विफल नेतृत्व की गलतियों का असर कम करने के लिए कब तक त्याग करती रहेगी जनता?

प्रधानमंत्री जी ने इस भीषण संकट काल में भी अपने मन की बात ही की। हो सकता है कि उनके काल्पनिक भारत की आभासी जनता को उनका यह एकालाप रुचिकर लगा होगा, लेकिन मरते हुए रोगियों और उनके हताश परिजनों के लिए तो यह एक क्रूर परिहास जैसा ही था।

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रोज़ी बनाम ज़िंदगी की लड़ाई जैसे गैस चैम्बर और यातना शिविर में से किसी एक को चुनना!

ऑक्सिजन और अन्य जीवन-रक्षक चिकित्सकीय संसाधनों की उपलब्धता और उनके न्यायपूर्ण उपयोग को लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व के द्वारा जिस तरह से चेताया जा रहा है उससे तो यही लगता है कि हालात ऐसे ही अनियंत्रित होकर ख़राब होते रहे तो नागरिक एक ऐसी स्थिति में पहुँच सकते हैं जब उनसे पूछा जाने लगे कि वे ही तय करें कि परिवार में पहले किसे बचाए जाने की ज़्यादा ज़रूरत है।

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IIT-BHU प्रशासन PhD के छात्र-छात्राओं से हॉस्टल खाली करने का आदेश वापस ले: SFC

हॉस्टल में रह रहे PhD के कुछ छात्र-छात्राओं ने प्रशासन के इस फैसले के विरुद्ध हॉस्टल के अंदर ही आंदोलन शुरू कर दिया है और खाली करने से इनकार किया है।

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कुशाभाऊ के भतीजों की मौत और ‘गैंगस्टर पूंजीवाद’ में बदल चुके एक विचार की जकड़बंदी

भाजपा के पितृपुरुष के परिवारीजन सही इलाज के बिना तड़प-तड़प कर मर गए।
पता नहीं, बैकुंठ में बैठे कुशाभाऊ ठाकरे क्या सोच रहे होंगे इस पर। उन्होंने अपने जीवन और चिंतन का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा राम मंदिर आंदोलन में लगाया था। क्या उनके मन में आ रहा होगा कि जितनी ऊर्जा मन्दिर के लिये लगायी, अगर उतनी ऊर्जा देश और राज्य के अस्पतालों की दशा सुधारने के लिए लगाते तो आज उनके भतीजे अकाल मौत न मरते…?

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संक्रमण काल: बदलती हुई दुनिया और उभरते हुए सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य पर जिरह

हिंदी में अपने तरह के इस अनूठे कॉलम में यह बात देखने की रहेगी कि भविष्य की दुनिया किन तकनीकी और आर्थिक प्रक्रियाओं के बीच निर्मित हो रही है और किस प्रकार का एक नया सामाजिक, राजनीतिक (और साहित्यिक-सांस्कृतिक भी) परिदृश्य इस बीच आकार ले रहा है।

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बात बोलेगी: भंवर में फंसी नाव के सवार

भंवर में फंसी एक नाव में हम सब सवार हैं। खेवैया बंगाल में चुनाव प्रचार कर रहा है। नाव डगमगाती है तो हमें ही संभालना है। डूबती है तो हमें ही डूबना है। और बच निकल आती है तो भी हमें ही बचना है। क्यों न इस बार कुछ नया होकर लौटें?

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महामारी की दूसरी लहर में भी उपेक्षित छात्र समुदाय पर बात कब होगी?

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भी ‘परीक्षा पर चर्चा’ जैसे खोखले प्रवचन से आगे बढ़कर छात्र समुदाय के हित में कुछ ज़रूरी कदम उठाने चाहिए जो असल में उनके काम आएं। सरकार को आगे आकर ‘देश के भविष्य’ को बचाने की सख़्त ज़रूरत है।

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तन मन जन: कोरोना की दूसरी लहर का कहर और आगे का रास्ता

यदि वैक्सीन लगाने की रफ्तार नहीं बढ़ाई गई तो 70 फीसद आबादी को वैक्सीन लगाने में दो साल से भी ज्यादा का वक्त लग सकता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में अब तक लगभग 30 करोड़ लोग कोरोनावायरस की चपेट में आ चुके हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अभी 100 करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित नहीं हुए हैं और उन्हें बचाना सबसे बड़ी चुनौती है।

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दक्षिणावर्त: दूसरी लहर में किसके पास इतना नैतिक बल बचा है जो किसी को कुछ कहे?

चार महीनों में क्यों नहीं पत्रकारों ने बिहार के आइसोलेशन-सेंटर्स की फॉलोअप स्टोरी की? एकाध इंडियन एक्सप्रेस ने की, फिर सब खत्म! उस अवधि में दवाओं, अस्पतालों की तैयारी पर फॉलोअप स्टोरी क्यों नहीं हुई?

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बात बोलेगी: वबा के साथ बहुत कुछ आता है और जाता भी है!

महामारी की पैदाइश से लेकर आज की विभीषिका के इतिहास को जब लिखा जाएगा तो उनका भी नाम यहां आना चाहिए जो इसे लेकर आलोचनात्मक और तार्किक नज़रिये से बात करते आए। तब भी उन्हें संख्या बल के सामने हुज्जत झेलनी पड़ी, लेकिन गत एक सप्ताह के दौरान हम देख रहे हैं कि उन्हें लगभग बेइज्जती नसीब हो रही है।

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