पुलिस रिफॉर्म के आईने में विकास दूबे केस, मथुरा के पुलिसवालों को सज़ा और जूलियस रिबेरो की चिट्ठी


आज की तीन ख़बरें देश की पुलिस फ़ोर्स विशेषकर सिविल और आर्म्ड पुलिस, जैसे उत्तर प्रदेश की PAC और बिहार की BMP आदि के लिए आँखें खोलने वाली हैं और उन्हें आत्ममंथन का न्योता देती हैं कि वे सत्ताधारियों और सत्ताधारी दल के लठैत या शार्प शूटर बनने के बजाय जनता के प्रति अपने संवैधानिक, कानूनी और पेशेवर नैतिकता के वफादार रहें I

पहली खबर- मथुरा के सेशन कोर्ट द्वारा 35 साल पुराने एक केस में 11 पुलिसवालों को सुनायी गयी आजीवन कारावास की सज़ाI दूसरी खबर- माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित विकास दुबे इन्काउनटर मामले में राज्य सरकार द्वारा गठित जाँच कमेटी को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस बीएस चौहान के नेतृत्व में एक कमीशन बनाया है जिसमें उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक केएल गुप्ता के अलावा केंद्र के अन्य अधिकारी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय उत्तर प्रदेश सरकार और उसकी जांच पर अविश्वास का सबसे बड़ा सुबूत हैI

आज ही प्रतिष्ठित रिटायर्ड पुलिस अधिकारी जिन्हें सुपर कॉप कहा जाता है, जूलियस रिबेरो ने देश भर के आइपीएस अधिकारियों के नाम एक खुला पत्र लिख कर पुलिस हिरासत में हुई मौतों और फर्जी मुठभेड़ों पर ही नहीं बल्कि वर्तमान सियासी व्यवस्था पर भी दुःख और नाराजगी ज़ाहिर की हैI उन्होंने तमिलनाडु में पुलिस हिरासत में पिता पुत्र की मौत पर दुःख ज़ाहिर करते हुए लिखा है कि देश के हर पुलिसकर्मी को इस काण्ड पर अपना सर शर्म से झुका लेना चाहिएI उन्होंने कहा कि मैं कोई नसीहत या मशविरा नहीं देना चाहता क्योंकि समय बदल गया है, सियासी माहौल बदल गया है, सब से बड़ी बात कि अब के सियासतदां उन सियासतदानों से अलग प्रकार के हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी और आज़ादी के बाद देश की व्यवस्था को चलाने की पॉलिसी तैयार की थी लेकिन ईमानदारी, मानवता, करुणा, सत्य और न्याय की खोज, कानून की पाबंदी और संविधान के पालन के गुण हमेशा ही रहेंगे और जब आप सोचें, कार्रवाई करें तो इन्हीं आदर्शों और गुणों को नज़र में रख कर ही क़दम उठाएं I

उन्होंने लिखा है कि सियासतदां आपको आपकी टॉप पोजीशन से हटा सकते हैं लेकिन विकास दूबे जैसे मुजरिमों को खड़ा करने में सहयोगी बनने से अच्छा है कि आप इसके लिए तैयार रहें और जहाँ तक विकास दूबे की बात है, उसका इस प्रकार अंत करना अदालत के काम को छीन लेने जैसा हैI विवेचक को मुक़दमा चलाने और फैसला देने का अधिकार नहीं होना चाहिए, जैसा आज हमारे देश में हो रहा है I

मथुरा की अदालत द्वारा सुनाये गये फैसले का केस फरवरी 1985 का है जब एक चुनावी सभा में होने वाली कुछ हिंसा के बाद पुलिस ने भरतपुर के तत्कालीन महाराजा मान सिंह और उनके दो साथियों को गोलियों से भून दिया थाI हुआ यह था कि कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं ने उनके राज्य भरतपुर के झंडे बैनर फाड़ दिये थे। इससे तिलमिलाये राजा मान सिंह ने कांग्रेस के चुनावी जलसे पर धावा बोल दिया। स्टेज पर अपनी गाडी चढ़ा दी और और बाद में कांग्रेस के उम्मीदवार ब्रिजेन्द्र सिंह के हेलीकाप्टर पर भी अपनी गाड़ी चढ़ा दी जिसकी रिपोर्ट स्थानीय थाने में दर्ज करा दी गयी। दूसरे दिन जब राजा मान सिंह अपने दो अन्य नामज़द साथियों के साथ थाने में सरेंडर करने जा रहे थे तो पुलिस ने उन पर अंधाधुंध गोली चला दी जिससे उनकी और उनके दोनों साथियों की मौके पर ही मौत हो गयीI इस काण्ड से राजस्थान में सियासी तूफान खड़ा हो गया था और दो दिन बाद ही मुख्यमंत्री शिव चरण माथुर को इस्तीफ़ा देना पड़ा थाI जयपुर से यह मुक़दमा मथुरा ट्रान्सफर कर दिया गया था और आज 35 साल बाद उसका फैसला आयाI

उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा और मलियाना का केस भी याद रखना चाहिए जहां PAC ने 50 मुसलमानों को पकड़ कर हिंडन नहर के पास ले जाकर गोली मार दी थी और लाशें नहर में बहा दी थींI गाज़ियाबाद के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विभूति नारायण राय को उनके एक थानेदार से यह खबर लग गयी थी और सर्द रात में टॉर्च की रौशनी में उन्होंने लाशें निकलवा के इस सामूहिक हत्य्कांड का पर्दाफाश किया था। यह केस भी लगभग तीस बरस बाद निर्णय की स्थिति में आया और सभी रिटायर हो चुके पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा हुई I

पीलीभीत में कुछ सिक्खों को आतंकवादी बता कर पुलिस इन्काउनटर में मारे जाने की भी सजा देर से ही सही लेकिन पुलिस वालों को भुगतनी पड़ीI ऐसी हज़ारों मिसालें दी जा सकती हैं जब पुलिसवालों को उनके किये गैरकानूनी और अनैतिक कार्यों के लिए रिटायरमेंट के बाद भी सज़ा भुगतना पड़ी। जेल जाना, मुक़दमा लड़ना, खर्च बर्दाश्त करना और पब्लिक की थू-थू अलग से, जबकि उनके राजनैतिक आका जिनकी मर्ज़ी और इशारे के बिना इतना जघन्य अपराध संभव नहीं उन पर आंच तक नहीं आयी और न ही उन्होंने इन पुलिसवालों की किसी प्रकार से कोई मदद की I

ये तीनों खबरें इस बात की तसदीक करती हैं कि पुलिसवालों को अब समझना होगा कि वे ब्रिटिश राज्य की पुलिस नहीं हैं जिनका काम जनता का दमन था बल्कि वह एक संवैधानिक लोकतंत्र के तहत चलने वाले देश की पुलिस फ़ोर्स हैं जिसका काम जनता की रक्षा, कानून का पालन कराना और कानून तोड़ने वालों के खिलाफ कानून और संवैधानिक अधिकारों के तहत ही कार्रवाई करना है I इससे अलग हट कर अगर सियासी आकाओं को खुश करने उनके सियासी हथकंडों में वे सहभागी बनेंगे तो कभी न कभी उनकी गरदन कानून के लम्बे हाथों में ज़रूर आ जायेगी और तब उनके सियासी आका उनका हालचाल भी नहीं पूछेंगे। वह सस्पेंड होंगे, अपने खर्च पर मुक़दमा लड़ना पड़ेगा और अगर सजा हो गई तो सज़ा भी भुगतना पड़ेगी, जिसमें उम्र क़ैद से लेकर फांसी की सज़ा तक संभव है I

रिबेरो ने पुलिस अधिकारियों को लिखा है कि “आप सियासतदानों से रास्ता बदलने को नहीं कह सकते लेकिन आप अपने आदमियों को मुजरिमों की मदद करने से रोक सकते हैं। इस प्रकार आप तीन पैरों के इस गठजोड़ (नेता-मुजरिम-पुलिस) के एक महत्वपूर्ण पैर को हिला सकते हैंI”

अंत में उन्होंने IPS अधिकारियों से प्रार्थना करते हुए कहा है कि ऊंचे पद और अच्छी पोस्टिंग पाने के लिए लोबीइंग करना और सोर्स लगाना बंद कर दीजिए, इससे आप अपनी आज़ादी का सौदा कर रहे हैं क्योंकि इसके बाद सियासतदां आपसे वह काम करवाएंगे जिससे उन पुलिसकर्मियों पर आपका नैतिक अधिकार समाप्त हो जायेगा जो आपकी कमांड में हैंI

काश, हमारे अधिकारीगण अपने इस वरिष्ठ अभिभावक जैसे अफसर की बात पर कान धरें और अपनी ताक़त, अधिकार और फ़र्ज़ समझ कर सियासतदानों की चाटुकारिता छोड़ कर संविधान को ही अपना मार्गदर्शक बना कर अपना कर्तव्य पालन करेंI


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