…आर या पार हो जट्टा तगड़ा होजा: तिहाड़ में गूंजते लहरी नगमे और पैर पर लिखी एक इबारत


बीतते जनवरी की आखिरी रात तक मनदीप पुनिया का नाम देश के हर अमनपसंद नागरिक की ज़बान पर था। अपनी युवावस्‍था की चार बेशकीमती रातें मनदीप को देश की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ में काटनी पड़ी थीं। सिर्फ इसलिए कि उन्‍होंने पुलिस को पत्रकार के पेशेवर काम में दखल देने से रोकने की कोशिश की थी और पूरे किसान आंदोलन के दौरान पूरी ईमानदारी से कवरेज की थी। यह कवरेज जिन प्रकाशनों के लिए उन्‍होंने की, उसमें अदद एक होने का सौभाग्‍य इस वेबसाइट जनपथ को भी प्राप्‍त है, जो पत्रकारों के स्‍वैच्छिक योगदान से चल रही है। मनदीप बाहर आये कुछ कहानियां लेकर। तिहाड़ में बंद किसानों की कहानियां। उनके पास न तो कोई रिकॉर्डर था, न कैमरा, न नोटबुक और न मोबाइल। बाहर आते ही उन्‍होंने अपने नोट्स मीडिया को दिखाये, जो पुलिस की लाठी से सूजे अपने पैरों पर उन्‍होंने लिख मारे थे। उन्‍हीं नोट्स के आधार पर उन्‍होंने एक संक्षिप्‍त कहानी लिखी और जनपथ को भेजी है। कहानी की शुरुआत में एक डिसक्‍लेमर है, जो पत्रकार की इंसानी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।       

संपादक

जेल को ग्लैमराइज करने का मकसद नहीं है. जेल बहुत बुरी होती है. कैद में रहना बहुत मुश्किल है.


29 जनवरी को दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पंजाब के पेरों गांव के 43 वर्षीय किसान जसमिंदर सिंह गीली आंखों से मेरी तरफ झांकते हैं और कहते हैं, “सरकार को क्या लगता है.. कि वह हमें जेल में डालकर हमारे हौसले तोड़ देगी? वह बड़ी गलतफहमी में है. शायद उसने हमारा इतिहास नहीं पढ़ा. हम तब तक वापस नहीं हटेंगे, जब तक यह तीनों कृषि कानून वापस नहीं हो जाते.”

इस गुस्से भरी आवाज के शांत होने के बाद तिहाड़ जेल के छोटी सी चक्की (कमरा) में लगे रोशनदान से आ रही रोशनी को जसमिंदर एकटक  देखने लगते हैं. एक लंबी शांति के बाद वह कहते हैं, “29 जनवरी को हम कई किसान नरेला मार्किट से सामान लाने गए थे. जब वापस आ रहे थे तो पुलिस ने हम निहत्थों पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया.”

गुस्से में भरे जसमिंदर अपना पाजामा हटाकर अपने पैरों पर डंडों की चोट के निशान दिखाते हुए कहते हैं, “ये देख, पुलिस ने कितनी बुरी तरह से मारा है.”

जसमिंदर एक-एक करके अपने शरीर पर लगी चोटों के निशान मुझे दिखाते हैं. उनके गेहुंए शरीर पर नीले रंग के बड़े-बड़े निशान इस बात की पुष्टि कर रहे थे कि उन्हें डंडों से बहुत बुरी तरीके से पीटा गया है.

जसमिंदर ने बताया कि 30 के करीब किसानों पर लाठीचार्ज के बाद पुलिस उन्हें एक हरे रंग की बस में चढ़ाकर एक थाने में ले जाती है और उनका मेडिकल करवाकर तिहाड़ जेल में बंद कर देती है.

जसमिंदर की तरह ही हरियाणा की टोहाना तहसील के हिम्मतपुरा गांव के 47 वर्षीय किसान मलकीत सिंह भी उन्हीं किसानों में शामिल थे, जिन्हें पुलिस ने लाठीचार्ज कर 29 जनवरी को गिरफ्तार किया था. मलकीत सिंह के चेहरे पर डर और आत्मविश्वास के अस्पष्ट से भाव थे.

उनके इन अस्पष्ट भावों के बारे में पूछने पर उन्होंने मुझे बताया, “डर तो कुछ नहीं है, बस चिंता है. हमें तो यह भी नहीं पता है कि हमारे ऊपर धाराएं कौन सी लगायी हैं, क्यों लगायी हैं.”

मलकीत सिंह के साथ उनकी चक्की में बंद पंजाब के संगरूर जिले के देहला गांव के दो नौजवान किसान जगसीर और जस्सी लगातार सारे किसानों की हिम्मत बढ़ाने के लिए पंजाबी में छोटी-छोटी लोक कहावतें कहते रहते.

नौजवान किसान जस्सी ने मुझे बताया:

मैं पिछले कई साल से बीकेयू (उग्राहां) के साथ काम कर रहा हूं और किसानों पर होने वाले राजकीय दमन का पहले भी गवाह रहा हूं. हमारी सारी किसान यूनियनों ने ऐलान कर दिया है कि जब तक जेलों में बंद किसानों को नहीं छोड़ा जाता, तब तक सरकार से किसी भी तरह की बातचीत नहीं की जाएगी. सरकार को पता होना चाहिए कि किसान गिरफ्तारियों से डरने वाले थोड़ी न हैं. हमारे हौसले पहाड़ों से भी बड़े हैं और हमारे हौसले तोड़ पाना इस सरकार के बस की बात नहीं. पंजाब की किसान लहर मजबूती से संघर्ष करने के लिए जानी जाती है और इसी संघर्षशील किसान लहर के वारिस हैं हम सभी किसान.

तिहाड़ जेल में लगभग 120 के करीब किसानों के बंद होने की खबर सरकार ने खुद स्वीकारी है. मैं जेल के जिस वार्ड में बंद था उसमें जे, के, एल और एम अक्षरों से जिनके नाम शुरू होते हैं उन बंदियों को बंद किया गया था. इसी वार्ड में मेरी मुलाकात 70 वर्षीय बाबा जीत सिंह से हुई.

बाबा जीत सिंह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के गांव बनियानी में स्थित गुरुद्वारे में ग्रंथी हैं और वह इस किसान आंदोलन में बुराड़ी ग्राउंड में बैठे किसानों को लंगर खिलाते हैं. सफेद दाढ़ी-मूंछों के बीच छुपे उनके चेहरे पर पड़ी झुर्रियों के बीच पसरी उनकी हंसी सत्ता पर तंजनुमा लगती है.

उन्होंने मुझे बताया, “मैं तो सरकार द्वारा बताये गये बुराड़ी ग्राउंड में बैठे किसानों के लिए लंगर व्यवस्था में लगा हुआ था. हमारे ऊपर लाठीचार्ज करके हमें भी उठा लाये.”

बाबा जीतसिंह ने मुझे उनके साथ बंद हरियाणा के रोहतक जिले के रिठाल गांव के 60 वर्षीय किसान जगबीर सिंह से मिलवाया. जगबीर सिंह ने मुझे बताया:

मुझे पीरागढ़ी के मेट्रो स्टेशन के पास से पुलिस ने गिरफ्तार किया. मैं राजेन्द्र प्लेस अपने भाई के घर पर जा रहा था, लेकिन मुझे रास्ते में ही यह कहकर गिरफ्तार कर लिया कि बस आधार कार्ड देखकर छोड़ देंगे. इन्होंने छोड़ने के लिए थोड़ी न उठाया था, बल्कि तिहाड़ में डालने के लिए उठाया था. मेरे साथ जींद के एक नौजवान किसान को भी तिहाड़ में बंद कर दिया है.

जगबीर सिंह यह सब बता ही रहे थे कि उन्होंने उनके पास खड़े नौजवान नरेंद्र गुप्ता की तरफ इशारा करते हुए कहा, “यह देखिए इस लड़के को. यह तो किसान भी नहीं है. फिर भी इसको किसान आंदोलन के नाम पर बंद कर दिया.”

मैंने जब नरेंद्र गुप्ता से उनका पक्ष पूछा तो उन्होंने मुझे बताया, “मैं तो दिल्ली का रहने वाला हूं और किसान भी नहीं हूं. मैं चुपचाप अपने घर की तरफ जा रहा था. अचानक पुलिस ने मुझे उठा लिया. मैंने पुलिस को बताया भी कि मैं किसान नहीं हूं लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी, हालांकि अब मुझे बाहर निकालने की प्रक्रिया की जा रही है. शायद जल्दी ही मैं घर वापस चला जाऊं.”

जेल की जिस चक्की में मैं कैद था उससे अगली चक्की में पंजाब के गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक के कुछ नौजवान किसान भी कैद थे. वे दिन मैं कई बार ऊंची आवाज में किसान लहर से जुड़े पंजाबी लोकगीत गुनगुनाते रहते.

वे गुनगुनाते, “केन्द्र दी सरकार रही सदा किसाना लई गद्दार हो जट्टा तगड़ा होजा. आजा सड़क ते धरने मार, लड़ाई छिड़ पई आर या पार हो जट्टा तगड़ा होजा.” गाने गुनगुनाने के बाद वे लोग किसान एकता जिंदाबाद के नारे लगाते तो जेल में कैद दूसरे बंदी भी उनके नारों का जवाब जिंदाबाद से देते.

जेल से बाहर आ गया हूं, वे गीत मेरे कानों में गूंज रहे हैं. उन गीतों को रिकार्ड करने के लिए जेल में शायग कोई यंत्र न हो, लेकिन वे गीत जिनके भी कानों में पड़े हैं उनके ज़ेहन में हमेशा के लिए रच बस गये होंगे. 


यह वृत्तान्त सबसे पहले कारवां में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था। हिन्दी और उर्दू में यह अन्यत्र छप चुका है।


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