संक्रमण काल: बिग-टेक के रहमो-करम पर देशों की संप्रभुता और स्वतंत्र पत्रकारिता


आस्ट्रेलिया ने 2021 में मीडिया संस्थानों के हितों की रक्षा के लिए ‘समाचार मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म अनिवार्य सौदेबाजी कानून’ बनाया था। 2023 में ऐसा ही एक कानून कनाडा में बनाया गया।  भारत समेत कई अन्य देश भी ऐसे कानून बनाने पर विचार कर रहे हैं। टेक-कंपनियां ऐसे कानूनों का विरोध करती हैं तथा अपनी शर्तें न माने जाने की स्थिति में अपनी सेवाओं को संबंधित देश बंद कर देने की धमकी देती हैं। ऐसे कानून बनाने के लिए बड़ी मीडिया-कंपनियां लॉबिंग करती हैं जबकि छोटे समाचार-व्यवसायों के लिए इस प्रकार के कानून हानिकारक ही साबित होते हैं। पिछले कुछ समय से नई तकनीक के समाजशास्त्र पर निरंतर लिख रहे प्रमोद रंजन  ने इस रोचक आलेख में इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं को विस्तार से बताया है

संपादक

फरवरी, 2021 में आस्ट्रेलिया में गठित ‘समाचार मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म अनिवार्य सौदेबाजी कानून’ के बाद जून, 2023 में मेटा और गूगल ने कनाडा के सभी मीडिया संस्थानों को अपने प्लेटफॉर्म से हटाने की घोषणा की। इस कानून के तहत कनाडा सरकार डिजिटल प्लेटफॉर्म चलाने वाली बड़ी टेक-कंपनियों को मजबूर करना चाहती है कि वे न्यूज कंटेंट के बदले मीडिया कंपनियों को भुगतान करें। कानून को मेटा और गूगल को ध्यान में रखकर ही बनाया गया है।

सवाल यह नहीं है कि कनाडा में आगे क्या होगा, बल्कि अधिक महत्वपूर्ण यह देखना है कि इसके पीछे कौन सी शक्तियां किस प्रकार से काम कर रही हैं। इन घटनाक्रमों पर नजर रखना कई अन्य कारणों से भी आवश्यक है। हम देख सकते हैं कि एक विदेशी टेक-कंपनी किसी संप्रभु देश की संसद को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकती है। इसका एक अन्य पहलू देशी-विदेशी पूंजीपतियों की आपसी प्रतिद्वंद्विता से जुड़ा हुआ है, जिसमें वे किसी देश की संसद को मोहरा बनाते हैं। इन पर नजर रखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भारत में संचालित बड़े मीडिया संस्थानों का संगठन ‘डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन’ ऐसा कानून बनवाने के लिए लॉबिंग कर रहा हैं[i] और भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री राजीव चन्द्रशेखर उनके एक कार्यक्रम में बता चुके हैं कि सरकार ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है।[ii] यह सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ राज्यों समेत कई यूरोपीय देशों में भी ऐसी तैयारी चल रही है।[iii] इस प्रकार यह एक वैश्विक मामला है।

कनाडा की सीनेट ने उपरोक्त कानून, ‘ऑनलाइन न्यूज एक्ट: सी-18’ को 22 जून, 2023 को पास किया।[iv] कनाडा के नियमों के अनुसार इस विधेयक को अमल में लाने में छह महीने लगेंगे। इस कानून के अनुसार टेक-कंपनियों को न्यूज कटेंट का भुगतान करने के लिए मीडिया-संस्थानों से ‘निष्पक्ष अैर न्यायसंगत’ मोल-भाव (सौदेबाजी) करना होगा। भुगतान की राशि दोनों पक्षों की आपसी बातचीत से तय होगी।

कनाडा की सीनेट में इसके पास होने के तुरंत बाद मेटा ने घोषणा की कि कानून लागू होने से पहले ही, यानी छह महीने के भीतर, फेसबुक और इंस्टाग्राम से सभी कनाडाई मीडिया संस्थानों को पूरी तरह ब्लॉक कर दिया जाएगा।[v] गूगल ने भी कहा कि कानून लागू होने से पहले सभी कनाडाई समाचारों के लिंक कंपनी के सभी संबंधित उत्पादों- ‘गूगल सर्च इंजन’, ‘गूगल सर्च’, ‘गूगल न्यूज’, ‘गूगल डिस्कवर’ तथा ‘गूगल न्यूज शोकेस’ से हटा दिए जाएंगे।[vi]

इस प्रकार मेटा और गूगल ने सीधे तौर पर कनाडा को धमकी दी है कि अगर उसकी संसद मेटा और गूगल के हितों को देखते हुए अपने कानून में बदलाव नहीं करती तो वे उसे अपनी ताकत के बल पर ऐसा करने के लिए मजबूर करेंगे।

ठीक यही वाकया आस्ट्रेलिया में फरवरी, 2021 में हुआ था। उस समय आस्ट्रेलिया की संसद में ‘समाचार मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म अनिवार्य सौदेबाजी कानून’ पास करने की प्रकिया चल रही थी।[vii] इस कानून के तहत भी टेक-कंपिनयों को मजबूर किया जाना था कि वे मीडिया संस्थानों को उनके कंटेंट के लिए भुगतान करें। यह इस तरह का दुनिया का पहला कानून था, जिसके बारे में कहा जा रहा था कि अगर यह सफल हुआ तो अन्य देश भी इसे लागू करेंगे।[viii]

कनाडा की ही तरह आस्ट्रेलिया में भी ऐसे कानून के लिए मीडिया संस्थानों ने सरकार से गुहार लगाई थी। उनका तर्क था कि बिग-टेक के प्लेटफार्मों (गूगल, फेसबुक आदि) पर उनके द्वारा उत्पादित खबरों के लिंक होते हैं, लेकिन उन्हें इसके बदले कुछ नहीं मिलता। जो विज्ञापन पहले उन्हें मिलते थे अब उसका अधिकांश हिस्सा बिग-टेक के पास जा रहा है। बिग-टेक उनके उत्पाद का मुफ्त इस्तेमाल कर कमाई कर रहा है।

बिग-टेक का कहना था कि इंटरनेट का बुनियादी सिद्धांत इसे मुफ्त होने तथा इसकी सर्वसुलभता पर टिका है। लिंक के लिए भुगतान करना इंटरनेट के इस बुनियादी नियम के विपरीत है। ऐसा करने पर इंटरनेट की दुनिया ठीक से काम ही नहीं कर सकेगी।[ix] साथ ही उनका कहना था कि यह कानून टेक-कंपनियों की स्वतंत्रता को बाधित करता है। इसलिए वे इस कानून को स्वीकार नहीं कर सकते।[x]

दरअसल, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर मीडिया संस्थान स्वेच्छा से अपने समाचारों के लिंक पोस्ट करते हैं ताकि उन लिंकों के सहारे पाठक/दर्शक उनकी बेवसाइट पर आएं। सामान्य उपभोक्ता भी अपनी पसंद की खबरों के लिंक इन प्लेटफार्मों पर शेयर करते हैं। मेटा का तर्क यह भी था कि चूंकि मीडिया संस्थान और अन्य उपभोक्ता स्वेच्छा से खबरें उनके प्लेटफार्म पर शेयर करते हैं, इसलिए उन्हें इसका भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। इसके अतरिक्त मेटा का कहना था कि फेसबुक की फीड में समाचारों की हिस्सेदारी तीन प्रतिशत से भी कम है[xi] जबकि वह मीडिया संस्थानों को इससे कई गुणा अधिक मुफ्त ट्रैफिक देता है।[xii]

इस संबंध में गूगल की स्थिति और भी मजबूत है। ऑनलाइन सर्च में गूगल की भागीदारी कनाडा में 93 प्रतिशत[xiii] और आस्ट्रेलिया में 95 प्रतिशत है।[xiv] भारत में गूगल सर्च इंजन की भागीदारी 99 प्रतिशत है।[xv] मुफ्त सर्च इंजन के अलावा, समाचार संबंधी उसकी मुफ्त सेवाएं पूरी दुनिया में समाचार-प्रदाता की वेबसाइट तक पहुंचने का सबसे बड़ा साधन है।

लेकिन यह भी सच है मेटा और गूगल को विज्ञापन से जो आमदनी होती है, उनमें इन समाचारों और लेखों की भूमिका होती है क्योंकि ये भी उसके ईको-सिस्टम का हिस्सा होते हैं। यह सामग्री उसे मुफ्त मिल जाती है। इन्हें उत्पादित करने वाले मीडिया संस्थान को उस आमदनी में से कोई हिस्सा नहीं मिलता। यह बात व्यक्तिगत पोस्टों पर भी लागू होती है।

बहरहाल, आस्ट्रेलिया में उपरोक्त कानून के पास होने से पहले ही फेसबुक ने वहां वह कर दिखाया, जिसकी धमकी वह कनाडा सरकार को दे रहा है। फेसबुक ने आस्ट्रेलिया के सभी मीडिया-संस्थानों को अपने प्लेटफार्म पर बैन कर दिया।[xvi] ऑस्ट्रेलिया के मीडिया संस्थान और वहां रह रहे लोग किसी खबर का लिंक न तो फेसबुक पर शेयर कर सकते थे, न ही देख सकते थे। वह कोविड महामारी का समय था। फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया की आपातकालीन स्वास्‍थ्‍य सेवाओं की वेबसाइटों को भी अपने प्लेटफॉर्म पर बैन कर दिया। मौसम विज्ञान ब्यूरो, पुलिस आपातकालीन सेवाओं की वेबसाइटें भी ब्लॉक कर दी गईं। इसके अतिरिक्त विभिन्न संगठनों और चैरिटी सेवाओं को भी बैन कर दिया गया। फेसबुक ने बाद में कहा कि मीडिया से इतर अन्य सेवाएं भूलवश ब्लॉक हो गई थीं, लेकिन अनेक स्रोत बताते हैं कि यह सब जान-बूझ कर किया गया था, जो दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा था।[xvii] ऑस्ट्रेलियाई नागरिक और सरकार फेसबुक पर विभिन्न सेवाओं के लिए निर्भर थे, इनके ब्लॉक हो जाने से चारों ओर हड़कंप मच गया और सरकार हांफने लगी।

गूगल ने भी आस्ट्रेलिया में अपना सर्च इंजन व समचार से संबंधित सभी सेवाएं बंद करने की धमकी दी थी, लेकिन फेसबुक द्वारा कदम उठा लिए जाने के कारण उसे यह करने की जरूरत ही नहीं पड़ी।[xviii]

फेसबुक की कार्रवाई से भौचक ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि “ऑस्ट्रेलिया को अनफ्रेंड करने और स्वास्‍थ्‍य व अन्य आपातकालीन सूचनाओं से संबंधित सेवाओं को बंद कर देने की फेसबुक की कार्रवाइयां जितनी अहंकारी हैं उतनी ही निराशाजनक भी हैं।” उन्होंने लिखा, “फेसबुक द्वारा अपनी ताकत का यह बेलगाम प्रदर्शन विभिन्न देशों की उन चिंताओं की पुष्टि करता है, जो वे बिग-टेक कंपनियों के व्यवहार के बारे में प्रदर्शित कर रहे हैं। ये कंपनियां सोचती हैं कि वे सरकारों से बड़ी हैं और उन पर कोई नियम लागू नहीं होता।”[xix] साथ ही उन्होंने कहा कि “हम अपनी संसद पर दबाव डालने की कोशिश करने वाली बड़ी तकनीकी कंपनियों से भयभीत नहीं होंगे। और इन दबावों के कारण प्रस्तावित कानून बदला नहीं जाएगा।”[xx] 

फेसबुक द्वारा अपने देश को‘अनफ्रेंड’ किए जाने के बाद स्कॉट मॉरिसन ने सबसे पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बातचीत की तथा इस मुद्दे पर ग्लोबल समर्थन जुटाने की अपील की। इससे संबंधित खबरें ऑस्ट्रेलियाई और भारतीय मीडिया में प्रसारित हुई थीं।[xxi] मॉरिसन और मोदी एक-दूसरे को अपना विश्वसनीय दोस्त कहते रहे हैं।[xxii] शायद सबसे पहले श्री मोदी को फोन करने का यही कारण रहा हो। अन्यथा भारत की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार टेक-कंपनियों पर लगाम लगाने के बहाने अपनी जनता की जुबान बंद करवाने के लिए कुख्यात रही है।[xxiii] बहरहाल, उस बातचीत में मोदी ने क्या कहा, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है, न ही इस बारे में कोई सूचना उपलब्ध है कि ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए भारत द्वारा कुछ किया गया।

अंतत: एक सप्ताह के अंदर ही ऑस्ट्रेलिया की सरकार को घुटने टेकने पड़े और प्रस्तावित कानून में संशोधन करने पर राजी होना पड़ा। संशोधित कानून में किसी भी खबर के टेक-कंपनियों के प्लेटफॉर्म पर दिखने पर संबंधित मीडिया कंपनी को भुगतान करने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई तथा टेक-कंपनियों को ही अधिकार दे दिया गया कि वे अपनी पसंद की छोटी-बड़ी मीडिया कंपनियों को समझौते के लिए चुन सकती हैं।[xxiv] अपनी शर्तों के माने जाने बाद फेसबुक ने आस्ट्रेलिया में साइटों को अनब्लॉक किया।[xxv]

इस समझौते के तहत फेसबुक और गूगल ने ऑस्ट्रेलिया के कुछ चुनिंदा मीडिया संस्थानों के साथ न्यूज कंटेंट के भुगतान के लिए समझौता किया। इन संस्थानों में से अधिकांश वैश्विक मीडिया-मुगल कहे जाने वाले रुपर्ट मर्डोक के स्वामित्व वाले हैं। आस्ट्रेलिया के मीडिया बाजार के तीन-चौथाई हिस्से पर मर्डोक के  न्यूज कॉरपोरेशन का कब्जा है।[xxvi] विभिन्न पड़तालों में पाया गया कि टेक-कंपनियों को न्यूज कंटेंट के बदले भुगतान करने के लिए कानून बनाने में रुपर्ट मर्डोक का न्यूज कॉरपोरेशन ही लॉबिंग कर रहा था।[xxvii] जाहिर है, इस पूरे ड्रामे में सबसे अधिक फायदा रुपर्ट मर्डोक को हुआ। रुपर्ट मर्डोक की कंपनियां कई देशों में इसके लिए लॉबिंग कर रही हैं।[xxviii]

नफरत बेचो, मुनाफ़ा कमाओ: फेसबुक की इंडिया स्‍टोरी और उससे आगे

यहां हम देखते हैं कि एक ओर जहां बड़ी टेक-कंपनियां दुनिया की किसी भी सरकार से अधिक ताकतवर हो गई हैं, जिनका मुकाबला करना किसी संप्रभु राष्ट्र के लिए भी मुश्किल हो गया है। वहीं दूसरी ओर जो कानून बनते हैं, उनके पीछे किसी निहित स्वार्थ वाले समूह की लॉबिंग काम कर रही होती है। लोकतंत्र के जिस चौथे खंभे को मजबूत करने के नाम पर इस तरह के कानून बनाए जाते हैं, उनका मकसद कुछ बड़े मीडिया संस्थानों को लाभ पहुंचाना होता है, चाहे वे कैसी भी पत्रकारिता कर रहे हों।

इसका एक पहलू यह भी है कि अच्छी पत्रकारिता करने वाले छोटे मीडिया संस्थानों को ऑस्ट्रेलिया या कनाडा जैसे कानूनों से लाभ होने की जगह नुकसान ही होता है। मसलन, ऑस्ट्रेलिया के उपरोक्त कानून के तहत प्रावधान है कि टेक-कंपनियों से भुगतान पाने के पात्र वे ही संस्थान होंगे जिनकी वार्षिक आमदनी 150000 कनाडाई डॉलर (लगभग एक करोड़ रूपये) से अधिक हो।[xxix] यानी, इस सौदेबाजी में छोटे मीडिया संस्थानों को पहले ही बाहर कर दिया गया था।

इसका एक अन्य पहलू यह है कि बड़े मीडिया संस्थान बिग-टेक द्वारा बैन कर दिए जाने के बावजूद अपना अस्तित्व बनाए रख सकते हैं, लेकिन छोटे मीडिया संस्थान इन प्लेफार्मों का सहारा लिए बिना नहीं चल सकते। उनकी बेवसाइटों पर आने वाला ट्रैफिक का अधिकांश हिस्सा वहीं से आता है। पिछले दो दशक में अनेक छोटे-छोटे मीडिया आउटलेट और वैकल्पिक विचारों वाली बेबसाइटें बिग टेक के सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के अल्गोरिद्म के सहारे उभरी हैं। पाठकों तक पहुंचने के लिए उनके पास यही एकमात्र माध्यम है। लिहाजा यदि टेक-कंपनियों और सरकार के बीच गतिरोध जारी रहता है और वे सभी मीडिया कंपनियों के लिंकों को ब्लॉक करना जारी रखती हैं तो अनेक छोटे आउटलेट बंद हो जाएंगे।

ऑस्ट्रेलिया में इससे संबंधित कानून में संशोधन के बाद मीडिया कंपनियों और टेक कंपनियों के बीच हुए समझौते के दो वर्ष बीत जाने के बाद जो नतीजा सामने आया है, वह चौंकाने वाला था। मेलबर्न स्थित स्विनबर्न टेक्नॉलॉजी यूनिवर्सिटी की मीडिया और कम्युनिकेशन की एसोसिएट प्रोफेसर डायना बोसियो ने ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न समाचार संस्थानों से बातचीत कर समझौते के प्रभाव को जानने की कोशिश की। उन्होंने पाया कि ऑस्ट्रेलिया के छोटे, स्वतंत्र मीडिया संस्थानों में निवेश और प्रतिभाशाली कर्मचारियों की कमी होती जा रही है क्योंकि वे बड़े मीडिया समूहों के पास जा रहे थे जिन्हें नए कानून के तहत फंडिंग मिलने की अधिक संभावना थी।

इसके अतिरिक्त यह भी देखा गया कि टेक कंपनियां सौदेबाजी से बचने के लिए ऐसे करार कर रही हैं जिससे मीडिया संस्थान स्वतंत्र पत्रकारिता की जगह अनुदान-आधारित पत्रकारिता करने के लिए बाध्य हो रहे हैं। उन्हें ऐसी पत्रकारिता की ओर धकेला जा रहा है, जो टेक-कंपनियों की व्यावसायिक प्राथमिकताओं के अनुरूप हों। कानून बनाए जाने के समय कहा गया था कि इससे सार्वजनिक हित की पत्रकारिता को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन जो परिणाम सामने आए हैं उनसे संकेत मिलता है कि टेक कंपनियां मीडिया संस्थानों से अपनी व्यावसायिक प्राथमिकताओं के सर्वोत्तम हित में कार्य करवाने में सफल हो रही हैं।[xxx]

बहरहाल, कनाडा से जो खबरें आ रही हैं उनसे आभास होता है कि जो-जो चीजें ऑस्ट्रेलिया में हुईं, वही वहां भी हो रही हैं। ऑस्ट्रेलिया में जहां रुपर्ट मर्डोक का न्यूज कॉरपोरेशन लॉबिंग कर रहा था तो कनाडा में इससे संबंधित बिल लाने के लिए मीडिया कंपनियों का संगठन ‘न्यूज़ मीडिया कनाडा’ लॉबिंग कर रहा था।[xxxi] कनाडा के कानून में छोटे मीडिया संस्थानों को भी शामिल किया गया है। इसके दायरे में दो या दो से अधिक कर्मचारियों वाले ‘योग्य समाचार–व्यवसाय’ आएंगे, लेकिन ‘योग्य समाचार–व्यवसाय’ की कोई परिभाषा तय नहीं की गई है। इसका नतीजा यह होगा कि वे समाचार संस्थान भी इसके पात्र होंगे जो पत्रकारिता के बुनियादी मानकों का पालन नहीं करते हैं।[xxxii] वास्तव में, कनाडा में भी ऑस्ट्रेलिया की तरह स्वतंत्र और अच्छी पत्रकारिता करने वाले छोटे न्यूज संस्थानों को फायदा की जगह नुकसान होने की आशंका है।

न्यूजरूम में बॉट: भविष्य की पत्रकारिता का एक अपरिहार्य दु:स्वप्न

जैसा कि कनाडा के ओटावा विश्वविद्यालय में इंटरनेट और ई-कॉमर्स कानून के प्रोफेसर माइकल गीस्ट लिखते हैं, फेसबुक द्वारा कनाडाई समाचार माध्यमों के लिंक शेयर करने से रोका जाना से “छोटे और स्वतंत्र मीडिया संस्थानों को असंगत रूप से नुकसान पहुंचाएगा और मीडिया के क्षेत्र को खराब गुणवत्ता वाले स्रोतों पर छोड़ देगा।”[xxxiii]

इंटरनेट को खुला, किफायती और सर्विलांस से मुक्त रखने के लिए काम करने वाले कनाडा के संगठन ‘ओपन मीडिया’ के निदेशक मैट हैटफील्ड भी कहते हैं कि “बिल सी-18 स्वतंत्र समाचार आउटलेट्स को सहायता प्रदान करने के बजाय पुराने राष्ट्रव्यापी मीडिया आउटलेट्स को ही फंडिंग को बढ़ावा देगा। इसके तहत छोटे स्थानीय आउटलेट्स को बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया जाएगा।”[xxxiv] वे यह भी ध्यान दिलाते हैं कि इस पूरी प्रकिया में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे बंद हो चुके कनाडाई समाचार संस्थानों के फिर से शुरू होने की कोई संभावना हो। बिल में बड़ी मीडिया कंपनियों को बाध्य भी नहीं किया गया है कि जो धन मिलेगा, उसे वे सार्वजनिक हित की रिपोर्टिंग पर ही खर्च करें, बल्कि यह बिल उन्हें पैसे को अनुचित तरीके खर्च करने के लिए प्रोत्साहित करता है।[xxxv]

वे कहते हैं इस बिल का परिणाम होगा कि मीडिया कंपनियां उच्च गुणवत्ता वाली, अच्छी तरह से शोध की गई खोजी रिपोर्टिंग की जगह उन खबरों पर ध्यान देंगी जिनको डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर अधिक क्लिक मिल सकें और जो अधिक से अधिक से शेयर की जाएं। इस प्रकार यह बिल खराब गुणवत्ता वाली क्लिकबेट[xxxvi] पत्रकारिता को प्रोत्साहित करेगा।[xxxvii] इतना ही नहीं, ऐसे कानून किसी भी देश की पत्रकारिता को दो अमेरिकी कंपनियों- मेटा और गूगल- के रहमो-करम पर अधिक से अधिक निर्भर कर देंगे।

ये सारे तथ्य और आशंकाएं इस ओर इशारा करते हैं कि बिग-टेक को काबू में करना किसी एक देश के बूते नहीं रह गया है। उनसे कानूनों का पालन करवाने के लिए अंतर्देशीय स्तर पर एका बनाने की जरूरत है। इसी तरह यह भी स्पष्ट होता है कि अच्छी पत्रकारिता को बचना और बढ़ावा देना न सरकारों के भरोसे हो सकता है, न ही टेक कंपनियों को मीडिया कंपनियों को भुगतान करने के लिए बाध्य करने वाले आस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे कानूनों के माध्यम से यह संभव है। वस्तुत: सिर्फ बिग-टेक पर ध्यान केंद्रित करने के स्थान पर विज्ञापनदाताओं के लिए भी कानून बनाए जाने चाहिए। इस कानून के तहत हर बड़े विज्ञापनदाता को अपने विज्ञापन बजट का एक निश्चित प्रतिशत सीधे मीडिया संस्थानों को देने का प्रावधान होना चाहिए। इसमें छोटे, मंझोले और बड़े मीडिया संस्थानों के लिए अलग-अलग प्रतिशत निर्धारित हो।

अगर कोई भी देश  टेक-कंपनियों द्वारा ‘समाचार के लिए भुगतान’ से संबंधित कानून बनाता है तो उसे निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  •  मीडिया संस्थानों को मदद करने वाला कानून बनाते समय अच्छी पत्रकारिता करने वाले छोटे समूहों के हितों को प्रमुख मानना चाहिए। इन समूहों को कानून-निर्माण की प्रकिया में विशेष तौर पर शामिल किया जाना चाहिए और इनके मतों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • इन कानूनों में ऐसे प्रावधान हों जिससे टेक-कंपनियां मीडिया संस्थानों को अपने एजेंडे पर चलने के लिए प्रेरित या विवश न कर सकें।

पत्रकार व शिक्षाविद् प्रमोद रंजन की दिलचस्पी सबाल्टर्न अध्ययन और  तकनीक के समाजशास्त्र में है। संप्रति, असम विश्वविद्यालय के रवीन्द्रनाथ टैगोर स्कूल ऑफ लैंग्वेज एंड कल्चरल स्टडीज में सहायक प्रोफेसर हैं, संपर्क: janvikalp@gmail.com]

स्रोत और संदर्भ:


[i] “Global Virtual Roundtable on ‘Decoding the Publisher-Platform Relationship’ on December 09, 2022.” Digital News Publishers Association (DNPA), https://www.dnpa.co.in/news.php?slug=global-virtual-roundtable-on-decoding-the-publisher-platform-relationship-on-december-09-2022. Accessed 29 June 2023.

[ii] “Big Tech Needs to Pay News Publishers for Content: Govt.” The Indian Express, 21 Jan. 2023, https://indianexpress.com/article/business/economy/big-tech-needs-to-pay-news-publishers-for-content-govt-8394838/.

[iii] Ding, Jaimie. “California Bill Would Force Big Tech to Pay for News Content.” Los Angeles Times, 22 Mar. 2023, https://www.latimes.com/business/story/2023-03-22/california-bill-would-force-big-tech-to-pay-for-news-content.

[iv] Parliament of Canada. An Act Respecting Online Communications Platforms That Make News Content Available to Persons in Canada. C–18, 22 June 2023, https://www.parl.ca/legisinfo/en/bill/44-1/c-18.

[v]  “Changes to News Availability on Our Platforms in Canada.” Meta, 22 June 2023, https://about.fb.com/news/2023/06/changes-to-news-availability-on-our-platforms-in-canada/

[vi] Walker, Kent. “An Update on Canada’s Bill C-18 and Our Search and News Products.” Google Canada Blog, 29 June 2023, https://blog.google/intl/en-ca/company-news/outreach-initiatives/an-update-on-canadas-bill-c-18-and-our-search-and-news-products/

[vii] Parliament of Australia. News Media and Digital Platforms Mandatory Bargaining Code Bill 2021. https://www.aph.gov.au/Parliamentary_Business/Bills_Legislation/Bills_Search_Results/Result?bId=r6652. Accessed 29 June 2023.

[viii] “Facebook and Google News Law Passed in Australia.” BBC News, 25 Feb. 2021, https://www.bbc.com/news/world-australia-56163550.

[ix] Cerf, Vint. “A Fair Code for an Open Internet.” Google Australia, 23 Nov. 2020, https://blog.google/around-the-globe/google-asia/australia/fair-code-open-internet/.

[x] “8 Facts about Google and the News Media Bargaining Code.” Google Australia, 22 Jan. 2021, https://blog.google/around-the-globe/google-asia/australia/8-facts-about-google-and-news-media-bargaining-code/.

[xi] “Sharing Our Concerns With Canada’s Online News Act.” Meta, 21 Oct. 2022, https://about.fb.com/news/2022/10/metas-concerns-with-canadas-online-news-act/.

[xii] Geist, Michael. Made-in-Canada Internet Takes Shape with Risks of Blocked Streaming Services and News Sharing as Bill C-18 Receives Royal Assent. 23 June 2023, https://www.michaelgeist.ca/2023/06/made-in-canada-internet-takes-shape-with-risks-of-blocked-streaming-services-and-news-sharing-as-bill-c-18-receives-royal-assent/.

[xiii] “Search Engine Market Share Canada.” StatCounter Global Stats, https://gs.statcounter.com/search-engine-market-share/all/canada. Accessed 2 July 2023.

[xiv] Search Engine Market Share Australia. (n.d.). StatCounter Global Stats. Retrieved July 2, 2023, from https://gs.statcounter.com/search-engine-market-share/all/australia

[xv] “Search Engine Market Share India.” StatCounter Global Stats, https://gs.statcounter.com/search-engine-market-share/all/india. Accessed 12 July 2023.

[xvi] “Changes to Sharing and Viewing News on Facebook in Australia.” Meta, 17 Feb. 2021, https://about.fb.com/news/2021/02/changes-to-sharing-and-viewing-news-on-facebook-in-australia/.

[xvii] Hagey, Keach, et al. “Facebook Deliberately Caused Havoc in Australia to Influence New Law, Whistleblowers Say.” Wall Street Journal, 5 May 2022, https://www.wsj.com/articles/facebook-deliberately-caused-havoc-in-australia-to-influence-new-law-whistleblowers-say-11651768302.

[xviii] Silva, Mel. “Mel Silva’s Opening Statement to the Senate Economics Committee Inquiry.” Google, 22 Jan. 2021, https://blog.google/around-the-globe/google-asia/australia/mel-silvas-opening-statement/.

[xix] Meade, Amanda. “Prime Minister Scott Morrison Attacks Facebook for ‘arrogant’ Move to ‘Unfriend Australia.’” The Guardian, 18 Feb. 2021, https://www.theguardian.com/technology/2021/feb/18/prime-minister-scott-morrison-attacks-facebook-for-arrogant-move-to-unfriend-australia.

[xx] “Australia Will Not Be Intimidated by Facebook ‘Unfriending’ It, Says Scott Morrison.” The Independent, 19 Feb. 2021, https://www.independent.co.uk/news/world/australasia/facebook-australia-news-blocked-morrison-b1804058.html.

[xxi] Visentin, David Crowe, Lisa. “‘We Will Not Be Intimidated’: PM Takes Facebook Fight to India and the World.” The Sydney Morning Herald, 18 Feb. 2021, https://www.smh.com.au/politics/federal/we-will-not-be-intimidated-pm-takes-facebook-fight-to-india-and-the-world-20210218-p573se.html.

[xxii] Morrison, Scott [ @ScottMorrisonMP]. “Great to meet with my good friend and a great friend of Australia, Indian PM Narendra Modi..”.  Twitter, Sep 24, 2021, https://twitter.com/ScottMorrisonMP/status/1441160214992982019

[xxiii] Ranjan, Pramod. “Curbs on Social Media Are Meant to Gag the People.” Free Speech Collective (FSC), 10 Mar. 2021, https://hcommons.org/deposits/item/hc:47379/.

[xxiv] “Facebook Reverses Ban on News Pages in Australia.” BBC News, 23 Feb. 2021, https://www.bbc.com/news/world-australia-56165015.

[xxv] Choudhury, Saheli Roy. “Facebook Cuts Deal with Australia, Will Restore News Pages in the Coming Days.” CNBC, 23 Feb. 2021, https://www.cnbc.com/2021/02/23/facebook-to-restore-news-pages-for-australian-users-in-coming-days.html.

[xxvi] Whiteman, Hilary. “Australian Lawmakers Blast Murdoch’s ‘troubling Media Monopoly’ in New Report | CNN Business.” CNN, 9 Dec. 2021, https://www.cnn.com/2021/12/09/media/australia-murdoch-media-diversity-intl-hnk/index.html.

[xxvii] “Facebook to Pay News Corp for Content in Australia.” BBC News, 16 Mar. 2021, https://www.bbc.com/news/world-australia-56410335.

[xxviii] Birnbaum, Emily. “News Corp Beefs Up Lobbying Corps With Senate Aide Hire.” Bloomberg.Com, 2 Nov. 2022, https://www.bloomberg.com/news/articles/2022-11-02/news-corp-hires-senate-aide-to-bolster-big-tech-fight.

[xxix] The Associated Press. “Facebook to Restore Australian News Pages after Deal Reached to Amend Proposed Law | CBC News.” CBC, 23 Feb. 2021, https://www.cbc.ca/news/world/facebook-ban-australia-1.5924076

[xxx] Bossio, Diana. “Analysis | Canada’s Online News Act May Let Meta and Google Decide the Winners and Losers in the Media Industry.” Toronto Star, 27 June 2023, https://www.thestar.com/news/canada/2023/06/27/canadas-online-news-act-may-let-meta-and-google-decide-the-winners-and-losers-in-the-media-industry.html.

[xxxi] Geist, Michael. “How Did News Media Canada Get Bill C-18? The Lobbying Records Tell the Story.” Broadcast Dialogue, 19 Apr. 2022, https://www.michaelgeist.ca/2022/04/how-did-news-media-canada/.

[xxxii] Geremia, Sabrina. “Our Concerns with Bill C-18, the Online News Act.” Google Canada Blog, 16 May 2022, https://blog.google/intl/en-ca/our-concerns-with-bill-c-18-the-online-news-act/.

[xxxiii] Geist, Michael [@mgeist]. “Seeing some suggest that somehow!” Twitter, 23 June 2013, https://twitter.com/mgeist/status/1672009017227374595?

[xxxiv] “Deeply Flawed Online News Bill C-18 Passes without Key Fixes.” OpenMedia, https://openmedia.org/press/item/deeply-flawed-online-news-bill-c-18-passes-without-key-fixes. Accessed 29 June 2023.

[xxxv] वही

[xxxvi] क्लिकबेट उस टेक्‍स्‍ट या थंबनेल लिंक को कहते हैं जिसके माध्यम से किसी को ऑनलाइन सामग्री को  पढ़ने, देखने या सुनने के लिए लुभाया जाता है। यह आमतौर पर भ्रामक और सनसनीखेज होता है, जिससे अधिक से अधिक लोग संबंधित लिंक को क्लिक करने के लिए उत्सुक हो जाते हैं। ऑनलाइन पत्रकारिता की दुनिया में कई ऐसी वेबसाइटें हैं जो पत्रकारों और लेखकों को उनके लेखन पर मिले क्लिक के आधार पर भुगतान करती हैं। यह क्लिकबेट पत्रकारिता का सबसे बुरा प्रभाव है। इससे लेखक अपने लेखन में गुणवत्ता के स्थान पर सनसनीखेज तत्वों को प्रधानता देने लगता है, जिससे उसे अधिक क्लिक मिले।

[xxxvii] “Deeply Flawed Online News Bill C-18 Passes without Key Fixes.” OpenMedia, https://openmedia.org/press/item/deeply-flawed-online-news-bill-c-18-passes-without-key-fixes. Accessed 29 June 2023.


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