पॉलिटिकली Incorrect: रैदास के बेगमपुरा में किताबों के लंगर भी होते, काश!

दिल्‍ली के बॉर्डरों पर रैदास के असंख्य बेगमपुरा उग आए हैं। बस इस बेगमपुरा में एक चीज़ की कमी खलती है- किताबों की। सिंघु पर कुछ लोगों ने मिल कर भगत सिंह लाइब्रेरी बना दी है, जहां लोग बैठकर पढ़ते हैं। एक-दो किताबों की दुकानें भी अस्थाई डेरे में शामिल हो गई हैं।

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किसान आंदोलन: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा- या तो आप कानून लागू होने से रोको या हम स्टे लगाएं!

उच्चतम न्यायालय ने कृषि कानूनों को लेकर समिति की आवश्यकता को दोहराया और कहा कि अगर समिति ने सुझाव दिया तो वह इन कानूनों को लागू करने पर रोक लगा देगा.

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दक्षिणावर्त: लोकतंत्र भी चाहिए और खूंटा भी वहीं गड़ेगा, ऐसे कैसे चलेगा?

वाम विचार किस तरह पक्षपोषण करने वाले दिलफरेब तमाशों को अंजाम देता रहा है, अमेरिका की घटना के तुरंत बाद दुनिया भर में आयी प्रतिक्रियाओं को देखने से समझ में आता है।

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किसान आंदोलन: ‘मरेंगे या जीतेंगे’ तो ठीक, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या करेंगे?

वार्ता समाप्त होने के तुरंत बाद किसान नेता डॉ. सुनीलम ने जनपथ से फोन पर बातचीत में कहा कि इस वार्ता को भी सरकार ने ही विफल किया है, किसानों ने नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा।

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बनारस में किसान नेता रामजनम व अन्य पर गुण्डा एक्ट लगाने के खिलाफ प्रतिवाद पत्र

दारापुरी ने कहा कि पुलिस व प्रशासन द्वारा प्रदेश में किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं व किसान नेताओं का लगातार जारी उत्पीड़न और प्रदेश में सामान्य लोकतांत्रिक गतिविधियों पर रोक लोकतंत्र के लिए अशुभ है और सरकार को इससे पीछे हटना चाहिए।

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किसान आंदोलन: आज बेनतीजा वार्ताओं की एक और तारीख, लेकिन उसके बाद क्या?

तारीख पर तारीख की रणनीति न तो सिख दक्षिणपंथि‍यों को समझ आ रही है, न वाम धड़ों को। इससे आंदोलन के भीतर बेचैनी है। यह बेचैनी आज की वार्ता के बाद क्‍या शक्‍ल लेगी, कहना मुश्किल है।

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दिल्ली की सीमाओं पर किसानों ने किया 26 जनवरी के ‘ट्रैक्टर मार्च’ का रिहर्सल

केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने गुरुवार को आंदोलन कर रहे किसानों से विरोध मार्च को शांतिपूर्ण रखने की अपील की और जोर देकर कहा कि सरकार कल एक प्रस्ताव को लेकर आशान्वित है.

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अपना हिस्सा अपना हक़, मांग रहा है मेहनतकश!

किसान आंदोलन भी धीरे-धीरे समाज की सहानुभूति अर्जित करता जा रहा है। जहां एक ओर पंजाब के गांव-गांव से बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक इस आंदोलन से जुड गए हैं वहीं देश-विदेश के लाखों युवा अपने सामर्थ्य से आगे बढ़कर इन किसानों के साथ जुड़ते जा रहे हैं।

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पहले अडानी, अब अम्बानी की सफाई ने सरकार के साथ इनके गठजोड़ को उघाड़ दिया है!

जिस किसान आंदोलन को मोदी सरकार और उनके पूंजीपति मितरों ने हल्के में लिया था अब उसकी गहराई और गंभीरता उनकी नींद उड़ा चुकी है।

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बादशाह के बरक्स किसानों की ताकत का सच गरिमा के साथ स्वीकारने का विवेक क्या शेष है?

समुद्र की लहर किसी भी शाही हुक्मनामे से ज्यादा ताकतवर होती है. इस सहज सी सचाई को समझाना उस समय का विवेक था. हमारे समय का विवेक आज कह रहा है कि किसानों का उमड़ा सैलाब संसद द्वारा पास किसी भी कानून से ज्यादा ताकतवर है.

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