‘विमन अगेन्स्ट सेक्शूअल वायलेंस एंड स्टेट रिपरेशन’ (WSS) कल्पना मेहता के उनके निवास इंदौर, मध्य प्रदेश में निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है. एक ऐसे समय में जब हम व्यापक पैमाने पर अभूतपूर्व सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से गुजर रहे हैं और जब सत्ता द्वारा असहमति के अधिकार को लगातार बेरहमी से कुचला जा रहा है, हमारे बीच से एक हमसफ़र और कॉमरेड का चले जाना बेहद पीड़ादायक है. 2009 में, WSS की स्थापना के समय से ही कल्पना लगातार इसके साथ जुड़ी रहीं.
आईआईटी, कानपुर से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद वे एमबीए की डिग्री हासिल करने के लिए अमरीका चली गईं. वर्ष 1976 में, अन्य संगी भारतीयों की तरह वे उस समय भारत वापिस लौट आईं जब देश कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार द्वारा थोपे गए राष्ट्रीय आपातकाल के अत्याचारों से जूझ रहा था. कुछ सालों तक ट्रेड यूनियन में काम करने के बाद, वे समाज में महिलाओं के उत्पीड़न और अधीनता के मुद्दों को प्राथमिकता देने वाली जीवंत और शक्तिशाली राजनीतिक धारा का हिस्सा बन गईं. यह वह समय था जब वामपंथी और समाजवादी आंदोलनों में इस मुद्दे को असरदर ढंग से अंजाम दे पाना नामुमकिन होता जा रहा था. इस प्रकार 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक की शुरुआत में स्वायत्त महिलाओं के आंदोलन के उद्भव ने उनके जीवन और राजनीति को स्वरूप दिया. 1981 में गठित स्वायत्त नारीवादी संगठन ‘सहेली’ की, कल्पना सह-संस्थापक बनीं. इसके बाद से वे महिला आंदोलनों में लगातार अग्रणी भूमिका निभाने में जुट गईं .
अस्सी के दशक की शुरुआत में, विवाह और परिवार के भीतर महिलाओं के उत्पीड़न के साथ-साथ पितृसत्ता को बनाए रखने वाली अन्य सभी सामाजिक संरचनाओं की आलोचना, देश भर की महिलाओं को लामबंद करने का एक साझा सरोकार बन गया. हालांकि, यह विचारधारा वैचारिक रूप से मार्क्सवाद, समाजवाद के साथ-साथ पश्चिम में नारीवाद की दूसरी लहर से उपजी थी, लेकिन इसने भारत में सामंती-धार्मिक-सामाजिक व्यवस्था से उत्पन्न कई प्रतिगामी प्रथाओं से सीधे टक्कर लेने का काम किया. साथ ही इसके प्रगतिशील नज़रिए ने विभिन्न छोटे-बड़े संगठनों की राजनीति और सांगठनिक संरचना पर भी असर डाला. दरअसल कल्पना के बारे में लिखना तत्कालीन समय के बारे में लिखना भी है, क्योंकि शिक्षित मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि के अनगिनत लोगों ने प्रतिरोध की राजनीति में इस आमूलचूल बदलाव को लाने के लिए खुद को पूरी तरह से झौंक दिया. निस्सन्देह, संगठन और आंदोलन, व्यक्ति की बनिस्पत ज़्यादा अहमियत रखते हैं.
सभी महिलाओं की ख़ातिर एक समतामूलक सिविल कोड के लिए संघर्ष की राह सबसे कठिन रही है. महिलाओं के उत्पीड़न की जड़ें अपने समाज के धार्मिक-जातिगत वर्गीकरण में ढूँढना और सभी समुदायों की महिलाओं द्वारा झेली जा रही हिंसा को संबोधित करने में नारीवादी राजनीति का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है. कई अन्य साथियों की तरह, कल्पना भी सालों तक विवाह, तलाक, संरक्षण, गोद लेने, रखरखाव और संपत्ति के मामलों में भेदभावपूर्ण पर्सनल लॉ के खिलाफ अभियान चलाती रहीं, जो न सिर्फ पुरुष-महिला असमानता को वैधता प्रदान करते हैं, बल्कि अलग-अलग धर्मों की महिलाओं के भेदभावपूर्ण रवैया भी रखते हैं. नारिवादी आंदोलन ने हर धर्म, चाहे वो बहुसंख्यक हो या फिर अल्पसंख्यक, की सांप्रदायिक राजनीति और धार्मिक कट्टरवाद को स्पष्ट चुनौती दी है. पितृसत्ता के खिलाफ संघर्ष ने लगभग सभी सामाजिक संरचनाओं पर सवालिया निशान खड़े किए और अन्य उत्पीड़ित समूहों के संघर्षों के साथ गठबंधन किया. इस तरह, नारी आंदोलन के साथ कई और आंदोलन इसलिए भी साथ आते गए क्योंकि हमारा यह मानना रहा कि सभी उत्पीड़ितों की मुक्ति के बिना नारी मुक्ति संभव नहीं. इस कठिन और दुर्गम सफर में, कल्पना की आशावादिता और दृष्टि की स्पष्टता कभी नहीं डगमगाई.
नब्बे के दशक के मध्य में, कल्पना ने महिलाओं के लिए सुरक्षित गर्भनिरोधक तरीकों को उपलब्ध कराने की उम्मीद के साथ ‘परिधि’ नाम की एक बड़ी पहल की. परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण नीतियों के निर्मम कार्यान्वयन में महिलाओं की उपेक्षा कर सत्ता वर्ग ने उनके शरीर को राज्य और पितृसत्तात्मक नियंत्रण का ज़रिया बना दिया था. परिधि का उद्देश्य एक स्वस्थ, सुरक्षित और महिलाओं के नियंत्रण वाले गर्भनिरोधक पर अनुसंधान और उसका उत्पादन करना था. संभवतः कल्पना की परिकल्पना अपने समयों से बहुत आगे की थी; या, शायद उस समय इसे अमली जामा पहनाना संभव ना हुआ हो. इसलिए उन्हें स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधान की ओर अपना ध्यान मोड़ना पड़ा. इसी मक़सद के साथ उन्होंने वैकल्पिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों की तलाश में [जो आम लोगों की जरूरतों को पूरा कर सके], स्वास्थ्यकर्मियों और डॉक्टरों के एक समूह के साथ इंदौर में, ‘मानसी’ की स्थापना की. मानसी ने कई सालों तक पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ, एलोपैथी की मदद से स्वास्थ्य देखरेख मुहैया करवाने में अपनी सेवाएं प्रदान कीं. मानसी द्वारा ऐसे समय में किफ़ायती दामों पर या नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवाएं दी गईं, जब चिकित्सा प्रतिष्ठान मुनाफ़ा कमाने के साधन बन चुके थे. स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण, मेहनतकश वर्ग द्वारा इलाज में अपनी कमाई की आखिरी पाई तक खर्च कर देने की एक शुरुआत थी. मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक जोर देने के साथ स्वास्थ्य के प्रति इस समग्र दृष्टिकोण ने इंदौर में ‘मानसी कलेक्टिव’ के संपर्क में आने वाले लोगों को बेहद प्रभावित और प्रेरित किया.
1997 में, जब वे इंदौर शिफ़्ट हुईं तो मध्य प्रदेश में विस्थापन विरोधी आंदोलनों की भी सक्रिय समर्थक बन गईं, जहाँ वे मध्य प्रदेश महिला मंच और अन्य छोटे समूहों के साथ भी करीबी संपर्क में आईं. अन्य मजदूर वर्ग संगठनों और सामाजिक आंदोलनों में भी नारीवादी चेतना को बढ़ावा देने में उनका योगदान जबरदस्त रहा.
कल्पना ने ता-उम्र साथी कार्यकर्ताओं के बीच पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा दिया. खासतौर पर उन कठिनाइयों के बरअक्स, जिनका सामना अक्सर कार्यकर्ताओं को राजनैतिक काम करते हुए अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ संतुलन बनाने में करना होता था. संगठनात्मक कार्यों के लिए उनका घर सभी साथियों के लिए खुला था. वे जहाँ कहीं भी रहीं उनके सानिध्य में राजनीति और आपसी दोस्तियां ख़ूब फली-फूलीं. उनके रचे इस संसार में मौज-मस्ती के पल भरपूर हुआ करते थे. सत्ता को सुर्ख़ तरेरती आँखों से देखने के बावजूद भी दोस्तों के साथ उनके भीतर का खिलंदधड़ापन सदा बना रहता था, जो अंतिम साँस तक बरकरार रहा.
WSS का गठन 2000 के दशक के अंत में हुआ था जब देश के कई हिस्सों में महिलाओं पर यौन हिंसा, मर्दवादी और राजसत्ता के सशस्त्र सैन्य बलों के हाथों में, नियंत्रण और दमन का प्रत्यक्ष साधन बन रही थीं. नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों का हमला, वंचित समुदायों पर भारी पड़ने लगा था. एक तरफ, खासकर, पूर्वी भारत के संसाधन संपन्न राज्यों में आदिवासी और दलित समुदायों की महिलाओं पर हिंसा अपने चरम पर पहुंच रही थी; दूसरी तरफ़, तथाकथित “कॉन्फ़्लिक्ट ज़ोन” में सेना और सुरक्षा बलों को दी गई खुली छूट का मतलब, कश्मीर और उत्तर-पूर्व के राज्यों में महिलाओं पर यौन हिंसा का तेज़ होना था. यौन हिंसा और राजकीय दमन के खिलाफ नारीवादी प्रतिरोध को तेज़ करने के लिए WSS जैसे एक नए संगठन की ज़रूरत महत्वपूर्ण हो गई थी. इसका एक कारण यह भी रहा कि मुख्यधारा के महिला आंदोलनों से बहुत अधिक प्रतिक्रिया नहीं मिल पा रही थी. WSS के सफर को मज़बूत करने में कल्पना की भूमिका अनमोल थी. स्थानीय समूह के साथ मिलकर उन्होंने 2014 और 2018 में इंदौर में दो सम्मेलनों का आयोजन किया. वे दो बार WSS की राष्ट्रीय संयोजक भी रहीं.
इस वक़्त कई सारी घटनाएं यादों को टटोल रही हैं. जैसे दिसंबर 2009 में, WSS का द्वीतीय सम्मेलन रायपुर में अभी खत्म हुआ था. बैठक में आई 40 महिलाओं की एक टीम ने बस्तर जाकर उन महिलाओं के साथ एकजुटता व्यक्त करनी चाही, जिन्होंने सलवा जुडूम और एसपीओ द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. टीम को पुलिस ने रोका और गुंडों से परेशान करवाया. कल्पना WSS के दो अन्य सदस्यों के साथ रायपुर के DGP कार्यालय गईं और तब तक वहाँ डटी रहीं जब तक उन्होंने पूरी टीम की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित नहीं कर ली. उन्होंने जवाबदेही की मांग करते हुए अधिकारियों के साथ सीधे ज़िरह भी की. वे उन कार्यकर्ताओं में से थीं, जो सदैव विरोध करने के लिए तैयार रहते हैं. सीबीआई द्वारा पूरा साल बीत जाने के बाद कश्मीर के शोपियां में दो युवतियों, आसिफा और नीलोफर, के बलात्कार और हत्या के अपराधों पर पर्दा डालने वाली रिपोर्ट देने पर, WSS ने नई दिल्ली में एक अनोखा विरोध प्रदर्शन किया. 13 दिसंबर 2010 के दिन सौ से अधिक महिलाओं और पुरुषों ने सीबीआई को अपराधों पर पर्दा डालने के लिए कई चादरें उपहार में दीं. इन चादरों को कई तरह के संदेशों से भर दिया गया, जैसे: “आपके अगले अपराध को छुपाने के लिए उपहार!”, “सीबीआई अपनी जांच करे!”, “आसिया और नीलोफर के लिए न्याय!” तथा “सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इंवेस्टीगेशन नहीं, बल्कि कवर-अप ब्यूरो ऑफ़ इंवेस्टीगेशन!”, इत्यादि. फिर 10 अक्टूबर 2012 को राष्ट्रीय महिला आयोग के कार्यालय में कई महिला समूहों द्वारा ज़ोरदार धावा बोला गया, जिसमें सोनी सोरी को न्याय दिलाने की मांग की गई. उस एक साल में सोनी सोरी पर छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा कठोर यातनाएं और यौन हिंसा की गई थी. उन्हें बार-बार ज़लील किया गया. राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मामले में जांच का आदेश दिया था, लेकिन फाइलें अभी तक आगे नहीं बढ़ी थीं. महिला समूहों ने मामले को फिर से खोलने की मांग की. कल्पना की ऊर्जावान और जीवंत भूमिका के कारण ये सभी सामूहिक प्रयास और अधिक मज़बूत हुए. उनका सीधी राजनीतिक कार्यवाही में दृढ़ विश्वास था. उन्होंने पूरी उम्र बयानबाजी, याचिकाए दायर करने के काम, या, ऑनलाइन सक्रियता से कहीं अधिक सामूहिक कार्रवाई करने पर ज़ोर देना बरकरार रखा.
नागरिकों, खासतौर पर वंचित समुदायों, के संवैधानिक अधिकारों के लिए निर्वाचित सरकारों की जवाबदेही के सवाल से, राजनीतिक और संगठनात्मक कामों के प्रति कल्पना के नज़रिए को उत्साह मिला. उनके इसी नज़रिए ने लोकतंत्र में सभी के लिए समानता और गरिमा के सवाल को बराबर प्रसांगिक बनाए रखा. यहां तक कि WSS के आंतरिक आयोजन में देश भर में फैले हमारे सामूहिक कार्य को और धारदार बनाने के लिए उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बराबर बरकरार रखा और इसके लिए जबरदस्त मेहनत और दृढ़ता से काम किया. वे किसी भी काम या कार्यक्रम के हरेक पहलू पर ध्यान देतीं थीं और उसे पूरा करने मे तन्मयता के साथ लग जातीं थीं. उन्होंने ना केवल WSS को समृद्ध किया, बल्कि समूची नारीवादी राजनीति को संगठित करने और विस्तार में अपने सालों के प्रत्यक्ष अनुभवों से मज़बूत आधार प्रदान किया.
अपनी बिगड़ती सेहत से बहादुरी से जूझते हुए उन्हें कई व्यक्तिगत पीड़ाएँ भी झेलनी पड़ीं. बीमारी की शुरुआत के कुछ महीनों के भीतर, कल्पना को अपनी करीबी दोस्त और सहयात्री रजनी तिलक के गुज़र जाने की पीड़ा से गुज़रना पड़ा. वे WSS की सुधा भारद्वाज और शोमा सेन की गिरफ्तारी के सदमे से कभी नहीं उबर पाईं. उन्होंने अधिक समर्थन और एकजुटता हासिल करने और सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए WSS से अपने अभियान को और अधिक मुखर और लोकप्रिय बनाने पर ज़ोर दिया. मौत से ठीक पहले, उन्होंने दिल्ली में सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए एक सार्वजनिक बयान पर हस्ताक्षर किए थे.
कल्पना ने 27 मई 2020 को अंतिम सांस ली. 2017 के मध्य में ही उन्हें मोटर न्यूरॉन बीमारी, यानि एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS), के कई लक्षण परेशान करने लगे थे. हालांकि, उनका मस्तिष्क सक्रिय और अपने आसपास होने वाली हर हरकत के प्रति सतर्क बना रहा. परंतु अंतिम कुछ समय में उनका चलना-फिरना और बोलना-चालना पूरी तरह से रुक गया था. हालाँकि वे अपनी अंतिम सांस तक अखबारों के ज़रिए देश- दुनिया की घटनाओं के प्रति सजग बनी रहीं और अपने विचारों व सुझावों को भी समय-समय पर व्यक्त करती रहीं. राजनीतिक चर्चा और संगठनात्मक मामलों के प्रति उनकी अपार क्षमता और एक बेहतर समाज के लिए संघर्ष करने का उनका अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प हम सभी के लिए प्रेरणादायक है.
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“हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के ख़िलाफ़
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के ख़िलाफ़…
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे”
(पाश)
WSS के बारे में:
नवम्बर 2009 में गठित ‘विमन अगेन्स्ट सेक्शूअल वायलेंस एंड स्टेट रिपरेशन’ (WSS) एक गैर-अनुदान प्राप्त ज़मीनी प्रयास है. इस अभियान का मकसद हमारी देह व समाज पर की जा रही हिंसा को खत्म करना है. हमारा यह अभियान देशव्यापी है और इसमें शामिल हम महिलाएँ अनेकों नारी, छात्र, जन व युवा एवं नागरिक अधिकार संगठनों तथा व्यक्तिगत स्तर पर हिंसा व दमन के खिलाफ सक्रिय हैं. हम हर प्रकार के राजकीय दमन और औरतों व लड़कियों के विरुद्ध की जाने वाली हिंसा के खिलाफ हैं.