लॉकडाउन में भुखमरी की जीवंत गवाह हैं दुमका में अनाज से भरे सरकारी ट्रकों को लूटती औरतें


झारखंड सरकार राज्य में किसी को भी भूख से नहीं मरने देने का दावा कर रही है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इनके दावों से मेल नहीं खाती है। दुमका जिले के शिकारीपाड़ा थाना क्षेत्र के सरसडंगाल गांव में अनाज भरे ट्रकों की लूट की घटना इस बात का गवाह है।

यहां की महिलाएं 21 अप्रैल को दुमका-रामपुरहाट मुख्य सड़क के किनारे जमा हो गईं और वहां से गुजर रहे अनाज से भरे ट्रकाें को लूटने का प्रयास किया। महिलाओं ने आरोप लगाया कि लॉकडाउन के कारण उनका रोजी-रोजगार छिन गया है। वे और उनके परिवार के सदस्याें के अलावा उनके छाेटे-छाेटे बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। सड़क किनारे खड़ी महिलाएं एफसीआइ गोदाम से डीलर के यहां ले जाये जा रहे अनाज से भरे ट्रक को जबरन रोक लिया। महिलाओं ने अनाज की कुछ बाेरियां जबरन ट्रकाें से उतार भी लीं। अनाज हंशापत्थर गांव के जन वितरण प्रणाली के डीलर के यहां ले जाया जा रहा था। 

इस बीच शिकारीपाड़ा थाना प्रभारी वकार हुसैन और अंचलाधिकारी अमृता कुमारी काे मामले की जानकारी मिली, ताे वे तत्काल सदल बल घटनास्थल पर पहुचे। उन्हाेंने आक्रोशित महिलाओं को समझा-बुझा कर शांत कराया और महिलाओं द्वारा ट्रक से उतारे गये अनाज को पुनः वापस ट्रक पर लोड करवा कर रवाना किया गया।आक्रोशित महिलाओं ने अंचलाधिकारी और थाना प्रभारी काे अपनी व्यथा सुनायी। धना मरांडी व किरण टूडू ने अंचलाधिकारी को अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि सरकार की ओर से आपदा राहत कोष में जो फंड दिया गया है, उससे भी आज तक उनलोगों को चावल नहीं नसीब हुआ है।

केन्द्र सरकार के द्वारा अचानक देशव्यापी लाॅकडाउन घोषित किये जाने से पहले ही जिन राज्यों ने 31 मार्च तक अपने राज्य में लाॅकडाउन की घोषणा की थी, उसमें से झारखंड भी था। जनता कर्फ्यू की शाम को ही यानि कि 22 मार्च की शाम को ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य में 31 मार्च तक लाॅकडाउन की घोषणा कर दी थी। अचानक हुए इस लाॅकडाउन के कारण देश के अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी मजदूर बेरोजगार हो गये और अपनी बची-बचायी जमा-पूंजी से किसी तरह अपनी भूख को मिटाते रहे। इस बीच झारखंड सरकार ने भी अप्रैल-मई का राशन एक ही बार देने की घोषणा की।

झारखंड सरकार ने घोषणा की कि झारखंड में लगभग 58 लाख कार्डधारियों के अलावा जिन्होंने भी राशन कार्ड के लिए आवेदन दिया है (लगभग 7 लाख), उन्हें भी राशन दिया जाएगा। झारखंड सरकार ने झारखंड कोविड-19 रिपोर्ट कार्ड में घोषित किया है कि लाॅकडाउन के दौरान 20 अप्रैल तक लगभग 65 लाख परिवारों के बीच 2 लाख 65 हजार मीट्रिक टन अनाज का वितरण किया गया है। साथ ही पूरे राज्य में 6628 मुख्यमंत्री दीदी किचन, 380 पुलिस थानों में कम्युनिटी किचन व 900 मुख्यमंत्री दाल-भात केन्द्र के द्वारा रोजाना 12 लाख से अधिक लोगों को भोजन कराया जा रहा है।

दुमका में ट्रक लूट की घटना को देखने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि  झारखंड सरकार के द्वारा जारी किये गये झारखंड कोविड-19 रिपोर्ट कार्ड के दावे जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। झारखंड सरकार की योजनाएं गांवों तक पहुंच ही नहीं पा रही है। प्रतिदिन भिन्न-भिन्न इलाकों से यह भी खबर आ रही है कि डीलर राशन नहीं दे रहा है। कहीं दे भी रहा है, तो कम दे रहा है। कई जगहों पर मुख्यमंत्री दाल-भात केन्द्र के अचानक बंद होने की बात भी सामने आ रही है। कहीं-कहीं मामला हाइलाइट हो जाने के कारण प्रशासन को एक्शन भी लेना पड़ा है, कई डीलरों के लाइसेंस भी कैंसिल हुए हैं।

अनाज से भरा सरकारी ट्रक लूटने जैसी वारदात के पीछे  भूख से हो रही मौतें भी एक ठोस कारण हैं। लाॅकडाउन के दौरान झारखंड में ‘भूख’ से मौतों का सिलसिला जारी है, लेकिन प्रत्येक बार भूख से हुई मौत (मृतक के परिजनों के द्वारा कहा गया भूख से मौत) को शासन-प्रशासन नकार दे रहा है। रामगढ़ जिला के गोला प्रखंड अंतर्गत संग्रामपुर गांव में 1 अप्रैल को 72 वर्षीय उपासी देवी की मौत हो गयी। उनके पुत्र जोगन नायक का कहना था कि उनकी मां की मौत भूख से हुई है लेकिन प्रशासन ने इसे नकार दिया। मालूम हो कि इस वृद्ध महिला का राशन कार्ड रद्द हो गया था, जिस कारण इसे राशन भी नहीं मिला था। इन्होंने अंतिम बार अपना राशन मई 2017 में ही उठाया था।

गढ़वा जिला के भण्डरिया प्रखंड के कुरून गांव में 2 अप्रैल को लगभग 70 वर्षीय सोमारिया देवी की मृत्यु हो गयी। इनके पति लच्छू लोहरा का कहना था कि उनकी पत्नी की मौत भूख से हुई है लेकिन प्रशासन ने इसे भी नकार दिया। सरायकेला-खरसावां जिला के चौका थानान्तर्गत पदोडीह निवासी 51 वर्षीय मजदूर शिवचरण की मौत 20 अप्रैल को हो गयी। इनके परिजनों का कहना था कि लाॅकडाउन के कारण इनको काम नहीं मिल रहा था और ये बेरोजगार हो गये थे। इनका राशन कार्ड भी महिला विकास समिति, गुंजाडीह की संचालिका ने रख लिया था और राशन कार्ड देने के एवज में इनसे पैसा मांगा जा रहा था। फलस्वरूप इन्हें राशन भी नहीं मिल सका और इनकी मौत भूख से हो गयी। सवल उठता है कि अन्य जगहों की तरह ही इसे भी शासन-प्रशासन ने क्यों नकार दिया?

आखिर कब तक लोग अपनी भूख को दबाकर घर में पड़े रहेंगे? कोरोना के बदले भूख से ही वे दम तोड़ रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में दुमका की महिलाओं ने अनाज से भरे ट्रकों को लूटने की कोशिश करके आने वाले समय की दस्तक दे दी है। 


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