नवीन जिंदल |
कल खबर आई कि नवीन जिंदल भारत की सीईओ बिरादरी में सबसे ज्यादा वेतन पाने वाले शख्स के रूप में लगातार दूसरे साल बाज़ी मार ले गए हैं। पिछले साल वे 67.21 करोड़ रुपए वेतन के नाम पर घर ले गए, बोनस-वोनस अलग से। आखिर कौन हैं नवीन जिंदल? आप उन्हें युवा सांसद कह सकते हैं मीडिया की भाषा में। आम आदमी को तिरंगा झंडा फहराने की कोर्ट से आज़ादी दिलवाने वाला क्रूसेडर कह सकते हैं मीडिया की भाषा में। कारोबारी भाषा में आप उन्हें जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) का मालिक भी कह सकते हैं। कई चेहरे लेकिन नाम एक नवीन जिंदल।
नवीन जब नवीन के साथ मिल जाए तो एक अतिनवीन परिघटना जन्म लेती है। सोचिए और कौन नवीन है इस देश में जिसका नवीन जिंदल के साथ कोई रिश्ता है? जी हां, नवीन पटनायक, उड़ीसा के मुख्यमंत्री। जिस दिन नवीन जिंदल ने नवीन पटनायक से उड़ीसा में अपना कारखाना लगाने के लिए 6400 एकड़ ज़मीन मांगी थी, उसी दिन इस देश में सियासत और कारोबारी दुनिया को बांटने वाली लकीर मिटने लगी थी। लोकतंत्र और पूंजी के दो छोर पर खड़े दो नवीनों ने जब हाथ मिलाया तो कोई नहीं जानता था कि इस नवीन मेल से कौन सा रंग उभरेगा। बीते 25 जनवरी को उड़ीसा के अंगुल में इस मेल का असली रंग सड़कों पर बिखरा दिखा। लोगों के माथे पर दिखा। महिलाओं के चेहरे पर दिखा। बच्चों के शरीर पर दिखा। लाल और सिर्फ लाल।
नवीन जिंदल की नई पहचान |
अब नवीन जिंदल के बायोडाटा में एक और परिचय जुड़ गया है। अंगुल के 40 गांवों के लोग उन्हें मानवाधिकारों का हत्यारा मान चुके हैं और दोनों नवीनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
ज़रा पीछे की कहानी भी सुन लीजिए। सन 2006 में जीएसपीएल ने अंगुल में अपने स्टील प्लांट का निर्माण कार्य शुरू किया। तब से लेकर अब तक 40 गांवों के 25000 परिवार यानी एक लाख से ज्यादा लोग प्रभावित और विस्थापित हो चुके हैं जिनमें 20 फीसदी अनुसूचित जाति/जनजाति के हैं। कंपनी ने इन्हें स्थायी नौकरियों, कौशल प्रशिक्षण केंद्र, मुआवज़े, पुनर्स्थापन, पुनर्वास और विकास का वादा किया था। किसी को आज तक स्थायी नौकरी नहीं मिली। करीब 3000 प्रभावित लोगों को कंपनी हालांकि 2700 रुपए प्रति व्यक्ति देती रही ताकि यहां असंतोष को थामा जा सके। लेकिन जैसे ही कंपनी की चारदीवारी का निर्माण कार्य पूरा हुआ, तो उसने अचानक बिना बताए इस मदद को रोक दिया और प्रभावित गांवों में पानी आदि की सुविधा भी रोक दी। इसे अब तीन महीने हो चुके हैं।
प्रभावित लोगों ने कंपनी के अधिकारियों ईडी राकेश झा, अंगुल के जि़ला प्रशासन और राज्य सरकार समेत डीजीएम शर्मा से शिकायत की। कहीं से कोई जवाब नहीं आया। 19 जनवरी को पूरी तरह विस्थापित गांव कलियाकाता के लोग कंपनी के दफ्तर अधिकारियों से मिलने आए। सुरक्षा गार्डों ने उनसे बुरा बरताव किया और एक गर्भवती महिला को मारा। इस घटना के बाद 40 प्रभावित गांवों के लोग एक हो गए और इन्होंने निर्माण कार्य को शांतिपूर्ण ढंग से रोक दिया। बीते 24 जनवरी को कंपनी और सरकारी अधिकारियों ने हस्तक्षेप किया और लोगों से वादा किया कि एक संयुक्त बैठक बड़ा कराजंग बिरंकेश्वर मंदिर में रखी जाएगी। इस बैठक में वे खुद नहीं आए, तो अगले दिन लोगों ने कंपनी के अधिकारियों से मिलने का तय किया।
गणतंत्र दिवस से ठीक एक दिन पहले 25 जनवरी को करीब एक हज़ार प्रभावित लोग कंपनी के सुवर्णपुर गेट पर आए और अधिकारियों से मिलने की मांग की। कंपनी के सुरक्षा बलों, पुलिस और मजिस्ट्रेट की वहां पहले से मौजूदगी थी। उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से गेट खोल कर पहले लोगों को भीतर आने दिया। उसके बाद जो हुआ, वो तस्वीरों में है। करीब 400 महिलाओं और पुरुषों को बुरी तरह मारा गया जिनमें 94 को गंभीर चोटें आईं। इनमें 3 साल का बच्चा मनजीत साहू भी था।
ज़रा इन तस्वीरों को देखिए।
तुम पूछोगे क्यों नहीं करती उसकी कविता उसके देश के फूलों और पेड़ों की बात आओ देखो गलियों में बहता लहू, आओ देखो गलियों में बहता लहू… |
अगर अब भी आपको लगता है कि मामला हमसे काफी दूर का है, महानगरों में कम से कम ऐसी हालत नहीं, तो आप गफ़लत में हैं। इन्हीं नवीन जिंदल के बडे भाई पृथ्वीराज जिंदल दिल्ली में ला चुके हैं ज़हरीले डायोक्सीन का एक ऐसा ज़खीरा जो भोपाल गैस कांड को भी लजा सकता है। कोर्ट के आदेशों को ताक पर रख कर दिल्ली के बीचोबीच बनाए जा रहे भविष्य के एक श्मशान की बात हम आगे विस्तार से करेंगे।
जो लोग कॉरपोरेट और राजनीति के रिश्तों की आलोचना करते हैं, उन पर अब हंसी आती है। वे पिछड़े हुए लोग हैं, क्योंकि नवीन जिंदल खुद पूंजीपति भी हैं और जन प्रतिनिधि भी। रतन टाटा ने तो संत दिखने की चाहत में ”बनाना रिपब्लिक” की आशंका जताई थी। क्या हम उससे काफी आगे नहीं निकल आए।
there must be devlopment but on the real hope of people.suppose it based on crused life than it is useless.
NICE BLOG THOUGHTFUL.THANKS