पंजाब में गन्ना किसान आंदोलित, पलवल मोर्चे पर हुए हमले की SKM ने की कड़ी निंदा


पंजाब के गन्ना किसान बकाया भुगतान के लिए आंदोलन कर रहे हैं। निजी व सहकारी चीनी मिलों का पिछले पिराई सत्र का 200 करोड़ से अधिक का भुगतान लंबित है। किसान संगठनों ने 20 अगस्त को विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है, जिसके दौरान वे रेल और सड़क यातायात को रोका जाएगा। विरोध कर रहे पंजाब के किसानों ने यह भी बताया है कि अन्य राज्यों के किसानों को पंजाब की तुलना में 310 रुपये प्रति क्विंटल कीमत मिल रही है। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक ,महाराष्ट्र और अन्य राज्यों अन्य राज्यों के गन्ना किसान भी भुगतान पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

देश के किसानों को पूरी तरह से एहसास हो गया है कि वे प्रधानमंत्री के बहुप्रतीक्षित दावों, झूठे वायदों और घुमावदार बातों, या उनके जुमलों पर निर्भर नहीं रह सकते हैं। ‘किसानों की आय दोगुनी’ करने के जुमले के अलावा लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के खोखले दावे पूरी तरह से बेनकाब हो गए हैं, हालांकि प्रधानमंत्री ने लाल किले से अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण (पीआईबी रिलीज आईडी: 1746062 दिनांक 15/08/2021) में “एमएसपी को 1.5 गुना बढ़ाने के महत्वपूर्ण निर्णय” का संदर्भ देना जारी रखा। एमएसपी में सी2 +50 के हिसाब से 1.5 गुना वृद्धि नहीं की गयी है और मोदी सरकार के संसद के पटल पर बयान के बावजूद, घोषणा के मुताबिक एमएसपी सभी किसानों को नहीं मिल रही है।

प्रचार और झूठ किसानों के लिए एमएसपी या उनकी आय तक सीमित नहीं हैं। लगातार तीन वर्षों तक प्रधानमंत्री अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषणों में 100 लाख करोड़ रुपये के “बुनियादी ढांचे” में निवेश के बारे में बात करते रहे हैं। 2019 में यह ‘मॉडर्न इंफ्रास्ट्रक्चर’ और उस पर 100 लाख करोड़ रुपये के निवेश के निर्णय के बारे में था। 2020 में यह “नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइप लाइन प्रोजेक्ट” के बारे में था,  श्री मोदी ने घोषणा की थी कि इस परियोजना पर 110 लाख करोड़ खर्च किए जाएंगे। इस भाषण में पहले कोविड लॉकडाउन के दौरान घोषित कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ) का भी संदर्भ था और दावा किया गया था कि भारत सरकार ने इसके लिए एक लाख करोड़ रुपये की “मंजूरी” दी है। श्री मोदी ने दावा किया था कि “इंफ्रास्ट्रक्चर किसानों की भलाई के लिए होगा और इसके कारण किसान अपना मूल्‍य भी प्राप्‍त कर सकेगा, दुनिया के बाजार में बेच भी पाएगा” (पीआईबी रिलीज आईडी 1646045 दिनांक 15/08 /2020)।

अब, इस वर्ष यह ‘गति शक्ति’ राष्ट्रीय अवसंरचना मास्टर प्लान के ‘100 लाख करोड़ रुपये से अधिक की योजना’ के रूप में सामने लाई गई है।

जब हम कृषि अवसंरचना निधि की वास्तविकता को घोषणा के एक साल बीत जाने के बाद देखते हैं, तो प्रधानमंत्री के झूठे बयानों का पर्दाफ़ाश हो जाता है। एआईएफ एक 13 वर्ष की योजना है जो संयोग से 2023-24 तक संवितरण के साथ है। 6 अगस्त 2021 तक, “सैद्धांतिक” प्रतिबंधों (पिछले साल ही घोषित तथाकथित “मंजूरी” का 4.5%) सहित 6524 परियोजनाओं के लिए एआईएफ के तहत केवल 4503 करोड़ स्वीकृत किए गए हैं। 23 जुलाई 2021 को राज्यसभा में दिये गये बयान के अनुसार, केवल 746 करोड़ रुपये का वितरण किया गया है अर्थात ( भव्य घोषणा का 0.75%)। एसकेएम ने किसानों से अपील की है कि “मोदी सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए एकजुट होकर  संघर्ष करना ही एकमात्र रास्ता है।”

प्रधानमंत्री आदतन ऐसे बयान देते हैं, चाहे हमारे राष्ट्रीय ध्वज के नीचे खड़े  होकर दिया हो या संसद के पटल पर। फरवरी 2021 में पीएम मोदी ने तर्क दिया कि अगर तीन काले कानूनों को अनिवार्य कर दिया गया है तो उनका विरोध किया जाना चाहिए, जबकि इन कानूनों को किसानों को विकल्प के तौर पर बनाया गया हैं। संसद द्वारा पारित कानून स्वैच्छिक नहीं हो सकते हैं और विनियमित बाजारों के कमजोर होने और पतन के निहितार्थ और निगमों के लिए अनियंत्रित बाजारों के फलने-फूलने से किसानों के लिए कोई “विकल्प” नहीं मिलेगा। उन्होंने इस बात को भी नज़रअंदाज किया कि राज्य स्तर पर कई मौजूदा एपीएमसी कानूनों के तहत किसानों को पहले से ही वे जहां चाहें फसल बेचने की स्वतंत्रता है, जबकि केंद्र सरकार का कानून अंततः किसान के लिए मंडी के विकल्प को समाप्त कर देगा। संसद के पटल पर पीएम मोदी ने अपने आदतन अंदाज में इस पर तंज कसने की कोशिश की और अपनी घुमावदार बातों के साथ इसे पेश किया।

गुरुवार की सुबह संयुक्त किसान मोर्चा के पलवल मोर्चा पर 10-15 गुंडों ने मोर्चा पंडाल तोड़ कर मोर्चा में मौजूद किसान नेताओं पर हमला बोल दिया। गुंडों ने लंगर के रसोई स्वयंसेवकों पर भी हमला किया और कुछ टेंटों में आग लगाने की कोशिश की। घटना की खबर मिलते ही स्थानीय किसान बड़ी संख्या में जमा होने लगे तो गुंडे भाग गए। एसकेएम स्थानीय भाजपा नेता के अनुयायियों द्वारा किए गए इस हमले की कड़ी निंदा करता है और पुलिस से तत्काल कार्रवाई की मांग करता है।

बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत सरकार से 8844 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ “राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन–पाम ऑयल” को मंजूरी दे दी है। बाजार पर कब्जा करने के लिए तैयार पतंजलि जैसी कंपनियों के अलावा स्वास्थ्य और पर्यावरण के दृष्टिकोण से पाम ऑयल की खेती पर जोर कई लोगों के लिए चिंता का विषय है, हालांकि चौंकाने वाली बात यह है कि खाद्य तेलों पर मोदी सरकार के मिशन में किसानों के लिए बाजार के मोर्चे पर कोई समाधान नहीं रखा गया है। यह याद रखने की जरूरत है कि 1980 के दशक में तिलहन मिशन, जिसने भारत को लगभग आत्मनिर्भरता तक पहुँचाया था, के साथ सहकारी संस्थाओं द्वारा बाजार हस्तक्षेप के माध्यम से किसानों को लाभकारी बाजार प्रदान करने पर महत्वपूर्ण जोर दिया गया था, हालाँकि यह बाजार उदारीकरण था जिसके कारण आत्मनिर्भरता में उल्लेखनीय गिरावट आयी। मोदी सरकार अपनी नयी घोषणा में तिलहन उत्पादकों सहित अन्य किसानों को कानूनी गारंटी के रूप में लाभकारी एमएसपी प्रदान करने पर रहस्यमय चुप्पी साधे हुए है।

बुधवार को हरियाणा के करनाल जिले में इंद्री से भाजपा विधायक राम कुमार कश्यप को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा। चौगामा गांव में मंगलवार को किसानों को पीटने वाले विधायक के खिलाफ किसान कार्रवाई चाहते थे। राज्य में “अन्नपूर्णा उत्सव” पीडीएस आपूर्ति पर पीएम मोदी, सीएम खट्टर और डिप्टी सीएम चौटाला की तस्वीरों के प्रदर्शन के खिलाफ पूरे हरियाणा में कई विरोध प्रदर्शन हुए। उत्तराखंड में केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट जहां भी गए उन्हें विरोध का सामना करना पड़ता रहा। जब सैकड़ों किसान उनके रास्ते में आ गए, तो उन्हें अपना खुला वाहन छोड़ना पड़ा और एक कार में बैठना पड़ा। उत्तराखंड पुलिस ने कई किसानों को हिरासत में लिया और बाद में रिहा कर दिया।

जारीकर्ता –

बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव

संयुक्त किसान मोर्चा
ईमेल: samyuktkisanmorcha@gmail.com


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *