निज़ामी बंधुओं की आवाज़ में कुन फ़याकुन लाइव


बीती जुमे रात यानी 24 नवंबर को कव्‍वाल चांद निज़ामी और उनके भाइयों ने हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर रॉकस्‍टार की मशहूर कव्‍वाली कुन फ़याकुन की विशेष प्रस्‍तुति की।

चांद निज़ामी और उनके दो भाइयों को आपने रॉकस्‍टार वाली कव्‍वाली में स्‍क्रीन पर तो देखा होगा, लेकिन आवाज़ उनकी नहीं थी। कैसा लगता है एक कव्‍वाल को जब उसे कोई और आवाज़ दे, वो भी दरगाह के सामने शूट की गई एक कव्‍वाली पर ? ये सवाल हम चांद भाई से एक दिन ज़रूर पूछेंगे, लेकिन इसे हमारी बदकिस्‍मती ही कहिए कि इससे पहले पेश की गई सारी कव्‍वालियां रिकॉर्ड हो गईं, पर फ़याकुन की बारी आने से ऐन पहले कैमरे की बैटरी ने दम तोड़ दिया।

एक मोबाइल ही बचा था, लेकिन आधे रास्‍ते में वो भी बोल गया। जो कुछ बचा खुचा था, मैंने उसे जोड़-जाड़ कर दिखाने की कोशिश की है और यू-ट्यूब पर अपलोड कर दिया है।

उसका लिंक मैं यहां डाल रहा हूं।

फिल्‍मी कव्‍वाली और इस लाइव कव्‍वाली में एक फर्क पैदा करने के लिए मैंने शुरू की पांच लाइनें फिल्‍म से ली हैं और उसके बाद लाइव का ट्रांजीशन है। खराब रिकॉर्डिंग और तकरीबन ना के बराबर एडिटिंग के बावजूद चांद बंधुओं की आवाज़ को सुनकर एक पुरानी कहावत का मतलब ज़रूर समझ में आ जाता है… जिसका काम उसी को साजे।

और हां, एक आखि़री और ज़रूरी बात… सारी रामायण खत्‍म हो जाने के बाद ज्ञान हुआ कि जिसे हम इतने दिनों से ‘फ़ायाकुन’ कहते आ रहे हैं, वो दरअसल ‘फ़याकुन’ है। ‘फ़’ और ‘य’ के बीच ‘आ’ कार नहीं है। इस जानकारी के लिए मैं असमा सलीम जी को शुक्रिया देना चाहूंगा जिन्‍होंने वक्‍त रहते मुझे दुरुस्‍त कर दिया। मैंने अपनी पिछली पोस्‍ट में इसे ठीक कर दिया है, लेकिन अख़बार में जो छप गया उसके लिए अफ़सोस ही जताया जा सकता है।
  

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