कोरोना महामारी से पैदा हुए आर्थिक संकट से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने बीस लाख करोड़ रुपए के आर्थिक राहत पैकेज का ऐलान किया। वित्तमंत्री ने चार दिनों तक लगातार मीडिया के समक्ष इस आर्थिक पैकेज का ब्यौरा प्रस्तुत किया। आर्थिक पैकेज को पाँच भागों में बाँटा गया है।
पैकेज के पहले भाग में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, विशेषकर माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) और एनबीएफ़सी/हाउसिंग फ़ाइनेन्स कम्पनियों/माइक्रो फ़ाइनेंशियल इन्स्टिट्यूशन के लिए प्रमुख स्थान दिया गया है। इसके अतिरिक्त ईपीएफ़, विद्युत वितरण कम्पनियों और टीडीएस आदि से सम्बंधित प्रावधान हैं।
व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, जिसमें माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम भी शामिल हैं, के लिए तीन लाख करोड़ रुपये का आकस्मिक कार्यशील पूँजी ऋण बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाएगा। अगर पैकेज की इबारत को ध्यान से पढ़ा जाए तो लिखा है, ‘Emergency W/C Facility for Businesses, incl MSMEs. मतलब इस तीन लाख करोड़ रुपयों के ऋण में से कितना हिस्सा माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यमों के हिस्से में आएगा, स्पष्ट नहीं है।
इसके अतिरिक्त एमएसएमई सेक्टर के लिए बीस हज़ार करोड़ रुपयों का सबऑर्डिनेटेड डेब्ट और पचास हज़ार करोड़ रुपये की पूँजी प्रदान करने की योजना भी बैंकों और फ़ण्ड्स ऑफ़ फ़ण्ड्स के हवाले कर दी गयी है। इस प्रकार एमएसएमई के नाम पर जो भी घोषणा की गयी है उसमें सरकार के ज़िम्मे कोई ख़र्च नहीं है। बैंकों और फ़ण्ड्स ऑफ़ फ़ण्ड्स के माध्यम से इस पूरी राशि का इंतज़ाम किया जाएगा।
ऋण के साथ कई किन्तु-परन्तु और शर्तें जुड़ी हुई होती हैं। बैंक कोई भी ऋण उद्यम के कैशफ़्लो को ध्यान में रख कर देता है। कोरोना संकटकाल में जब इकाइयाँ बन्द हैं तो उनका कैशफ़्लो बाधित ही नहीं हुआ है बल्कि बंद होने के कगार पर है। बैंक ऐसे में क़र्ज नहीं दे पाएँगे। और अगर इनको दबाव में क़र्ज़ दे भी दिया जाए तो ये उद्यम ऋण का ब्याज़ भी अदा करने में सक्षम नहीं होंगे, मूल की बात तो अलग है। इनमें से अधिकतर इकाइयाँ पहले से ही क़र्ज़दार होंगी। ऋण न चुका पाने की स्थिति में इन उद्यमों को बैंकों से आगे ऋण मिलना मुश्किल होगा।
दूसरी ओर बैंकों का एनपीए बढ़ता जाएगा। इस पैकेज की सफ़लता इस पर निर्भर करती है कि एमएसएमई क़र्ज लेने के लिए आगे आएँ और बैंक उन्हें लोन दें। रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट ट्रेंड्स एण्ड प्रोग्रेस ऑफ़ बैंकिंग के सितम्बर तक के आँकडों के अनुसार बैंकों में माइक्रो और लघु उद्यमों के आउटस्टेंडिंग ऋण में –0.4 (नकारात्मक) प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं मध्यम उद्यमों के आउटस्टेंडिंग ऋण में भी नकारात्मक 6.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अगर इसके कारणों का पता लगाएँ तो रिपोर्ट में ही आगे बताया गया है कि वर्ष 2019 में माइक्रो और लघु उद्यमों का एनपीए ऋण 9.9 प्रतिशत था। इस बैकग्राउंड में बैंकों से एमएसएमई ऋण बाँटने की अपेक्षा करना आशाजनक नहीं लगता। अगर दबाव में बैंकों से ऋण वितरित करवा भी दिया गया तो ये ऋण उद्यमों और बैंकों दोनों के सर पर भारी गठरी बन कर बैठ जाएँगे।
माइक्रो, लघु एवं मध्यम उद्यमों की सबसे बड़ी ज़रूरत लॉन्ग टर्म पूंजी है। यह उसे ऋण के माध्यम से नहीं प्राप्त हो सकती है। लॉन्ग टर्म पूंजी के रूप में इन इकाइयों को इक्विटी की ज़रूरत है। इक्विटी उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी इस पैकेज में फंड्स ऑफ़ फ़ण्ड्स के ऊपर डाल दी गयी है। होना यह चाहिए था कि सिडबी और नाबार्ड के माध्यम से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित इन उद्यमियों को संगठित रूप से इक्विटी उपलब्ध कराने का प्रावधान किया जाता। दरअसल, इन संस्थाओं की स्थापना ही इस उद्देश्य से की गयी है। ये संस्थाएं अब तक बिना कोई ज़िम्मेदारी उठाये मात्र सेमिनार आयोजित करने में लगी रही हैं। इन संस्थाओं के पास इस काम के लिए अच्छे खासे अनुभवी प्रोफ़ेशनल्स की टीम है।
लॉन्ग टर्म पूँजी की व्यवस्था करने के लिए एमएसएमई इकाइयों के एसएमई एक्स्चेंज पर लिस्टिंग के नियम बहुत ही सख़्त हैं। सरकार को इन नियमों को लचीला बनाना चाहिए जिससे एमएसएमई ईकाइयों को इक्विटी उगाहने में आसानी हो।
सरकार ने घोषणा की है के वह एमएसएमई सेक्टर को इस पैकेज के अंदर बाँटे गए ऋण की सौ प्रतिशत गारंटी लेगी। सरकार की घोषणा से यह स्पष्ट नहीं है कि इस मद में उसने कितने धन का प्रावधान किया है या कब तक किया जाएगा। फ़िलहाल यह लोन गारंटी का मामला एक घोषणा मात्र ही लगता है। लोन गारंटी की इस योजना का कोई विवरण नहीं दिया गया है। पहले से ही चल रही ऋण गारंटी योजना सीजीटीएमएसई के अंतर्गत बकाया ऋण का दावा प्राप्त करना बैंकों के लिए टेढ़ी खीर है।
सरकार ने यह भी घोषणा की है कि इन इकाइयों के बक़ाया बिलों के भुगतान के लिए कदम उठाए जाएंगे। सभी सरकारें आजतक यही कहती आयी हैं लेकिन इसका कोई पुख़्ता इंतज़ाम आज तक नहीं हो सका है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने TReDS नाम से एक प्लेटफ़ॉर्म का पहले से ही इंतज़ाम कर रखा है। इस प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से एमएसएमई के व्यापार-जन्य बकाया के वित्तपोषण और डिस्काउण्टिंग का इन्तज़ाम किया गया है। इस प्लेटफ़ॉर्म को मज़बूत और काम लायक़ बनाना चाहिए। बैंकों को बिल ट्रेडिंग और डिस्काउंटिंग के लिए फ़ैक्टरिंग सेवा मज़बूत करनी चाहिए।
कृषि सेक्टर के लिए राहत का पैकेज दूसरे, तीसरे और चौथे-पाँचवें भाग में शामिल किया गया है। किसानों के लिए सबसे बड़ा प्रावधान है दो लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त किसान क्रेडिट कार्ड ऋण (केसीसी ऋण)। यह कोई नयी बात नहीं है। सरकारें किसानों के लिए जब भी कोई घोषणा करती हैं वे किसान क्रेडिट कार्ड ऋण से आगे नहीं बढ़ पातीं। एमएसएमई की ही तरह ऋणग्रस्तता खेती की भी बड़ी समस्या है। किसानों का लोन माफ़ करना एक पॉलिटिकल एजेंडा बन चुका है। यद्यपि खेती सम्बंधी इन्फ़्रास्ट्रक्चर के मद में एक लाख करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है।
इसी तरह पशुपालन सम्बन्धी इन्फ़्रास्ट्रक्चर के मद में भी पन्द्रह हजार करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है, लेकिन कोरोना तो तात्कालिक समाधान चाहता है। इन्फ़्रास्ट्रक्चर खड़ा करना कब शुरू किया जाएगा और कब जा कर पूरा होगा, कुछ भी स्पष्ट नहीं है। कृषि सेक्टर की समस्या ही दरअसल किसान क्रेडिट कार्ड ऋण हो गया है। केसीसी ऋण को हर साल फ़सल की आमदनी से चुकाना पड़ता है। फ़सल उगाते उगाते और केसीसी ऋण चुकाते चुकाते किसान हाँफ जाता है। सरकार को अगर ऋण से ही कृषि का उद्धार समझ में आता है तो बैंकों के माध्यम से किसानों को लम्बी अवधि के ऋण उपलब्ध कराये जाने चाहिए। बैंक किसानों को लम्बी अवधि के ऋण देने से कतराते हैं जिसके कारण किसान अपने खेतों पर आवश्यक इफ़्रास्ट्रक्चर व्यक्तिगत तौर पर नहीं खड़ा कर पाता। एमएसएमई सेक्टर की तरह कृषि ऋण के लिए भी एक ऋण गारंटी योजना और संरचना खड़ी की जा सकती है। किसानों की समस्या भयानक ऋणग्रस्तता है।
राहत पैकेज के साथ ही यह भी घोषणा की गयी कि पट्टे पर खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। देखने में यह विचार उचित जान पड़ता है लेकिन मॉडल पट्टा कानून में कई प्रावधान ऐसे हैं जो किसानों के विरुद्ध जान पड़ते हैं। कहने को तो कोई कम्पनी किसानों की जमीन किराये पर लेकर कृषि उत्पादन करेगी और किसान को जमीन का किराया देगी। मसौदे के अनुसार भूस्वामी अपने खेत कृषि तथा आनुषंगिक गतिविधियों के लिए ही किराये पर उठा सकता है, लेकिन कृषि मद में बाग़बानी और प्लान्टेशन को भी शामिल किया गया है। बागबानी और प्लान्टेशन लम्बी अवधि बल्कि अनन्तकाल तक चलने वाली गतिविधियाँ हैं। इस प्रकार किसान का खेत हमेशा के लिए उसके हाथ से निकल जाएगा।
प्रस्तावित पट्टा कानून के अनुसार पट्टा की अवधि समाप्त होने पर खेत को ज्यों का त्यों वापस करना होगा जो कि सम्भव नहीं होगा। अगर पट्टा अवधि के दौरान किरायेदार कोई संरचना खेत में खड़ी करता है तो खेत वापसी के समय उसके बचे हुए उपयोग मूल्य का भुगतान मालिक द्वारा किरायेदार को करना पडे़गा। यह कौन तय करेगा यह मालूम नहीं है।
कोरोना संकट के समय वित्तीय प्रावधानों पर बहस तो होती है लेकिन उसके साथ छोड़े गये एजेंडा पर कोई बहस नहीं होती। प्रस्तावित खेती पट्टा कानून और एमएसएमई ऋण गारंटी योजना ऐसे ही एजेंडे हैं।
कोरोना संकट में किसानों और उद्यमों के हाथ में नकद पैसा चाहिए। उनका माल बिके और मूल्य तुरंत मिले, इसकी व्यवस्था इस पैकेज में कहीं नहीं नज़र आती। राहत पैकेज एक प्रकार का बजट और आर्थिक सुधार का एजेंडा मात्र है।
लेखक सेवानिवृत्त बैंकर हैं
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