दिल्ली के रफ़ी मार्ग स्थित श्रम शक्ति भवन के सामने केंद्रीय श्रमिक संगठन ऐक्टू (AICCTU) ने विरोध प्रदर्शन किया जिसमें संसद सत्र में पेश होने वाले श्रम संहिता विधेयकों की प्रतियां जलायी गयीं.
संसद के वर्तमान सत्र में तीन अत्यंत ही श्रमिक विरोधी विधेयकों को पेश किया जाएगा, जिनमें ‘लेबर कोड ऑन सोशल सिक्यूरिटी’, ‘कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशंस’ व ‘लेबर कोड ऑन ओक्युपेश्नल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस’ शामिल हैं।संसद में बैठे ज्यादातर चुने हुए प्रतिनिधि मजदूरों की वर्तमान स्थितियों से बिलकुल वाकिफ नहीं लगते. जिस तरह से अत्यंत ही मजदूर विरोधी श्रम संहिता ‘कोड ऑन वेजेस’- लगभग सभी राजनैतिक दलों के सांसदों (वाम दलों और कुछ अन्य सांसदों को छोड़कर) द्वारा पारित किया गया, उससे जन-प्रतिनिधियों द्वारा मजदूरों की उपेक्षा साफ़ रूप में प्रकट होती है।
आज जब मोदी सरकार पूरे देश को बता रही है कि ‘लॉकडाउन’ में मारे गए मजदूरों का उसके पास कोई आंकड़ा नहीं है, तब मजदूर-हितों के लिए बने श्रम कानूनों को खत्म करना, मजदूरों के ऊपर दोहरी मार के समान है। पिछले कुछ वर्षों में बड़े कॉरपोरेट्स और सरकार समर्थक थिंक-टैंकों ने ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नस’ को देश व अर्थव्यवस्था के लिए एक अत्यंत ज़रूरी पैमाने के रूप में पेश किया है, जिसके नाम पर तमाम मजदूर-अधिकारों को छीना जा रहा है। मोदी सरकार की नीतियों के चलते अडानी-अम्बानी जैसे पूंजीपति तो दिनोदिन अमीर हो रहे हैं, पर आम जनता की स्थिति बदतर होती जा रही है.
श्रम कानूनों को खत्म करने के खिलाफ हुए आज के प्रदर्शन में, श्रम मंत्रालय के सामने श्रम संहिता विधेयकों की प्रतियां जलायी गयीं। प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस द्वारा ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी के साथ संतोष रॉय, अध्यक्ष, ऐक्टू-दिल्ली और अन्य लोगों को मंदिर मार्ग और संसद मार्ग पुलिस थानों में हिरासत में लिया गया।
प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए राजीव डिमरी ने कहा, “मोदी सरकार सोचती है कि वह बिना किसी प्रतिरोध के श्रम कानूनों को निरस्त करने की ओर आराम से बढ़ सकती है। हम ये कहना चाहते हैं कि ऐक्टू व अन्य संघर्षशील ट्रेड यूनियन संगठन लगातार अपना विरोध दर्ज कराते रहेंगे, सरकार को असली चुनौती का सामना संसद के अन्दर नहीं बल्कि सड़कों पर करना पड़ेगा।”
उन्होंने आगे कहा , “संसद के इस सत्र को महामारी, बेरोजगारी और चौपट अर्थव्यवस्था के मुद्दों को हल करने के लिए नहीं बल्कि मजदूर विरोधी, किसान विरोधी विधेयकों और अध्यादेशों को पारित करने के उद्देश्य से बुलाया गया है। ऐक्टू द्वारा आहूत देशव्यापी प्रतिरोध के तहत, विभिन्न राज्य की राजधानियों और जिला स्तर के श्रम विभागों के समक्ष इसी तरह के विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया है। संसद के मानसून सत्र के दौरान हम हर दिन अपना प्रतिरोध जारी रखेंगे. ऐक्टू केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा बुलाए गए 23 सितंबर के संयुक्त कार्यक्रम में सभी से बढ़-चढ़कर भागीदारी की अपील करता है।”
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 44 महत्वपूर्ण श्रम कानूनों को रद्द करके श्रमिकों के अधिकारों को छीनने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है। संसद का मानसून सत्र, जो एक लंबे अंतराल के बाद हो रहा है, उसे इस तरह सूत्रबद्ध किया गया है कि लाखों श्रमिकों और किसानों से जुड़े महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा ही न हो। जिस तरह से व्यापक विरोध के बावजूद मोदी सरकार तमाम मजदूर व किसान विरोधी क़ानून बना रही है, वह साफ़ तौर पर सरकार के मज़दूर-विरोधी और कारपोरेट-समर्थक रुख को दर्शाता है।
ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस की प्रेस विज्ञप्ति