लॉकडाउन के बाद किसानों की कमर तोड़ने आ रहे हैं टिड्डे, समझिए टिड्डी दलों का विज्ञान


टिड्डी दलों ने कई देशों में तबाही मचाने के बाद मई के शुरुआती दिनों में भारत में प्रवेश किया हैं और कई राज्यों में फसलों को नुकसान पहुंचाया है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम (डब्ल्यूईएफ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, टिड्डियों का सिर्फ एक झुंड पृथ्वी की 20 फीसदी भूमि की सतह को कवर कर सकता है, जिससे दुनिया की 10 फीसदी आबादी की आजीविका प्रभावित होती है, जो प्रतिदिन 200 टन वनस्पति का उपभोग करती हैं।

यह समझना कि टिड्डी दल कैसे बनते हैं तथा उसे कैसे अलग किया जा सकता है, एक महत्वपूर्ण सवाल है।

फिजिकल रिव्यू में प्रकाशित एक अध्ययन ने समस्या से निपटने के लिए गणितीय मॉडलिंग का उपयोग किया। अध्ययन में पाया गया है कि टिड्डे दल इतने स्थिर कैसे हो सकते है! अध्ययन के अनुसार, टिड्डियों को एक अंगूठी के चारों ओर घूमते हुए देखकर कुछ दिलचस्प व्यवहार की पहचान की गयी। रिंग पर छोटे-छोटे टिड्डे यादृच्छिक रूप से घूमते हैं, लेकिन बड़े समूह एक ही दिशा में एक साथ मार्च करना शुरू करते है। ये समूह फिर से दूसरी दिशा में मार्च करने के लिए स्विच करते हैं। एक समूह में अधिक टिड्डे झुंड के बीच अधिक समय अंतराल और झुंड को अधिक स्थिर रखते हैं।

2015 में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, जब वे पड़ोसी के पास नहीं होते हैं तो टिड्डियां अधिक यादृच्छिक रूप से चलती हैं। टिड्डियां अपने पड़ोसियों पर विशेष ध्यान देती हैं क्योंकि टिड्डे नरभक्षी होते हैं और किसी भी टिड्डे के लिए यह बुरी खबर है जो यह नहीं देख रहा है कि उसके पड़ोसी क्या कर रहे हैं। और इस तरह उसे दलों से अलग कर ख़त्म किया जा सकता है।

जैसा कि उटाह के रेगिस्तान में मॉर्मन के विकेटों पर प्रयोगों से पता चला है कि टिड्डियां साइड (किनारे) से हमला करने के लिए बेहद असुरक्षित हैं। नतीजतन, जब एक समूह में कोई भी टिड्डी जो अपने पड़ोसियों के साथ लाइन से बाहर होती है तो वह अपने कमजोर पहलू को उजागर करेगी और नरभक्षी होने की अधिक संभावना का सामना करेगी। लाइन में होने से वह सुरक्षित होगा, लेकिन साथ में झुंड को पकड़ने में भी मदद करेगा।

डब्ल्यूईएफ के इस अध्ययन के अनुसार, टिड्डियों को बाधित करने के लिए वायुमंडलीय अशांति पैदा करने के लिए कम-उड़ान वाले विमानों का उपयोग किया जा सकता है, हालांकि झुण्ड का विशाल आकार इस पद्धति को अव्यवहारिक भी बनाता है। एक विशिष्ट टिड्डी दल कई सौ वर्ग किलोमीटर को कवर कर सकता है। टिड्डियां हवा में दो किलोमीटर तक उड़ सकती हैं और यहां तक कि पूरे महासागरों में यात्रा करने की भी सूचना मिली है।

अतीत में टिड्डी दलों को खत्म करने के लिए विशेष रूप से बहिष्करण क्षेत्र बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता था। एक बहिष्करण क्षेत्र बनाने के लिए टायर जलाकर, उन्हें जाल में पकड़कर या खाइयों को खोदकर, उसे हानि पहुंचाया जा सकता है। यह स्थानीय उपाय टिड्डियों को किसी विशेष क्षेत्र में पहुंचने से रोकेगा।

वर्तमान में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला नियंत्रण कीटनाशक है। भूमि या हवाई वाहनों से छिड़काव करने से अपेक्षाकृत कम समय में दलों को नुकसान किया जा सकता है। जाहिर है, इससे पर्यावरणीय समस्याओं को भी जन्म होने की सम्भावना हैं।

रिपोर्ट में एक अन्य तरीकों से टिड्डी की प्रभावों को ख़त्म करने के उपाय सुझाया गया है। टिड्डी दलों के विनाशकारी प्रभावों से बचने के लिए सबसे प्रभावी तरीकों में से एक उसे पहली जगह में होने से रोकना है। टिड्डी निगरानी स्टेशन, मौसम, पारिस्थितिक स्थितियों और टिड्डियों की संख्या पर डेटा एकत्र करके प्रजनन के समय और स्थान का पूर्वानुमान लगा कर उसे पनपने से रोकने से संभव है।

2003-2005 में पश्चिम अफ्रीका ने अपने सबसे बड़े टिड्डे के प्रकोप का सामना किया। सर्दियों में ठंडी, शुष्क स्थितियों ने अंतत: नियंत्रण एजेंसियों को लगभग 400 मिलियन डॉलर की लागत से प्रकोप को रोकने और फसल के नुकसान की गणना पांच गुना से अधिक करने की अनुमति दी थी।

टिड्डी झूलों को नियंत्रित करना कोई आसान काम नहीं है और जितने बड़े झुण्ड होगा, कार्य उतना ही कठिन होता जाएगा, तब रोकथाम सबसे अच्छी दवा है लेकिन इसके लिए बहुत गहरी नजर रखने की आवश्यकता होती है।

गौरतलब कि अब तक राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में टिड्डी दल ने दस्तक दिया है लेकिन इसके ख़तरे अन्य कई राज्यों में भी बताए जा रहे हैं। लॉकडाउन ने पहले ही किसानों की कमर तोड़ रखी है, अब टिड्डी दलों के हमले ने बची हुई कसर पूरी कर दी। 


About जगन्नाथ जग्गू

Research Fellow at University of Delhi, Independent Writer, Socio-political Activist

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7 Comments on “लॉकडाउन के बाद किसानों की कमर तोड़ने आ रहे हैं टिड्डे, समझिए टिड्डी दलों का विज्ञान”

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