पिछले दिनों विश्व जनसंख्या दिवस गुजरा और हमने आबादी बढ़ने के नफे-नुकसान पर काफी चर्चा की, लेकिन एक जरूरी सवाल रहा बढ़ती आबादी का पेट भरने का। हिंदुस्तान में हरित क्रांति में हमने रासायनिक उर्वरकों के बेतहाशा इस्तेमाल से अन्न तो खूब उपजाए पर अब उसके पर्यावरणीय असर दिखने लगे हैं।
हिंदुस्तान में खास तौर पर हम नाइट्रोजनी उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं और मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन तितलियों पर असर डाल रहा है। उर्वरक ही नहीं, गाड़ियों के उत्सर्जन और उद्योगों से निकला नाइट्रोजन भी जाकर माटी में जमा हो जाता है और उसकी वजह से तितलियां कम होती जा रही हैं।
मिट्टी और पौधों के जरिये नाइट्रोजन के तितलियों में पहुंचने का यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ बासेल ने किया है। यह अध्ययन स्विट्जरलैंड में किया गया है, लेकिन शोध साफ तौर पर नाइट्रोजन जमाव से तितलियों की विविधता में आने वाली कमी की तरफ इशारा करता है।
हालत यह है कि नाइट्रोजन जमाव के असर से वहां की तितलियों की आधी प्रजाति पर खतरा है। शोध के मुताबिक अधिक नाइट्रोजन से बिला शक वनस्पतियों की सघनता तो बढ़ जाती है, लेकिन पौधों की कुछ खास प्रजातियां ही उसमें विकास कर पाती हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि नाइट्रोजन आमफहम पौधों को अधिक बढ़ावा देता है और अधिक विशेषीकृत नस्लों को हटाकर उनका सूपड़ा साफ कर देता है।
इस रिसर्च के लिए बायोडायवर्सिटी मॉनिटरिंग के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया था। शोध का कहना है कि जितना अधिक नाइट्रोजन जमा होगा, वनस्पतियों की प्रजातियों की संख्या में उतनी ही कमी होगी और इसका असर तितलियों की प्रजातियों की संख्या में आने वाली कमी पर पड़ता है।
असल में, तितलियों की इल्लियों को खास किस्म के ही पौधों की जरूरत भोजन के लिए होती है या उन्हें खास तरह की माइक्रोक्लाइमेट पर ही निर्भर रहना होता है। अत्यधिक उर्वरकीकरण से खुली, गरम और सूखी जगहें ठंडी, छायादार और नम हो जाती हैं क्योंकि पौधों की वृद्धि बहुत अधिक हो जाती है।
भारत के संदर्भ में यह अधिक महत्वपूर्ण है। अपने देश में अव्वल तो इंसानों की जान की कीमत ही कम समझी जाती है तो तितलियों की नस्ल बचाने की चिंता पर लोग मुस्कुरा भर देंगे। पर्यावरण को लेकर चिंतित लोग भी पेड़-पौधों के बढ़ने की बात पर वनस्पतियों की वृद्धि के ही पक्ष में खड़े होंगे. तर्क यही होगा कि अगर ओवर-फर्टिलाइजेशन से वनस्पतियों का विकास अधिक हो रहा है तो यह अच्छी बात हुई न!
अत्यधिक उर्वरकीकरण के मसले पर गौर से देखें तो आप पाएंगे कि इसमें बहुत सारी वानस्पतिक प्रजातियां भी नष्ट हो रही हैं और कुछ ही पौधों का विकास होता है। भारत में, जहां कृषि भूमि का विस्तार हो रहा है और बढ़ती आबादी के मद्देनजर हमने खूब खाद छींटने और फ्लड इरीगेशन की आदत डाल ली है, हमारी जैव-विविधता पर जो असर पड़ेगा उसका अध्ययन होना बाकी है।
बात सिर्फ उड़ती सुंदर लगती तितलियों की नहीं है। बात समझ में तब आएगी जब खत्म होने वाली एक नस्ल के साथ जंगल से एक पूरी श्रृंखला नदारद हो जाएगी।