खेती उपज की खरीदी क्यों नहीं करता राज्य शासन?


एक ओर कोरोना व्हायरस जैसी और अन्य कुपोषण, TB जैसी बिमारियों का सामना करने के लिए देश के गरीबों को न हि पर्याप्त राशन, न हि सकस आहार….. और दूसरी ओर किसानों खेत मजदूरों की मेहनत से उपजा खेती माल, अनाज के साथ फल, सब्जी खेतों में खड़ी है लेकिन या तो बेचीं नहीं जा रही है या तो कम से कम भाव में खरीद कर व्यापारी ‘समर्थन मूल्य’ के आदेशों का भी उल्लंघन कर रहे है| केला और टमाटर 2 रू. तो खरबूज 5 रू. किलो के भाव से बेचा जा रहा है| कईयों की सब्जी, फल तो बेचे नहीं गये और गरीब, मजदूरों के या अन्य भूमीहीनों को तो ये सकस आहार के लिए उपलब्ध भी नहीं हो रहे है| कई जगह सब्जी खरीदने जाए तो भी पुलिसों की मारपीट से डर फैला हुआ है|

केंद्रीय शासन ने 24.3.2020 के रोज, खेती संबंधी सारे क्रिया कार्य के लिए छूट देने का आदेश निकाला लेकिन मध्य प्रदेश के और अन्य राज्यों के भी किसानों ने हैरान होकर आक्रोश जताया| हर जगह लॉकडाउन का सामना और मंडियाँ बंद रही, खेत उपज में फल, सब्जी, नाशवंत उपज तो ना बचा पाये ना बेच पाये| दिल्ली, जयपुर तक माल ले जाना असंभव हुआ, परिवहन खर्च से तो घाटे में ही जाना था किसान को! इंदौर, भोपाल मंडियाँ क्या, स्थानिक मंडियाँ भी बंद! कुछ थोड़ा माल सब्जी मंडी भी न खुलने से या सुबह के समय, कम खुलने से बेचा जाता और पैदल चलचलकर  बेचना भी कहाँ तक संभव हो पाता? कुल मिलकर इतनी सकस पैदास बरबाद और किसान के साथ भूखे गरीब भी वंचित|

दूध तक किसानों से, धनगरों से खरीद नहीं पायी डेयरियाँ जिन्हें बिक्री के पर्याप्त मौके नहीं मिले लॉकडाउन के कारण! मछली मंडियाँ बंद रखी और मटन मार्केट भी| कई गरीबों के लिए यह आहार भी नहीं मिला और इस व्यवसाय में लगे भी अपनी आजीविका कम-अधिक खो बैठे! जब कि कोरोना का मछली या मांसाहार से संबंध ना होने के बारे में भी शासकीय पत्र जाहीर हुए!

इस स्थिति में फिर उठी आवाज…. हम सभी किसान संगठनों ने मांग की (देखिये प्रधानमंत्री को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय के द्वारा लिखा गया पत्र) कि शासन स्वयं खरीद ले खेत उपज, समर्थन मूल्य का पालन करें और करवाये तथा जिस प्राकृतिक उपज का (जैसे फल, सब्जी, दूध) समर्थन मूल्य आज तक घोषित नहीं है, उसका भी समर्थन मूल्य तत्काल घोषित करें|

तेलंगाना, छत्तीसगढ़, पंजाब जैसे राज्यों में शासन से ही खरीदी आधी या पूरी, कुछ उपज की तो करने का निर्णय हो चुका है, तो अन्य राज्यों में, जैसे मध्य प्रदेश में, क्यों नहीं – यह सवाल उठाया|

9 अप्रैल के रोज केंद्र शासन के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का आदेश आया कि “खेतीउपज की, तुवर, कड़धान्य, तेलबीज की खरीदी में राज्य शासन खरीदी शुरू करें| लॉकडाउन के दौरान नाशवंत उपज की खरीदी बिक्री में राज्य शासन हस्तक्षेप करके सही, लाभदायक दाम पर किसानों के मालकी खरीदी हो यह देखे|” साथ-साथ यह भी शासन की प्रेस विज्ञप्ति में आया कि “फल, दूध, बीज या अन्य प्राकृतिक, नाशवंत उपज/माल की वाहतुक के लिए प्रमुख शहरों तक ले जाने वाली 109 पार्सल विशेष ट्रेन्स 59 मार्गों पर लॉकडाउन की शुरुआत से ही नोटिफाई की है जो जलदगति से चलेगी और बड़े शहरों को उपलब्ध करेगी|” प्रत्यक्ष में इन ट्रेनों तक भी गाँव का किसान कैसे पहुंचे? कहाँ पहुंचा है? और शहरों में भी केला 80 रू. दर्जन, टमाटर 150 रु. किलो या खरबूज 30 रु. किलो से बेचा जा रहा है तो वह गरीब क्या माध्यम वर्ग के लोगों को भी क्या मुनासिब होगा? “बाजार व्यवस्था में हस्तक्षेप के लिए 50% रकम केंद्र शासन देगी”, यह आश्वासन भी इस आदेश में है और “इसके लिए नियमावली/मार्गदर्शिका राज्य शासनकर्ताओं को उपलब्ध की गई है”, यह स्पष्ट उल्लेख है!

लेकिन उपरोक्त आदेशों के पालन का अभाव बड़वानी, धार जैसे मध्य प्रदेश के जिलों में ही नहीं, हर जिले में और राज्य-राज्य में स्पष्ट दिखाई दे रहा है| समझ में नहीं आता कि केंद्र के आदेश क्या मात्र एक दिखावा है? क्या राज्य शासन ने इसे दुर्लक्षित और उल्लंघित करना सोच समझकर तय किया है? मात्र कुछ वाहनों को पास देना, वह भी बड़े व्यापारियों को और कल की ही बड़वानी – इंदौर के बीच की एक घटनाअनुसार, पास होने पर भी ट्रक का ड्राईवर और किसान के नौकर को बीच में भरी हुई गाड़ी रोककर गिरफ्तार करना भी हुआ है|

अब मध्य प्रदेश के निमाड़ जैसे क्षेत्र की फलफलावल, सब्जी की समृध्दी तो ना किसानों को नहीं प्रदेश या, देश के गरीबों को काम आयी| काफी सड़ भी गयी| कुछ थोड़ी गरीबों को किसानों से ही बांटी गयी|

पूरा देश और शासन आगे के 15 दिनों तक भी खेती और प्राकृतिक उपज की परवाह नहीं करेगी तो किसानों की लाखो की नुकसानी से क्या होगा असर? आत्महत्या? आज ही कुपोषित बच्चों में से हर रोज 3000 मृत्यु का निवाला बनते है तो उनकी संख्या कितनी बढ़ेगी…. इस पर कोरोना के भयाकांत में कौन सुनेगा, कौन सोचेगा?

हर राज्य और केंद्र शासन केवल आदेशों की आतिशबाजी न करते प्रत्यक्ष में ठोस कदम उठाये, वह भी तत्काल!

कैलाश यादव, श्यामा मछुआरा, लक्ष्मी नारायण, भारत मंडलोई, धनराज भिलाला, इकबाल भाई मनावर, देवीसिंह तोमर, मेधा पाटकर

 

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