सर्वोच्च न्यायालय सुधा जी को बिना किसी देरी के तत्काल रिहाई का आश्वासन दे: छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा


दिनांक 01 दिसंबर 2021 को भीमा कोरेगाँव मामले में विगत तीन वर्ष से ज्‍यादा समय से जेल में कैद  अधिवक्ता, मानव अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने जमानत  दी थी। हम छत्तीसगढ़ के विभिन्न संगठन बॉम्बे उच्च न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत करते हैं।

छत्तीसगढ़ के उन तमाम मेहनतकश लोगों के लिए यह बड़ी राहत की खबर है जो उनके गैरकानूनी गिरफ़्तारी के खिलाफ उनकी रिरहाई के लिए  शुरुआत से आंदोलनरत थे। यहाँ यह बताना ज़रूरी हो जाता है कि सुधा भारद्वाज को यह जमानत इसलिए मिली क्योंकि निर्धारित समय में उनका  चालान अधिकृत न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया गया था। साथ ही उसी मामले में 8 और साथियों की जमानत अर्जी ख़ारिज किए जाने पर गंभीर  निराशा व्यक्त करते हैं।

यह स्पष्ट है कि भीमा कोरेगांव मामले में साजिश के तहत  देश के अलग अलग जगहों पर काम कर रहे 16 मानव अधिकार कार्यकर्ताओं, अधिवक्ता, सांस्कृतिक कर्मी को गिरफ्तार किया गया है, जिसके विरोध में हम तमाम संगठन शुरुआत से ही अपना स्पष्ट विरोध जाहिर करते रहे हैं।  

सुधा भारद्वाज की यह जमानत केंद्र की कॉर्पोरेटपरस्त, ब्राह्मणवादी फासिस्ट सरकार के लिए एक तगड़ा झटका था जिसका अंदाज़ा इसी से लगाया  जा सकता है कि आर्डर आने के  दूसरे दिन ही एनआइए द्वारा सुप्रीम कोर्ट में इसे चैलेन्ज कर दिया  गया और पुरजोर कोशिश की जा रही है कि किसी भी हालत में सुधा भारद्वाज को जेल से बाहर आने से रोका जाये। विगत कुछ समय में यह  स्पष्ट हो ही गया है कि एनआइए एक स्वतंत्र जाँच एजेंसी न होकर भाजपा की एजेंसी के रूप में कार्य कर रही है। एनआइए हर उन नागरिकों पर यूएपीए डाल रही  है, घरों में रेड कर रही है जो भाजपा का किसी भी लोकतांत्रिक तरीकों से विरोध करते हैं। इस गंभीर स्थिति में सर्वोच्‍च न्यायालय से यह पूर्ण  आशा रखते हैं कि वह सुधा जी को बिना किसी  देरी के तत्काल रिहाई का आश्वासन  देगा जो वर्तमान  दमन के  दौर पर न्याय का एक करार  तमाचा होगा।  

उपरोक्त भीमा कोरेगांव मामले के अलावा दमनकारी कानून यूएपीए ( विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम) का जनता की लोकतांत्रिक आवाज को दबाने के लिए जिस तरह वर्तमान सरकारें उपयोग कर रही हैं वह भयावह है। 8 मार्च अंतरष्ट्रीय महिला दिवस के दिन आदिवासी पर्यावरण कार्यकर्ता हिड़मे मरकाम की गिरफ़्तारी, जो विगत कई वर्षों से जल, जंगल, ज़मीन को बचाने की लड़ाई लड़ रही थीं और प्रमुख भूमिका निभा रही थीं,  एक ठोस उदाहरण है। उपरोक्त भीमा कोरेगांव मामले में ही स्टैन स्वामी की सांस्थानिक हत्या कर दी गयी। इसके साथ ही दलितों, अल्पसंख्यक  समुदाय, आदिवासियों के खिलाफ व्यापक तौर पर इस कानून का उपयोग किया जा रहा है। इस कानून पर कई ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये जा चुके हैं जो  इसके रद्द करने की मांग को और भी मजबूत करते हैं। हम सभी संगठन इस कानून को रद्द करने की मांग को पुरजोर समर्थन देते हैं।  

हम उम्मीद करते हैं कि जल्द ही सुधा भरद्वाज जेल की चारदीवारी से बाहर हमारे बीच होंगी, साथ ही अन्य साथियों की भी शीघ्र रिहाई के लिए निरंतर संघर्ष जारी रखा जाएगा। उन तमाम जनवादी साथियों के साथ जो लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने की लड़ाई में इस  दमनकारी रवैये का शिकार  बने हैं उनके संघर्षों के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करते हैं तथा यूएपीए जैसे कानूनों के खिलाफ आगामी लड़ाइयों को तेज़ करने का आह्वान करते हैं। 


छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा मजदूर कार्यकर्ता समिति, नगरी निकाय जनवादी सफाई कामगार यूनियन, महिला मुक्ति मोर्चा, प्रगतिशील सीमेंट श्रमिक संघ, लोकतांत्रिक इस्पात एवं इंजिनियरिंग मजदूर यूनियन, जन आधारित पावर प्लांट मजदूर यूनियन, जन स्वास्थ्य कर्मचारी यूनियन


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