सुर कोकिला लता मंगेशकर की आवाज़ की दीवानी कई पीढ़ियाँ रही हैं, लेकिन वे खुद उस्ताद सलामत अली खान की दीवानी थीं- वो उस्ताद सलामत, जिन्हें अपने दौर का तानसेन माना गया। ये इश्क की एक वो अज़ीम दास्ताँ है जिसमें सुरों की देवी ने ताल के देवता से इश्क किया था। लता मंगेशकर ने उस्ताद सलामत अली खान से टूट कर मोहब्बत की और उन्हें शादी की पेशकश भी की, लेकिन हर अमर प्रेम कहानी की तरह इसका अंजाम भी नाकामी ठहरा था।
इस मोहब्बत का आग़ाज़ पिछली सदी के पांचवें दशक में हुआ। वह लता और उस्ताद सलामत अली के शबाब की शुरुआत थी, लेकिन दोनों ही संगीत की दुनिया में महान फ़नकारों में से एक मान लिए गए थे। लता पार्श्वगायिका थीं और उस्ताद सलामत ख़याल और ठुमरी गायक। कमाल, कि ये दोनों ही फ़नकार अपनी-अपनी कला में शिखर पर थे।
लता मंगेशकर और उस्ताद सलामत एक-दूसरे से मोहब्बत करने लगे थे और शादी करने का फैसला भी कर चुके थे, लेकिन ऐसा हो न सका।
ये उन दिनों की बात है जब उस्ताद सलामत अली खान और उस्ताद नज़ाकत अली खान की जोड़ी लाहौर से कलकत्ता और फिर बाम्बे पहुंची थी और पूरे भारत में उनके यादगार कॉन्सर्ट्स हो रहे थे। लता और उस्ताद सलामत, इन दो अज़ीम फ़नकारों की मोहब्बत पचास के दशक में परवान चढ़ी जब बंबई फिल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड नहीं बनी थी। इसलिए इसके संगीत के क्षेत्र में शास्त्रीय संगीत के माहिर फ़नकारों का राज था।
इस क्लासिकल मोहब्बत को भारत और पाकिस्तान के बनते-बिगड़ते रिश्तों की भेंट चढ़ाया गया। इस मोहब्बत को दोनों देशों की बीच खड़ी नफ़रत की दीवार में चुनवा दिया गया।
उस्ताद सलामत के पोते गायक शुजात अली खान चंद साल पहले जब मुंबई में थे तब उनकी मुलाकात लता जी और आशा भोंसले से हुई। उन्हीं के शब्दों में- “दोनों इतने प्यार से मिलीं कि यूँ लगा जैसे मैं उनका भी पोता हूँ।“
1998 में तत्कालीन पाकिस्तानी पीएम नवाज़ शरीफ ने कहा था कि उनकी ख्वाहिश है लता मंगेशकर लाहौर में कॉन्सर्ट करें और लाहौर के संगीतप्रेमी उनकी सुरीली आवाज़ का लुत्फ़़ उठाएं। इसके जवाब में लता मंगेशकर ने पाकिस्तानी मीडिया से कहा था कि उनका जी करता है कि वे उड़ कर लाहौर चली आएं। इस इंटरव्यू में ही लता ने यह राज़ खोला था कि उस्ताद सलामत अली खान ने वादा किया था कि वे उन्हें लाहौर ले जाएंगे, लेकिन उन्होंने अपना वादा पूरा नहीं किया।
लता का यह इंटरव्यू पढ़कर उस्ताद सलामत बहुत दिन तक उदास रहे।
अपनी आखों के आंसुओं को छुपाते हुए शुजात ने बताया, “मेरे दादा की आँखें लता जी का गाया ये गीत, लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो, गुनगुनाते हुए नम हो जाया करती थीं। यूँ लगता था जैसे उस्ताद सलामत राग सोनी की उदास तस्वीर बन गए थे।”
सवाल उठता है कि उस्ताद सलामत ने लता के साथ शादी से इनकार क्यों किया था? उस्ताद सलामत ने अपनी ज़िन्दगी में कहा था कि लता बाई कोई आम फ़नकारा नहीं थीं।
हिन्दू समाज में उन्हें एक देवी माना जाता था। इसलिए लता से मेरी शादी होना आसान मामला नहीं था। उस वक़्त मुझे यूँ लगा कि अगर मैंने लता से मैंने शादी कर ली तो कम-से-कम ये हो सकता है कि मुझे और लता को ख़त्म कर दिया जाए। और ज्यादा-से-ज्यादा ये भी मुमकिन था कि पकिस्तान और इंडिया में जंग हो जाती। ऐसा मुमकिन था क्योंकि दोनों के बीच समस्याएं हैं और ये दोनों लड़ने के बहाने भी खोजते रहते हैं।
उस्ताद सलामत अली खान
उस्ताद सलामत ने बताया:
“हम दोनों भाई 1953 के बाद कई मर्तबा भारत के दौरों पर जाते रहे। मुंबई में हम अक्सर लता बाई के मेहमान बनते। एक बार ऐसा हुआ कि हम लता मंगेशकर के यहां ठहरे हुए थे। लता बाई ने अपने तमाम काम टाल दिए। दर्जनों फिल्म प्रोडूसर और म्यूजिक डायरेक्टर अपने फिल्मों के गानों के लिए डेट्स लेने उनके घर आते लेकिन वो किसी से मिल नहीं रही थीं।“
उस्ताद सलामत ने कहा कि बड़े भाई उस्ताद नज़ाकत, जो दुनियावी तौर पर उनसे ज्यादा समझदार थे, मामले की नज़ाकत को भांपते हुए बादल चौधरी के यहां शिफ्ट हो गए। बादल चौधरी इन दोनों भाइयों के प्रोमोटर थे और भारत आने पर ये दोनों कलकत्ता और मुंबई में इनके घर पर रहते थे। मुंबई में लता का घर बादल चौधरी के घर के पास ही था।
अब ये हुआ कि लता मंगेशकर सुबह उठकर बादल चौधरी के घर आ जातीं और फिर देर तक उस्ताद सलामत के साथ रहतीं। वे घर से निकलते हुए घूंघट ओढ़ लेती थीं ताकि कोई उन्हें पहचान न सके।
कलकत्ता के बादल या बालदर चौधरी इन दोनों अज़ीम फ़नकारों के रोमांस का एक अहम किरदार हैं। बादल चौधरी की उम्र अभी करीब 85 साल है और उनकी सेहत के साथ-साथ याददाश्त भी बहुत अच्छी है। बादल चौधरी 15 साल तक साया बनकर उस्ताद सलामत के साथ रहे और उनके लता मंगेशकर के परिवार से भी गहरे रिश्ते हैं। लगभग आधी सदी की इस नाकाम मोहब्बत के सिलसिले में किये गए सवाल का जवाब उन्होंने इस अंदाज़ में दिया मानो कोई ब्रेकिंग न्यूज़ दे रहे हों- “उस्ताद सलामत भगवान का रूप लेकर दुनिया में आए थे। उनके जैसा कोई गायक नहीं हुआ।”
बादल चौधरी ने बताया कि लता मंगेशकर ने उस्ताद सलामत से यहां तक कहा था कि वे छह महीने पकिस्तान में अपने बीवी-बच्चों के साथ रहें और छह महीने मुंबई में उनके साथ। वो सारा दिन उस्ताद सलामत का संगीत सुनती रहती थीं। फ़िल्मी म्यूजिक से उनका दिल जैसे उठ सा गया था। उस्ताद सलामत शरीफ इंसान थे। अगर उनके मन में रत्ती भर भी लालच होता तो वे लता से फ़ौरन शादी कर लेते:
”लता जी और उस्ताद सलामत मुंबई में मेरे घर में मिलते थे जहां लता घंटों खान साहब को सुनती थीं। लता भी नंबर वन थीं और उस्ताद सलामत भी नंबर वन थे। दरअसल ये कमाल का इश्क था।”
शानदार गायक उस्ताद हुसैन बख्श गुल्लू उस्ताद सलामत के करीबी रिश्तेदार हैं। इस इश्क के बारे में वे कहते हैं:
“हमारे खानदान में मेरी बहन रज़िया बेगम को भी मालूम था कि लता जी ने खान साहब को शादी की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने अपने घर और बच्चों के लिए इंकार कर दिया। दुनिया के हर औरत की तरह मेरी बहन भी लता मंगेशकर की डाई हार्ड फैन थी लेकिन लता उन्हें बतौर सौतन कुबूल नहीं थीं।“
उस्ताद गुल्लू बताते हैं कि जब उस्ताद सलामत ने लता के साथ शादी से इनकार कर दिया तो वे खान साहब से नाराज़ हो गयी थीं।
गायिका रिफ़त सलामत उस्ताद सलामत की बेटी हैं और सन फ्रांसिस्को में रहती हैं। उन्होंने बताया, ”अगर मेरे वालिद लता मंगेशकर से शादी करते तो मुझे तो शायद फ़ख्र होता लेकिन वो मेरी माँ की सौतन होतीं, जिसका मुझे दुःख भी होता। इसलिए ये एक अजीब एहसास है जिसे महसूस तो किया जा सकता है लेकिन बयान नहीं किया जा सकता।”
उस्ताद सलामत के बेटे शखावत सलामत अली खान अमेरिका के शहर सैक्रामेंटो में रहते हैं। उनके मुताबिक वालिद और लता मंगेशकर का रिश्ता पारस्परिक सम्मान और प्रेम का रिश्ता था। दोनों दुनिया-ए-संगीत की ऐसी हस्तियाँ और रूहें हैं जिन्हें उस वक़्त तक याद रखा जाएगा जब तक मेलोडी और सुर-ताल से मोहब्बत करने वाले मौजूद रहेंगे।
काश! लता जी लाहौर आतीं और संगीत के चाहने वाले उन्हें आमने-सामने सुन पाते और समझ पाते कि पवित्र संगीत का क्या असर होता है। काश! ऐसा होता कि लता मंगेशकर लाहौर के साथ पाकिस्तान के दूसरे शहरों में भी आती-जाती रहतीं।
उस्ताद सलामत के बेटे शखावत सलामत अली खान
(यह कहानी बीबीसी उर्दू की पत्रकार हुदा इकराम की यूट्यूब पर मौजूद ऑडियो स्टोरी का संपादित संस्करण है। ट्रांसक्रिप्शन और अनुवाद मनीष शांडिल्य ने किया है।)