तानाशाही सत्ता में गिटार बजाने की आज़ादी के लिए हेलिन-इब्राहीम ने अपनी जान दे दी…


अलविदा इब्राहीम गोक्चेक! इंक़लाबी लाल सलाम!

हेलिन बोलेक के बाद आज उनके साथी संगीतकार इब्राहीम गोक्चेक भी हमसे जुदा हो गये। वे अपना गिटार खुलकर बजा सकें, इसी आज़ादी की माँग पर 323 दिनों की भूख हड़ताल के बाद इब्राहीम भी अपनी साथी हेलिन के पीछे चले गये जिसने 3 अप्रैल को हमारा साथ छोड़ा था। तुर्की में यह परम्परा रही है कि भूख हड़ताल के दौरान कुछ भी ठोस नहीं खाते पर तरल पदार्थ ले सकते हैं। ये दोनों तुर्की के क्रान्तिकारी संगीत बैंड ‘ग्रुप योरम’ के सदस्य थे।

एर्दोआन की बर्बर हुक़ूमत ने इस बैंड पर इसलिए प्रतिबन्ध लगा दिया गया था क्योंकि वे उसकी ज़ालिम और दकियानूस सत्ता का विरोध करते थे और समाजवाद और मज़दूर वर्ग के गीत गाते थे। 2016 में बैंड के सभी सदस्यों की गिरफ़्तारी के फ़रमान के बाद पुलिस ने उनके सांस्कृतिक केंद्र पर छापा मारा और उनके वाद्य यंत्रों तक को नष्ट कर दिया था। तुर्की में पहली बार, कलाकारों के सिर पर ईनाम रखे गये और उन्हें “फ़रार आतंकवादियों” की सूची में डाल दिया गया।

एर्दोआन की फ़ासिस्ट हुक़मत के लिए वे आतंकवादी और देशद्रोही थे क्योंकि वे उन खदान मज़दूरों के बारे में गाते थे जो धरती से सात मंज़ि‍ल नीचे की गहराई में बेहद ख़राब हालात में काम करते-करते मर जाते थे; क्योंकि वे उन क्रान्तिकारियों के बारे में गाते थे जिन्हें एर्दोआन की फ़ासिस्ट सत्ता ने यातनाएँ दे-देकर मार डाला था; क्योंकि वे उन किसानों के बारे में गाते थे जिनकी ज़मीनें छीन ली गयी थीं, वे तुर्की में उत्पीड़ि‍त कुर्द लोगों के बारे में गाते थे, वे उन ग़रीबों के बारे में गाते थे जिनकी झुग्गी बस्तियों को बुलडोज़रों ने रौंद डाला था, और वे उन बुद्धिजीवियों के बारे में गाते थे जिन्हें चुप कराने के लिए मौत के घाट उतार दिया गया था। वे प्रतिरोध के गीत गाते थे और रेसेप तैयप एर्दोआन के क्रूर शासन के लिए यह आतंकवाद से कम नहीं था।

जन आन्दोलनों के नृशंस दमन के बाद 2016 में एर्दोआन द्वारा आपातकाल की घोषणा होते ही कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और लेखकों-कलाकारों-संगीतकारों पर दमनचक्र तेज़ हो गया था। तुर्की में बेहद लोकप्रिय इब्राहीम और उनके बैंड के सदस्यों ने अचानक एक सुबह पाया कि वे आतंकवादी करार दिये गये हैं और उनके सिरों पर ईनाम रख दिया गया है। उनके घरों और सांस्कृतिक केन्द्र पर दो साल में 9 बार छापे मारे गये। आख़ि‍रकार उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया।

गिरफ़्तारी के कुछ ही दिनों के बाद पिछले साल इब्राहीम और हेलिन बोलेक ने राजनीतिक बन्दियों के अधिकारों की माँग पर भूख हड़ताल शुरू कर दी और फिर इसे आमरण भूख हड़ताल में बदल दिया। उनकी माँगें थीं कि उनके बैंड पर से प्रतिबन्ध हटाया जाये, तुर्की में कहीं भी अपने संगीत की प्रस्तुति देने की उन्हें आज़ादी मिले, उनके तमाम गिरफ़्तार साथियों को रिहा किया जाये और उन पर से मुक़द्दमे हटाये जायें।

उन्हें पिछले नवम्बर में जेल से रिहा किया गया था लेकिन अपनी माँगों को लेकर उनका विरोध जारी रहा। ग्रुप योरम बैंड के दो सदस्य अब भी जेल में हैं। इनमें से एक गोक्चेक की पत्नी हैं।

तुर्की के सैकड़ों लेखकों-कलाकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की आवाजों को अनसुना करते हुए फ़ासिस्ट हुक़ूमत अपनी इस ज़ि‍द पर अड़ी रही कि पहले उन्हें भूख हड़ताल ख़त्म करनी होगी उसके बाद ही कोई बात की जायेगी। अट्ठाइस साल की ख़ूबसूरत और लोकप्रिय गायिका हेलिन 288 दिनों की भूख हड़ताल के बाद 3 अप्रैल को नहीं रही। आज वह इस्ताम्बुल की एक क़ब्रगाह में सो रही है।

कुछ साल पहले मई दिवस के मौक़े पर 55,000 श्रोताओं के सामने गाते हुए

मृत्यु से कुछ दिन पहले लिखे अपने ख़त में 41 वर्षीय इब्राहिम ने कहा था, “मैं अपनी खिड़की से बाहर नज़र डालता हूँ और मुझे इस्ताम्बुल के ग़रीबों की बस्तियाँ दिखाई देती हैं। मैं इस क़दर कमज़ोर हूँ कि बाहर नहीं जा सकता, मेरा वज़न अब बस 40 किलो है। लेकिन मैं कल्पना करता हूँ कि मैं अपने गिटार के साथ मंच पर हूँ और मैं देखता हूँ कि हज़ारों तुर्क लोग आसमान में मुट्ठियाँ लहराते हुए ‘बेला चाओ’* गा रहे हैं।” (*दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान फ़ासिस्टों से लड़ने वाले इतालवी छापामारों का गीत)

इब्राहीम आज हमारे बीच नहीं हैं। अपने देश में इंक़लाब का सपना लिये हुए उनकी चमकदार आँखें आज हमेशा के लिए मुँद गयीं।

बार-बार कहा जाता है कि कम्युनिस्ट यूटोपिया में जी रहे हैं और समाजवाद एक असफल सिद्धान्त और कभी सच न होने वाला स्वप्न है। फिर क्या वजह है कि सारी दुनिया में मज़लूमों और मज़दूरों के हक़ में आवाज़ उठाने वालों को रोज़ सताया जाता है? क्या वजह है कि सारी सत्ताएँ उनकी आवाज़ बन्द करने के लिए जु़ल्म की इन्तेहा करने पर आमादा हो जाती हैं? चाहे भारत हो या तुर्की, सारे फ़ासिस्ट उनसे इस क़दर डरते क्यों हैं?

जवाब साफ़ है। सारे तानाशाह जानते हैं कि इंक़लाबी अपनी जान पर खेलकर भी उनके पाखण्ड को लोगों के सामने नंगा कर देंगे। वे समझते हैं कि कम्युनिस्ट इतिहास को करवट बदलने पर मजबूर कर सकते हैं। वे जानते हैं कि ये ज़ि‍द्दी इंसान तब तक लडते रहेंगे जब तक दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी रहेगी, वे तब तक जूझेंगे जब तक वे अपने इर्दगिर्द की भौतिक परिस्थितियों को बदलकर नहीं रख देंगे। वे समझते हैं कि यही वे लोग हैं जो एक दिन जनता के दिलो-दिमाग़ में क्रान्ति के बीजों को रोप देंगे और तब भूख, ज़ि‍ल्लत और मौत पर टिके उनके इस निज़ाम की उल्टी गिनती शुरू हो जायेगी। इसीलिए अपने डर को झुठलाने के लिए वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हैं कि कम्युनिज़्म ख़त्म हो गया और रात-दिन हमें चुप कराने, ख़त्म कर देने और क़ैदख़ानों में डालने की साज़ि‍शों में लगे रहते हैं।

मगर वे नहीं जानते कि हेलिन और इब्राहीम जैसे लोग कभी मरते नहीं। हमारे प्यारे भगतसिंह और पाश की तरह वे करोड़ों-करोड़ लोगों के दिलों में ज़िन्दा रहते हैं, उनके दिलों को उम्मीद और हौसले से रौशन करते रहते हैं, और हुक़्मरानों के सीने में ख़ंज़र की तरह धँसे रहते हैं।

हिन्दुस्तान के अवाम की ओर से हम हेलिन और इब्राहीम को इंक़लाबी सलाम पेश करते हैं। कॉमरेड, तुम्हारे ख़ून से एक दिन इंक़लाब के फूल खिलेंगे और नाज़िम हिक़मत और रूमी की धरती तुम्हारे संघर्ष की याद में लिखी कविताओं और गीतों से गूँज उठेगी।


यह पोस्ट लेखक, अनुवादक और पत्रकार सत्यम वर्मा की फेसबुक दीवार से साभार है


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5 Comments on “तानाशाही सत्ता में गिटार बजाने की आज़ादी के लिए हेलिन-इब्राहीम ने अपनी जान दे दी…”

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