तन मन जन: कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन या मौत से डराने का नया धंधा?


अन्तर्राष्ट्रीय दवा कम्पनी ‘‘फाइजर’’ की वैक्सीन को आपातकालीन इजाजत देने के बाद ब्रिटेन यह उम्मीद कर रहा था कि अब वहां कोरोना वायरस संक्रमण का प्रकोप नियंत्रित हो जाएगा, लेकिन वायरस के नये स्ट्रेन के सामने आने से अब ब्रिटेन में फिर डर, अनिश्चय एवं हड़कम्प की स्थिति है। कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस के पहले से मौजूद स्ट्रेन की तुलना में यह नया स्ट्रेन 70 फीसद ज्यादा तेजी से फैल रहा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने मंत्रियों की आपात बैठक बुलाकर लंदन सहित देश के कई हिस्से में फिर से लॉकडाउन लगा दिया है। सभी अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें रद्द कर दी गई हैं। देश में बाहर से आने जाने वाले यात्रियों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है।

कोरोना वायरस के इस नये स्ट्रेन को Vui 202012/01 का नाम दिया गया है। ब्रिटेन का स्वास्थ्य विभाग अब यह पता लगाने में जुट गया है कि क्या इस नये स्ट्रेन से मौत की दर भी बढ़ेगी? दिसम्बर के अग्रिम सप्ताह में ब्रिटेन क्या, लगभग पूरा योरोप क्रिसमस के खुशियों में डूबने की तैयारी में था तभी कोरोना वायरस के इस नये स्ट्रेन की दहशत ने ‘रंग में भंग’ कर दिया। ब्रिटेन में यह भी अफवाह फैल गयी है कि यह नया स्ट्रेन दक्षिण अफ्रीका से आया है। इसलिए सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका से आने जाने वाली फ्लाइट्स को रद्द कर दिया गया। कई देशों के एडवाइजरी जारी कर ब्रिटेन से आवाजाही पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। योरोपीय संघ ने इस बीच कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर एक कॉमन पालिसी बनाने की बात कही है। कहा जा रहा है कि डेनमार्क में भी ऐसा ही स्ट्रेन पाया गया है। कोरोना वायरस का यह नया स्ट्रेन संक्रामक है लेकिन ज्यादा घातक है ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के इमरजेन्सी चीफ माइक रायन ने कहा है कि कोरोना महामारी के प्रसार के दौरान ऐसे नये स्ट्रेन का मिलना कोई बड़ी बात नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि, ‘‘कोई भी महामारी और उससे जुड़े वायरस में उसके स्ट्रेन में बदलाव एक सामान्य जैविक प्रक्रिया है जिसे हम वैज्ञानिक भली भांति समझते हैं।’’ इससे उलट पिछले दिनों ब्रिटेन के स्वास्थ्य सचिव मैट हैनकॉक ने नये स्ट्रेन के लिये ‘‘बेकाबू’’ शब्द का प्रयोग किया था। यहां गौर करने की बात यह है कि कोरोना वायरस को लेकर सरकारें और वैज्ञानिकों में कई बार परस्पर विरोधाभासी सोच और बयान सामने आ रहे हैं। दुनिया के नागरिक इससे भ्रमित हैं और वे समझ नहीं पा रहे कि कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर ‘‘सच’’ आखिर क्या है?

कोई भी वायरस हमेशा अपना रूप बदलता है, यह एक सामान्य जैविक प्रक्रिया है। सूक्ष्म जीव वैज्ञानिक इस बात को जानते हैं। कोविड-19 जीनोमिक्स यूके कंसोर्शियम के प्रोफेसर निक लोमन कहते हैं कि कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन को लेकर जो चिंता है उसकी निम्नलिखित मुख्य वजहें हैं। पहला कि यह तेजी से वायरस के अन्य स्ट्रेन की जगह ले रहा है, दूसरा वायरस के मुख्य संरचना में ही बदलाव हो रहा हो और तीसरा कि इस नये स्ट्रेन से मानव कोशिका को ज्यादा क्षति पहुंचने की संभावना हो। उन्‍होंने कहा है कि जो भी हो, अभी वैज्ञानिक इस अध्ययन में जुटे हैं और समझने की कोशिश में हैं कि हकीकत आखिर है क्या?

ब्रिटेन में पाए गए कोरोना वायरस के इस नये स्ट्रेन को लेकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी स्पष्ट नहीं हैं। दरअसल, इस वायरस के स्ट्रेन के 70 फीसद ज्यादा संक्रामक होने का आंकड़ा लंदन के इम्पीरियल कॉलेज के सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक डॉ. एरिक बोल्ज ने दिया, हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि, ‘‘अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।’’ बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस का यह नया स्ट्रेन ब्रिटेन के नार्दन आयरलैण्ड को छोड़कर पूरे ब्रिटेन में फैला है। दुनिया भर में वायरसों के जेनेटिक कोड पर नजर रखने वाली संस्था ‘‘नैक्सटस्ट्रेन’’ के आंकड़े बता रहे हैं कि कोरोना वायरस का यह नया स्ट्रेन डेनमार्क और आस्ट्रेलिया में भी देखा गया है मगर यह ब्रिटेन से वहां गए लोगों की वजह से फैला? जो वायरस चीन के वुहान में मिला था, वह और बाद के वायरस में कुछ भिन्नता है। D614G वायरस स्ट्रेन फरवरी में योरोप में मिला था, A-222V स्ट्रेन भी ब्रिटेन में फैला था। अभी Vui 202012/01 भी ब्रिटेन में ही मिला है। बहरहाल, यह तकनीकी मामला है। अभी तो बहुत कुछ और सामने आना बाकी है। सजग रहिए और सही सूचनाओं तक पहुंच बनाइये। अफवाहों से बचें।

अब सवाल है कि जब कोरोना वायरस अपना स्ट्रेन बार-बार बदल रहा है तो जो वैक्सीन आने वाले हैं क्या वे ‘‘असरदार’’ होंगे? वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियां तो कह रही हैं कि, ‘‘बन रहे वैक्सीन असरदार हैं’’ लेकिन कम्पनियां यह भी कह रही हैं कि ‘‘यह वैक्सीन एक इम्यून बूस्टर की तरह है।’’ कैम्ब्रि‍ज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रवि गुप्ता (क्लिनिकल माइक्रोबायोलोजिस्ट) कहते हैं कि यदि वायरस स्ट्रेन बदलता रहा तो यह चिंता की बात है। प्रो. गुप्ता के अनुसार ‘‘कोरोना वायरस वैक्सीन से बचने की कगार पर है और यह इस दिशा में कई कदम आगे बढ़ा चुका है।’’ प्रो. गुप्ता के वक्तव्य से ब्रिटेन के ग्लास्गो यूनिवर्सिटी के प्रो. डेविड राबर्टसन भी इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि ‘‘सम्भव है कि यह वायरस ऐसा म्यूटेन्ट बना ले जो वैक्सीन से बच जाता हो।’’ इन दोनों महत्वपूर्ण वायरोलोजिस्ट की बातों से मेरी एक आशंका सही साबित होती दिख रही है कि कोरोना वायरस संक्रमण दरअसल एक ‘‘फ्लू’’ है जो मनुष्यों के साथ ही रहेगा और सामान्य जुकाम खांसी की तरह कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों के लिए जानलेवा बना रहेगा।

Microsoft co-founder Bill Gates and SII CEO Adar Poonawalla

इस दौरान वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों और व्यापारियों के वक्तव्यों पर गौर करें तो वैक्सीन व महामारियों के कारोबार को समझने में आपको काफी सहूलियत होगी। बिल-मेलिंडा गेट्स फाउन्डेशन के प्रमुख बिल गेट्स ने फाउन्डेशन की वार्षिक रिपोर्ट में लिखा है कि कोरोना वायरस संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए दुनिया की 70 फीसद आबादी को वैक्सीन लगाना जरूरी है। उनके अनुसार हर व्यक्ति को वैक्सीन की दो खुराक (डोज़) लगाना जरूरी है। इस हिसाब से दुनिया भर के लोगों के लिए दस अरब डोज की जरूरत होगी। इतनी वैक्सीन का निर्माण आसान नहीं है। यदि सभी वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों को मंजूरी दे दी जाए तो सालाना 5 अरब डोज़ वैक्सीन बनेगी यानि 10 अरब डोज़ के लिए दो वर्ष लगेंगे। इसके लिए कई कम्पनियों को डोज़ बनाने का लाइसेंस देना होगा। बिल गेट्स की चिंता है कि कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए अभी भारत के सीरम इन्स्टीच्यूट को बड़े पैमाने पर उत्पादन का लाइसेंस मिला है। यह कम्पनी एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का उत्पादन कर रही है।

बिल गेट्स ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में साफ कहा है कि उनके फाउन्डेशन ने एक बड़ी रकम कोरोना वायरस से बचाव की वैक्सीन के नाम पर खर्च किया है। इसलिए दुनिया में उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। बिल गेट्स ने साफ किया है कि वैक्सीन बनाने के लिए ‘‘दूसरे विश्व युद्ध’’ जैसी व्यवस्था करनी पड़ेगी। इसका मतलब हुआ कि जैसे दूसरे विश्व युद्ध में बड़े पैमाने पर टैंक और युद्ध के हथियार बनाने वाली आटोमोबाइल कम्पनियों को प्राथमिकता दी गई थी वैसे ही इस कोरोना महामारी के दौर में वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों को युद्ध स्तर पर लगाए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वैक्सीन बनाना एक बात है और उसे अरबों लोगों में वितरित करना और बात है। गेट्स फाउन्डेशन वैक्सीन के वितरण के लिए 16 दवा कम्पनियों और विभिन्न देशों की सरकारों के गठजोड़ से काम कर रहा है।

यदि गेट्स फाउन्डेशन के वैक्सीन अभियान पर गौर करें तो कोई 20 वर्ष पूर्व गेट्स फाउन्डेशन ने ‘‘ग्लोबल एलाएन्स फॉर वैक्सीन एण्ड इम्यूनाइजेशन’’ (गावी) नामक एक संस्था बनाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ तथा विश्व बैंक के साथ कई देशों में वैक्सीन के प्रचार प्रसार का अभियान चलाया हुआ है। इस वैक्सीन एलाएन्स का लक्ष्य विभिन्न महामारियों में वैक्सीन के प्रचार-प्रसार व वितरण को बढ़ावा देना है। उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस से बचाव की वैक्सीन निर्माण में गेट्स फाउन्डेशन की एक बड़ी राशि दाव पर लगी है। कहा जा रहा है कि वैक्सीन निर्माण के लिये लगभग 7 अरब डालर की राशि खर्च की जा चुकी है।

आइए, अब थोड़ा कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन की हकीकत समझ लें। सवाल है कि जिस स्ट्रेन की चर्चा इतनी गर्म है क्या वह पहली बार हो रहा है? कोरोना वायरस के अब तक अनेक स्ट्रेन चर्चा में हैं। 229E(अल्फा) स्ट्रेन, NL65 (अल्फा) स्ट्रेन, 0C43 (बीटा) स्ट्रेन, HKUI (बीटा) स्ट्रेन, मर्स कोव (बीटा) स्ट्रेन, सार्स कोबव-2 जैसे 103 से भी ज्यादा स्ट्रेन के सैम्पल उपलब्ध हैं। दरअसल कोरोना वायरस का म्यूटेशन शुरू से ही हो रहा है। यह वायरस की सामान्य प्रक्रिया है। आप को यदि याद हो तो अप्रैल महीने में गुजरात और मध्यप्रदेश के इन्दौर में मौत के आंकड़े अचानक तेजी से बढ़े थे। तब कहा गया था कि यह कोरोना वायरस के एल-स्ट्रेन की वजह से हुआ है। तब यह भी प्रचारित था कि इस वायरस का एल स्ट्रेन ज्यादा घातक है और यह स्ट्रेन चीन के वुहान से आया है। केरल में संक्रमण ज्यादा था लेकिन कम जानें गईं तो कहा गया कि वहां एस स्ट्रेन था जो एल स्ट्रेन के म्यूटेशन से ही बना था इसलिए यह कम घातक था। तब भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईसीएमआर) ने वायरस के म्यूटेशन से साफ बना कर दिया था।

Genomic epidemiology of novel coronavirus. Image Credit: Nextstrain

कोरोना वायरस के संक्रमण का डर जब भी कम होने लगता है तभी कोई न कोई तकनीकी डर खड़ा कर लोगों को दहशत में डाल दिया जाता है। यह अध्ययन का विषय है कि वायरस वास्तव में खतरनाक है या इसके डर को खतरनाक बना कर पेश किया जा रहा है। अब तो नये स्ट्रेन की बात के साथ साथ यह भी कहा जा रहा है कि वैक्सीन जो पुराने वायरस के स्ट्रेन के अनुसार बन रहे हैं वह सभी स्ट्रेन पर प्रभावी होंगे। जाहिर है कि कम्पनियों की चिंता बीमारी महामारी के रोकथाम से ज्यादा अपने धंधे पर है। दुनिया के सामान्य निरीह लोग दरअसल इन कम्पनियों के भारी भरकम प्रचार एवं प्रोपगेन्डा के शिकार हैं। मौत के डर से डरी हुई आबादी किसी भी भ्रामक व अप्रमाणिक सूचनाओं को मानने के लिए विवश है। कोरोना ने मौत के डर के साथ जिन्दगी और रोजगार के अनिश्‍चय का आतंक भी पैदा कर दिया है। कई देशों की मक्कार सरकारें इसका नाजायज फायदा भी उठा रही हैं। कोरोना संक्रमण की आड़ में कई सरकारों ने अमानवीय कानूनों के सहारे नागरिकों को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने की आड़ में सरकारों के कई बेतुके निर्णय आपको यदि चौंकाते नहीं हैं तो आप अपने इंसान होने की शर्तों को फिर से समझिए।

इस कोरोना काल में सरकारों ने कई जन विरोधी निर्णयों को कानूनी जामा पहनाकर आपके गले की फांस के रूप में लाकर रख दिया है, सत्ता की जुगाली करने वाला मीडिया आपको भ्रमित करने के सारे टोटके आजमा कर सरकार की मदद कर रहा है। ऐसे में यह समय है कि देश के लोग विवेकवान बनें, सही सूचनाओं तक पहुंचे, खबरों का सही विश्लेषण करें और चल रहे घटनाक्रम में अपनी स्थिति की तलाश करें। यह एक कठिन दौर है और ऐसे में अंधभक्ति से बाहर निकल कर सही समझ बनाने की सख्त जरूरत है। एक बात और। भारत में कोरोना वैक्सीन लगवाना कितना सुरक्षित है यह भी हमें समझ लेना चाहिए।

सरकार की तैयारी है कि देश में फरवरी-मार्च तक वैक्सीन बनाने शुरू हो जाएं। इसके लिए इमरजेन्सी यूज अथराइजेशन (ईयूए) का उपयोग किया जायेगा। दरअसल, ईयूए बिना मंजूरी वाली दवा या अप्रमाणित दवा के इमरजेन्सी इस्तेमाल के लिए तत्काल दी जाने वाली स्वीकृति है जो आपात या गम्भीर जानलेवा बीमारियों के इलाज या रोकथाम के लिए दी जाती है। आज तक दुनिया में कहीं भी किसी वैक्सीन को ईयूए नहीं दिया गया है लेकिन पहली बार यह चर्चा है कि बिना किसी पुख्ता प्रमाण के इस सन्दिग्ध वैक्सीन को ईयूए के तहत समय से पहले लगाने की अनुमति मिल जाए। भारत में सेन्ट्रल ड्रग्स स्टैन्डर्ड कन्ट्रोल आर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) यह अप्रूवल देने की प्रक्रिया में है। इसके लिये फाइजर और दूसरी दवा कम्पनियों ने सम्भवतः आवेदन भी किया है। यहां मैं यह याद दिलाना चाहूंगा कि कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज के लिए ‘‘रेमेडीसीवर’’ नामक दवा को ईयूए के तहत ही मंजूरी मिली थी जिसे बाद में गम्भीर दुष्परिणामों की वजह से डब्लूएचओ ने अपनी दवा की लिस्ट से बाहर कर दिया था। ऐसे में जहां इस बीमारी और संक्रमण तथा उससे बचाव के टीके को लेकर इतनी आशंकाएं और आपत्तियां सामने हैं तो कोई भी पढ़ा-लिखा समझदार व्यक्ति भला आसानी से कैसे विश्वास कर ले कि सब चंगा सी!


लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं


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