पी.सी.तिवारी: जिंदल और हरीश रावत की जुगलबंदी के शिकार |
उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के पी.सी. तिवारी और उनके साथियों पर डीएस जिंदल समूह के गुंडों ने आज दिन में जानलेवा हमला किया है। तिवारी को बहुत गंभीर चोटें आई हैं और उनके साथ गई रेखा धस्माना को भी जिंदल के गुंडों ने नहीं बख्शा। उनसे मारपीट की और उनका टैबलेट छीन लिया। इनकी पिटाई करने के बाद इन्हें बाहर फेंक दिया गया।
ध्यान रहे कि अल्मोड़ा और रानीखेत के बीच डीडा द्वारसो के नानीसर में डीएस जिंदल समूह द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय आवासीय स्कूल बनाया जा रहा है जिसके लिए राज्य सरकार ने स्थानीय लोगों की ज़मीन गैर-कानूनी तरीके से बिना उनकी सहमति के कौडि़यों के मोल जिंदल समूह को दे दी है। इस सिलसिले में बीते तीन महीने से द्वारसो के ग्रामीण आंदोलन कर रहे हैं। इस आंदोलन में गांव वालों का सहयोग उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी कर रही है। ग्रामीणों की ओर से इस संबंध में निचली अदालत में ज़मीन हस्तांतरण को चुनौती देते हुए एक याचिका लगाई गई थी जिस पर एक दिन पहले शनिवार को अदालत का आदेश आया। अदालत ने मामले की सुनवाई 15 फरवरी को तय करते हुए तब तक स्कूल के निर्माण कार्य पर रोक लगाने का आदेश दे दिया।
इसी आदेश की एक प्रति लेकर आज दिन में पी.सी. तिवारी अपनी सहयोगी रेखा धस्माना और द्वारसो के कुछ ग्रामीणों के साथ नानीसार स्थित स्कूल के निर्माण स्थल पर गए थे। फोन पर रेखा धस्माना ने बताया, ”हम लोगों को गेट के भीतर उठाकर ले जाया गया। वहां जिंदल का बेटा बैठा हुआ था। फिर उनके गुंडों ने सर (तिवारी) को जात, घूंसों और लाठियों को बहुत मारा। उन्होंने मेरे साथ भी हाथापाई की और मेरा टैबलेट छीन लिया। हमारे साथ गांव के पांच लोग गए थे। उन्हें किनारे खड़ा कर दिया और हमें अलग ले जाकर मारा। उसके बाद बाहर फेंक दिया।”
पी.सी. तिवारी के भाई और सामाजिक कार्यकर्ता रघु तिवारी ने भी फोन पर इस घटना की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि कामला बिगड़ता देख रानीखेत के तहसीलदार आए और वे तिवारी व अन्य को गांव में ले गए। धस्माना ने बताया, ”हम लोग 100 नंबर पर फोन करते रह गए लेकिन किसी ने नहीं उठाया।” ताज़ा सूचना के मुताबिक तिवारी और अन्य अब तक द्वारसो गांव में ही हैं और उनका मेडिकल नहीं हो सका है।
गौरतलब है कि डीएसजे समूह की दिल्ली स्थित हिमांशु एजुकेशनल सोसायटी सात हेक्टेयर की ज़मीन पर अंतरराष्ट्रीय स्कूल बनाने जा रही है। शासन को सोसायटी ने जो प्रस्ताव दिया है, उसमें साफ़ दर्ज है कि इस स्कूल में कौन पढ़ सकता है। गांव वालों के गुस्से का एक बड़ा कारण यह प्रस्ताव है, जो छात्रों की सात श्रेणियां गिनाता है- कॉरपोरेट जगत के बच्चे, एनआरआइ बच्चे, उत्तर-पूर्व के बच्चे, माओवाद प्रभावित राज्यों के बच्चे, गैर-अंग्रेज़ी भाषी देशों के बच्चे, भारत में रहने वाले विदेशी समुदायों के बच्चे और वैश्विक एनजीओ द्वारा प्रायोजित बच्चे। स्कूल की सालाना फीस 22 लाख रुपये बताई जा रही है। स्कूल वास्तव में कारोबारी खानदान जिंदल का ही है। फर्क इतना है कि यह कांग्रेसी नेता नवीन जिंदल का नहीं, देवी सहाय जिंदल समूह का है जो नवीन जिंदल के चाचा थे। सोसायटी के उपाध्यक्ष प्रतीक जिंदल नवीन जिंदल के भतीजे हैं।
नैनीसार की जो सात हेक्टेयर जमीन हिमांशु एजुकेशन सोसायटी को दी गई है, उस संबंध में जिलाधिकारी कार्यालय (अल्मोड़ा) द्वारा उपजिलाधिकारी (रानीखेत) को 29 जुलाई 2015 को भेजे गए एक ”आवश्यक” पत्र में तीन बिंदुओं पर संस्तुति मांगी गई थी: 1) प्रस्तावित भूमि के संबंध में संयुक्त निरीक्षण करवाकर स्पष्ट आख्या; 2) ग्राम सभा की खुली बैठक में जनता/ग्राम प्रधान द्वारा प्राप्त अनापत्ति प्रमाण पत्र की सत्यापित प्रति; 3) वन भूमि न होने के संबंध में स्पष्ट आख्या। इसके जवाब में 14 अगस्त 2015 को शासन को जो पत्र भेजा गया, उसमें संयुक्त निरीक्षण का परिणाम यह बताया गया कि कुल 7.061 हेक्टेयर प्रस्तावित जमीन वन विभाग के स्वामित्व की नहीं है। उस पर 156 चीड़ के पेड़ लगे हैं लेकिन वे ”वन स्वरूप में नहीं हैं”। आकलन के मुताबिक इस भूमि का नज़राना 4,16,59,900.00 रूपये बनता है और वार्षिक किराया 1196.80 रुपये बनता है। जवाब में ग्राम सभा की खुली बैठक का कोई जि़क्र नहीं है।
ग्राम सभा की बैठक किए बगैर ज़मीन किस प्रक्रिया के तहत सोसायटी को दी गई, इसके लिए आवेदित आरटीआइ के जवाब में गांव वालों को प्रधान द्वारा जारी एनओसी थमा दिया जाता है, जिस पर न तो तारीख है और न ही वह सत्यापित प्रति है। तब जाकर गांव वालों को पता लगता है कि उनके फर्जी दस्तखत के सहारे उनके साथ धोखा हुआ है। इसके बाद एक और आरटीआइ लगाई जाती है जिसका जवाब 22 नवंबर को आता है। इसमें बताया गया है कि सोसायटी ने सरकार के खज़ाने में दो लाख रुपये का नज़राना 20 नवंबर को ही जमा कराया है। पी.सी. तिवारी पूछते हैं, ”मान लिया कि दो लाख रुपये 20 नवंबर को खज़ाने में पहली बार जमा हुए, तो पट्टा उसके बाद हस्तांतरित होना चाहिए था। आखिर दो महीने पहले 25 सितंबर को कब्ज़ा कैसे ले लिया गया और मुख्यमंत्री ने महीने भर पहले ही शिलान्यास कैसे कर डाला?” ज़ाहिर है, खूबसूरत वादियों में ऊंचाई पर बसी सात हेक्टेयर ज़मीन की सालाना कीमत अगर 1196.80 रुपये हो, तो किसी भी कारोबारी के लिए इससे बढि़या डील क्या होगी।
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