इंदौर
काल और समय की दूरियों को पाट कर कला व संस्कृति के माध्यम से प्रतिरोध को प्रेरित करने वाले देश के विख्यात रंगकर्मी सफदर हाशमी की शहादत को भारतीय जन नाट्य संघ ( इप्टा )इंदौर इकाई द्वारा शिद्दत, स्नेह और गर्व के साथ याद किया गया। इस अनौपचारिक आयोजन में जन गीतों के साथ नाट्य प्रस्तुति ने परिवेश को क्रांतिकारी ऊर्जा से भर दिया।
इप्टा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवं सक्रिय साथी जया मेहता ने सफदर हाशमी और उनके परिवार के साथ अपने संबंधों को याद करते हुए कहा कि वे लोगों के दिल जीतने की कला जानते थे। उन्होंने देश में नुक्कड़ नाटकों का जुनून पैदा किया। देश के रंगकर्मियों ने सफदर की हत्या को चुनौती के रूप में लिया और सारे देश में कलाकारों ने नुक्कड़ नाटक को लोकप्रिय विधा के रूप में स्थापित कर दिया। अपने अनुभव सुनाते हुए जया ने बताया कि 1980 के दशक में पुणे में टेल्को के मजदूरों की हड़ताल चल रही थी। जया और उनके साथियों ने “मशीन” नाटक हड़ताल कर रहे करीब 2000 मजदूरों के सामने किया। मजदूरों द्वारा उन्हें और उनके साथियों को बहुत सराहना मिली।
विनीत तिवारी ने बताया कि सफदर का पूरा परिवार कला व संस्कृति से जुड़ा हुआ था और उनके वालिद और चाचा स्वतंत्रता सेनानी थे। मुफलिसी के जीवन जीने के बावजूद उसके घरों में पुस्तकों की कमी नहीं थी। महंगी, खर्चीले प्रेक्षागृह में खेले जाने वाले नाटकों के स्थान पर उन्होंने जनता की भाषा में जनता के मुद्दों पर आधारित नाटकों को सड़कों पर खेलकर कला के संपूर्ण आयाम को बदल दिया था। सिख नरसंहार से आप सांप्रदायिकता के खिलाफ सफदर ने 1986 में दिल्ली में विशाल जुलूस निकाला था। हाशमी पिछली सदी के प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी एवं विश्व शांति, मानव अधिकारों की आवाज उठाने वाले कलाकार थे। सफदर हाशमी 34 वर्ष ही जी पाए। जुल्म और शोषण के खिलाफ नाटक करने पर पूंजीपतियों ने नाटक के दौरान ही उसकी हत्या कर दी। उसी7 स्थान पर दो दिन पश्चात उनकी पत्नी मलयश्री के निर्देशन में “हल्ला बोल” नुक्कड़ नाटक हजारों की तादाद में उपस्थित दर्शकों के सामने खेला गया।
इप्टा इंदौर की साथी सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि सफ़दर ने आधुनिक भारत में नुक्कड़ को लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय बनाया इसलिए 2 जनवरी 1989 को उनकी मृत्यु के बाद 12 अप्रैल उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। “कुर्सी-कुर्सी-कुर्सी” सफदर का पहला नाटक था।
“मशीन” और “औरत” नुक्कड़ नाटकों की विस्तार से व्याख्या करते हुए सारिका ने बताया “मशीन” जन नाट्य मंच द्वारा पेश किया गया पहला नुक्कड़ नाटक था जो अक्टूबर 1978 में खेला गया, जिसमें केवल 6 कलाकार और 13 मिनट की कहानी थी। यह नुक्कड़ नाटक ‘एक केमिकल फैक्ट्री में साइकिल की पार्किंग और एक ठीक-ठाक कैंटीन की माँग के लिए शांतिपूर्वक हड़ताल करते मज़दूरों के ऊपर मिल मालिकों के आदेश पर सुरक्षाकर्मियों ने क्रूर हमला किया जिसमें 6 मज़दूर मारे गए।’ “मशीन” इसी घटना से प्रभावित होकर लिखा गया नाटक है जिसमें यह बताया है कि कारखाना मालिक, गार्ड और मज़दूर किस तरह पूँजीवादी व्यवस्था का हिस्सा हैं। आसान काव्यात्मक भाषा और अपील करने वाली थीम पर बने इस नाटक के मंचन के बाद भारत के कामकाजी तबके में इस नाटक ने बहुत लोकप्रियता हासिल कर ली और अन्य भाषाओं में भी इसे बनाया गया।
सफ़दर हाशमी ने प्रगतिशील मूल्यों पर पोस्टर बनाये, फ़िल्म फेस्टिवल आयोजित किये, लेख लिखे और विशेष उल्लेख करने वाली बात यह है कि उन्होंने बच्चों के लिए बहुत ही रोचक और उन्हें समझ आ सकने वाली भाषा में गीत और कविताएं भी लिखीं।
सफदर के एक अन्य नाटक “औरत” के बारे में सारिका ने बताया यह नुक्कड़ उनके सफलतम नाटकों में से एक है। जिसका लगभग सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है। और भारत के अलावा यह नुक्कड़ नाटक पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में भी खेला गया। कविता, जनगीत और स्किट को एकदूसरे में पिरोकर पिरोया यह नुक्कड़ अलग-अलग वय, समाज एवं विभिन्न और पृष्ठभूमि की औरतों की समस्याओं को बयान करता है। इस नाटक में जो कविता ली गयी है, वह कविता ईरानी क्रांतिकारी महिला शिक्षिका ‘मर्जियेह ऑस्कोई’ की है जिनका ईरान के शाह ने कत्ल करवा दिया था। ब्रेष्टियन शैली में बने इस नुक्कड़ में बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की पत्नी और उस वक्त की बेहतरीन अदाकारा ‘हेलेनी वाईगिल’ का प्रभाव दिखता है।
इन नाटकों के अलावा सफदर और उनकी टीम ने समाज एवं लोगों की समस्याओं पर केंद्रित अन्य बहुत सारे नुक्कड़ नाटकों का मंचन किया। जिनमें ‘अपहरण भाईचारे का, गाँव से शहर तक, राजा का बाजा’ मुख्य हैं।
आयोजन में श्रमिक नेता कैलाश लिम्बोदिया ने भी अपने विचार रखे। जनगीत “लाल झंडा लेकर कॉमरेड आगे बढ़ते जाएंगे” पर समूह में गायन शर्मिष्ठा, रवि, जया मेहता, विनीत तिवारी, सारिका श्रीवास्तव, निशा, युवराज, लक्ष्य, अथर्व ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में देवास प्रगतिशील लेखक संघ इकाई के सदस्य भी शामिल हुए।