‘मुफ़्त वैक्सीन’ का भ्रामक जुमला और सरकार की नीयत का मसला


कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर तथा जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था द्वारा मचाई जा रही वीभत्स तबाही के बीच जब सरकार ने 1 मई से शुरू होने वाले टीकाकरण अभियान के चौथे चरण की घोषणा की, जिसमें 18-45 वर्ष के नागरिक भी टीकाकरण करा पाएंगें, तब से ही वैक्सीन चर्चा का विषय बन गयी है। वैक्सीन में पूरी दुनिया की दिलचस्पी इतनी बढ़ गयी है कि फेसबुक, इंस्टाग्राम या अन्य किसी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अगर आप कोई भी पोस्ट करेंगे जिसमे ‘वैक्सीन’ शब्द का इस्तेमाल किसी भी रूप (लिखाई, तस्वीर या अन्य) में हुआ हो उसके नीचे एक कॉशन दिखाया जा रहा है कि “यहां क्लिक करके आप वैक्सीन के बारे में ‘आधिकारिक’ जानकारी पा सकते हैं।”

जिस तरह की बहस आजकल वैक्सीन पर चल रही है उसे देखते हुए मुझे अपनी 12वीं के दिन याद आ रहे हैं जब हमने हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धांत को पढा था। हाइजेनबर्ग के अनुसार किसी भी सूक्ष्म कण (इलेक्ट्रान आदि) की स्थिति एवं संवेग दोनों को एक साथ सही-सही बता पाना सम्भव नहीं होता है। इसी तरह की अनिश्चितता ‘वैक्सीन मुफ्त मिलेगी(?)’ और ‘मिलेगी भी या नहीं’ इन दोनों मामलों में है। तमाम-तरह की बातें इस सम्बंध में हो रही हैं। आइए, कुछ बानगी देखी जाय।

तीन चरणों के बाद इस चौथे चरण में, जिसमें सबसे बड़ी आबादी को टीका लगना है, खुराकों की आवंटन की नीति बड़ी अलग किस्म की रखी गयी है जोकि बहुत हद तक पक्षपातपूर्ण भी जान पड़ती है। सरकार ने कहा है कि खुराकों का वितरण दो हिस्सों में होगा। पहला हिस्सा (50%) केंद्र सरकार के पास रहेगा तथा शेष 50% ओपन मार्केट को दिया जाएगा। केंद्र सरकार के 50% में से स्वास्थ्यकर्मियों, फ्रंटलाइन वर्कर्स तथा 45 वर्ष से ऊपर की आबादी का टीकाकरण किया जाएगा तथा शेष 50% में से राज्य सरकारें एवं निजी अस्पताल अपनी खुराकें खरीदेंगे। राज्य सरकारों को टीके की खुराकों का आवंटन उनकी मांग के हिसाब से न होकर वहां की संक्रमण दर के आधार पर होगा। इस आवंटन नीति में साफ-साफ झोल दिख रहा है। इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि कई जगह से यह शिकायतें भी आईं कि 45 वर्ष से ऊपर के लोग अपने नज़दीकी टीकाकरण केंद्र पर पहुँचे तो लेकिन वहां टीके की खुराकें ख़त्म हो गयी थीं तथा उन्हें लौटना पड़ा! दूसरे दिन भी यही हुआ। केंद्र सरकार ने इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं है कि वो राज्यों को खुराकों की पर्याप्त मात्रा कैसे आवंटित करेगी।

दूसरी बात अगर टीके के दामों की करें तो भी बहुत घपला दिखाई पड़ेगा। एक ओर तो कई राज्य सरकारें इस बात का वादा कर चुकी हैं कि उनके राज्य में टीका मुफ़्त लगाया जाएगा। दूसरी तरफ़ टीके की एक बड़ी खेप निजी अस्पतालों को देने का प्रावधान किया गया है। अब ये निजी अस्पताल कितना दाम लेंगे इसका कोई अंदाज़ा नहीं है, हालांकि केंद्र सरकार ने कहा है कि वो निजी अस्पतालों द्वारा लिए गए शुल्क को ‘मॉनिटर’ करेगी। केंद्र सरकार ने पहले तीन चरणों में दामों को कितना ‘मॉनिटर’ किया यह इस बात से ज़ाहिर है कि इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर के मुताबिक पिछले तीन चरणों में हुए टीकाकरण में निजी अस्पतालों ने 250 शुल्क वसूला था। एक्सप्रेस की उसी रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि इस बार दाम उससे ज़्यादा होंगे।

टीके का दाम क्या होगा और इसके पीछे के मुनाफे की राजनीति का अंदाज़ा इस बात से लग सकता है कि सीरम इंस्टिट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने पिछले महीने ही लंदन में 69000$ के हफ्तावार किराये पर एक हवेली ली है। इसी सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा टीके का दाम 600 रुपये रखा गया था। यह लेख लिखे जाने के दौरान ही यह खबर आ रही है कि पूनावाला ने ‘फ़िलेंथ्रोफिक जेस्चर’ दिखाते हुए घोषणा की है कि वे राज्य सरकारों को टीके के दामों छूट देंगे और अब राज्य सरकारें टीका 400 की जगह 300 प्रति खुराक ले पाएंगी! निजी क्षेत्र के दामों पर अभी कोई बात नहीं हुई है।

बहुत सम्भव है कि जनता से भी अच्छी मात्रा में धन की उगाही हो एवं राज्य सरकारों को पर्याप्त खुराकें न मिल पाने की स्थिति में लंबा इंतज़ार करने के बजाय लोग निजी अस्पतालों में मुंहमांगे दामों पर टीका लगवाने को मजबूर हो जाएं।

सबसे बड़ी गड़बड़ी तब हुई जब 26 अप्रैल की रात लगभग 11 बजे स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार के ट्विटर हैंडल से एक पोस्टर ट्वीट किया गया। इस पोस्टर के एक बिंदु में यह कहा गया था कि “18-45 वर्ष के लोगों के लिए टीकाकरण की सुविधा केवल निजी टीकाकरण केंद्रों पर होगी।” आश्चर्यजनक रूप से स्वास्थ्य मंत्रालय ने वह ट्वीट किया गया पोस्टर हटा दिया और उसकी जगह दूसरा पोस्टर जारी किया जिसमें लिखा था कि “18-45 वर्ष के लोगों के लिए टीकाकरण की सुविधा निजी टीकाकरण केंद्रों के साथ-साथ उन सरकारी टीकाकरण केंद्रों में भी उपलब्ध होगी जिन्हें सीधे सम्बंधित राज्य सरकारों द्वारा खरीदी गयी टीके की खुराकें आवंटित की गई हैं।”

ऊपर का घटनाक्रम महज़ सोशल मीडिया की ‘गलती’ नहीं थी बल्कि समझी बूझी राजनीति थी। अमूमन हम यह देखते हैं कि ट्विटर पर किये गए ट्वीट्स को एडिट कर पाना सम्भव नहीं होता है लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने बड़ी चालाकी से (पता नहीं कैसे) अपने पुराने ट्वीट में से पोस्टर हटाकर नया पोस्टर लगाए दिया है! यह हैरान करने वाला है। पुराने ट्वीट और पोस्टर के स्क्रीनशॉट्स केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक द्वारा ट्विटर पर पोस्ट भी किये गए थे। मैंने भी अपने निजी ट्विटर अकाउंट से स्वास्थ्य मंत्रालय के उस ट्वीट को कोट करके रिट्वीट किया था लेकिन आज दोबारा देखने पर मैंने पाया कि उसी ट्वीट में दूसरा पोस्टर लगा हुआ है! बिना ट्विटर से मदद लिए ऐसा कर पाना नामुमकिन है, हालांकि बिग टेक एवं वर्तमान दक्षिणपंथी निज़ामों के गठजोड़ की यह नई और पहली कहानी नहीं है।

इन सब बातों से सरकार ने जनता के मन में इस ‘वैक्सीन’ नामक शय को लेकर बहुत असमंजस पैदा कर दिया है। अव्वल तो एक साल के लंबे वक्त में भी इस महामारी से निपटने के लिए सरकार कोई योजना नहीं बना पाई जिसका खामियाजा हज़ारों मौतों के रूप में देश को भुगतना पड़ा। और अब वैक्सीन भी बिना भेदभाव और पूंजी-बाजार को फायदा पहुंचाए बगैर जनता को उपलब्ध कराने का इस सरकार का कोई इरादा नहीं दिख रहा है। सरकार चाहे तो पहले से ही मौजूद टीकाकरण के ‘सिस्टम’ (पोलियो समेत तमाम बीमारियों के टीकाकरण का बेहतर अनुभव देश के पास है) का इस्तेमाल करके बेहतरीन तरीके से पूरी आबादी का टीकाकरण कर सकती है लेकिन सरकार की हालत और नीयत देखकर मंज़ूर हाशमी का एक मिसरा याद हो आता है: ‘सुना है सच्ची हो नीयत तो राह खुलती है ..।’ मौजूदा सरकार की नीयत में ही खोट है, जिसका खामियाजा पूरे देश की जनता आज भुगत रही है।


लेखक लखनऊ विश्वविद्यालय में एमए (राजनीति विज्ञान) के छात्र हैं

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