कुछ खबरें फटाफट…

पिछले करीब एक महीने से जनपथ सूना पड़ा है। अच्‍छा नहीं लगता, लेकिन वक्‍त का तकाजा है। लंबा लिखने का वक्‍त नहीं और वक्‍त है भी तो मौसम खराब। ऐसे …

Read More

यूथ जर्नलिस्‍ट लीग का पहला कार्यक्रम 11 फरवरी को

हाल के दिनों में जिस तरीके से हमारे इर्द-गिर्द पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं, उसने यह साफ कर दिया है कि अब हमारे शासकों को अपने ही संविधान में सुनिश्चित …

Read More

कविता की मौत का फ़रमान

पिछली बार भी लिखी थी अधूरी एक कविता… छूटे सिरे को पकड़ने की कोशिश की नहीं। आखें बंद कर- करता हूं जब भी कृत्रिम अंधेरे का साक्षात्‍कार मारती हैं किरचियां …

Read More

समाज सेवा या ‘स्वयं’ सेवा?

हम पहले भी सुनते आए हैं कि किस तरह सत्‍यार्थी अपने दो-चार विश्‍वस्‍त पत्रकार गुर्गों के माध्‍यम से मीडिया को मैनेज करते रहे हैं, लेकिन पहली बार ऐसा उदाहरण सजीव प्रस्‍तुत है।

Read More