जलवायु परिवर्तन: रॉयल डच शेल के खिलाफ हेग की अदालत का ऐतिहासिक फैसला


एक ऐतिहासिक फैसले में हेग की एक अदालत ने बुधवार को रॉयल डच शेल ग्रुप को कार्बन डाइऑक्‍साइड के उत्सर्जन में कटौती करने का आदेश दिया है। शेल को अब अपने उपभोक्ताओं और आपूर्तिकर्ताओं समेत कुल कार्बन उत्सर्जन में 2019 के स्तर के मुकाबले 2030 तक 45% तक कटौती करनी होगी।

यह अपनी तरह का पहला कानूनी निर्णय है जो वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप एक प्रदूषणकारी अंतरराष्ट्रीय कम्पनी को अपने उत्सर्जन को कम करने के लिए आदेश देता है। साथ ही, ऐसा माना जा रहा है कि यह निर्णय वैश्विक स्तर पर जलवायु नीति और कॉर्पोरेट जवाबदेही को प्रभावित करेगा और प्रमुख प्रदूषकों को चेतावनी के रूप में भी काम करेगा कि वे अपने उत्सर्जन को कम करने के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं।

फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा, “शेल को जलवायु परिवर्तन की इस लड़ाई में योगदान देने के लिए अपनी भूमिका निभानी चाहिए” क्योंकि फ़िलहाल खतरनाक जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कंपनी की योजनाएं “ठोस नहीं” हैं।

शेल के खिलाफ मामला फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ नीदरलैंड्स (मिलियूडेफेंसी), 17,000 सह-वादी और 6 अन्य संगठनों (एक्शन एड, दोनों ईएनडीएस, फॉसिलफ्री नीदरलैंड, ग्रीनपीस नीदरलैंड्स, यंग फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ और वैडन सी एसोसिएशन) द्वारा लाया गया था।

आज इस फैसले की शक्ल में तेल और गैस उद्योग के लिए ऐतिहासिक प्रहारों की एक श्रृंखला देखी गयी क्योंकि निवेशकों और अदालतों ने अपर्याप्त जलवायु योजनाओं के खिलाफ विद्रोह किया था।  तेल और गैस उद्योग के लिए इन मतों के दीर्घकालिक और महत्वपूर्ण नतीजे होने की संभावना है और इसके परिणामस्वरूप उद्योग को नये तेल और गैस की तलाश में कम पैसा खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे आगे चल के व्यापार के लिए उनके पूरे दृष्टिकोण पर सवाल उठ सकता है।

कंपनी प्रबंधन की इच्छा के विरुद्ध, जलवायु परिवर्तन के बारे में चिंताओं के कारण और कंपनी का स्वच्छ ऊर्जा के लिए तैयार न होने के चलते कम से कम दो नये निदेशकों को एक्सॉनमोबिल बोर्ड के लिए चुना गया था।

इस विद्रोह का नेतृत्व इंजन नंबर 1 द्वारा किया गया था, जो कि एक छोटा लेकिन सक्रिय निवेशक था, जिसने वैकल्पिक बोर्ड उम्मीदवारों के नाम को आगे रखा था। इंजन नंबर 1 द्वारा नामित जलवायु योग्यता वाले अन्य दो प्रतिद्वंद्वी निदेशकों को उच्च संख्या में परिणाम प्राप्त हुए और वे अभी भी चुने जा सकते हैं।

इस बीच शेवरॉन के निवेशकों ने एक प्रस्ताव पारित कर कंपनी को अपने जीवाश्म ईंधन उत्पादों को जलाने और उनसे होने वाले उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार ठहराया, उन्हें कम करने के लिए कहा।

शेल, जिसे पहले एक अपर्याप्त जलवायु योजना पर शेयरधारक कार्रवाई का सामना करना पड़ा था, उसे डच न्यायालयों ने 2030 तक 2019 के स्तर पर इसके उत्सर्जन को 45% कम करने का आदेश दिया था।

रोजर कॉक्स, मिलियूडफेन्सी के वकील का कहना है- “यह फैसला दुनिया को बदल देगा। दुनिया भर के लोग हमारे उदाहरण का अनुसरण करने और तेल कंपनियों को अदालत में ले जाने के लिए तैयार हो रहे हैं। और अभी यह समाप्त नहीं हुआ है। तेल कंपनियां जीवाश्म ईंधन को प्रदूषित करने में निवेश करने के लिए और अधिक अनिच्छुक हो जाएंगी। जलवायु ने आज जीत हासिल की है।”

वहीं मिलियूडफेन्सी के निदेशक डोनाल्ड पोल्स का कहना है, “यह शानदार खबर है और पृथ्वी और हमारे बच्चों के लिए एक बड़ी जीत है। न्यायाधीश ने स्पष्ट रूप से कहा था कि शेल खतरनाक जलवायु परिवर्तन का कारण बन रहा है और अब इसे रोकना चाहिए।”


Climateकहानी के सौजन्य से

Cover: Milieudefensie director Donald Pols, right, celebrates the outcome of the verdict in the court case of Milieudefensie, the Dutch arm of the Friends of the Earth environmental organisation, against Royal Dutch Shell in The Hague, the Netherlands on Wednesday [Peter Dejong/AP]


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *