संकट में साम्राज्यवाद: नस्लवाद और युद्ध के विरुद्ध संघर्ष


दिनांक 21 जून 2020 को अखिल भारतीय शांति और एकजुटता संगठन (एप्सो) द्वारा “संकट में साम्राज्यवाद: नस्लवाद और युद्ध के विरुद्ध संघर्ष” विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार (ऑनलाइन परिचर्चा) का आयोजन किया गया।

इस वेबिनार एवं परिचर्चा के विषय प्रवर्तक एवं संयोजक भारत से एप्सो के राष्ट्रीय सचिव कॉमरेड विनीत तिवारी एवं संयुक्त राज्य अमेरिका से डॉ. अर्चिष्मान राजू थे। इस परिचर्चा में भारत, अमेरिका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका समेत विश्व के अनेक देशों से सैकड़ों बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ. अर्चिष्मान राजू ने संयुक्त राज्य अमेरिका एवं भारत सहित विश्वभर में बढ़ते हुए नस्लभेदी रवैये, और हाल ही में अमेरिका में अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या एवं अन्य घटनाओं का अमेरिकी और दक्षिण एशियाई संदर्भ में विश्लेषण कर विषय प्रवर्तन किया।

डॉ. राजू ने इस अवसर पर अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन के साथी रोमेश चंद्रा को एवं अने विश्वशांति के लिए योगदान को उनकी जन्मशती के अवसर पर याद किया।

कार्यक्रम के प्रथम वक्ता सैटरडे स्कूल USA के डॉ. एंथोनी मोंटेरो थे, उन्होंने अपने वक्तव्य की शुरुआत अफ्रो-अमेरिकन लोगों के समानता एवं नागरिकता अधिकारों के लिए संघर्ष का उल्लेख करते हुए अमेरिका में जारी वर्तमान संकट का विश्लेषण प्रस्तुत किया और बताया कि वहां लोगों का विश्वास वर्तमान सरकार के नस्लभेदी रवैये के चलते सरकारी संस्थानों पर से उठता जा रहा है, उन्होंने इस को अमेरिकी साम्राज्यवादी एवं पूंजीवादी व्यवस्था एवं प्रणाली के पूर्ण रूप से ढह जाने वाली स्थिति बताया।

फिलाडेल्फिआ (अमेरिका) से परिचर्चा में भागीदारी करते हुए अश्वेत आंदोलन से गहरे जुड़े हुए डॉ. एंथोनी मोंटेरो ने इतिहास का उल्लेख करते हुए इस संकट से भी अमेरिकी जनता के लिए एक नए नेतृत्व के उदय की उम्मीद जताई।

उनके बाद पूर्व वित्त सचिव एवं गैट में भारत के पूर्व राजदूत श्री एस. पी. शुक्ला ने डॉ. मोंटेरो की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि पिछले दो विश्वयुद्धों की तरह इस संकट से भी विश्व को नया नेतृत्व प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि इस संकट ने सारी प्रणालियां और व्यवस्थाएं निष्प्रभावी कर दी हैं। अमेरिका, यूरोप एवं विश्वभर में नस्लभेदी, कट्टरपंथी एवं घोर दक्षिणपंथी शक्तियों के उभार ने सांप्रदायिक नस्लभेदी राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया है, जिससे विश्व राजनीति में क्षेत्रीय पहल एवं गुट निरपेक्ष आंदोलन जैसे संगठन कमज़ोर हो गए है। उन्होंने समस्त उपलब्ध विकल्पों और उनके उपयोग की प्रासंगिकता पर भी चर्चा की।

अगले वक्ता अमेरिकी पीस काउंसिल के सचिव और संयुक्त राष्ट्र संघ में वर्ल्ड पीस कौंसिल के प्रतिनिधि प्रोफ़ेसर बहमान आज़ाद थे। उन्होंने कहा कि अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 2001 में हुए हमले के बाद से ही युद्ध मशीनरी को बहुत सक्रिय कर दिया गया था और अब ट्रंप प्रशासन ने इसे हद से ज्यादा सक्रिय कर दिया है। उन्होंने सीरिया, क्यूबा, वेनेजुएला आदि कई देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि इससे विश्वभर में सैन्य, आर्थिक एवं पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं और वर्तमान समय में कोविड 19 ने नवउदारवादी आर्थिक नीतियों को पूर्ण रूप से उजागर कर दिया है, जहां मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव महसूस किया जा रहा है। प्रो बहमान आज़ाद के अनुसार ये सब एक गंभीर संकट के लक्षण हो सकते है जो साम्राज्यवादी पूंजीवादी आक्रामकता के रूप में परिलक्षित है। उन्होंने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शांति और सद्भाव के प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकजुट करने की आवश्यकता पर बल दिया।

अगले वक्ता बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट एडव्होकेट और बांग्लादेश शांति समिति के सचिव हसन तारिक़ चौधरी ने वर्तमान स्थिति की दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय और बांग्लादेश के राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में व्याख्या की। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी का पूंजीवाद गंभीर संकट में है और कोविड 19 ने इसकी कमजोरियों को पूरी तरह उजागर कर दिया है। जब-जब पूंजीवाद संकट में होता है, हम कह सकते हैं कि साम्राज्यवाद भी संकट में है। हसन तारिक़ चौधरी ने अमेरिकी नस्लवाद के दक्षिण पूर्व एशिया में बढ़ रहे सांप्रदायिक भेदभाव से जुड़ाव को रेखांकित करते हुए अमेरिकी और भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न देशों के शासकों द्वारा इस भेदभाव के राजनीतिक (दुरू)उपयोग को स्पष्ट किया। उन्होंने 21वीं सदी के शांति एवं सद्भाव के प्रयासों को भेदभाव वाली शक्तियों का सामना करने के तरीके ढूंढ़ने की जरूरत पर ज़ोर दिया।

अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन (एप्सो) के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड अरुण कुमार ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता एवं वर्तमान भारतीय राजनीतिक नेतृत्व द्वारा उसकी जानबूझ कर की जा रही अनदेखी पर अपने विचार रखे। उन्होंने नस्लभेद के नवउदारवादी पूंजीवाद से, वर्तमान जनस्वास्थ्य संकट एवं मेहनतकशों द्वारा किए जा रहे संघर्षों की समानता से संबंधों को समझने के लिए उसे और भी व्यवस्थित नजरिए से देखे जाने की अपील की।

पाकिस्तान के राजनीतिक आंदोलनकारी और लाहौर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तैमूर रहमान ने दक्षिण-पूर्व एशियाई एवं पाकिस्तान के राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कहा कि हमारे देशों के बीच कई आंतरिक अलगाव हैं जिनमें धार्मिक एवं साम्प्रदायिक अलगाव मुख्य हैं। हम बड़ी आसानी से यह भूल जाते हैं कि साम्राज्यवाद महज़ एक नीति नही है, बल्कि यह शोषण की एक व्यवस्था है और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष को एकजुटता के लिए काम करना चाहिए जो शोषण की प्रणालीगत प्रकृति को बदलने में कामयाब हो सके।

श्रीलंका के युवा पत्रकार रामिंदु परेरा ने भी अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या को विश्वभर में बढ़ती नस्लभेदी विचारधारा से जोड़ते हुए वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अपनी बात रखी।

कार्यक्रम के अंत में प्रश्नोत्तर हुए जिसमें डॉ. एंथोनी मोंटरो, एस.पी. शुक्ला, बहमान आज़ाद, रामिंदु परेरा एवं अरुण कुमार ने प्रश्नों के उत्तर दिए।

करीब ढाई घण्टे चली इस परिचर्चा के अंत में कॉमरेड विनीत तिवारी एवं डॉ. अर्चिष्मान राजू ने आभार प्रदर्शन किया।


रिपोर्ट: विवेक मेहता


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