टीआरपी में रिपब्लिक टीवी पर फर्जीवाड़े के आरोप लगने के बाद तमाम टीवी चैनलों में खुशी की लहर है। क्यों? एक बहुत पुरानी कहावत है। आदमी अपने दुख से जितना दुखी नहीं है, उससे ज्यादा दूसरों के सुख से दुखी है। रिपब्लिक बनाम अन्य के मामले में यही हुआ है।
आजतक, एबीपी, इंडिया टीवी, जी न्यूज़ सब अर्णब गोस्वामी के पीछे पड़ गए हैं क्योंकि अर्णब ने हिंदू हृदय सम्राट बनने की कोशिश में फेक न्यूज़ के मास्टर बन चुके सारे एंकरों, संपादकों और मालिकों के माथे पर बल ला दिया है। पहले तो अर्णब घोषणा करते थे कि खबर यहा हैं, उधर सास-बहू है। अब तो वो कह रहे हैं कि हिंदुत्व यहां है। सनातन धर्म यहां है। राष्ट्रवाद यहां है। वो भी असली वाला!
कहानी टीआरपी की नहीं है। कहानी है कट्टरपंथी हिंदू राष्ट्रवाद की। तो अब राष्ट्रवाद और राष्ट्रवाद के बीच जंग होने वाली है। हिंदुत्व और हिंदुत्व में जंग होने वाली है। एक तरफ है सुधीर चौधरी, रजत शर्मा, दीपक चौरसिया, अमीश देवगन और आजतक के तमाम चेहरों का हिंदुत्व और राष्ट्रवाद। मुसलमानों से नफरत का राष्ट्रवाद। देश की अखंडता को रौंदने का राष्ट्रवाद। आदमी और आदमी के बीच दीवार उठाने का राष्ट्रवाद। तो दूसरी तरफ है देश, लोकतंत्र, संविधान, नैतिकता को कुछ न समझने का राष्ट्रवाद।
हड़कंप इसलिए ज्यादा है कि अर्णब ने टीआरपी के बहाने सबको अपने नफरती हिंदुत्व में लपेट लिया है। वर्ना इसी आजतक ने शो चलाया था “जन्मभूमि हमारी राम हमारे मस्जिद वाले कहां से पधारे”। ये पत्रकारिता के नाम पर खालिस दुर्गंध थी। और ये अर्णब गोस्वामी ने नहीं किया था। अरुण पुरी के आजतक ने किया था। अर्णब कह रहा है अब करो साबित कौन बड़ा हिंदू। वो दिन दूर नहीं जब एंकर कोट के नीचे से जनेऊ निकालकर दिखाएगा और कान पर चढ़ाकर बहस में बैठेगा।
जो मैं कहने की कोशिश कर रहा हूं वो ये कि रिपब्लिक पर मुकदमा टीवी पत्रकारिता का कोई स्वच्छता अभियान नहीं है। न ही कोई पवित्रता अभियान है।
मान लीजिए टीआरपी नापने की बंदोबस्ती ठीक हो गई। अर्णब गोस्वामी को जेल भी हो गई, हालांकि नहीं होगी। एकाध दिन के लिए रिपब्लिक या आर भारत बंद हो गया। बार्क ने टीआरपी का नपना बदल दिया। तो क्या हो जाएगा इससे? सवाल ये है। सच तो ये है कि टीआरपी के हमाम में सब नंगे हैं। फेक न्यूज़ की फैक्ट्री चलाने में न आजतक पीछे है, न इंडिया टुडे, न एबीपी, न जी न्यूज़। किसी को नैतिकता की बात करने का हक नहीं है।
गोल्ड स्टैंडर्ड ऑफ जर्नलिज्म का चूरन बेचने वाले बड़े-बड़े एंकर फेक न्यूज़ में पकड़े गए हैं। नाम न भी लें तो आप समझ जाएंगे। कांग्रेस पर हमले के लिए ही नेहरू की फर्जी चिट्ठी तक को राजनीतिक भूकंप बताने वाले नैतिकता का ज्ञान बांच रहे हैं। बलूचिस्तान के वीडियो को कश्मीर का बताकर प्राइम टाइम का पन्ना रंग देने वाले अर्णब गोस्वामी को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं। जमात और तबलीग के नाम पर देश की नसों में हिंदू-मुसलमान का जहर घोलने वाले आजतक के, जी न्यूज के, एबीपी न्यूज के या टीवी 18 के एंकर अर्णब गोस्वामी को किस नैतिकता का प्रवचन दे रहे हैं?
बुरी पत्रकारिता का जवाब हिंसा नहीं है: रिपब्लिक टीवी के मालिक पर प्रेस काउंसिल का बयान
बस दो दिन पुरानी बात है। नेशनल ब्रॉडकास्टर्स अथॉरिटी की चिट्ठी आई है। ऑर्डर नंबर 73, साल 2020। इस चिट्ठी में लिखा हुआ है कि आजतक ने फेक न्यूज फैलाया है और उस पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया जाता है। इसका कारण भी समझ लीजिए। आजतक ने सुशांत सिंह से जुड़े फर्जी ट्वीट का प्रसारण किया था। ये फेक न्यूज़ अरुण पुरी के इंडिया टुडे ग्रुप ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए नहीं फैलाई थी। टीआरपी के लिए फैलाई थी। आजतक ने अभिनेता के मुंबई में अपने घर में मृत पाए जाने के दो दिन बाद 16 जून को राजपूत के अंतिम ट्वीट्स पर एक रिपोर्ट की थी। उसने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से भी लेख को ट्वीट किया था। इसमें कहा था कि दिवंगत अभिनेता ने कथित तौर पर अपनी जान लेने का संकेत देते हुए ट्वीट करने के बाद उसे हटा दिया था।
आजतक ने सुशांत की मौत पर लगातार कवरेज की थी और शो के नाम रखे थे “ऐसे कैसे हिट विकेट हो गए सुशांत”; “सुशांत जिंदगी की पिच पर हिट विकेट कैसे हो गए”; “सुशांत इतने अशांत कैसे”, वगैरह वगैरह। एनबीएसए ने इसके लिए आजतक से चैनल पर माफी मांगने को कहा है। माफीनामे की तारीख, टेक्स्ट और समय अथॉरिटी तय करेगी।
वैसे तो सारे अनैतिक हैं और इसमें कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता है, लेकिन अगर एनबीएसए की सजाओं को ही आधार मानें तो सबसे ज्यादा अनैतिक और भ्रष्ट है आजतक।
सबसे कड़ी कार्रवाई आजतक के फेक न्यूज़ के खिलाफ की गई है। एनबीएसए किसी भी चैनल पर एक लाख रुपए से ज्यादा का जुर्माना नहीं लगा सकता। इसके अलावा जी न्यूज़, न्यूज़ 24 और इंडिया टीवी को बिना शर्त चैनल पर माफीनामा प्रसारित करने के निर्देश दिए हैं। कई चैनलों को सिर्फ चेतावनी दी गई है। रिपब्लिक टीवी एनबीएसए का मेंबर नहीं है इसलिए सबसे ज्यादा बकवास के बावजूद इसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। ये वैसे ही है जैसे आप किसी गुनाह पर कह दें कि हम सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते इसलिए हम पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
ऐसा भी नहीं है कि ये जुर्माना और कार्रवाई पहली बार हुई है। 2018 की बात है। सामूहिक बलात्कार की पीड़िता की पहचान उजागर करने के आरोप में आजतक पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया था। 14 सितंबर 2018 को टेलीकास्ट इस रिपोर्ट में बताया गया था कि पीड़िता 2015 बैच की सीबीएसई टापर है और उसे राष्ट्रपति सम्मानित कर चुके हैं। एनबीएसए चेयरपर्सन ने अपने फैसले में कहा कि 2015 बैच की टापर कहे जाने के कारण कोई भी पीड़ित लड़की की पहचान जान सकता था।
तो कौन सी लड़ाई है आजतक और रिपब्लिक में? एबीपी और रिपब्लिक में? जी न्यूज और रिपब्लिक में? या इंडिया टीवी और रिपब्लिक में? ये खबरों की गुणवत्ता की लड़ाई हरगिज नहीं है। ये दुर्गंध पर एकाधिकार की लड़ाई है।
अभी तक आजतक, एबीपी, जी न्यूज़ या इंडिया टीवी जो दुर्गंध फैला रहे थे उसे अर्णब गोस्वामी ने एक झटके में ठिकाने लगा दिया है। वो चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है कि आपका ध्यान किधर है, असली हिंदुत्व इधर है। खेल को समझिए। टीआरपी मामला ही नहीं है। खेल ये है कि हिंदुत्व के एजेंडाधारी चैनलों और एंकरों को अर्णब गोस्वामी ने एक झटके में पैदल कर दिया है, तो टीवी के पर्दे की खिसियानी बिल्लियां और बागड़बिल्ले नैतिकता का खंभा नोच रहे हैं।
आर्टिकल 19: आजतक नहीं, रिपब्लिक! जब खालिस दुर्गंध यहां मिले तो कोई वो क्यूं ले, ये न ले…
जरा और पीछे चलिए। साल था 2012, तब BARC नहीं TAM का जमाना था और अमेरिका की कंपनी एसी नील्सन भारत के कंटर मीडिया के साथ मिलकर टीआरपी का धंधा करती थी। एनडीटीवी तब भी टीआरपी में पिछड़ा हुआ था। 2004 से लेकर 2012 तक एनडीटीवी की टीआरपी लगातार नीचे गिरती जा रही थी। एनडीटीवी के मालिक डॉक्टर प्रणब रॉय ने आरोप लगाया कि टीआरपी में टैम घपला करता है। हम इसे नहीं मानते। उन्होंने न्यूयॉर्क की अदालत में नील्सन पर अरबों डॉलर का मुकदमा कर दिया। 194 पन्नों की इस याचिका में एनडीटीवी ने नील्सन पर आरोप लगाया था कि उसने कुछ पक्षों में दर्शकों के आंकड़ों का घालमेल किया है।
उस याचिका में साफ-साफ लिखा था कि नील्सन ने उन टीवी चैनलों के पक्ष में काम किया, जिन्होंने उसके अधिकारियों को रिश्वत दी। इसके एवज में उन्होंने नील्सन से धोखाधड़ी के लिए 81 करोड़ डालर, लापरवाही के लिए 58 करोड़ डालर और कुछ मामलों में लाखों डॉलर की मांग की थी। न्यूयॉर्क की अदालत ने मामले को भारत की अदालत में चलाने को कहा और बात आई गई हो गई। टैम खत्म हो गया और बार्क आ गया।
तब यही चैनल एनडीटीवी का मजाक उड़ा रहे थे। आज के बड़े-बड़े पत्रकार जो सोशल मीडिया पर ज्ञान बांच रहे हैं वो कह रहे थे कि पिट जाने के कारण एनडीटीवी बेकार की बात कर रहा है। ये घाघ और खाये पीये अघाये संपादक तब भी जानते थे कि टीआरपी में घपला नहीं होता। टीआरपी अपने आप में एक घपला है, लेकिन तब वो लाभार्थी थे। आज वे पीड़ित हैं तो भाषा बदल गई है और जुबान भी। बात निकलेगी तो दूर तक चली जाएगी। बहुत सारे चेहरे बेनकाब हो जाएंगे।