विश्व बैंक की निजी क्षेत्र की शाखा अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आइएफसी) ने साफ कर दिया है कि वह नई कोयला परियोजनाओं में निवेश का समर्थन नहीं करेगा।
आइएफसी बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को धन देता है जो बदले में बुनियादी ढांचे और ऊर्जा परियोजनाओं को उधार देते हैं। IFC ने कथित तौर पर भारत में लगभग 88 वित्तीय संस्थानों को करीब 5 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया है।
अपनी वेबसाइट पर जारी एक बयान में आइएफसी ने साफ़ किया है कि, “इस वर्ष (2023) आइएफसी पेरिस समझौते की महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप अगला कदम उठा रहा है… जिसके तहत आइएफसी को वित्तीय संस्थान के ग्राहकों से किसी भी नई कोयला परियोजना की शुरुआत और वित्तपोषण नहीं करने की प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी।”
2020 में आइएफसी ने एक नीति अपनाई थी कि उसके ग्राहकों को 2025 तक कोयला परियोजनाओं में अपना एक्स्पोज़र कम करने और 2030 तक शून्य करने की आवश्यकता थी। उस नीति में नए निवेश को रोकने कि बात नहीं थी, लेकिन इस नयी घोषणा से अब स्थिति बदल गयी है। आइएफसी की यह घोषणा जलवायु परिवर्तन के खतरों से घिरी चिंताओं के बीच दुनिया के लिए कुछ राहत की खबर लायी है।
आइएफसी की ग्रीन इक्विटी एप्रोच (जीईए) नीति का एक नया अपडेट अपने फाइनेशियल इंटरमीडिएट्री क्लाइंट्स (जैसे कमर्शियल/वाणिज्यिक बैंकों) को साफ़ तौर से कोयले में निवेश से रोकता है और कहता है कि आइएफसी निवेश से किसी भी नयी कोयला परियोजना का समर्थन नहीं किया जा सकेगा।
पिछली जीईए नीति में ख़ामियों की वजह से आइएफसी द्वारा वित्तपोषित वाणिज्यिक बैंक उससे लिए धन को नई कोयले परियोजनाओं को परवान चढ़ाने में खर्च करने से नहीं हिचकते थे। इसके चलते आइएफसी के सबसे पहले जीईए क्लाइंट इंडोनेशिया में हाना बैंक ने जीईए पर हस्ताक्षर करने के ठीक एक साल बाद दो बड़े नए कोयला संयंत्रों में निवेश किया और पिछले साल आइएफसी के क्लाइंट पीवीआई होल्डिंग्स ने वियतनाम में वूंग आंग कोयला बिजली संयंत्र का रास्ता प्रशस्त किया।
यह क़दम एक लंबे समय से अपेक्षित था और आइएफसी को अब तेल और गैस के निवेशों पर भी लगाम कसने की उम्मीद की जा रही है। ध्यान रहे कि मध्यवर्ती वित्तीय बैंक आइएफसी के आधे से अधिक निवेश का प्रतिनिधित्व करते हैं और मई 2019 से आइएफसी द्वारा समर्थन के रूप में यह लगभग $40 बिलियन प्राप्त कर चुके हैं।
इससे पहले 2021 में फेडरल बैंक ऑफ इंडिया ने आइएफसी के ग्रीन इक्विटी अप्रोच (दृष्टिकोण) पर हस्ताक्षर किए थे। आइएफसी के प्रोजेक्ट दस्तावेजज के अनुसार, “फेडरल बैंक आइएफसी के बैंक में शेयरधारक बनने के बाद से कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों सहित किसी भी नए कोयले से संबंधित परियोजना में निवेश को समाप्त करेगा।‘’
सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी के जो एथियाली कहते हैं, “हमने साल 2011 में भारत में कोयले का समर्थन करने वाले एक वित्तीय मध्यस्थ क्लाइंट को आईएफसी के समर्थन पर अब तक का पहला मामला दायर किया था। आइएफसी को अंततः नए कोयले के लिए वित्तीय समर्थन समाप्त करने में 13 साल लग गए। इस बीच, समुदाय बिखर गए, उनकी आजीविका छिन गई और जलवायु संकट और गंभीर हो गया। इन सभी के लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं था। अब हम केवल यह उम्मीद कर सकते हैं कि तेल और गैस के वित्तपोषण को रोकने के लिए यह तेजी बनी रहेगी।”
भारत, जो कोयले से अपनी बिजली का लगभग तीन-चौथाई स्रोत करता है, के पास 28.5 GW कोयला बिजली क्षमता की योजना है, जिसमें से लगभग एक तिहाई पहले से ही स्वीकृत है, और 32 GW कोयला बिजली क्षमता निर्माणाधीन है। तमिलनाडु, ओडिशा और उत्तर प्रदेश विकास के तहत कोयला बिजली की उच्चतम क्षमता वाले राज्य हैं।
रीकोर्स की सह-निदेशक केट गीयरी कहती हैं, “यह एक स्वागतयोग्य क़दम है, लेकिन इसमें बहुत लंबा समय लगा है। जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के सात वर्षों के बाद, आइएफसी अब जाकर अपने ग्राहकों को नई कोयला परियोजनाओं का समर्थन करने से रोकने के लिए हमारे दबाव के सामने झुका है। इससे निवेश समुदाय को एक व्यापक संकेत मिला है कि कोयले का युग समाप्त हो गया है क्योंकि आइएफसी पेरिस समझौते के साथ अपने पूरे पोर्टफोलियो को संरेखित करने की योजना रखता है, अब यह बहुत ही ज़रूरी है कि यह तेल और गैस को भी बंद करने के लिए प्रतिबद्ध हो।”
Climateकहानी के सौजन्य से