाचीत के दौरान वे भूल जाते हैं कि एक और व्यक्ति काफी देर से बैठकर उनका इंतज़ार कर रहा है। अचानक वह व्यक्ति बीच में टोक देता है। वे उसका काग़ज़ लेते हैं। उसके ‘पैसा” पूछने पर वे कहते हैं ‘साढ़े तीन सौ’। क्लाइंट मुंह बिचकाते हुए 200 रुपये पकड़ा देता है। गौतम भड़क जाते हैं और अपना खाली बटुआ खोलकर उसे दिखाने लगते हैं। ”अभी तुम्हारे पहले जो 100 रुपया देकर गया है, वही मेरी जेब में है। मोबाइल में बैलेंस नहीं है। अपनी जेब से तुम्हारा मुकदमा लड़ें? वैसे ही जान पर बनी हुई है?” उन्हें गुस्साता देख मुवक्किल 100 रुपया और बढ़ाता है, तो वे उस पैसे को लौटा देते हैं और अपने जूनियर से कहते हैं कि जाकर उसका काम करवा दे।
मुवक्किल के जाने के बाद वे विषय पर लौटते हैं, ”देखिए, वो आदमी (रामवृक्ष) गलत नहीं था। उसे समझने की ज़रूरत है। उसने कोई भी काम हवा में नहीं किया। सारा काम कानूनी था। केस चल रहे थे। आरटीआइ लगी थी पीएमओ से लेकर राष्ट्रपति और आरबीआइ तक। उसके जवाब आए थे। बाकायदा एक दफ्तर उसने बना रखा था पार्क में जिसमें करीब 35 लैपटॉप थे। कुछ लैपटॉप मुलायम सिंह वाले थे… जिनको खोलने पर उनकी तस्वीर आती है। उसकी बातों पर हंसी आ सकती है, लेकिन कोई कब्ज़ा-वब्ज़ा नहीं था। सब झोंपड़ी में रहते थे। रामवृक्ष खुले में सोता था मच्छरदानी लगाकर। दिन में रोटी, नमक, प्याज खाते थे और शाम को खिचड़ी या सब्ज़ी… एकदम सादे ग्रामीण लोग थे। रामवृक्ष उनके बच्चों को पढ़ाता था। खुले में एक स्कूल चलाता था। वो मास्टर था। बहुत विद्वान… वो तो कहता था कि कानूनी रूप से गिरफ्तार कर लो… लेकिन यहां तो रोज़ हमले का नाटक चल रहा था।”
वे डायरी खोलकर रामवृक्ष के मुकदमे की तारीखें दिखाते हैं। एक मुकदमे में अगली तारीख 14 जून की लगी है। इसी कचहरी के एक और वकील एलके गौतम हैं जो तरणी कुमार गौतम के आने से पहले रामवृक्ष के मुकदमे लड़ने का दावा करते हैं। तरणी कहते हैं, ”वो पब्लिसिटी के चक्कर में है। उसने कभी भी रामवृक्ष का मुकदमा नहीं लड़ा।” एलके गौतम ने बातचीत में बताया था कि कैसे एक चैनल ने दो दिन पहले उनकी बाइट ली थी। उन्होंने अपने मोबाइल पर उस चैनल पर प्रसारित वीडियो भी दिखाया था। तरणी इस बात पर मुस्कराते हैं और बार-बार रामवृक्ष को सबसे करीब से जानने का दावा करते हैं। इसी क्रम में वे हमें सीजेएम अल्पना शुक्ला की कोर्ट में लेकर जाते हैं। वे चाहते हैं कि रामवृक्ष के मुकदमों के हलफनामे वे हमें दिखाकर अपनी बात को साबित कर सकें। सीजेएम कोर्ट की कहानी भारतीय अदालतों के काम करने के तरीके पर एक गंभीर टिप्पणी के रूप में सामने आती है।
सवेरे किसी मुकदमे के सिलसिले में गौतम ने अपने मुवक्किल महेंद्र सिंह की एग्जेम्पशन (हाजिरी से छूट) लगाई थी। उस फाइल को देखते हुए उन्हें सबसे ऊपर लगा एक काग़ज़ दिखाई देता है जिस पर महेंद्र सिंह के ताज़ा दस्तखत हैं। वे चौंक जाते हैं। पेशकार से वे कहते हें कि जब सवेरे उन्होंने इसकी गैर-हाजिरी की अर्जी लगाई, तो इसका दस्तखत किसने कर दिया। पेशकार का मुहं बन जाता है। फिर वे महेंद्र सिंह के पुराने दस्तखत से ताज़ा दस्तखत का मिलान कर के पेशकार से साफ़ कहते हैं कि उसने फर्जीवाड़ा किया है। पेशकार कुछ नहीं कहता। यहां से वे सीजेएम कोर्ट के रिकॉर्ड रूम में हमें ले जाते हैं और वहां बैठे लिपिक से रामवृक्ष यादव की फाइल मांगते हैं। वह अनभिज्ञता जाहिर करता है और किसी और के आने का इंतजार करने को कह देता है। थोड़ी देर में रवि नाम का एक नौजवान कमरे में आता है। उससे फाइल मांगने पर वह मुस्कराते हुए देने से इनकार कर देता है। वे दर्जनों बार उससे अनुरोध करते हैं कि ”मेरी फाइल एक बार दे दो.. बस हलफनामे की कॉपी करवानी है” लेकिन वह बार-बार एक ही जवाब देता है कि उसे नहीं पता फाइल कहां है।
गौतम उसे बताते हैं कि 156/3 वाली फाइल है रामवृक्ष यादव बनाम सुबोध यादव के नाम से, लेकिन रवि इनकार करते जाता है। आखिर में वह किसी अधिकारी से गौतम को फोन पर बात करने को कहता है। फोन पर जो बताया जाता है, उसे सुनकर गौतम के होश फाख्ता हो जाते हैं। उधर से आवाज़ आती है कि ”फाइल सील हो चुकी है”। वे भड़क कर पूछते हैं कि अगली तारीख से पहले फाइल कैसे सील हो सकती है, फोन काट दिया जाता है। गौतम बेचारगी में फिर से मुस्कराते हैं, पसीना पोंछते हैं और कहते हैं, ”देख रहे हैंैं न… कोई मुझे कोऑपरेट नहीं कर रहा। मैं बरसों से यहां प्रैक्टिस कर रहा हूं लेकिन आज रामवृक्ष यादव के नाम पर कोई बात तक नहीं करता। फाइल कैसे सील हो सकती है डेट से पहले? यह तो गैर-कानूनी है।” किसी भी मुकदमे में वादी की यदि मौत भी हो जाए, तो फाइल पर लगी अगली तारीख में मामला अदालत में जाना ही होता है। कोई भी प्रशासनिक आदेश न्यायिक प्रक्रिया से छेड़छाड़ नहीं कर सकता। यहां तक कि सिविल जज भी मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में फाइल को सील नहीं करवा सकता, जब तक कि वह अगली तारीख पर पेश न हो जाए और सीजेएम का आदेश न आ जाए।
14 जून की सुनवाई में यह साफ़ हो गया कि रामवृक्ष यादव बनाम सुबोध यादव की फाइल सील नहीं हुई थी। गौतम को सीजेएम कोर्ट के स्टाफ ने बेवकूफ़ बनाया था। उनसे ढूठ बोला था। मथुरा की सीजेएम अल्पना शुक्ल की अदालत में जवाहरबाग कांड के आठवें दिन घटा यह नाटक बताता है कि कैसे राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव में न्यायिक प्रक्रियाओं का खुलेआम उल्लंघन उत्तर प्रदेश में हो रहा है।
Read more
वजीरों जब भी किया है क़त्ल, सियासत ने कहा है हादसा है