राजस्थान विधानसभा चुनाव: कांटे की टक्कर में कांग्रेस-भाजपा


इस नवम्बर में पांच राज्यों के विधानसभा के होने वाले चुनाव में राजस्थान अति महत्वपूर्ण हो गया है जहां नामांकन पत्र भरने की प्रक्रिया आज से शुरू हो रही हे और 6 नवम्बर तक जारी रहेगी। यहां वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा का निशाना प्रदेश में चुनाव जीत  कर 2024 के लक्ष्य को साधना है और अपनी घटती लोकप्रियता को बचाना भी है!

2018 में राजस्थान ने विधानसभा चुनावों में अपनी चुनावी  परम्परा के अनुरूप ही मतदान किया और सत्ता का बदलाव किया। कांग्रेस को प्रदेश में सरकार बनाने का अवसर मिला। कांग्रेस ने प्रदेश विधानसभा की 200 में से 100 सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन पूर्ण बहुमत से केवल एक सीट पीछे रह गयी थी। कांग्रेस में गुटबाज़ी तब भी कम नहीं थी, लेकिन प्रदेश में युवा नेतृत्व सचिन पायलट की अथक मेहनत ने कांग्रेस को सफलता की राह दिखाई थी। अबकी बार कांग्रेस के सामने प्रदेश में चुनावी परम्परा को तोड़ने की चुनौती है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार की योजनाओं व खुद के किए कामों को लेकर आश्वस्त हैं कि प्रदेश में दोबारा कांग्रेस की जीत होगी। दूसरी ओर भाजपा  2024 के लोकसभा चुनाव से पहले फिर से अपनी राजनीतिक  जमीन हासिल करने की भरपूर कोशिश में है। भाजपा के लिए  राजस्थान की 25 लोकसभा सीटें 2024 में केंद्र में अपनी सत्ता बनाने के लिए अतिमहत्वपूर्ण हैं। 

पिछले चुनावों में दोनों दलों के बीच वोट प्रतिशत का अंतर बहुत कम था। कांग्रेस को कुल मतदान का 39.06 प्रतिशत मत मिला जबकि भाजपा को 38.56 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। केवल 0.50  प्रतिशत के अंतर से  भाजपा को लगभग 90 सीटों पर हार मिली। भाजपा ने 2013 के विधानसभा चुनाव में 45.17 मत प्रतिशत प्राप्त कर के 163 सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन  2018 में यह 73 सीटों पर सिमट गयी। कांग्रेस ने अपनी स्थिति में 79 सीटों का इजाफा तो किया, लेकिन बहुजन समाज पार्टी के सहयोग से प्रदेश में सरकार का गठन किया। 

राजस्थान के 2023-24  वित्तीय बजट सत्र के दौरान 19 नए जिलों व 3 संभागों के गठन के साथ अब कुल 50 जिले हो गए हैं जो 10 संभागों के तहत आते हैं। कांग्रेस के मुख्यमंत्री गहलोत सरकार के कार्यकाल में नए जिलों का गठन किया गया है। भौगोलिक व सांस्कृतिक रूप से राजस्थान के कई क्षेत्रों की अलग-अलग पहचान अपने क्षेत्रीय  नाम से भी है जहां मतदाता की पसंद स्थानीय सामाजिक समीकरण से प्रेरित रहती है! कुछ क्षेत्र जहां स्थिर माने जाते हैं वहीँ अन्य क्षेत्र बदलाव के लिए जाने जाते हैं। 

दक्षिणी राजस्थान का मेवाड़ वागड़ का इलाका उदयपुर, राजसमंद, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़ , डूंगरपुर, बांसवाड़ा का क्षेत्र है जहां 28 सीटें हैं (उदयपुर 8, राजसमंद 4, प्रतापगढ़ 2, चित्तौड़गढ़ 5, डूंगरपुर 5, बांसवाड़ा 4)। यहां अधिकतर सीटों पर भाजपा के उम्‍मीदवार ही जीत प्राप्त करते हैं लेकिन अब एक नई प्रतिद्वंदी भारत ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) भी वहां मैदान में है। यह क्षेत्र भाजपा के कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है। गिरिजा व्यास  के अलावा वहां से कांग्रेस के बड़े नेता सीपी जोशी का बड़ा नाम उभरता है जो वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष हैं। इस क्षेत्र में कांग्रेस के लिए जीत की कभी बड़ी उपलब्धि नहीं मिली। 

हाड़ौती  राजस्थान में धुर दक्षिणी इलाका है जो भीलवाड़ा, बूंदी, कोटा, बारां, झालावाड़ का क्षेत्र है। यहां विधानसभा की  23 सीटें हैं (भीलवाड़ा 6, बूंदी 3, कोटा 6,  बारां 4, झालावाड़ 4)। यह क्षेत्र अखिल भारतीय रामराज्य परिषद का क्षेत्र है जो पारम्परिक रूप से जनसंघ के समय से ही भाजपा का गढ़ माना जाता है। राजस्थान के भूतपूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने भी यही (छाबरा, बारां) से जीत हासिल कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे सिंधिया का चुनावी क्षेत्र झालावाड़ का झालरापाटन है। यहां कांग्रेस के लिए कड़ी चुनौती रहेगी। 

धुंधाड़ क्षेत्र जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली, दौसा को माना जाता है जहां विधानसभा की 36 सीटें हैं (जयपुर 19, दौसा 5, करौली 4, सवाई माधोपुर 4,  टोंक 4)। चाँद बावड़ी का यह क्षेत्र धुंधाड़ सबसे मत्वपूर्ण हो जाता है क्‍योंकि राजनीति के केन्द्र राजधानी जयपुर से सटा हुआ है। इस क्षेत्र में ग्रामीण मतदाता राजनीतिक लहर के साथ ही रहते रहे हैं, लेकिन अबकी बार  प्रदेश में कोई लहर वास्तव में है नहीं। कांग्रेस ने यहां 2018 में विधानसभा के चुनावों में काफी बेहतर प्रदर्शन किया था और अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक सीटों पर जीत हासिल की थी। सचिन पायलट का चुनावी हलका इसी क्षेत्र में आता है। पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना, जो कि राजस्थान की वर्तमान राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है, इसी क्षेत्र के मतदाताओं के लिए महत्वपूर्ण है। 

शेखावटी में सीकर, झुंझुनूं, चुरू, हनुमानगढ़ आदि क्षेत्र आते हैं जहां 25 विधानसभा सीटें हैं। (सीकर 7, झुंझुनू 7, चुरू 6, हनुमानगढ़ 5)। शेखावटी जाट बहुल  क्षेत्र है। यहां अक्सर बदलाव की राजनीति तीव्र रहती है। यह क्षेत्र कांग्रेस के लिए अपेक्षाकृत अनुकूल है। यहां किसान वर्ग ही किसी राजनीतिक दल की हार जीत तय करता है। सेना में इस क्षेत्र से काफी संख्या में लोग अपनी सेवाएं देते रहे हैं। वर्तमान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा सीकर के लक्ष्मणगढ़ से हैं। इस क्षेत्र ने  भाजपा  और कांग्रेस  दोनों ही राजनीतिक पार्टियों को 5-5 प्रदेशाध्यक्ष दिए हैं।  शेखावटी के राजनेताओं का वर्चस्व देश व प्रदेश के सर्वोच्च पद तक रहा है। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल सीकर के छोटी लोसल की बहू हैं। इससे पहले पूर्व उपराष्ट्रपति पद पर सीकर के गांव खाचरियावास के भैरोंसिंह शेखावत रहे। शेखावत प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। इसी तरह सीकर लोकसभा क्षेत्र से जीत कर संसद तक पहुंचने वाले हरियाणा के चौधरी देवीलाल भी इसी क्षेत्र से उपप्रधानमंत्री तक पहुंचे। इसके अलावा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ ने इसी क्षेत्र से जीत हासिल कर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

पूर्वी राजस्थान के जिले जो उत्तर प्रदेश से लगते हैं उनको ब्रज मेवात क्षेत्र के तौर पर  जाना जाता है। धौलपुर, भरतपुर, अलवर जिले इसमें आते हैं जहां से 22  सीटें विधानसभा की हैं (अलवर 11, भरतपुर 7, धौलपुर 4)।  अलवर का क्षेत्र भाजपा की प्रयोगशाला के रूप में उभरा है जहां लिंचिंग की घटना को देश ने देखा। यहां दलित वर्ग की एक निर्णायक भूमिका पक्ष या विपक्ष के लिए बनती है।    

मारवाड़ में बाड़मेर, जालोर, पाली, जोधपुर, नागौर, बीकानेर तक का इलाका आता है। मारवाड़ में विधानसभा की सबसे ज्‍यादा सीट 45 होती हैं (बाड़मेर 7, जालोर 5,  जोधपुर 10, पाली 6, नागौर 10,  बीकानेर 7 और अगर गंगानगर की 6 सीट भी मिला ली जाय तो यहां से 51 सीट हो जाती हैं)। मारवाड़  से भाजपा की  केंद्रीय सरकार में तीन मंत्री शामिल रहे हैं- पीपी चौधरी पाली से , सीआर चौधरी नागौर से, गजेंदर सिंह शेखावत जोधपुर से। मारवाड़ की भूमि से कई बड़े नेता देश में अपनी जगह बना चुके हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जोधपुर से संबंध रखते हैं। वर्तमान में अर्जुन राम मेघवाल बीकानेर से केंद्र की सरकार में महत्वपूर्ण पद पर हैं।  

मात्र 67.06 प्रतिशत साक्षरता दर वाला राजस्थान राजनीतिक समझ के लिहाज से अपेक्षाकृत काफी सजग  है।  बंधी बंधाई लीक पर चलने के बजाय किसी भी  सरकार को काम करने का अवसर दे कर समीक्षा करके अगले चुनाव में पलट भी देता है। इसलिए इस प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार व जनप्रतिनिधियों को लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप ही कार्य योजनाओं को क्रियान्वित करने की बाध्यता रहती है। वर्तमान कांग्रेस सरकार के पूरे कार्यकाल से मतदता का बड़ा वर्ग पूरी तरह संतुष्ट नहीं है, इसलिए चुनाव के मुहाने पर पार्टी नई गारंटियों के साथ उतर रही है। ये गारंटियां जनता में कितना विश्वास जगा पाएंगी ये चुनाव के परिणामों से ही स्पष्ट होगा। अंतिम वर्ष में की गई इन कवायदों से कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं रहेगी।   

मोहन लाल सुखाड़िया और भैरों सिंह शेखावत की राजनीतिक विरासत का राजस्थान आज अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे सिंधिया तक आ पहुंचा है, लेकिन परिस्थितियां अब नए राजनीतिक प्रयोग की और बढ़ चुकी हैं।  भाजपा की रणनिति के चलते  जिस प्रकार का असंतोष पार्टी के भीतर है, उसके प्रभाव पार्टी को कितनी सफलता दिलवा पाएंगे ये अभी कहना मुश्किल है। 

प्रदेश की बड़ी नेता वसुंधरा राजे को जिस प्रकार दरकिनार कर के भाजपा के नेतृत्व ने चुनाव को केंद्रीकृत करने की ठानी है उसको प्रदेश का मतदात कितना स्वीकार करेगा यह आने वाले दिन तय करेंगे। 


पूर्व महाप्रबंधक, हिन्दी दैनिक हरिभूमि और महाकौशल;
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

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