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View Allआंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच बनी सहमति
खनौरी बार्डर पर किसान नेताओं ने एक तरह से इसको अपने प्रयासों की जीत के रूप में प्रस्तुत किया है लेकिन अभी तक अन्य किसान जो आमरण अनशन पर बैठे है उसके बारे में कोई फैसला नहीं किया गया
Voices
View Allग्रीनपीस इंडिया का पूर्व-बजट प्रस्ताव: नई शहरी गतिशीलता नीति में ‘क्लाइमेट टिकट्स’ से मिलेगी सार्वजनिक परिवहन को नई दिशा
मसौदा नीति में न्यायसंगत, टिकाऊ और समावेशी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का विस्तार से उल्लेख किया गया है, जिससे परिवहन सभी के लिए अधिक किफायती और सुलभ बन सके। इसमें “क्लाइमेट टिकट्स” जैसे प्रमुख सुझाव शामिल हैं, जो मुफ्त या रियायती सार्वजनिक परिवहन विकल्प प्रदान करते हैं।
Editor’s Choice
View Allबहसतलब: साध्य-साधन की शुचिता और संघ का बेमेल दर्शन
पिछले एक दशक में संघ ने भाजपा का बेताल बनकर न सिर्फ राजकीय-प्रशासनिक तंत्र पर अपना शिकंजा कसा है बल्कि उसे अपने आनुवंशिक गुणों से विषाक्त भी किया है। आजकल घर-घर द्वारे-द्वारे, हर चौबारे, चौकी-थाना और सचिवालय तक वैमनस्य, हिंसा, भ्रष्टाचार और गैर-जवाबदेही का जो नंगा-नाच चल रहा है, वह इसी दार्शनिक दिशा का दुष्परिणाम प्रतीत होता है।
Lounge
View Allबसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें
पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?
COLUMN
View Allनिजी अनुभव से सामूहिक मुक्ति तक: बनारस के दलितों पर लियोनार्डो वेर्जारो की एथनोग्राफी
लियोनार्डो का वाराणसी के दलितों पर काम एक चमकदार उदाहरण है कि मानवविज्ञान की जड़ें यदि निजी करुणा और सामूहिक कार्रवाई में हों तो वह कहीं ज्यादा न्यायपूर्ण और करुणामय जगत की राह रोशन कर सकता है। लियोनार्डो का बनारस में किया फील्डवर्क पूरी दुनिया के लिए निजी और सार्वजनिक के बीच संबंध को समझने का एक दस्तावेज है।
Review
View Allपोन्नीलन के उपन्यास ‘करिसल’ के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण उर्फ साहित्य का ‘भारत जोड़ो’ समारोह
उपन्यास में आंदोलन का वर्णन ऐसे है जैसे जमीन से अनाज पैदा होता है, वैसे ही शोषण से जनआंदोलन पैदा हो रहा है, आंदोलन के नेता पैदा हो रहे हैं, लेखक पैदा हो रहा। उपन्यासकार मामूली इंसानी जिंदगियों को, उनके अभावग्रस्त जीवन को, इस जीवन के खिलाफ संघर्ष को करुणा के माध्यम से उसके उदात्त स्वरूप तक ले जाता है।
Blog
View Allशिक्षा का लोकतान्त्रिक मूल्य और डॉ. भीमराव अम्बेडकर
डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिया गया सूत्र ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ इस सूत्र में ही उनके संघर्षपूर्ण जीवन का व उनके शैक्षिक विचारों का सारांश छिपा हुआ है।