फ़याक़ुन का जादूगर


हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह: जो है तुझमें समाया वो है मुझमें समाया

या निज़ामुद्दीन औलिया, या निज़ामुद्दीन सरकार
कदम बढ़ा ले, हदों को मिटा ले
आ जा खालीपन में पी का घर तेरा
तेरे बिन खाली आजा खालीपन में
रंगरेज़ा, रंगरेज़ा
रंगरेज़ा, रंगरेज़ा

हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया पर लिखी गई फि़ल्‍मी कव्‍वालियों में सबसे खूबसूरत कव्‍वाली की ये पंक्तियां है। बताने की ज़रूरत नहीं कि रॉकस्‍टार फिल्‍म में अगर कुछ भी देखने लायक है तो यही एक कव्‍वाली है। मेरे अधिकतर मित्रों को लगता है कि पूरी फिल्‍म में से अगर इस कव्‍वाली के सीक्‍वेंस को निकाल दिया जाए तो फिल्‍म में जो मैजिक का एक एलेमेंट है, वो खत्‍म  हो जाएगा। जब ये सीक्‍वेंस आता है, तो ऐसा लगता है कि नंगी आंखों से दरगाह जितनी खूबसूरत दिखती है, उसे सौ गुना खूबसूरत बना दिया है कैमरे ने। क्‍या ये इम्तियाज़ अली का जादू है… या फिर उनके कैमरामैन का। क्‍या ये कामिल के बोल हैं या रहमान का संगीत… फ़याकुन का जादू कहां से पैदा होता ?

आइए आपको मिलाते हैं इस मैजिक के पीछे खड़े शख्‍स से जिसका नाम है सैयद अफ़सर अली निज़ामी। निज़ामी साहब दरगाह के इनचार्ज हैं। पिछले साढ़े सात सौ साल से इनका खानदान दरगाह की सेवा करता आ रहा है। हज़रत निज़ामुद्दीन की बहन के खानदान से आते हैं निज़ामी साहब। दरगाह की गद्दी पर बैठे हुए करीब दो दशक होने को आए। पाकिस्‍तानी मंत्री  हिना रब्‍बानी खार की जि़यारत हो या रॉकस्‍टार की शूटिंग, सब कुछ निज़ामी साहब की मंज़ूरी से होता है। और अगर आज फ़याक़ुन हमारे सामने है, तो इन्‍हीं के चलते, वरना इम्तियाज़ अली ने जो ग़लती की थी, वो कभी यहां शूट नहीं कर पाते।

सैयद अफ़सर अली निज़ामी: फ़याक़ुन का जादूगर

निज़ामी साहब बताते हैं कि जब उन्‍होंने पहले पहल ये कव्‍वाली सुनी तो इसमें हज़रत औलिया का नाम ही नहीं था। उन्‍होंने सख्‍त एतराज़ जताया और इम्तियाज़ को कहा कि वो  तुरंत रहमान को एसएमएस कर के कहें कि इसमें औलिया का नाम डाला जाए। बताते चलें कि रहमान जब ऑस्‍कर जीत कर आए थे तो दरगाह में उनकी जि़यारत का प्रबंध भी निज़ामी साहब की मंज़ूरी से ही हुआ था। ऐसे कितने ही बड़े लोग हैं जो अफ़सर निज़ामी के पास आते हैं, लेकिन निज़ामी बरसों से दरगाह के पिछले हिस्‍से में छोटे से कमरे की उसी गद्दी पर बैठे हैं जहां कभी उनके वालिद टीकरी वाले बाबा बैठा करते थे।

निज़ामी की बात को इनकार करना इम्तियाज़ के लिए नामुमकि़न था। कव्‍वाली की शुरुआत में ही निज़ामुद्दीन औलिया का नाम डाला गया। इसके बाद खुद अफ़सर साहब ने अलग-अलग एंगल से चार रात लगातार इस कव्‍वाली को शूट करवाया।

वो बताते हैं कि दरगाह पर कव्‍वाली करने वालों में चांद कव्‍वाल बहुत पुराने हैं। आपको स्‍क्रीन पर जो कव्‍वाल दिखाई देते हैं, उनके पीछे भले ही मोहित चौहान, रहमान और जावेद अली की आवाज़ हो, लेकिन चेहरे वही पुराने हैं जिन्‍हें दरगाह पर आने वाले बखूबी पहचानते हैं। अफ़सर साहब ने चांद कव्‍वाल से कहा था कि वे कभी उन्‍हें फिल्‍मों में काम दिलाएंगे। उन्‍होंने अपना वादा पूरा किया।

ये बात अलग है कि न तो इम्तियाज़ ने और न ही किसी और ने आज तक अफ़सर अली निज़ामी का कहीं भी जि़क्र किया। निज़ामी को इसका अफ़सोस भी नहीं। वे कहते हैं कि पब्लिसिटी से जितना दूर रहें, बेहतर है।

ऐसा अक्‍सर होता है कि परदे के पीछे रहने वालों से हमारी मुलाकात नहीं हो पाती और खूबसूरत चीज़ों की क्रेडिट कोई और ले जाता है। ज़ाहिर है, जो चीज़ों को ख़ूबसूरत बनाते हैं उनके पास वक्‍त ही कहां कि वे अपनी फि़क्र कर सकें।

फ़याकुन का अर्थ भी निज़ामी सा‍हब ने ही खोला। क़ुन का अर्थ होता है ”तथास्‍तु” यानी ऐसा ही हो। लिहाज़ा फ़याक़ुन का अर्थ्‍ हुआ ”हो गया” यानी जैसा चाहा था वही हो गया। बहरहाल, फ़याक़ुन के साथ कई और राज़ खोलते चलते हैं निज़ामी साहब, लेकिन फैज़ कहते हैं ना… ”इश्क़ दिल में रहे तो रुस्वा हो/ लब पे आए तो राज़ हो जाए” ।

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