नई बस्ती में नए-नए बसे रिटायर्ड जज साहब के दिमाग में आर्डर-आर्डर वाला हथौड़ा बज रहा था। पड़ोस में रहने वाले बस्ती के नालायक गोबिन ने जज साहब की चड्ढी को हाथ लगा दिया था। चड्ढी हवा के झोंके के साथ उड़ते हुए जज साहब की छत से गोबिन की छत पर चली आई थी। गोबिन चड्ढी वापस करने गया। चड्ढी को हाथ में नचाते हुए वो जज साहब के बैठके में चला गया।
सम्मान के साथ बेदाग सेवा पुस्तिका लेकर सेवानिवृत्त हुए जज साहब की आस्तीन पर कई बार भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। पर कानून सबूत माँगता है। सबूतों के अभाव में सभी आरोप झूठे साबित हुए थे। गोबिन के हाथों की पहुँच अंतःवस्त्र तक देख चिंतित और क्रोधित हुए रिटायर्ड जज साहब ने गोबिन के हाथों में कानून के लंबे हाथों से हथकड़ी पहनाने की तरकीब सोचनी शुरू कर दी।
गोबिन नियमानुसार हर शाम अपनी छत के चारों कोनों में नाच-नाच हवा से बात करता। एक शाम वो अपनी इसी आदत का पालन करते हुए जज साहब की छत की तरफ चेहरा किए अपने होंठ चला रहा था। ठोस सबूतों की तलाश में अपनी ही छत की रेकी कर रहे जज साहब के इंतजार को मीठा फल मिलने की घड़ी आ गई। अपनी छत पर सूखने के लिए टँगी चड्ढी की आड़ लेकर जज साहब ने गोबिन का स्टिंग कर लिया। अगली सुबह अखबार आने के साथ ही सूखी घास के जंगल में लगी आग की तरह नई बस्ती में ये खबर फैल गई कि गोबिन ने जज साहब की चड्ढी पर विवादास्पद टिप्पणी की।
नई बस्ती में नए-नए बसे रिटायर्ड जज साहब स्टिंग का टेप लेकर थाने पहुँचे। महीना भर पूर्व ही थाने पर तैनाती पाये थानेदार के लिए नई बस्ती पुरानी हो चुकी थी। बस्ती के चप्पे-चप्पे पर सादे कपड़ों में तैनात रहने वाले मुखबिर सभी निवासियों के जीवन की चरित्र पुस्तिका से थानेदार को अवगत करा चुके थे। देर रात गश्त के दौरान पुलिस की जीप के साथ लुका-छिपी खेलने वाले गोबिन के अंदर के मसखरे को थानेदार भी अच्छी तरह पहचान चुके थे। थानेदार ने रिटायर्ड जज साहब का सम्मान करते हुए रिपोर्ट दर्ज कर गोबिन की खोज शुरू कर दी।
हफ्ता बीत गया, पर हवा में गायब हुए गोबिन का कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा। नई बस्ती के चप्पे-चप्पे पर तैनात मुखबिर भी चैन की बंसी बजा रहे थे।
पुलिस के रवैये को अपने पद की अवमानना मान जज साहब ने रिटायर्ड जज वेलफेयर एसोसिएशन को फोन घुमाया। अगले ही दिन थाने में अदालत द्वारा जज साहब के अंतःवस्त्र प्रकरण को स्वतः संज्ञान में लेने का फरमान आया। सांध्यकालीन अखबारों में खबर भी आई- मुखबिर की सूचना पर गोबिन पुलिस के शिकंजे में।
रात भर अपनी हिरासत में रखने के बाद दीवान जी ने गोबिन को अदालत में पेश किया। कठघरे में बिना वकील के खड़े गोबिन ने गीता पर हाथ रख सच बोलने की रस्म निभाई। त्वरित न्याय के लिए प्रतिबद्ध अदालत ने सबूतों को मद्देनजर रखते हुए पहला और आखिरी सवाल किया- आपको अपनी सफाई में कुछ कहना है?
अज्ञातवास के दौरान मौन व्रत का पालन करने वाले गोबिन को होंठ चलाने का मौका मिला- मी लार्ड, मेरे होंठ तो वैसे ही चले जैसे मूक बधिरों वाला समाचार बुलेटिन चलता है। आपकी पारखी नजर की दाद देनी होगी, जो गूँगों की भाषा भी समझती है।
गोबिन की सफाई सुन मी लार्ड आर्डर वाला हथौड़ा ठोंके, उससे पहले ही कठघरे के बगल में खड़े दीवान जी गले की खराश साफ करने के लिए खूँ-खाँ करने लगे। खूँ-खाँ से पेट पर पड़ने वाले दबाव से दीवान जी की तोंद दबाकर छोड़े गए रसगुल्ले की तरफ पिचकने-फूलने लगी। दीवान जी गोबिन से अक्सर कहा करते थे कि शंख बज गया था, पर बात पूरी कही गई थी। अपनी खूँ-खाँ से दीवान जी ने गोबिन के अंदर मचल रहे मसखरे को ‘जारी रहे’ की हवा दे दी।
गोबिन जारी रहा- बोलने सुनने वालों के लिए चौबीस घंटे समाचार आते हैं। उन समाचारों में विवादास्पद टिप्पणियों को अखंड राष्ट्र बना कर पेश किया जाता है। अदालत की स्वतः संज्ञान लेने वाली पारखी नजर उन्हें क्यों नहीं पहचान पाती मी लार्ड?
गोबिन के होंठ रुके और जज साहब का हथौड़ा चला- इधर उधर की बात कर आप अदालत को गुमराह कर रहे हैं। जो भी कहना है अपनी सफाई में कहिए।
मी लार्ड का आदेश सुन गोबिन दीवान जी की तरफ देखने लगा। दीवान जी अदालत में भिनभिना रही मक्खी की तरफ देखने लगे।
अपने मिजाज को और नर्म-ओ-नाजुक करते हुए गोबिन- मी लार्ड, अदालत को गुमराह तो फिल्म और टीवी वाले कर रहे हैं। वो अपनी अपनी अदालत लगाते हैं, जहाँ कोई खलनायक अधिवक्ता बनकर आता है और तारीख लेकर चला जाता है।
अधिवक्ता शब्द सुन रिटायर्ड जज साहब की पैरवी कर रहे सेंट्रल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सह वरिष्ठ अधिवक्ता गरजे- आपकी बातों का इस केस से कोई संबंध नहीं है। आप अदालत का वक्त जाया कर रहे हैं। मिस्टर गोविंद, आपकी बातों से अदालत नाराज भी हो सकती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता की गरज सुन गोबिन के सुर और अधिक सुरीले हो गए- नाराजगी का क्या है वकील साहब, दीपिका के क्लीवेज पर चर्चा करने वाले तो इसलिए नाराज हो गए कि चीरहरण तब क्यों रुका जब ब्लाउज दिखने लगा? उसके पहले भी तो रोका जा सकता था?
ब्लाउज शब्द सुन रिटायर्ड जज साहब आवेशित होकर उबल पड़े- आप न्याय के मंदिर की पवित्रता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
इतनी देर में अदालत में भिनभिना रही मक्खी उड़ते-उड़ते दीवान जी के रसगुल्ले पर जा बैठी। दीवान जी ने मक्खी के ऊपर हथेली मारी तो गोबिन की जबान की कैंची और बारीक होकर चली।
रिटायर्ड जज साहब की तरफ मुखातिब होते हुए गोबिन- भूतपूर्व मी लार्ड, ये न्याय का कैसा मंदिर है जहाँ न्याय की देवी को निर्वस्त्र कर उनके हाथ में तराजू पकड़ा दिया गया है। सभी देवी-देवताओं के लिए बाजार में तरह-तरह के आभूषणों से सुसज्जित वस्त्र उपलब्ध हैं, पर न्याय की देवी को पहनाने के लिए कोई कपड़ा ही नहीं बना! बाजार में अब तो पुतलों को भी लॉन्जरी पहनाई जाने लगी है।
गोबिन की बात सुन मुकदमे की सुनवाई कर रहे जज साहब ने अपना चोगा सँभालते हुए आर्डर का हथौड़ा ठोंक दिया। भूतपूर्व मी लार्ड से बीच में न बोलने का आग्रह करते हुए गोबिन को आदेश दिया- आपने अदालत की अवमानना की है। अवमानना की सजा भी आपको भुगतनी पड़ेगी।
गोबिन- अपमान तो आपका और आपके धर्म का किया जा रहा है मी लार्ड। आपको भगवान का दर्जा देकर आपकी बगल में एक निर्वस्त्र स्त्री को खड़ा कर दिया गया है। कैसे भगवान हैं आप जो चीरहरण नहीं रोक पा रहे हैं।
गोबिन की बात पूरी होने से पहले ही जज साहब ने फिर हथौड़ा बजा दिया- आपसे अंतिम बार पूछा जाता है कि आपको अपनी सफाई में कुछ कहना है?
जज साहब का विराट रूप देख सहमे गोबिन ने कहा- मी लार्ड, आपने ही तो अभिव्यक्ति की आज़ादी दी है और आप ही उसे नजरबंद करने का आदेश भी दे रहे हैं!
मी लार्ड हथौड़े की जगह अपना चोगा उतारकर पटकने ही जा रहे थे, तभी गोबिन बोल पड़ा- मी लार्ड, मुझे अपनी सफाई में कुछ नहीं कहना है। आप जो भी सजा देंगे, मंजूर होगी।
अंत में गोबिन द्वारा खुद को दिए गए सम्मान और गोबिन द्वारा हवा में किये गए अपराध को मद्देनजर रखते हुए मी लार्ड ने गोबिन को एक हफ्ते की कैद-ए-बामुशक्कत सुनाई।
दीवान जी गोबिन का हाथ पकड़े न्यायालय के बाहर निकलते हैं। बंदी सुधार गृह में आमद कराने से पूर्व कचहरी के बाहर चाय की दुकान पर रुकते हैं। गोबिन को चाय पकड़ाते हुए दीवान जी ने पूछा- ये एक-एक दिन का कार्यक्रम कब तक चलेगा? कुछ ऐसा करके आओ कि मी लार्ड पाँच-सात दिन की रिमांड का आदेश भी दें। हमें लम्बे समय तक तुम्हारी खातिरदारी करने का मौका मिले।
गोबिन मुस्कुराते हुए बोला- सब आपके दरोगा जी की माया है। उनसे कहिए गंभीर धाराएँ लगाएँ। विवेचना ऐसे करें कि हवा भी मेरे खिलाफ हो जाए। चलने के लिए भी मेरे हाथ-पैर हिलें, तो लगे कि मैं देश के खिलाफ साजिश रच रहा हूँ।
गोबिन का जवाब सुनकर दीवान जी खुलकर हँस दिए। दीवान जी जब भी खुलकर हँसते हैं, तो लगता है रोडवेज की बस में सीट फाड़कर उगी स्प्रिंग के ऊपर लाफिंग बुद्धा को रख दिया गया हो।
हिलते हुए रसगुल्ले के साथ दीवान जी गोबिन का हाथ पकड़े बंदियों को कारागार ले जाने वाली गाड़ी की तरफ बढ़ जाते हैं।