मिर्जापुर: आंदोलन के आगे झुका प्रशासन, महीने भर बाद दर्ज हुई हत्याकांड की FIR


मिर्जापुर जिले में लालगंज थानांतर्गत घुराकाड़ा गांव के नौजवान महेंद्र सिंह पटेल की बीते 8-9 अगस्त की दरम्यानी रात हुई हत्या के मामले में आखिरकार जनता के दबाव में पुलिस ने एफआइआर दर्ज कर ली। स्थानीय अपना दल के नेता मुकदमा दर्ज न करने का दबाव बना रहे थे लेकिन भाकपा माले के आंदोलन के बाद पुलिस को करीब महीने भर बाद एफआइआर दर्ज करनी पड़ी।

महेंद्र सिंह पटेल प्रधानी का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। हत्या के बाद महेंद्र की लाश अगली सुबह गांव से एक किलोमीटर दूर मिली थी। मृतक के पिता ने उन पांच व्यक्तियों को नामजद करते हुए थाने में तहरीर दी थी जो वारदात की रात गांव के करीब की एक जगह पर मृतक के साथ मिल कर खाने-पीने में शामिल थे, मगर लालगंज थाने की पुलिस ने एफआइआर दर्ज नहीं की और आश्वासन देकर परिजनों को लौटा दिया था।

कुछ समय बाद जब परिवार वाले पुनः थाने गए और एफआइआर दर्ज करने के लिए कहा, तो थानाध्यक्ष ने पहली वाली तहरीर समझ में न आने की बात कह दूसरी तहरीर देने के लिए कहा। पिता ने दूसरी तहरीर भी दे दी। थानाध्यक्ष ने कार्रवाई करने की बात कह उन्हें पुनः वापस घर भेज दिया। कई दिन बीतने के बाद भी जब कुछ होता नहीं दिखा, तो मृतक के परिवार वालों ने भाकपा (माले) की जिला कमेटी सदस्य कामरेड रीता जायसवाल, जो उसी ब्लाक क्षेत्र में रहती हैं, से संपर्क किया और मदद मांगी। उन्होंने जिले के अपने पार्टी नेताओं को इस घटना की जानकारी दी।

इसके बाद राज्य कमेटी सदस्य कामरेड जीरा भारती ने साथियों सहित घटनास्थल का दौरा कर तथ्यों की पड़ताल की। पार्टी ने एफआइआर दर्ज करने और दोषियों को गिरफ्तार करने की मांग को लेकर लालगंज तहसील मुख्यालय पर प्रदर्शन करने की योजना बनायी। 4 सितंबर 2020 को सुबह सैकड़ों लोगों ने भाकपा (माले) नेताओं की अगुवाई में मृतक के गांव से लालगंज तहसील मुख्यालय के लिए मार्च कर दिया। मृतक की लोकप्रियता के चलते मार्च में परिजन ही नहीं, बल्कि गांव के अधिकांश लोग शामिल थे। मार्च लालगंज उपजिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर प्रदर्शन में बदल गया। यहां प्रदर्शनकारियों की संख्या 600 से ऊपर हो गयी। मार्च और प्रदर्शन का नेतृत्व माले की राज्य स्थायी समिति के सदस्य का. शशिकांत कुशवाहा, का. जीरा भारती, जिला सचिव सुरेश कोल व अन्य साथियों ने किया।

उपजिलाधिकारी के प्रतिनिधि के रूप में तहसीलदार व दरोगा वार्ता करने प्रदर्शन स्थल पर आये और वार्ता के बाद यह कहकर वापस हुए की एफआइआर की कॉपी लेकर आते हैं। देर तक दोनों नहीं लौटे। जनता प्रदर्शन करते हुए डटी रही। पुलिस क्षेत्राधिकारी (सीओ) से कामरेड जीरा भारती के नेतृत्व में माले टीम की वार्ता हुई। सीओ ने जीरा भारती को संबोधित करते हुए तंज किया कि दिल्ली में आपका नाम सुना था मैंने, फूलन देवी के बाद आप ही हैं यहां। बहरहाल, सीओ ने लालगंज थाने वालों को कहा कि इनकी रिपोर्ट दर्ज हो और दोबारा यह मामला हमारे सामने न आये। इस बीच थाने के दरोगा ने प्रदर्शन में शामिल मृतक के पिता से रिपोर्ट दर्ज करने के नाम पर तीसरी तहरीर ली।

दोपहर दो बजे से कामरेड जीरा भारती और जिला सचिव सुरेश कोल के साथ एक टीम थाने के भीतर डटी रही, बाकी साथी प्रदर्शनकारियों के साथ उपजिलाधिकारी कार्यालय पर रहे। इस बीच पुलिस की बहानेबाजी जारी रही कि नेटवर्क नहीं है, तो कम्प्यूटर में दिक्कत है, कैसे दर्ज हो एफआइआर! इस तरह शाम हो गयी। रात करीब नौ बजे एएसपी और स्थानीय विधायक (जो भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल ‘अपना दल’ से हैं) थाने आये। फिर उन्होंने मृतक के पिता को सबसे अलग कर समझाने-मनाने के लिए बातचीत शुरू की, हालांकि पिता एफआइआर दर्ज कराने पर कायम रहे।

दरअसल, इस हत्याकांड में मृतक के सजातीय लोग भी अभियुक्त हैं। क्षेत्रीय  विधायक और सांसद दोनों ही ‘अपना दल’ से हैं जिसका पटेल सामाजिक आधार है और ये शुरू से ही एफआइआर दर्ज न होने देने के लिए पुलिस-प्रशासन को अपने दबाव में लिए हुए थे। मृतक गरीब परिवार से है। विधायक के दबाव में पुलिस की कोशिश हत्या को आत्महत्या दिखाने की हो रही थी लेकिन परिवार वालों के पास मृतक के शव की फोटो थी, जिस पर मारपीट व खून के स्पष्ट निशान थे। थाने में यह फोटो दिखा कर पुलिस से बहस होती रही।

बहरहाल, जनता के प्रतिवाद की जीत हुई। पुलिस की तमाम ना-नुकुर के बाद, बिना एफआइआर की कॉपी लिए वापस नहीं जाने के प्रदर्शनकारियों के संकल्प के आगे प्रशासन को नतमस्तक होना पड़ा। आधी रात बाद एफआइआर दर्ज हुई और रात करीब ढाई बजे एफआइआर की कॉपी मृतक के परिवार वालों को उपलब्ध करायी गयी। तब जाकर प्रदर्शन खत्म हुआ और रात तीसरे पहर तहसील मुख्यालय से वापस मार्च कर प्रदर्शनकारी चार बजे भोर अपने गांव पहुंचे।

भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने कहा है कि मुख्यमंत्री योगी के शासन में हत्या की एफआइआर तक दर्ज कराने के लिए नाकों चने चबाने पड़ते हैं, न्याय मिलना तो दूर की कौड़ी है। राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि मिर्जापुर का महेंद्र सिंह पटेल हत्याकांड इसका जीता-जागता उदाहरण है, जहां राजनीतिक दबाव में हत्या को पुलिस आत्महत्या बताने और कार्रवाई से बचने की कोशिश करती रही है। यदि जनता सड़कों पर न उतरती, तो इसकी एफआइआर तक दर्ज नहीं होती।

अरुण कुमार
राज्य कार्यालय सचिव


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