यदि आप भगत सिंह के तीसरे रिश्तेदार हैं, तो उनसे सीखने का यह सही वक्त है!


पाखण्ड का हमारे जीवन में कोई स्थान नहीं है। हमने अपने देश की परिस्थिति और इतिहास का गहरा अध्ययन किया है। यहां की जन आंकाक्षाओं को हम खूब समझते है।

भगतसिंह

भगतसिंह को अपने समय ने गढ़ा था। मुल्क में उस वक्त के हालात और उनके मन के अन्दर चल रही मातृभूमि की पीड़ा उन्हें स्वाधीनता आन्दोलन तक खींच ले गयी। ये बात सोलह आने सच है, उन्होंने एक इंकलाबी ज़िंदगी को जीते हुए आजादी के लिए भेड़चाल से चल रहे आंदोलनों के दरवाजों पर इंकलाब की दस्तक दी, कहा हमारी ये लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक शोषण पर टिकी व्यवस्था का अंत नहीं हो जाता बेशक इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमें लूटने वाले गोरे अंग्रेज हैं या विशुद्ध भारतीय। इंकलाब की इस एक सदा ने न सिर्फ आजादी के लिए चल आंदोलन के चेहरे को बदला बल्कि भविष्य के लिये हमें आगाह भी किया कि वक्त कोई भी हो आजादी को बचाने के लिए संघर्ष को जारी रखकर ही आजादी को बचाया रखा जा सकता है।

भगत सिंह की जेल डायरी के पन्ने दर पन्नों से केवल उनके बारे में नहीं पता चलता और न ही उन्होंने खुद के गुण-गान के लिए अपनी आपबीती से कागज को काला किया। जेल डायरी में लिखे उनके विचार क्रान्ति का खाका है, एक युगदृष्टा का शोषणविहीन भारत बनाने का दस्तावेज है। भगत सिंह को अपना बड़ा भाई साथी या हमसफर इनमें से जो चाहे मान लें, उनका आह्वान है कि चले चलो कि वो मंजिल अभी आयी नहीं। एक बार आप उन्हें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जगह दें तो सही देखिएगा आपके सपनों की दहलीज पर वो आपको कहते हुए मिलेंगे … यार ज़िंदगी तो अपने दम पर जी जाती है, दूसरों के कांधे पर तो सिर्फ जनाजा उठता है। या फिर अपनी मुश्किलों की घड़ियों में उन्हें याद कीजिए वो हंसते हुए कहेंगे दुःख, तकलीफ तो ज़िंदगी का हिस्सा है, हमें चुनौतियों से भागना नहीं उनका मुकाबला करना चाहिए। अंधी श्रद्धा या फिर दिन विशेष पर चंद नारे उछाल कर उन तक नहीं पहुंचा जा सकता।

उनके क्रांति का मनोविज्ञान युवा मन को बखूबी समझता है। एक जगह वो लिखते हैं:

समाज पर घुन की तरह जीने वाले लोग अपनी सनक पूरी करने के लिए करोड़ो रूपये पानी की तरह बहा रहे हैं। यह भयंकर विषमताएं और विकास के अवसरों की कृत्रिम समानताएं समाज को अराजकता की ओर ले जा रही हैं।… वर्तमान सामाजिक व्यवस्था एक ज्वालामुखी के मुख पर बैठी हुई आनन्द मना रही है…. सभ्यता का यह प्रासाद यदि वक्त रहते संभाला न गया तो शीघ्र ही चरमरा कर बैठ जायेगा।

देश को एक आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। और जो लोग इस बात को महसूस कर रहे हैं उनका कर्तव्य है कि समाजवादी सि़द्धान्तों पर समाज का पुनर्निर्माण करें। जब तक यह नहीं किया जाता और मनुष्य द्वारा मनुष्य और राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण जो साम्राज्यशाही के नाम से विख्यात है, समाप्त नहीं कर दिया जाता तब तक मानवता को उसके क्लेशों से छुटकारा मिलना असम्भव है। क्या शोषण का चेहरा आज भी मौजूद नहीं है?

मजहब, जाति, भाषा, अपने-पराये के नाम पर बंट कर लड़ रहे समाज को भगत सिंह एक बात और सिखा जाते हैं। जेल में कारावास भोग रहे सोहन सिंह भकना ने भगत सिंह से जब पूछा क्या बात है भगत तुम्हारा कोई रिश्तेदार तुमसे मिलने नहीं आता तो भगत सिंह ने कहा था:

बाबा जी असली रिश्ता तो खून का होता है। मेरे रिश्तेदार तो वो हैं जिनके जैसा खून मेरी रगों में बहता है। शहीद खुदीराम बोस, करतार सिंह सराभा मेरे रिश्तेदार थे। दूसरा रिश्ता आप जैसे लोगों के साथ है, जिनसे मैंने क्रांतिपथ पर चलने की प्रेरणा ली। और तीसरे रिश्तेदार वो होंगे जो अभी जन्म लेंगे…. क्रांतिपथ को अपने खून से सींचकर अपने लक्ष्य तक पहुंचाएंगे, इसके अलावा और कोई रिश्तेदार हमारा हो नहीं सकता।

भगत सिंह का तीसरे रिश्तेदार वो है, जो शोषणविहीन समाज का सपना देखते हैं। जिन्हें अन्याय पल भर के लिए बर्दाश्त नहीं। अपने समय को जीते हुए हम किसी बड़े परिर्वतन की जरूरत शिद्दत से महसूस तो कर रहे हैं, शोर और नारों की क्षणिक उत्तेजना के बीच भगतसिंह तक नहीं पहुंचा जा सकता। अवसरवाद और मतलबपरस्त राजनीति के उलट-फेर में फंसे हम लोगों के लिए भगत सिंह के विचार रोडमैप की तरह है। इंकलाब से परिवर्तन तक पहुंचने के लिए पहले भगत सिंह को समझना होगा, सीखना होगा।

हां….भगत सिंह ये तुमसे सीखने का वक्त ही तो है…!


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