कच्‍छ कथा-3: कच्‍छी समाज की घुटन के पार

बिन छाछ सब सून  … तो अपने सफ़र की पहली रात हमने लालजी के परिवार के साथ गुज़ारी। रात के खाने में लालजी की घरवाली ने बाजरे की रोटी, डोकरा …

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कच्‍छ कथा-1: थोड़ा मीठा, थोड़ा मीठू

गुजरात की सरकार पिछले कई दिनों से एक विज्ञापन कर रही है जिसमें परदे पर अमिताभ बच्‍चन कहते हैं, ”जिसने कच्‍छ नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा”। आप अमिताभ बच्‍चन …

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माज़ी से दामन मेरा अटका सौ-सौ बार…

एक छोटा सा शेर कैसे-कैसे और किन-किन संदर्भों में लागू हो सकता है, उसकी ताज़ा मिसाल 1 जनवरी 2012 को मेरे साथ हुई दुर्घटना है। ये बताने से पहले कि …

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एक ग़ुमनाम कवि की कालजयी कविता

 नेल्‍सन मंडेला कभी-कभार कुछ रचनाएं कालजयी हो जाती हैं जो बरसों तक व्‍यक्तियों और राष्‍ट्रों के लिए प्रेरणा का काम करती हैं। ”इनविक्‍टस” ऐसी ही एक कविता है, जिसे अंग्रेज़ …

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अस्‍सी में काशी, अकादमी में रग्‍घू

काशीनाथ सिंह काशीनाथ सिंह यानी अस्‍सी के काशी को 2011 का साहित्‍य अकादमी मिल गया, ये अपने आप में अगर बड़ी नहीं तो दिलचस्‍प बात ज़रूर है। अव्‍वल तो साहित्‍य …

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बनारस: एक भ्रम, एक सवाल, एक उधार

मैं पांच दिन के बाद बनारस से लौट रहा हूं। ठीक पांच दिन पहले बनारस लौटा था। दोनों ही स्थितियों में फर्क है। मन:स्थिति का फर्क। जब तीन बरस बाद …

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तीन साल बाद बनारस: फिर बैतलवा डाल पर

आज रात 12 बजे मैं पटना से मुग़लसराय अपने तीन साथियों के साथ पहुंचा। मुग़लसराय को कभी बनारस से जुदा नहीं मान सका, सो गिरते ही चाय पीकर सबसे पहले …

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