मनीषा के बहाने एक देश की सम्प्रभुता को ठेंगा दिखाने वाले शासक वर्ग के पिट्ठू पत्रकार


कल की बात है।

टीवी की स्क्रीन पर मोटे अक्षरों में आता है- “भारत का खाओगी, चीन का गाना गाओगी?” इसके बाद शुरू होता है अभिनेत्री मनीषा कोइराला पर तीनों ऐंकरों का हमला, जो हर रोज़ सवेरे एबीपी न्यूज़ पर ‘नमस्ते भारत’ प्रोग्राम प्रस्तुत करते हैं। संदर्भ था कालापानी, लिम्पियाधुरा तथा लिपुलेक को अपना भू-भाग बताते हुए नेपाल द्वारा जारी किये गये नक्शे के संदर्भ में नेपाली विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली के ट्वीट पर मनीषा कोइराला का ट्वीट जिसमें मनीषा ने लिखा था- “हमारे छोटे राष्ट्र की गरिमा बनाये रखने के लिए धन्यवाद। तीन महान देशों के बीच हम शांतिपूर्ण और सम्मानजनक बातचीत की उम्मीद कर रहे हैं।“

बस, इतना ही। अत्यंत शालीन भाषा में एक नागरिक की अपने देश की संप्रभुता और आत्मसम्मान को रेखांकित करती हुई यह टिप्पणी।

https://twitter.com/mkoirala/status/1262409634498953216?s=20

ऐंकर विकास भदौरिया ने बताया कि कैसे भारत में रहते हुए मनीषा को बेशुमार पैसा और शोहरत मिली लेकिन आज वह भारत के खिलाफ चीन के साथ खड़ी हैं। भदौरिया ने कहा- “खाते भारत का हैं और गीत चीन के गाते हैं।” हैरानी होती है इन समाचार चैनलों की बौद्धिक कंगाली पर। क्या अब कहीं किसी पढ़े-लिखे संपादक जैसे व्यक्ति का अस्तित्व इन चैनलों में नहीं है? क्या जाहिलों की जमात ही अब सब कुछ तय कर रही है कि क्या प्रसारित हो क्या नहीं? या हर चैनल में जो गिने-चुने पढ़े-लिखे लोग हैं वे चुप रहने के लिए अभिशप्त हैं? 

इस सवाल के जवाब में मेरे एक युवा पत्रकार मित्र ने बताया कि दरअसल मोदी सरकार आने के बाद से और खास तौर पर जेएनयू प्रकरण के बाद से ‘राष्ट्रभक्त’ और ‘राष्ट्रद्रोही’ वाला जो एक लार्जर नैरेटिव बना, उस में हर खबर को फिट करने का यह मामला है। एक पैमाना मिल गया है कि खबरों को ऐसे रखेंगे तो प्रो-इस्टेब्लिशमेंट बने रहेंगे। जिन्हें सचमुच पत्रकारिता करनी है, वे चैनलों से इतर कहीं और गुंजाइश निकालें।  

दोपहर होते-होते यह खबर अब डिबेट का रूप लेने की तैयारी में लग गयी जो कि आम तौर पर चैनलों का चलन हो गया है। अब खबर की बागडोर चैनल की सबसे समझदार और अनुभवी ऐंकर रोमाना ईसार खान के हाथ में थी… लेकिन रोमाना का भी नज़रिया वही दिखायी दिया जो सुबह की पारी में देखने को मिला था। रोमाना को भी यही लग रहा था कि मनीषा कोइराला को भारत ने सब कुछ दिया लेकिन वह आज चीन के साथ खड़ी हैं।

एक समझदार ऐंकर किस तरह सत्ता के दबाव में जाने-अनजाने मूर्खता के दलदल में धँसता चला जाता है, इसकी शानदार मिसाल रोमाना हैं। रोमाना का सवाल था कि ऐसा क्या हो गया कि ‘सत्तर साल में पहली बार भारत को नेपाल आँख दिखाने की कोशिश कर रहा है?’ यह वाक्य किसी पत्रकार का नहीं बल्कि छोटे पड़ोसी देश की संप्रभुता को ठेंगा दिखा रहे शासक वर्ग के किसी सदस्य का हो सकता है।

बहरहाल, इस प्रोग्राम में दो विशेषज्ञ थे- भाजपा के प्रेम शंकर शुक्ला और सेना के अवकाश प्राप्त मेजर जनरल जी. डी. बख्शी। दोनों को कुछ पता ही नहीं था कि नक्शे का पूरा मामला क्या है, लेकिन चीन और पाकिस्तान के खिलाफ तो बगैर किसी तैयारी के कभी भी बोला जा सकता है! दोनों ने चीन की साजिश पर रोशनी डाली और जनरल बख्शी ने इस बात के लिए पिछली सरकारों को कोसा कि उसने जेएनयू से वामपंथियों को भेज कर नेपाल में माओवादियों को मजबूत किया जिसका खामियाजा आज हम लोग भुगत रहे हैं। उन्होंने “इस प्लैनेट अर्थ के एकमात्र हिन्दू राष्ट्र” को बचाने की गुहार लगाते हुए अपने ज्ञान का खुलासा किया। दूसरे ज्ञानी प्रेम शंकर शुक्ला ने इस बात पर कोफ्त किया कि नेपाल के माओवादी नेता प्रचंड को भारत ने जेएनयू में पाला-पोसा।

प्रचंड का कभी जेएनयू से कोई सरोकार नहीं था। बेशक, बाबूराम भट्टराई ने जेएनयू से डॉक्टरेट किया था। ऐंकर रोमाना को लग  गया था कि इन्हें देर तक स्क्रीन पर रखना ठीक नहीं है, लिहाजा यह कहते हुए कि आपके आरोपों का जवाब देने के लिए कांग्रेस का कोई यहाँ नहीं है, डिबेट का समापन कर दिया।

किसी चैनल पर तर्कपूर्ण ढंग से यह देखने को नहीं मिला कि कालापानी, लिपुलेक विवाद वस्तुत: क्या है और दोनों देशों में चूक कहाँ हुई कि हालात इतने तनावपूर्ण हो गये। क्यों नहीं समय रहते बातचीत के जरिये इसका कोई हल ढूंढा गया? नेपाल के दो ही पड़ोसी हैं- भारत और चीन। क्या किसी ने इस पर चर्चा की कि भारत के साथ जबर्दस्त सांस्कृतिक, सामाजिक, भौगोलिक निकटता होने के बावजूद नेपाल आज क्यों चीन के ज्यादा करीब दिखायी दे रहा है? बावजूद इसके, यह मान लेना कि चीन के इशारे पर उसने नया नक्शा तैयार किया है, मामले की तह तक जाने से कतराना है।

कालापानी पर भारत ने तो लिपुलेक पर चीन ने उसे डंक मारा है। इसे समझो शासकों और उनके पिट्ठू पत्रकारों! इस औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति पाओ कि छोटा राष्ट्र-छोटी संप्रभुता। संप्रभुता किसी देश के भौगोलिक आकार और आर्थिक हैसियत से नहीं आँकी जाती। जब तक इसे नहीं समझोगे, पड़ोसियों की नफरत पाते रहोगे और इस सबका ठीकरा कभी चीन पर तो कभी पाकिस्तान पर फोड़ते रहोगे।


आनंद स्वरूप वर्मा हिंदी के मूर्धन्य पत्रकार, अनुवादक और लेखक हैं, “समकालीन तीसरी दुनिया” के संस्थापक संपादक हैं तथा तीसरी दुनिया के देशाें के जानकार हैं।

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समकालीन तीसरी दुनिया के संस्थापक, संपादक और वरिष्ठ पत्रकार

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56 Comments on “मनीषा के बहाने एक देश की सम्प्रभुता को ठेंगा दिखाने वाले शासक वर्ग के पिट्ठू पत्रकार”

  1. Thank you for the diplomatic write up. We are great neighbor of India and we value that. We always welcome the tactful debate on every issues including this Lipulek, Kalapani. As far as Manisha Koirala is concerned she was there for her talent as many foreigners still in Bollywood.

  2. यह हाेेता है पत्रकारिता … अगर यहि पत्रकारिता रहि हाेती ताे भारत-पाकिस्तान के सम्बन्ध भि सुमधुर हाेते अाज ।।

  3. सबलाेग अापके तरह ये बातकाे समझते तााेाे य लफडा नहि हाेता ।। स्यालुट यु ।।

  4. सहि कहाँ जाये तो ये है पत्रकारिता।जो सस्ते लोकप्रियता और च्यानलके टिआरपी बढानेके कितने निचेतक गिरके दुसरेके मान सम्मान सार्वभौमसत्ता पे आच आने वाले बात कितने हल्के फुल्केसे कहदेते है।हमलोग भि नहि चाहते है कि कुटनैतिक और रोटि बेटिका सम्बन्ध विगढे रहे। पडोसी देशके आत्मसम्मान सार्वभौमसत्ता सत्ताको आदर करते है भला हि हमारा मुलुक छोटा हो यहि बात पडोसन से अपेक्षा भि रख्ते है।अगर यहि बात वो च्यानलवाले समझते तो कैसा होता ये नौवत नहि आता।असल भावनात्मक लेखके लिए सलाम

  5. Fearless, free and just journalism is one thing and taking it to the most disgusting level is another…!
    Journalism is the mirror of society not the judiciary body.
    Targeting individuls for their freedom of speech is really cheap and stands in a poor taste !
    Such medias with uncensored thought and dictions are actually the real threat to our long standing mutual friendship and trust.

    One should not forget that the India-Nepal friendship is as old as the Ramayana…It can be sorted out by bilateral communications and negations.
    Let the govt. do its duty and media too, must mind its own.

  6. Heartily thank you for your fair article. This the way to do journalism in every country. This sorts of journalism assist to put light on the issues rather than taking side. In this article no space for any offensive word, no any word to bully, no any gesture to attack dignity of any nation and people. If every journalist had practised this sorts of journalism there would have been better relation with all neighbouring countries.
    Really, really salute from Nepal.

  7. पत्रकार अफवाह फैलाने के लिए नहि सच उगलवाने के लिय होतेँ है। कुछ भारतिय मिडिया औँ ने अपना महान भारत और भारतवासियों को लज्जित कररहेँ हे।उन्हे सुधर्ना चाहिए।

  8. हमें खुशी हुई महान भारतमेे आज भी आप जैसे सच्चेे ओर इमानदार व्यक्ति बाँकी है वर्ना कुछ भारतीय पत्रकार ओर मिडियावालोंकें अत्यन्त तुच्छ हरकतों ने कोई कसर बाँकी नही छोडा हमारे सदियों पुराने रिश्तेको नेस्तनावूद करने के लिए । समय ओर परिस्थिति सदा एक जैसे नही होते । इस समय जो समस्या उत्पन्न हुई है उसे एक स्वस्थ्य वातावरणमे बातचितके जरिये समाधान ना किया जा सके इतना भी नामुमकिन नही है । हम सदा भारत ओर भारतबासीको प्यार ओर इज्जत करते है ओर अपने लिए भी यही चाहते हैे । हमारेे बिचका प्यार ओर भाइचारा सदा कयम रहे यही कामना है । आननदजीको बहुत बहुत धन्यवाद ।

  9. Thank you for your truthful writing भारत से हमारा नजदिक का सम्बन्ध होते हुय भी भारत का मुन्नाभाई प्रबृत्ति का कारण जटिल अवस्था नेहरु कि प्रधानमन्त्री काल से सुरु हुवा। ब्रिटिश इन्डिया और नेपाल से किया गया सन्धि मे भी नेपाल ने तोप के बल मे दार्जिलिंग कुमाउ गढवाल हिमान्चल तक कि जमिन गवाना पाडा। लेकिन १८१६ कि सुगौली सन्धि को भी भारत पालना नही कर राहा हे। जिस संधि मे काली नदि के उद्गम स्थल लिम्पियाधुरा से पुरब का भूमाग नेपाल सरकार का होनेका बात हे। अंग्रेज तो भारत छोड के गय,लेकिन अभि का भारत अंग्रेज का भुत सबार कर के गय। भारत चीन युद्द मे कालापानी मे भारतीय फौज तैनात कर दिया गया। नेपाल भारत खुन के सम्बन्ध के तहेत उस समय वैठ तो गय लेकिन छोटे और कमजोर देस को दबदबा बनाके भारत उसी भूभाग को अपने भूभाग बानाने मे लग गय। सरासर ना इन्साफी। भारत से गैर जिम्मेवार और बेइमानी का इतिहास यहि से सुरु होता हे। भारत चहता हे नेपालमे अ स्थिरता हो,गरिबी बने रहे,नेपाली फुटे टुटे रहे,यहाँ का राजनीति खराब हो तो उसका मनसुबा पुरा हो जायगा। यह बात ३/३ बार नाकाबन्धि लगाने,राज शाही को फेकने,माओबादि को बम,बारुद,बन्दुक और तालिम दे कर नेपाल धोस्त बनाने का मिशाल से पता चलता हे। इस बिषय मे रअ के पुर्ब प्रमुख हर्मिज सविस्तार आपनी पुस्तक मे लिख चुके हे। पडोशी का घर मे आग लगे तो अपना घर भी सुरक्षित नही होता, यह बात सभिको समझ मे आना चाहिय। चिन के साथ् सगरमाथा बिबाद १९५५ कि दसक मे हि समाधान हो चुका हे। २/४ जगह सिमा समस्या को बात सुना हे ओह भी इतना जटिल नही हे। गुगल मे माउन्ट एभरेस्ट चिन मे दिखाया गया तो य गुगल कोहि रास्ट्र तो नही हे। कोहि प्रमाणिक युयन का निकाय भी नही हे। दुनिया के सम्बन्ध मे सभी चिज बदल सकते हे,पडोशी अशल हो या खराब नहीं बदल सकते। आखिर मिल के रहना बाध्य हे। नेपाल भारत दोनो देसका जनता चाहते हे कि दोनो देसका सम्बन्ध अटुट रहे। बशुधैब कुटुम्बकम के तहेत चले। सत्यमेब जयते हो। मुझे सोतंत्र नजर से देख कर य लगता हे कि नेपाल चिन के बहकाबे मे आया। य कहेना प्रोपोगान्डा हे। अपनी जमिन को हक जताने मे किशी का कहेना नही पडेगा। लेकिन समय का इन्तजार जरुर करना चाहिय। नेपाल के सभी पार्टी नेता य मानते हे कि भारत नेपाल के जमिन हडप रहा हे और उसको यैसा हर्कत नही करना चाहिय। ओह नेपाल भारत के फरेन सेक्रेटरी लेबल का बार्ता करने भी टाल रहा हे। नेपाल भारत के प्रबुद्द समूह के बनायागया EPJप्रतिबेदन भी सालो से रिजेक्ट कर रहा हे जबकि ओह प्रतिबेदन दोनो देस कि सिमा समस्या समाधान हेतु मिल कर हार्ड वोर्क करके बनाया गया हे। अभि भारत के मेडिया यक तरफा जनताको गुमराह रख कर मेडिया बाजी कर रहे हे। य उसका बाजारु नियत हे। बिबिसी हिन्दि और नेपाली समाचार ज्यादा सोतंत्र और बिस्वसनिय हे। नेपाल भारत दोनो देस मिलकर भारत द्वार बिबाद किया गया समस्या हल करना चाहिय। भारत ब्याक होना चाहिय। बल के जरिय संसार जितना हे तो भारत संसार जिते नही तो मित्रता और छोटे पडोश को भी इज्जेत करना चाहिय। उसका स्वाभिमान छोटा बडा नही हे।हे।JAY HO

  10. धन्यबाद आप की पत्रकारीता के लिए । महज कुछ भारतीय मीडियाँ कालापानी, लिपुलेक और लिम्पियाधुरा विवादों का मूल कारण भी नहीं जानता है। अधिकांश भारतीय मीडिया ने नेपाल के मुद्दे पर चीन को अपनी नई राजनीतिक और प्रशासनिक मानचित्र जारी करने के लिए नेपाल की निकटता दिखाने की पूरी कोशिश की है। भारतीय मीडिया इस तथ्य को कभी उजागर नहीं कर पाया है कि 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद से भारत ने नेपाली क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है और वह इस तथ्य को उजागर नहीं करना चाहता है।

  11. India is the only country in south asia which has border disputes with 7 out of its 8 neighbors. It means India itself is the root cause of the problem. It sees itself as the big brother and tries to bully its neighbors but is not aware of its responsibilities. The mainstream modi-fed media is happy to bark time and again against one or other neighbors and project india as super power among its weak neighbors.

  12. आनन्द जी, नमस्कार !
    सत्ताको दुरुपयोग ले पत्रकार र मिडिया कसरि दुनिया का सामु नाङ्गो हुन्छ र तेस्ता मिडिया ले सहि प्रकाश नगरि मिथ्या प्रचार गरे र दुनिया भ्रमित पार्ने प्रयास गर्दा को छवि नै ‘भदोरिया मोडल’ प्रकट भएको तपाईं को टिप्पणी बाट बोध हुन्छ ।
    मिडिया करेक्सन मा तपाईं को आलेख महत्वपूर्ण छ । हाम्रो सुन्दर देश नेपालको
    कालापानी – लिम्पियाधुरा दुइ छिमेकिले कसरी कुदृष्टि लगाए र सो उपर हाम्रो गुनासो के हो भन्ने कुरा तपाईंले बुझाउन खोजेको शैली पनि मन पर्याे । धन्यवाद ।

  13. Thank you for proving that , even responsible media persons exist in India.

    These kinds of irresponsible news only increases the bitterness between two nations.

  14. Nepal was officially formed in September 25, 1768(Considering just the modern history of Nepal) and India was officially formed in August 15, 1947, here you can clearly see the fact that Nepal is 178 years, 10 months, 21 days older than India.

    Do u call your younger brother as ‘बडे भाई’ if he grows taller than you or becomes rich? absolutely no.

    So I request Indian Leaders & so called Media not to mention “We treat Nepal like a (छोटे भाई) younger brother”.

  15. Nepal was officially formed in September 25, 1768(Considering just the modern history of Nepal) and India was officially formed in August 15, 1947, here you can clearly see the fact that Nepal is 178 years, 10 months, 21 days older than India.

    Do u call your younger brother as ‘बडे भाई’ if he grows taller than you or becomes rich? absolutely no.

    So I request Indian Leaders & so called Media not to mention “We treat Nepal like a (छोटे भाई) younger brother”.

  16. Let this matter be solved by diplomatic level . You are clear in your view but those so called journalist on TV represent the intellectual level of indians which i think is not true because your editorial prooves that.

  17. These are the intellectual statements in such arguments rather than creating negative issues.
    Thank you

  18. I want to invite India with full proof , if india can proved that they belongs, Kalapani, limpiyadhura and Lipulake, than i swear i will say India is great..but if cant than what india and indian can do ???????

  19. इनको खुद को इतनी सम्झ नही है कि अगर किसी कि कोइ चिज तुम्हे चाहिए तो उश्से पुछते है जिसकी ओ चिज है नकि किसी औरसे ! नेपाल कि जमिन चाइना से पुछ के रास्ता बना रहेहो जब नेपाल अपने हि चिज को अपना बोले तो बिन औकात वाले पत्रकार मजाक बनाते है ! आर्मी चिफ ने तो हद करदी !

  20. Most of the indian journalists not all lack academic intellectual. They hunch any matter as their raw guesses. They are following an ideology that you should speak/cry louder and louder if you want establish anything to be truth

  21. Well said sir… sooner or later … all have to accept the fact….

  22. Thank you Mr Aanand Verma

    people’s with this thoughts are the real back bone of India-Nepal friendship. In this world everybody wants respect that’s why earlier in talk show Mr Arnav Goshwami get sufficient reply from Dr Minendra Rijaal.

    Again we are citizens of an independent country every time if somebody says nepalese are influenced from chinese that’s not true or unbearable.

  23. Thank you, Sir ! I was really surprised by the level of dialogue against Manisha. I even questioned myself if all journalists of India are like that. Now I can say, no they are not. Common sense should not be uncommon in a great nation like India.

  24. हमे लादता है पूरे भारत में आनन्द स्वरूप बर्मा ही एक वो सख़्त है जो गान्धी जी के स्वतन्त्रता व स्वाभिमान को समझते है । अंग्रेजो के ग़ुलामी से मुक्त होनेके वाद जो भी भारतीय सत्ता मे आया, नोकरशी में पहुँचा व सेना में बैठा वो सारे का सारे गुलाम है, लाचार है और पटमुर्ख दास मानव है । अभि तो पूरे भारत का केन्द्र में नाथूराम के भक्तों का ही राज है । अरे वो मूर्ख मानव ! तुम जानते हो ? तुम कल्पना करो गोर्खा रायफ़ल्स वैगर का तुम्हारा भारत ! एक दिन नहीं टिकेगा । नेपाल का १२० जगहों पर सिमा अतिक्रमण किया गया है ।

    ईस में से कालापानी में नेपाली भूमि पर फौज रखा हुवा है । तो क्या हम चुप बैठें ? तुम लोग ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद से हार मानी थी और ग़ुलामी स्वीकार की थी . हम नेपाली लोग तो तुम जैसा नहीं थे । एक विश्व विजेता महाशक्ति ब्रिटिश ईण्डिया से लड्ते लड्ते आधा से ज़्यादा भूमि गवाँकर ईत्ना बचा पाए थे । जव ब्रिटेन भारत से चला गया तव हमें वो गँवा हुवा भूमि मिलना चाहिए था । लेकिन ईण्डिया से ब्रिटिश तो चला गया उस्का ग़ुलाम और नाथूराम जैसे हत्यारे जम्जमाते हुए सत्ताम में बिठाया गया । हमें नेपाल का शासक जो भारत में राज करने वाला ब्रिटिश के ग़ुलाम और नाथूराम के भक्तों का ग़ुलाम शासक से भी नफ़रत है । हमें नेपाल की सार्वभौम सत्ता से दिल से ज़्यादा प्यार है । यह भारत विरोधी नहीं हैं । हमलोग भारतीय नागरिक और बर्मा साहव जैसा असली मानव से भी प्यार करते हैं ।

  25. हमे लागता है पूरे भारत में आनन्द स्वरूप बर्मा ही एक वो सख़्त है जो गान्धी जी के स्वतन्त्रता व स्वाभिमान को समझते है । अंग्रेजो के ग़ुलामी से मुक्त होनेके वाद जो भी भारतीय सत्ता मे आया, नोकरशी में पहुँचा व सेना में बैठा वो सारे का सारे गुलाम है, लाचार है और पटमुर्ख दास मानव है । अभि तो पूरे भारत का केन्द्र में नाथूराम के भक्तों का ही राज है । अरे वो मूर्ख मानव ! तुम जानते हो ? तुम कल्पना करो गोर्खा रायफ़ल्स वैगर का तुम्हारा भारत ! एक दिन नहीं टिकेगा । नेपाल का १२० जगहों पर सिमा अतिक्रमण किया गया है । ईस में से कालापानी में नेपाली भूमि पर फौज रखा हुवा है । तो क्या हम चुप बैठें ? तुम लोग ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद से हार मानी थी और ग़ुलामी स्वीकार की थी . हम नेपाली लोग तो तुम जैसा नहीं थे । एक विश्व विजेता महाशक्ति ब्रिटिश ईण्डिया से लड्ते लड्ते आधा से ज़्यादा भूमि गवाँकर ईत्ना बचा पाए थे । जव ब्रिटेन भारत से चला गया तव हमें वो गँवा हुवा भूमि मिलना चाहिए था । लेकिन ईण्डिया से ब्रिटिश तो चला गया उस्का ग़ुलाम और नाथूराम जैसे हत्यारे जम्जमाते हुए सत्ताम में बिठाया गया । हमें नेपाल का शासक जो भारत में राज करने वाला ब्रिटिश के ग़ुलाम और नाथूराम के भक्तों का ग़ुलाम शासक से भी नफ़रत है । हमें नेपाल की सार्वभौम सत्ता से दिल से ज़्यादा प्यार है । यह भारत विरोधी नहीं हैं । हमलोग भारतीय नागरिक और बर्मा साहव जैसा असली मानव से भी प्यार करते हैं ।

  26. Thank you Verma saheb for your illustrious example of journalism. I am aware that Indian people at large are friendly towards Nepal and Nepali. Let us make set proximity an example for the world. Let us be good neighbors; let us not try to play a bullying ‘Big Brother’ role. Let us live as equal and sovereign nations. Let us mend our fences and attitude.

  27. Sensible analysis of current outbreak. Can’t believe that even renowned journalist also crossed all the limitations against of a sovereign country. Those attacks from News Channels exhibited dangerous conclusion from colonized mindset against a retweet where citing self- respect of a citizen of her country in extremely polite language.

  28. वर्मा जी, काश! आपने “भारतीय वायरस” और “सीमा मेवा जायते” के ऊपर भी कुछ प्रकाश डाला होता तो आपकी पत्रकारिता को एक ईमानदार पत्रकारिता माना जाता… आखिर एक देश का शीर्ष नेतृत्व अपने पड़ोसी देश के लिए इस तरह की अपमान जनक बातें कैसे कर सकता है… भूतकाल में हमारे देश के द्वारा किए गए सभी अहसान भुला कर इस स्तर की मानसिकता को क्या कहेंगे आप?

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