26 जनवरी स्‍पेशल: क्रांति कैसे आएगी…

संबोधनों पर न जाएं, जो बात कही जा रही है उसमें वज़न है। गणतंत्र दिवस पर इस किस्‍म के प्रेरणादायक भाषण सुनना बहुत ज़रूरी है। शॉट फिल्‍म ‘गुलाल’ से है। …

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प्रेतलीला का वक्‍त हो चला है: अरुंधती रॉय

अरुंधती रॉय ये मकान है या घर? नए हिंदुस्‍तान का कोई तीर्थ है या फिर प्रेतों के रहने का गोदाम?मुंबई के आल्‍टामाउंट रोड पर जब से एंटिला बना है, अपने …

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कॉरपोरेट प्रायोजित जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के खिलाफ एक अपील

पिछले साल की तरह इस साल भी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजकों और प्रतिभागियों ने बरबाद हो रहे पर्यावरण, मानवाधिकारों के घिनौने उल्लंघन और इस आयोजन के कई प्रायोजकों द्वारा …

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कच्‍छ कथा-5: इस शहर को मौत चाहिए

सरकारी एकाधिकार का बुलंद झंडा अगली सुबह ठीक नौ बजे तैयार होकर हम निकल पड़े लखपत की ओर। सोचा सुबह की पेटपूजा रास्‍ते में कहीं कर लेंगे। नखतराणा से पहले …

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कच्‍छ कथा-3: कच्‍छी समाज की घुटन के पार

बिन छाछ सब सून  … तो अपने सफ़र की पहली रात हमने लालजी के परिवार के साथ गुज़ारी। रात के खाने में लालजी की घरवाली ने बाजरे की रोटी, डोकरा …

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कच्‍छ कथा-1: थोड़ा मीठा, थोड़ा मीठू

गुजरात की सरकार पिछले कई दिनों से एक विज्ञापन कर रही है जिसमें परदे पर अमिताभ बच्‍चन कहते हैं, ”जिसने कच्‍छ नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा”। आप अमिताभ बच्‍चन …

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माज़ी से दामन मेरा अटका सौ-सौ बार…

एक छोटा सा शेर कैसे-कैसे और किन-किन संदर्भों में लागू हो सकता है, उसकी ताज़ा मिसाल 1 जनवरी 2012 को मेरे साथ हुई दुर्घटना है। ये बताने से पहले कि …

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