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कार्ल मार्क्स और ग़ालिब की ख़त-ओ-किताबत
क्या ग़ालिब और कार्ल मार्क्स एक-दूसरे को जानते थे। अब तक तो सुनने में नहीं आया था। लेकिन सच यह है कि दोनों एक-दूसरे को जानते ही नहीं थे, बल्कि …
Read Moreफिर बैतलवा डाल पर: चौथी दुनिया का मिथक
गलतियां सभी से होती हैं। लेकिन ऐतिहासिक गलतियां कुछ ही करते हैं। जैसे सीपीएम ने ऐतिहासिक गलती की थी। उसने माना भी, कि सरकार को बाहर से समर्थन देना कितना …
Read Moreबीते साल का शोकगीत…
मार्च में पिछली पोस्ट से लेकर अब तक जनपथ सूना पड़ा रहा। इसकी एक नहीं, कई वजहें गिनाई जा सकती हैं। बहरहाल, साल बीतने को है और पिछले नौ महीनों …
Read Moreकुछ खबरें फटाफट…
पिछले करीब एक महीने से जनपथ सूना पड़ा है। अच्छा नहीं लगता, लेकिन वक्त का तकाजा है। लंबा लिखने का वक्त नहीं और वक्त है भी तो मौसम खराब। ऐसे …
Read Moreयूथ जर्नलिस्ट लीग का पहला कार्यक्रम 11 फरवरी को
हाल के दिनों में जिस तरीके से हमारे इर्द-गिर्द पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं, उसने यह साफ कर दिया है कि अब हमारे शासकों को अपने ही संविधान में सुनिश्चित …
Read Moreकविता की मौत का फ़रमान
पिछली बार भी लिखी थी अधूरी एक कविता… छूटे सिरे को पकड़ने की कोशिश की नहीं। आखें बंद कर- करता हूं जब भी कृत्रिम अंधेरे का साक्षात्कार मारती हैं किरचियां …
Read Moreकुछ खबरें फटाफट…
तीन-चार खबरें जल्दी-जल्दी बतानी हैं, क्योंकि एक तो ब्लॉग अपडेट करने का वक्त नहीं मिलता, दूसरे हरेक खबर के बारे में लंबा नहीं लिखा जा सकता… सबसे पहले…जल्द से जल्द …
Read Moreहिंदी का आधुनिक कालिया मर्दन…
दरअसल, पिछले दिनों हुए नया ज्ञानोदय विवाद पर एक पुस्तिका प्रकाशित हुई थी जिसका नाम रखा गया ‘युवा विरोध का नया वरक’। मैंने सोचा कि साल बीतते-बीतते इस पर एक …
Read Moreत्रिलोचन, माओरी और भाषाधर्मी मित्रों के बारे में
‘भाषाई आत्मसम्मान और एक्टिविज्म’का सवाल जीतेंद्र रामप्रकाश अनुवाद: अभिषेक श्रीवास्तव ‘बोलना का कहिए रे भाई,बोलत बोलत तत्त नासाई’ (मैं वाणी के बारे में क्या कहूं भाई?वाणी की अधिकता से तो …
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