किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में तीन नए कृषि कानूनों का एक विश्लेषण

ये तीनों सुधार मौजूदा कृषि उत्पादों के बाजार की संरचना पर से सरकार का नियंत्रण हटाने के मकसद से किये गए हैं। जब कोविड और लॉकडाउन की वजह से खेती में पहले से चले आ रहे संकट में और भी इज़ाफ़ा हो गया, और जब वंचितों और हाशिये पर मौजूद परिवारों को राज्य की सहायता की जरूरत थी ताकि निर्दयी और निरंकुश बाजार की अनिश्चितताओं और क्रूरताओं से राज्य उनकी रक्षा करे तब मोदी सरकार ने बाजार को और अधिक खोलकर और अपना नियंत्रण हटाकर समाज के कमजोर तबकों को बाजार के सामने पूरी तरह असहाय छोड़ दिया। वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश की जनता को आत्मनिर्भर बनाने का एजेंडा यही था।

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‘अर्जित’ विचारहीनता और संवेदनहीनता का उत्सव मनाते मध्यवर्ग से आंदोलन कोई उम्मीद क्यों पालें?

वैचारिक दरिद्रता इन्हें विरासत में नहीं मिली है बल्कि इन्होंने इसे बाकायदा ‘अर्जित’ किया है। तभी, जो इनके पिताओं और दादाओं के लिए रोल मॉडल थे वे इनके लिए इतिहास के खलनायक हैं जिन्होंने ‘’70 साल में देश का बंटाधार कर दिया है”।

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पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान आंदोलन क्‍यों कर रहे हैं? बुनियादी सवाल का आसान जवाब

मीडिया आपको बताएगा कि सरकार एमएसपी को खत्‍म करने नहीं जा रही। किसान कह रहे हैं कि ठीक है, एक काम करो कि कानून में ये डाल दो कि एमएसपी से नीचे की खरीद दंडनीय अपराध होगी। सरकार ये करने से मना कर रही है।

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किसान आंदोलन के साथ जनता का सिर्फ़ पेट नहीं, उसकी बोलने की आज़ादी भी जुड़ी हुई है!

किसान आंदोलन से निकलने वाले परिणामों को देश के चश्मे से यूँ देखे जाने की ज़रूरत है कि उनकी माँगों के साथ किसी भी तरह के समझौते का होना अथवा न होना देश में नागरिक-हितों को लेकर प्रजातांत्रिक शिकायतों के प्रति सरकार के संकल्पों की सूचना देगा।

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किसानों ने बदली रणनीति: योगेंद्र यादव को खाली हाथ लौटाया, सिंघू बॉर्डर पर ही चूल्हा जलाया!

ज्‍यादातर किसानों ने मोर्चे के नेतृत्‍व की नाफ़रमानी कर दी है, तो किसान आंदोलन की आगे की दिशा के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। फिलहाल किसानों ने सिंघू बॉर्डर पर ही डेरा डाल दिया है, चूल्‍हे जला लिए हैं और रात के खाने की तैयारी में लग गए हैं।

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कॉरपोरेट को बैंक खोलने देना अशर्फियां लुटाकर कोयले पर मुहर लगवाने जैसा मूर्खतापूर्ण कदम है!

खराब राजकाज वाले बैंकों के मौजूदा ढांचे की जगह औद्योगिक घरानों के टकरावपूर्ण स्‍वामित्‍व को ले आना अशर्फियां लुटाकर कोयले पर मुहरों की छाप लगवाने जैसा कदम साबित होगा।

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प्रशांत भूषण के हाथ से फिसला वह क्षण और ‘स्‍थायी भयावहता’ में तब्‍दील होते ‘तात्‍कालिक भय’!

बीतने वाले प्रत्येक क्षण के साथ नागरिकों को और ज़्यादा अकेला और निरीह महसूस कराया जा रहा है। जिन बची-खुची संस्थाओं की स्वायत्तता पर उनकी सांसें टिकी हुई हैं, उनकी भी ऊपर से मज़बूत दिखाई देने वाली ईंटें पीछे से दरकने लगी हैं।

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स्कूली बच्चे: डिजिटल असमानता से डिजिटल विभाजन तक

ऑनलाइन शिक्षा’ की होड़ ज़मीनी स्तर पर महाराष्ट्र के पालघर जिले के तलासरी जैसे ग़रीब आदिवासी क्षेत्र में कैसी दिखती है? पारी ने पड़ताल की कि यह पहले से ही गंभीर असमानताओं को कैसे आगे बढ़ा रही है

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बीते 15 साल में दफ़न तीन डिसमिल ज़मीन का एजेंडा क्या ज़िंदा कर पाएगा बिहार का नया नेतृत्व?

यहां लंबे समय से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि 1950 के बाद यहां कोई लैंड सर्वे नहीं हुआ। कुछ जानकार यह भी बताते हैं कि अगर व्यापक जांच पड़ताल की जाए तो पूरा बिहार बहुत बड़े ज़मीन घोटाले का गढ़ साबित होगा।

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पेनरोज़ को मिला नोबल वाया आइन्स्टाइन और हॉकिंग: रवि सिन्हा का व्याख्यान

इस व्याख्यान में आइन्स्टाइन से पेनरोज़ और हॉकिंग तक की वह कहानी कही जायेगी जिसमें अन्य महारथियों का वर्णन भी होगा

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