बिस्मिल्ला की शहनाई जहां के मंदिरों में बज सके, हमें वो हिंदुस्तान वापस चाहिए: डॉ. कफ़ील


डॉक्टर कफ़ील खान एक बार फिर जेल में हैं। वे अब तक लगभग 450 दिन से ज्यादा जेल में गुजार चुके हैं। कफ़ील खान को पिछले छह महीने से योगी सरकार ने किसी न किसी बहाने मुकदमे लाद कर जेल में बंद कर रखा है। उनका कुसूर सिर्फ़ इतना है कि वो मुख्यमंत्री के गृहजनपद के स्वास्थ्य व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार पर एक ज़िम्मेदार डॉक्टर की हैसियत से न सिर्फ़ सवाल उठा रहे थे बल्कि ग़रीब मरीज़ों की सेवा भी कर रहे थे। उनके रिहा होने के तमाम रास्तों को बंद करने की नीयत से उन पर रासुका तक लगा रखा है। उत्तर प्रदेश की काँग्रेस इकाई से लेकर भाकपा-माले तक सभी ने उनकी रिहाई के समर्थन में आयोजन किए हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियांका गांधी वाड्रा ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर कफ़ील को रिहा करने की मांग उठाई है (नीचे)। आम तौर से लोग कफ़ील को एक डॉक्टर के रूप में ही जानते हैं, लेकिन उनका एक वैचारिक पक्ष भी है जो उन्हें भारत की मिट्टी से गहरे जोड़ता है। इसका उद्घाटन आज से ठीक दो साल पहले बनारस के मूलगादी कबीर मठ में हुआ था जब वे नवदलित सम्मेलन में भाषण देने आये थे। भारत छोड़ो आंदोलन की याद में 9 अगस्त 2018 को आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने जो भाषण दिया था, उसका वीडियो और भाषण के प्रमुख अंश जनपथ अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहा है। डॉक्टर कफ़ील अपने सपनों का भारत कैसा चाहते हैं, यह भाषण उसकी एक झलक मात्र है।

संपादक

आज हम भारत छोड़ो आंदोलन की बात कर रहे हैं। एक बार फिर हम लोगों को आंदोलन करना पड़ेगा। योगी जी को और मोदी जी को भगाने का नहीं। उनको भगाने का आंदोलन नहीं चाहिए। उनके इस आइडिया को भगाने का चाहिए जो नफरत, दंगे, घृणा फ़ैला रहे हैं।

मैं जब छोटा था तो होली में इतने देर तक होली खेलता था जब तक कि कपड़े फट नहीं जाते थे. हम सब दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा के विसर्जन के लिए नाचते हुए जाते थे. ईद और बकरीद में सेंवईयां सब लोग खाया-शेयर किया करते थे. तो ऐसा क्या हो गया है कि एक दूसरे से बात करने में भी लोग डर रहे हैं?

इंसान, इंसान को मरते देख खुश हो रहा है. ये हम इंसान नहीं हो सकते हैं. हम लोग को इंसान के फॉर्म में, मतलब हिन्दुस्तानी होने पर शर्म होनी चाहिए. जिस हिंदुस्तान की बुनियाद इसलिए बनी थी कि सब लोग साथ रहेंगे, सब लोग एक-दूसरे का दुःख बंटाएंगे, वहां पर एक दूसरे को मार कर खुश हो रहे हैं तो वो हिन्दुस्तान नहीं है.

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में उस रात तेईस बच्चे मरे थे. अगले दो दिनों में बाईस और मौतें हो गईं. उस दिन लिक्विड ऑक्सीजन की कमी हो गई थी. और तेईस मौतें जो हुईं उन पेरेंट्स को आज तक जस्टिस नहीं मिला, क्यों नहीं मिला? क्योंकि वह गरीब के बच्चे थे. किसी मंत्री का बच्चा होता या किसी बड़े आदमी का बच्चा होता तो सब कुछ सुधर गया होता.

1 जनवरी, 2018 से 31 जुलाई, 2018 तक 1200 बच्चों की मौत उस हॉस्पिटल में हो चुकी है. योगी जी क्लेम करते हैं कि हमने हॉस्पिटल में डेढ़ सौ करोड़ दे दिया है, 34 लाख लोगों को वैक्सीन लगा दी है. जापानी बुखार मच्छर के काटने से फैलता है. अब मच्छर कैसे जानेगा कि यह गरीब का बच्चा है कि अमीर का बच्चा है? क्यों नहीं अमीर के बच्चे को जापानी बुखार होता है? कभी सोचा है? क्यों मस्तिष्क ज्वर गरीब के बच्चे को ही हो रहा है? क्योंकि अमीर के पास पैसा होता है. उनके माँ-बाप जा कर प्राइवेट डॉक्टर के पास वैक्सीन लगवा लेते हैं. गरीब का बच्चा सरकार के ऊपर डिपेंड है कि सरकार वैक्सीन लगाएगी तो वैक्सीन लगेगा. तो मच्छर यह नहीं जान पाएगा कि यह गरीब का बच्चा है, मत काटो. अमीर का बच्चा है, नहीं काटो. या तो आप वैक्सीन लगाये नहीं हो या तो आप ऐसे ही क्लेम कर रहे हो कि हमने लगा दिया है. या दो डोज़ में से एक डोज़ लगा रहे हो.

उस काण्ड में मैं नौ महीने जेल रहा हूं. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि उन बच्चों की जान न जाए. नौ महीने बाद हाईकोर्ट कहता है कि यूपी गवर्नमेंट एक सुबूत भी आपके खिलाफ पेश नहीं कर पायी है, अब आप जा सकते हो. अब वह मेरे नौ महीने कौन देगा? क्या जुर्म था मेरा? मैंने तो बच्चों को बचाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर्स का अरेंजमेंट किया था. तो जो कहते हैं कि तीसरा स्तम्भ जूडिशियरी और चौथा स्तम्भ मीडिया, वो दोनों ही काम कर रहा है सरकार के अंडर में. मुझे वाइस प्रिंसिपल, हेड ऑफ दि डिपार्टमेंट, सब बना दिया. कहता है कि सिलेंडर चोरी करते थे, अरे बात सिलेंडर की नहीं थी. लिक्विड ऑक्सीजन जो पाइपलाइन से सप्लाई होता है, उसको चोरी कौन करेगा? इस तरह का प्रोपगंडा कर के उन्होंने बीआरडी ऑक्सीजन कांड को छुपा दिया.

आपको पता है कि डॉ. सतीश कुमार भी मेरे साथ जेल में थे. डॉ. सतीश कुमार बेहोशी वाले डॉक्टर थे. एनिस्थीसिया के. वह दलित थे. उनका बीआरडी के पीडियाट्रिक मतलब बच्चों के हॉस्पिटल से कोई मतलब ही नहीं है. फिर भी डीजीएमई ने जब रिपोर्ट लगायी तो यह निकाल दिया कि डॉ. सतीश कुमार बच्चों के वार्ड के हेड हैं और इस बात पर उन्हें जेल भेज दिया गया. नौ महीने तक जेल रहे.

जेल में जेलर जो है, हम लोग को एक चुटकुला सुनाता था कि एक बार एक नए-नए डीएम साहब आए और उनको एक बिल्ली ने पंजा मार दिया। डीएम साहब ने कहा कि सारी बिल्लियों को पकड़ लाओ. सारे पुलिस वाले बिल्ली पकड़ने में लग गये. तब उन्होंने देखा कि एक ऊँट भी भाग रहा है. उन्होंने कहा कि अबे तुम क्यों भाग रहे हो भाई? हम तो बिल्ली पकड़ रहे हैं. तो वो बोला, भाई अगर हमको पकड़ लोगे तो हमको भी महीनों लग जाएंगे यह बताने में कि हम बिल्ली नहीं हम ऊँट हैं.

यही हम लोग के साथ भी हुआ. सतीश कुमार सर को यह प्रूव करने में नौ महीने लग गये कि उनका पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट से यानी बच्चों के विभाग से कोई मतलब ही नहीं था.

तो आज यह गवर्नमेंट जो कर रही है- जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर, लोगों का रेप हो रहा है, मॉब लिंचिंग हो रही है, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, तो वह देश नहीं चाहिए.

आप सब यहां बैठे हो, रामायण सबने पढ़ी होगी, रामराज सबने जाना होगा. कहां रामराज में इतना रेप होता था? मैंने भी रामायण देखी है, हम लोग को भी स्कूल में रामायण पढ़ाया गया है, कहां रामराज में दलितों को इतना मारा जाता था? कहां रामराज में इतना लोग किसी आदमी को मार कर खुश होते थे, ताली बजाते थे, मिठाइयां बांटते थे? कहां रामराज में इतने किसान आत्महत्या करते थे? यह रामराज नहीं है. यह जंगल राज है. उनके कहने से यह रामराज नहीं बन जाता है.

तीन तलाक़, हलाला, चार शादी, यह मुसलमानों के कोई मुद्दे नहीं हैं. मैं मुस्लिम मौलाना-क्लेरिक नहीं हूं कि यह कहूं, पर हम जानते हैं 99% मुसलमानों के यह मुद्दे नहीं हैं. तीन तलाक़, हलाला और चार मैरिज न मेरे खानदान में किसी ने कभी किया है और न मेरे आस-पास के लोगों ने कभी किया होगा. पुराने जमाने में कभी होता होगा. लेकिन यह बीजेपी-आरएसएस वाले ऐसा शो करते हैं कि सारे मुसलमान इसी के लिए मरे जा रहे हैं. नहीं! हमारे लिए वही मुद्दे हैं- रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य और शिक्षा. हेल्थ, एजुकेशन, एम्प्लॉयमेंट और जॉब- हमें यह चाहिए.

आप जाइए, लॉ बनवा दीजिए, पर इस तरह की बातों को कर के जनता को बेवकूफ मत बनाइए. यह हमारे मुद्दे नहीं हैं. जो मुद्दे दलितों के हैं, जो मुद्दे किसी बैकवर्ड क्लास के हैं, जो मुद्दे आम आदमियों के हैं, जो मुद्दे इस देश के आम हिन्दुस्तानी के हैं वही मुद्दे मुसलामानों के भी हैं. कोई अलग से नहीं आए हैं हम. कोई अलग हैं भी नहीं.

मैं अभी केरल गया था, एक मंच पर मैं बैठा था और स्टूडेंट्स से इंटरेक्शन था, तो उन्होंने पूछा कि अम्बेडकर जी बड़े हैं कि गांधी जी बड़े हैं? तो मैं भी थोडा… तो मैंने ये क्वेश्चन सर से पूछा कि जवाब क्या है. उन्होंने बहुत सही जवाब दिया कि प्री-इंडिपेंडेंस यानि आजादी के पहले का हीरो हमारे पिता महात्मा गांधी थे और आजादी के बाद हमारे पिता अम्बेडकर जी हैं. उन्होंने ही इंसान को इंसानियत का दर्जा दिलाया.

यह कैसे हो सकता है कि आज भी 70 साल की आजादी के बाद किसी आदमी को अपनी शादी में घोड़े पर बैठने के लिए डीएम से इजाजत मांगनी पड़े? भाई मेरी शादी है, मैं घोड़े पर चढूं या हाथी पर चढूं, तुमसे क्या मतलब है? उसके लिए भी इजाजत मांगनी पड़ती है. और अगर चढ़ना चाहते हो तुमको सौ कोड़े मारे जाते हैं. यह हमारा भारत है?

सत्तर साल हो गये. तो वो जो समानता की, पुणे पैक्ट जो मांगा था अम्बेडकर जी ने, सेपरेट इलेक्ट्रेट की मांग की थी उसको वो गांधी जी के कहने पर छोड़ इसीलिए दिया था. हालांकि वह जिद करते थे. उनको पता था कि सत्तर साल बाद जो ब्राह्मणवाद है, जो सोच, जो आइडिया है कि हम दबा के ही रखेंगे इनको, वह सत्तर साल भी रहेगा. इसीलिए वह पुणे एक्ट की मांग कर रहे थे कि हमें अपना अलग वोटिंग अधिकार दो, अपना अलग क्षेत्र दो.

अभी बहुत टाइम हो गया है. लोकतंत्र के दो स्तम्भ मीडिया और जूडिशियरी भी इनके दबाव में आ चुके हैं. आपको अपने अन्दर इस बात को सोचना पड़ेगा. भारत माता रो रही है, भारत माता को ये लोग घायल कर रहे हैं. ये किसी के नहीं हैं. हमें जो अपना हिन्दुस्तान 76 साल पहले मिला था हमें वही चाहिए जहां हम लोग फिर से मिल के एक दूसरे का दुःख-दर्द बांट सकें. वो हिंदुस्तान जहां पर बिस्मिल्ला साहब की शहनाई मंदिरों के आंगन में फिर से बज सके.

जय भीम.. जय भारत         


इस भाषण का लिप्यंतरण अंकुर जायसवाल ने किया हैवीडियो PVCHR के सौजन्य से है।


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