स्वास्थ्य सेवाओं के राष्ट्रीयकरण की ज़रूरत और प्रासंगिक मांगें

आमतौर पर जो अनुभव कोविड काल का रहा, उसमें देखा गया कि न केवल ग़रीब लोगों के लिए निजी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं थीं बल्कि जो पैसे खर्च करने में सक्षम थे, उन्हें भी निजी स्वास्थ्य सेवाओं से वो सेवाएँ नहीं मिल सकीं जिनके लिए वो बरसों-बरस भारी रकम लुटाते रहे हैं। ज़्यादातर काम वही सरकारी अस्पताल और सरकारी डॉक्टर और स्टाफ आया जिसे निजीकरण के युग में हाशिये पर धकेला जा रहा था, जिनकी ज़मीनें बेचीं जा रहीं थी, जिनके स्टाफ को ठेके पर रखा जा रहा था, जहाँ से दवाइयाँ मुफ़्त देना बंद किया जा रहा था।

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गरीबों को गरीबी की जवाबदेही से मुक्त कर के विमर्शकार क्या अपना अपराधबोध कम करते हैं?

अगर हम बनर्जी महोदय की बातें मान लेते हैं, तो हमें मानना होगा कि गरीबों का स्वभाव ही गरीबी के लिए जिम्मेदार है। तो क्या गरीबी एक चारित्रिक दुर्गुण है? यह एक नया विचार है जिस पर सब लोग सहमत नहीं हो सकते!

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ठंडे पड़े बनारस के डॉक्टर तो गरमायी यूनियन, ACMO की लाश बदले जाने की जांच करेगी कमेटी

चिकित्सा विभाग में किसी तरह चिकित्सकों को मना तो लिया गया, लेकिन मेडिकल एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर चिकित्सकों के साथ हो रहे अन्याय की सुध लेने की गुहार लगायी है।

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