बनारस, कानपुर, उन्नाव में पत्रकारों पर हमले के ख़िलाफ़ UP के मुख्यमंत्री के नाम BYAS की अपील


उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर लगातार हो रहे हमले चिंता का विषय है। सरकारी संरक्षण में माफिया व सरकारी तंत्र जिस प्रकार से पत्रकारों पर हमले कर दबाव बना रहा है वह अत्यंत दुखद है।

योगी आदित्यनाथ जी, आप उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया हैं एवं राज्य के गृह मंत्रालय का कार्यभार भी आपके पास है। लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए पत्रकार ही सरकार की अच्छाइयों और बुराइयों को जनता तक पहुंचाते हैं इसीलिए पत्रकारिता को लोकतंत्र में चौथा स्तंभ माना गया है। इन्हीं विषयों को लेकर पत्रकारों द्वारा अलग अलग जनपदों में जल सत्याग्रह कर इसका विरोध भी दर्ज कराया गया किन्तु उसका असर भी नदारद रहा।

अभी हाल ही में पत्रकार Covid-19 नामक महामारी में अपनी जान की बाज़ी लगाकर जनता तक पल-पल की खबरें पहुंचा रहे थे तब भी भिन्न सामाजिक मानसिकता के लोगो द्वारा सही खबर पहुंचाने के विरोध में हमले किए गए। जिस प्रकार 5 जून को वाराणसी में स्क्रॉल की एक्सक्यूटिव एडिटर सुप्रिया शर्मा कोविड-19 में प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव में रिपोर्टिंग के दौरान माला देवी नाम की महिला का इंटरव्यू लेने ‘जिसका शीर्षक था’- “इन वाराणसी विलेज अडॉप्डेट बाय प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी, पीपल वेंट हंगरी ड्यूरिंग द लॉकडाउन” गईं उसके एवज में उनके खिलाफ रामनगर पुलिस द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, आईपीसी की धारा 501 और 269 के तहत केस दर्ज किया जाना, अब तो खबर आ रही है कि उन पर रासुका भी लगाया गया है।

इस तरह यह कानून का गलत इस्तेमाल कर पत्रकारों पर दबाव बनाने व धमकाने की साज़िश मात्र भर है। हां हमें माला देवी के कानूनी अधिकारों के प्रति पूरी संवेदनाएं हैं किन्तु लोकतंत्र व मीडिया की बलि देकर नहीं।

इसी तरह “कानपुर बालिका गृह” मामले की “हिंदी खबर” के संवाददाता अंकित सिंह जब 21 जून की रात 11.30 बजे जमीनी हकीकत का पता लगाने गए तो उन पर सरकारी तंत्र द्वारा स्वरूप नगर थाना कानपुर में गालीगलौज व हाथापाई कर धमकी दी गई एवं रात 2 बजे छोड़ा गया, यह अत्यंत ही चिताजनक है।

अभी चंद दिन पहले 28 वर्षीय पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी की अज्ञात बाइक सवार बदमाशों ने उन्नाव जिले में गोली मारकर हत्या कर दी और मौके से फरार हो गए। वह पिछले दो महीनों से सरकारी जमीनों पर हो रहे कब्जों व अवैध निर्माणों की शिकायत अधिकारियों से कर रहे थे। बताते हैं कि इसे लेकर उनकी जिले के सूचीबद्ध भू-माफिया और विश्व हिंदू परिषद नेता से रंजिश बढ़ गई थी।

क्या कसूर था इन लोगो का? क्या यही कि उन मासूमों, मजलूमों की आवाज को देश के समक्ष लाने के लिए प्रयासरत थे! जबकि अभी हाल में ही मुख्यमंत्री जी ने पत्रकारों से स्वयं कहा था कि आप लोग हमारी कमियां हमें बताते रहा करें यह सुशासन के लिए अच्छी बात है। तब भी इन घटनाओं में अधिकारियों द्वारा कानूनों के इस तरह के दुरुपयोग की बढ़ती सक्रियता भारत के लोकतंत्र के एक प्रमुख स्तंभ को नष्ट करने की जुगल बंदी है।

अतः इस संबंध में सरकार को त्वरित कानूनी जांच का आदेश देना चाहिए एवं पत्रकारों पर हो रहे हमलों के मामलों का निस्तारण कराना चाहिए, अन्यथा युवाओं द्वारा इस संबंध में राजनीतिक सक्रियता बढ़ाना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
लोक कल्याणकारी राज्य में पत्रकारों का भी नैतिक कर्तव्य है कि वह जनता के समक्ष फर्जी खबरों को लाने से बचें।

अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका में कहा गया कि कुछ असंतुष्ट व भिन्न मानसिकता के लोगों द्वारा रुटीन में खबरों या बहस के दौरान मीडिया के खिलाफ बेवजह की एफआईआर (आईपीसी की धारा 295ए, 153, 153ए, 153बी, 298, 500, 504, 505(2), 506(2) और साथ में 120बी के तहत एफआईआर) नहीं दर्ज होनी चाहिए। ये धाराएं समुदायों के बीच सौहार्द बिगाड़ने व मानहानि के अपराध से संबंधित हैं। मीडिया को इससे छूट मिलनी चाहिए ताकि वे बिना किसी भय के स्वतंत्र होकर अपने कर्तव्य का पालन कर सकें।

मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है और सुप्रीम कोर्ट हमेशा से मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी का हिमायती और रक्षक रहा है, हालांकि यह याचिका माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते हुए खारिज कर दी कि इस मामले में वह कोई दखल नहीं देंगे। याचिकाकर्ता इस मामले को केंद्र सरकार के समक्ष रखे यह काम सरकार का है। सरकार ही इस पर निर्णय लेने का अधिकार रखती है।

महोदय, सरकारें निरंकुश होती हैं, चाहे वह किसी भी दल की क्यों न हों, पत्रकार ही हैं जो उनकी निरंकुशता पर अंकुश लगाते हैं और जनता के बीच सुशासन की अवधारणा स्पष्ट करते हैं जब पत्रकार ही सुरक्षित नहीं होंगे तो सुरक्षित समाज की परिकल्पना ही बेईमानी सा प्रतीत होगा।

अतः हम युवा इसका पूर्णतः विरोध करते है एवं सरकार से जल्द से जल्द कार्रवाई की मांग करते हैं।

सादर! इन्हीं आकांक्षाओं के साथ आपका धन्यवाद!

अंकुर त्रिवेदी
अवध कन्वेनर
बेरोजगार युवा अधिकार संघ (ब्यास)


About अंकुर त्रिवेदी

View all posts by अंकुर त्रिवेदी →

5 Comments on “बनारस, कानपुर, उन्नाव में पत्रकारों पर हमले के ख़िलाफ़ UP के मुख्यमंत्री के नाम BYAS की अपील”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *