कैमरे के लेंस से क्यों गायब किए गए रोस्टर मूवमेंट के मूकनायक?


विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने तीन साल पहले 5 मार्च 2018 को आरक्षण को कमज़ोर करने के उद्देश्य से देशभर के विश्वविद्यालयों में 13 पॉइंट रोस्टर लागू करने संबंधी सर्कुलर जारी किया था। विश्वविद्यालयों से इसके खिलाफ आवाज उठनी शुरू हो गयी। दिल्ली विश्वविद्यालय में इस सर्कुलर के खिलाफ फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस, दिल्ली यूनिवर्सिटी एससी, एसटी ओबीसी टीचर्स फोरम ने बैठकों व समाचारपत्रों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया और बताया कि 13 पॉइंट रोस्टर के लागू होने पर बहुजन समाज के शिक्षकों का कितना नुकसान होने वाला है। इसके बाद मेरे नेतृत्व में यूजीसी के 5 मार्च के सर्कुलर को लेकर कई बैठकें उत्तरी परिसर में आयोजित की गयीं। अंत में तय किया गया कि 13 पॉइंट रोस्टर की लड़ाई लड़ने के लिए एक जॉइंट फोरम बने। ज्वाइंट फोरम का नाम “ज्वाइंट एक्शन कमेटी टू सेव रिजर्वेशन” रखा गया। ज्वाइंट एक्शन कमेटी में मैं, डॉ. के.पी. सिंह, डॉ. धनीराम, डॉ. राजकुमार, डॉ. ज्ञान प्रकाश, डॉ. संतोष यादव, डॉ. प्रदीप कुमार व डॉ. संजय कुमार, डॉ. महेंद्र मीणा आदि ने मिलकर दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय परिसर के गेट पर टेंट लगाया जिसमें हर रोज 10 से अधिक शिक्षक भूख हड़ताल पर बैठते थे। मुझे कमेटी में मीडिया संयोजक का दायित्व सौंपा गया और मैंने हर दिन की खबर सोशल मीडिया से लेकर समाचारपत्रों, न्यूज चैनलों पर भेजीं जिसे प्रकाशित किया गया।

ज्वाइंट एक्शन कमेटी टु सेव रिजर्वेशन के आह्वान पर 21 मार्च 2018 से भूख हड़ताल शुरू हुई। भूख हड़ताल पर पहले दिन 11 शिक्षक बैठे, इनमें मैं, डॉ. कैलास प्रकाश सिंह, डॉ. धनीराम, डॉ. संदीप कुमार, डॉ. प्रदीप कुमार, डॉ. मनीष कुमार, डॉ. महेंद्र मीणा, डॉ. संजय कुमार, डॉ. सुरेंद्र कुमार आदि थे। जेएनयू, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, आइपी यूनिवर्सिटी, अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, इग्नू, एमडीयू, मेरठ विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने भूख हड़ताल में आकर सहयोग दिया। मेरे नेतृत्व में 27 मार्च को डूटा में संवाददाता सम्मेलन बुलाया गया। 29 मार्च 2018 को यूजीसी के आरक्षण विरोधी सर्कुलर की होली जलायी गयी। 31 मार्च को देशभर के शिक्षकों ने भूख हड़ताल में भाग लिया और अपना पूर्ण समर्थन दिया। भूख हड़ताल के दसवें दिन एमएचआरडी का पुतला दहन किया गया। 2 अप्रैल को शिक्षिकाओं ने प्रधानमंत्री की शवयात्रा निकाली। 4 अप्रैल को ज्वाइंट एक्शन कमेटी की ओर से प्रधानमंत्री व महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया गया। 5 अप्रैल को भूख हड़ताल के 16वें दिन 20 शिक्षकों ने भूख हड़ताल की। 9 अप्रैल को आइटीओ पर कैंडल मार्च में डूटा के साथ ज्वाइंट एक्शन कमेटी के शिक्षकों ने भाग लिया और यूजीसी चेयरमैन को अपना ज्ञापन दिया। 11 अप्रैल को दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों व गैर-शैक्षिक कर्मचारियों ने एक मंच पर आकर ताकत दिखायी और विश्वविद्यालय में फुले अम्बेडकर रैली निकाली। इसके बाद 19 अप्रैल को यूजीसी पर भारी संख्या में कमेटी के लोगों ने धरना प्रदर्शन कर 5 मार्च का सर्कुलर वापस लेने की मांग की।

इस सर्कुलर को वापस कराने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल ने डूटा अध्यक्ष से बात की और डूटा ने इस सर्कुलर को अपने एजेंडे में शामिल किया। उसके बाद तो राष्ट्रीय स्तर पर आरक्षण बचाओ आंदोलन की शुरुआत हुई। 12 मार्च 2018 को दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की मीटिंग में यह मुद्दा जोरशोर से उठाया गया। 13 मार्च को एससी/एसटी ओबीसी टीचर्स फोरम की आपात बैठक हुई जिसमें रिव्यू पेटिशन डालने की मांग सरकार से की गयी। 15 मार्च को मंडी हाउस से एमएचआरडी तक रैली निकाली गयी।

दिल्ली विश्वविद्यालय में 13 पॉइंट रोस्टर लागू करने के खिलाफ चले आंदोलन पर हाल ही में द शूद्र ने एक डॉक्युमेंट्री आरक्षण और रोस्टर को लेकर बनायी है। उसे देखकर मन व्यथित हो गया क्योंकि जो घटनाएं हमारी आंखों के सामने घटित हुईं उन लोगों को इस डॉक्युमेंट्री से पूरी तरह से गायब कर दिया गया है जो सचमुच में इस आंदोलन के कर्णधार थे और जो कई दशकों से आरक्षण और रोस्टर की लड़ाई सड़क से संसद तक लड़ी और आज भी लड़ रहे हैं। रिसर्च टीम को खोजना चाहिए था कि आरक्षण और रोस्टर की लड़ाई विश्वविद्यालयों में सबसे पहले किसने लड़ी और 13 पॉइंट रोस्टर जिस समय आया था तो सबसे पहले कौन व्यक्ति या संगठन मैदान में उतरा। इसलिए यह डॉक्युमेंट्री ब्राह्मणवादी प्रवृत्ति से ग्रस्त है।

कहना न होगा कि यह डॉक्युमेंट्री अपने आप में 13 पॉइंट रोस्टर सिद्ध हुई है- जैसे 13 पॉइंट रोस्टर बहुजनों का हित निगल रहा है ठीक वैसे ही जिन्होंने दिन रात मेहनत की उनको इस डॉक्यूमेंट्री से वैसे ही गायब कर दिया, जैसे आजादी के आंदोलन से दलित, बहुजनों के योगदान और भूमिका को नकार दिया गया था। आजादी के आंदोलन में झलकारीबाई, मातादीन भंगी, उधादेवी पासी, रामपत चमार, बिरसा मुंडा, उधमसिंह, महाबीरी देवी, गोबिंद गुरु, नत्थू धोबी, अवंतिकाबाई लोदी, अछूतानंद आदि के योगदान को ब्राह्मणवादी इतिहास लेखन खा जाता है ठीक उसी तरह यह डॉक्युमेंट्री न जाने कितने मातादीन भंगी व उधमसिंह के योगदान को खा चुकी है।

यह डॉक्युमेंट्री बहुत ही आपत्तिजनक है और ब्राह्मणवादी प्रवृत्ति की बहुजन समाज में घुसपैठ है। ऐसी प्रवृत्ति के खिलाफ प्रतिरोध होना चाहिए। उन्हें यह भी नहीं मालूम कि रोस्टर की लड़ाई इन विश्वविद्यालयों में कब से शुरू हुई? दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण कब लागू हुआ? इसका विरोध करने वाले कौन शिक्षक थे? आरक्षण और रोस्टर पर डीयू में डूटा के कई चुनाव लड़े गए, बताया तक नहीं? पिछले तीन दशकों से ज्यादा रोस्टर आंदोलन की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन इस डॉक्युमेंट्री से उन्हें पूरी तरह से गायब कर दिया गया। पता नहीं यह साजिश के तहत हुआ है या जान-बूझ कर ऐसा किया गया। इसके बनाने वालों ने उन्हें कैसे गायब कर दिया है? यदि ब्राह्मणवादी व्यक्ति भी कोई बनाता तो कम से कम वे इस आंदोलन के नायकों को गायब नहीं करते। दिल्ली विश्वविद्यालय में हमारे संगठन के द्वारा मेरे नेतृत्व में छात्रों के प्रवेश, उसके बाद मंडल कमीशन को लागू कराने, शिक्षकों के आरक्षण की लड़ाई कैम्पस व उसके बाहर लड़ी और आज भी जारी है।

डॉक्युमेंट्री बनाने के पीछे कुछ लोगों का क्या स्वार्थ सिद्ध होता है कि उन्होंने मेरा, डॉ. कैलास प्रकाश सिंह, डॉ. धनीराम, डॉ. सागर, डॉ. संदीप कुमार, डॉ. संजय कुमार, डॉ. प्रदीप कुमार, डॉ. महेंद्र मीणा, डॉ. सुरेश कुमार और कुछ शिक्षिकाओं के नामों को छोड़ दिया। डॉक्युमेंट्री को बहुत से साथियों ने जब देखा तब कुछ लोगों के फोन आए- इसे देखिए, उसमें आपको और जिन्होंने यूजीसी सर्कुलर के खिलाफ आर्ट्स फैकल्टी पर मंच तैयार किया था उन्हें सिरे से ही गायब कर दिया जिन्होंने दिल्ली  विश्वविद्यालय में आरक्षण और शिक्षक नियुक्तियों की लड़ाई सड़क, संसद व न्यायालय तक लड़ी। छात्रों के आरक्षण, कर्मचारियों की नियुक्ति व पदोन्नति, शिक्षकों को सिरे से ही मानो नकार दिया गया। क्या उनकी कोई भूमिका नहीं थी? या किसी के बहकावे में आकर ऐसा किया गया?

तमाम तरह के सवाल यह डॉक्युमेंट्री अपने पीछे छोड़ गयी। आज नहीं तो कल इसे बनाने वालों से अवश्य सवाल खड़े करेंगे कि क्या आरक्षण और रोस्टर की लड़ाई में उन नायकों को कैसे छोड़ दिया जो दशकों से लड़ाई लड़ते आ रहे हैं।


लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं

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