मोहित सुभाष चवण बनाम महाराष्ट्र और अन्य के मुकदमे में भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबड़े द्वारा की गयी एक टिप्पणी पर नाराज़ देश भर के महिला समूहों, नारीवादियों और महिला आंदोलनों ने उन्हें एक खुला पत्र लिखकर उनका इस्तीफा मांगा है।
मामला 1 मार्च को हुई एक सुनवाई का है जिसमें एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी से बोबड़े ने पूछा था कि क्या वह लड़की के साथ शादी करने को तैयार है। महिला समूहों का कहना है कि ऐसी टिप्पणी कर के मुख्य न्यायाधीश ने लड़की को आजीवन उस व्यक्ति से बलात्कृत होते रहने को अभिशप्त कर दिया जिसने पीडि़ता को खुदकुशी के मुहाने पर धकेल दिया था।
पत्र में लिखा गया है कि मुख्य न्यायाधीश के पास इस देश के संविधान की व्याख्या करने की ताकत है, बावजूद इसके यह अफ़सोस की बात है कि उन्हें ‘’सिडक्शन’’, ‘’रेप’’ और ‘’विवाह’’ का अर्थ हमें समझाना पड़ रहा है।
पत्र में मीडिया में आयी एक और खबर का संदर्भ है जहां विनय प्रताप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश के मुकदमे में सीजेआइ ने पूछा था कि ‘’एक पुरुष और स्त्री विवाहित हैं और पुरुष भले ही अत्याचारी हो, लेकिन क्या दोनों के बीच यौन सम्बंध को रेप कहा जा सकता है?” पत्र कहता है कि यह टिप्पणी न केवल पति द्वरा किसी भी किस्म की हिंसा को वैधता प्रदान करती है बल्कि बिना किसी कानूनी सहायता के बरसों से अपनी शादियों में प्रताडि़त हो रही औरतों की स्थितियों को सामान्य बनाने का प्रयास करती है।
बॉम्बे हाइकोर्ट ने मोहित सुभाष चवण के मामले में सत्र न्यायालय द्वारा दिए गए ज़मानत के फैसले को ‘’नृशंस’’ करार दिया था। महिला समूहों का कहना है कि बिलकुल यही टिप्पणी कई गुना ज्यादा मुख्य न्यायाधीश पर लागू होती है।
पत्र में बिना नाम लिए हुए एस.ए. बोबड़े के पहले उनके पद पर रहे शख्स का संदर्भ है जिन्होंने अपने खिलाफ लगे यौन हिंसा के उत्पीड़न के मामले पर खुद सुनवाई की और शिकायतकर्ता महिला व उसके परिवार के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की।
पत्र कहता है, ‘’बहुत हो चुका। आपके शब्द अदालत की गरिमा को गिराते हैं। आपके पद से निकल रहे ऐसे शब्द दूसरी अदालतों, जजों, पुलिस और कानून अनुपालक एजेंसियों को संदेश दे रहे हैं कि भारत में न्याय महिलाओं का संवैधानिक अधिकार नहीं है। बलात्कारियों को इससे संदेश जाता है कि शादी बलात्कार का लाइसेंस है और ऐसा लाइसेंस पाकर बलात्कारी अपने कृत्य को कानूनी जामा पहना सकता है।‘’ पत्र कहता है, ‘’हम मांग करते हैं कि आपने अदालत में 1 मार्च को जो शब्द कहे उन्हें आप वापस लें और इस देश की महिलाओं से माफी मांगें। कायदा तो यह होगा कि आप सीजेआइ के पद से तत्काल इस्तीफा दें।‘’