इब्ने इंशा: एक शायर, एक दीवाना, जिसका काटा सोते में भी मुस्कुराता है…


इब्ने इंशा अगर आज जिन्दा होते तो 93 वर्ष के होते. इब्ने इंशा पर कलम उठाना इस लिए बहुत मुश्किल काम है कि वो एक ही वक्त में बहुत बड़े शायर भी हैं और उर्दू ज़ुबान के बहुत बड़े अदीब (साहित्यकार) भी हैं जिन्होंने satire (व्यंग्य) में अपनी अलग पहचान बनायी है.

मुश्ताक अहमद यूसिफ़ि, जो उर्दू के बड़े व्यंग्यकार रहे हैं, उन्होंने इब्ने इंशा पर लिखा है, “बिच्छू का काटा रोता और साँप का काटा सोता है. इब्ने इंशा का काटा सोते में भी मुस्कुराता है.”

जब एक अदीब और शायर गद्य और पद्य दोनों में एक जैसी महारत रखता है तो अक्सर ऐसा होता है कि उसका एक पहलू लोगों की निगाह से ओझल हो जाता है. इब्ने इंशा के साथ भी ऐसा ही हुआ है. कुछ सिर्फ़ उनकी शायरी को जानते हैं और कुछ सिर्फ़ उनके गद्य को. गद्य में उनकी सबसे मशहूर किताब का नाम है ‘उर्दू की आख़िरी किताब’. इस किताब में उनका फ़न अपने उरूज पर है. छोटे-छोटे जुमलों में बहुत बड़ी-बड़ी बातें वो ऐसी आसानी से कह जाते हैं कि पढ़ने वाला घंटों अश, अश करता रहता है. ये किताब उर्दू में व्यंग्य का सबसे आला नमूना है.

इब्ने इंशा का असली नाम शेर मोहम्मद खान था. वो पंजाब में पैदा हुए लेकिन उर्दू ज़ुबान पर उनकी पकड़ इतनी ज़बरदस्त है कि दिल्लीवाले भी उनसे पनाह मांगते थे. वो दिल्ली के रोडे थे और उनकी ज़ुबान सनद मानी जाती है.

उनकी शायरी उर्दू के दूसरे शायरों से इन मायनों में अलग है कि वहां पंजाबी रंग व आहंग नुमायाँ है. लोक गीतों का असर साफ़ दिखता है और वो हिंदी के शब्दों का बखूबी इस्तेमाल करते हैं. उनकी शायरी अमीर खुसरो के ज़्यादा क़रीब है.

स्वानंद किरकिरे ने Urdu studio  में उनकी एक नज़्म रिकॉर्ड की है जहां उनकी शायरी के इस पहलू पर बहुत अच्छी तरह रोशनी डाली है.

जगजीत सिंह की आवाज़ में गायी उनकी ग़ज़ल “कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा” से हमने भी अपनी रातों को मुनव्वर किया है.

अमानत अली खान की आवाज़ में क्लासिकल अन्दाज़ में गायी उनकी ग़ज़ल “इंशा जी अब कूच करो” का जादू सबके सर पर चढ़ कर बोलता है:

“फ़र्ज़ करो हम अहले वफ़ा हूँ / फ़र्ज़ करो दीवाने हूँ”, ये नज़्म भी सबको याद है. इसके अंदर जो एक छुपा हुआ फ़्लर्टेशन है वो सिर्फ़ इंशा जी का ख़ास है.

उनकी सबसे शाहक़ार नज़्म “बग़दाद की एक रात है” जिसके बारे में कम लोग ही जानते हैं. ये एक बहुत ही लम्बी नज़्म है जिसमें उन्होंने एक मरती हुई तहज़ीब का मर्सिया लिखा है.

बग़दाद और अलिफ़-लैला की कहानियों से उनको एक ख़ास लग़ाव था. अपने सफ़रनामे में बग़दाद की गलियों  में खोने का क़िस्सा बड़े दिलचस्प अन्दाज़ में उन्होंने लिखा है।

BAGHDAD KI EK RAATsindbad aaj to hamrah mujhe bhi le chaldil jo behla to khayalon hi mein apna behlamain tere sath…

Posted by Ibn-E-Insha on Tuesday, January 8, 2013

इब्ने इंशा को चाँद से बड़ी दिलचस्पी थी. उनकी शायरी की एक किताब का शीर्षक चाँद से ही शुरू होता है. उनकी शायरी की किताबों में “बस्ती के एक कुचा में”, “चाँद नगर” और “दिले वहशी” हैं. वैसे चाँद से उनको बहुत मोहब्बत थी. गद्य में उन्होंने जो कुछ भी लिखा वो उनके सफरनामे (यात्रा वृतांत) पर मुशतमिल है, जैसे “इब्ने बतूता के ताकूब में”, “दुनिया गोल है”, “नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर”. आख़री किताब उनकी मृत्यु के बाद छपी और उसका शीर्षक उनके एक शेर से ही लिया गया है- “नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया”.

असल में उनके सारे सफ़रनामे उनकी उन याददाश्तों पर आधारित हैं जो उन्होंने काम के सिलसिले में दूरदराज़ के मुल्कों के सफ़र के दौरान में जो देखा और महसूस किया और फिर उसे अपनी नज़र से लिखा. ये सफ़रनामे ज़ुबान और बयान के लिहाज़ से पढ़ने के लायक़ हैं.

इब्ने इंशा अमरीकी शायर एडगर एलेन पो से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने उनकी बहुत सारी कविताओं का उर्दू में तर्जुमा भी क्या है. उनकी खासियत ये है कि उन्हें पढ़कर ये अनुवाद नहीं बल्कि ओरिजनल लगते हैं.

इब्ने इंशा को इंसान के तौर पर जानने के लिए मुमताज़ मुफ़्ती का खाका (रेखाचित्र) पढ़ना बहुत ज़रूरी है. ये उनकी किताब “ओखे लोग” में मौजूद है. ओखा एक पंजाबी लफ़्ज़ है और उसका मतलब टेढ़ा होता है. इस खाके को उर्दू के बेहतरीन खाकों में रखा जा सकता है. यहाँ इब्ने इंशा अपनी तमाम तर इंसानी खूबियों और ख़ामियों के साथ दिखायी देते हैं.

शादीशुदा ज़िंदगी में बहुत सारे मसले थे. बीवी से तालुक़ात बिल्कुल अच्छे नहीं थे. बचपन में रिश्ते में शादी कर दी गयी थी और दोनो के दरमियान कभी भी मियाँ बीवी जैसा रिश्ता नहीं रहा. मुफ़्ती की माने तो इंशा ने कई बार ख़ुदकुशी की भी कोशिश की. फिर इंशा को एक ब्याही औरत से प्यार हो गया और वो उस पर अपनी सारी कमाई लुटाने लगे. एक बार मुफ़्ती ने टोका तो आंसू भरी आँखों से कहा कि तुम देखते नहीं, उसने मुझे शायर बना दिया।

इब्ने इंशा, अशफाक़ अहमद, मुनीर नियाज़ी और ए. हमीद (बायें से दायें) Image: Pakpedia

उर्दू के शायरों के ताल्लुक़ से एक लतीफ़ा बहुत मशहूर है कि अगर उनकी शादी नाकाम हो जाती है तो शायरी बहुत कामयाब हो जाती है और अगर शादी कामयाब हो जाती है तो शायरी नाकाम हो जाती है. अल्लामा इक़बाल से लेकर एक बड़ी तादाद है उर्दू शायरों की जिनका विवाहित जीवन तो नाकाम रहा लेकिन शायरी बहुत कामयाब रही.

मुज्तबा हुसैन, जो भारत में उर्दू हास्य और व्यंग्य का सबसे बड़ा नाम हैं और जिनका अभी हाल में ही देहान्त हुआ है, उनके बड़े भाई इब्राहिम जलीस और इंशा की बहुत गहरी दोस्ती थी. इब्राहिम ने पाकिस्तान रेडियो के लिए इंशा का एक बड़ा दिलचस्प इंटर्व्यू रिकॉर्ड किया है. मुज्तबा हुसैन लिखते हैं कि दोनों में इतनी गहरी दोस्ती थी कि एक दूसरे के पीछे एक हफ्ते में ही दोनों ही इस जहां से गुज़र गये.

इब्ने इंशा इलाज के लिए लंदन गये थे लेकिन वो अपने पैरों पर चल कर वापस नहीं आये. इस दौरान उन्होंने जो कुछ लिखा वो एक किताब की शक्ल में उनके मरने के बाद प्रकाशित हुआ. इसका नाम “नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर” है और ये इब्ने इंशा की आख़री किताब है.

मौत से कुछ दिन पहले उन्होंने एक कविता लिखी थी जो सम्भवतः सबसे ज़्यादा दिल को छूने वाली है. ये एक ऐसे आदमी के एहसासात हैं जिसने मौत से तो हार मान ली है लेकिन वो ना टूटा  है और ना ही डरा है. हां, ज़िंदा रहने की उसकी इच्छा और बढ़ गयी है. इस दर्द को सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है.

अब उम्र की नक़दी ख़त्म हुई / अब हम को उधार की हाजत है
है कोई जो साहूकार बने / है कोई जो देवनहार बने

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो उर्दू में शायरी करते हैं और इन्होंने बहुत सारी डॉक्युमेंटरीज़ में डायरेक्टर ऑफ़ फोटोग्राफी की हैसियत से काम किया है. क्रिकेट का शौक़ जुनून की हद तक है. कारवाँ-ए-मोहब्बत के साथ बतौर फेलो जुड़े हुए हैं.


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12 Comments on “इब्ने इंशा: एक शायर, एक दीवाना, जिसका काटा सोते में भी मुस्कुराता है…”

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  2. हम जैसोंकी यही समस्या होती है कि उर्दू पढ नही सकते इसी कारण उर्दू गझल की बहोत सारी किताबोंसे हम अनभिज्ञ रह जाते है.
    जब कोई नज्म या गझल सुननेमे आती है तब दिलसे निकलता है कि वाह क्या बात है.
    इंशासाबकी कुछ रचनाओंको सुना जरुर था पर उनके बारेमे जानते बिलकुल नही थे. आज आपने इक ऐसी शक्सियतसे हमे मिलवाया जो हमारे दिलमेही कही बसा हुआ था.
    शुक्रीया….झकेरीया साहब.
    हमे ऐसेही हमारेही लोगोंसे मिलवाते रहीयेगे.
    हम इंतजार करेंगे.

  3. Rokade जी आपका बहुत आभारी हूँ
    कोशिश करूँगा कि कुछ ना कुछ लिखता राहों

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